कहानी का नाम: “शेरू – मोहल्ले का असली हीरो”

क्या वफादारी सिर्फ इंसानों की जागीर है? क्या एक बेजुबान जानवर, जिसे हम रोज दुत्कारते हैं, पत्थर मारते हैं और अपनी गली से भगा देते हैं, हमारे लिए अपनी जान भी दांव पर लगा सकता है? और अगर वह ऐसा कर दे, तो क्या हम इंसानों में इतनी इंसानियत बची है कि हम अपनी गलती मानकर उस मूक नायक के आगे सिर झुका सकें?

यह कहानी है शेरू की। जयपुर के बाहरी इलाके में बसी एक मध्यमवर्गीय कॉलोनी थी – शांति विहार। नाम तो शांति विहार था, लेकिन वहां के लोगों के दिलों में शांति कम और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ ज्यादा थी। इसी कॉलोनी की गली नंबर तीन में पिछले कुछ महीनों से एक आवारा कुत्ता घूमता था, जिसे सबने शेरू नाम दे दिया था।

मोहल्ले वाले जिस कुत्ते को दुत्त्कार कर भगा देते थे , रात उसी कुत्ते ने  भौंक कर चोरों को पकड़वा दिया

शेरू का शरीर दुबला-पतला था, उसकी पसलियां साफ दिखती थीं। उसका रंग मिट्टी और धूल से मटमैला हो गया था। एक कान का ऊपरी हिस्सा शायद किसी लड़ाई में कट गया था और उसकी आंखों में एक गहरी उदासी थी। मोहल्ले के लोग उसे तिरस्कार की नजर से देखते थे। बच्चे उसे पत्थर मारते, औरतें पानी फेंकतीं और मर्द उसे डांटकर भगा देते। लेकिन शेरू कभी किसी पर भौंकता नहीं था, बस चुपचाप वहां से चला जाता।

इस बेरुखी भरी दुनिया में शेरू की उम्मीद की एकमात्र किरण था – दस साल का रोहन। रोहन एक शांत और दयालु बच्चा था। जब भी उसकी मां उसे स्कूल के लिए रोटी देती, वह एक टुकड़ा बचाकर शेरू के लिए रख लेता और स्कूल से लौटते वक्त उसे खिला देता। शुरू-शुरू में शेरू उससे भी डरता था, लेकिन धीरे-धीरे उसने रोहन की आंखों में अपने लिए प्यार देख लिया था। अब वह रोज दोपहर को रोहन के स्कूल से लौटने का इंतजार करता था।

इसी बीच, गली के आखिर में बने सेठ गिरधारी लाल के बड़े बंगले में जोर-शोर से शादी की तैयारियां चल रही थीं। सेठ जी अपनी इकलौती बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। यह खबर बाहर तक फैल गई थी और शहर के कुख्यात चोरों की ब्लैक कैट गैंग तक भी पहुंच गई थी। उन्होंने तय किया कि शादी से एक रात पहले जब घर में सबसे ज्यादा कीमती सामान होगा, वे चोरी करेंगे।

आखिरकार वह रात आ गई। घना कोहरा, सर्दी और सन्नाटा। सब लोग अपने-अपने बिस्तरों में सो रहे थे। रात के करीब डेढ़ बजे चार नकाबपोश चुपके से सेठ जी के घर की पिछली दीवार फांद गए। गार्ड्स को पहले ही बेहोश कर दिया गया था। शेरू, जो पास के खाली प्लॉट में सो रहा था, उसे कुछ अजीब सा महसूस हुआ। उसकी छठी इंद्री ने खतरे को भांप लिया। वह तुरंत सतर्क हो गया और चोरों की तरफ बढ़ा।

जैसे ही चोरों ने ताला तोड़ना शुरू किया, शेरू ने जोर-जोर से भौंकना शुरू कर दिया। उसकी आवाज रात के सन्नाटे को चीरती हुई दूर तक गूंज गई। पहले तो लोगों ने उसे चुप कराने की कोशिश की, किसी ने पत्थर मारा, किसी ने पानी फेंका, लेकिन शेरू रुका नहीं। एक चोर ने उसकी टांग पर जोर से पत्थर मारा, जिससे वह लहूलुहान हो गया, लेकिन उसने भौंकना नहीं छोड़ा।

रोहन भी जाग गया था। उसने अपने पिता से कहा, “पापा, शेरू ऐसे कभी नहीं भौंकता, जरूर कुछ गड़बड़ है।” उसके पिता ने पुलिस को फोन किया। अब तक मोहल्ले के और लोग भी जाग चुके थे। चोरों को लगा कि अब पकड़े जाएंगे, तो वे भागने लगे। पुलिस की गाड़ी की आवाज सुनकर दो चोर भाग निकले, लेकिन दो को पकड़ लिया गया।

जब सब शांत हुआ, तो सबकी नजर शेरू पर पड़ी, जो दर्द से कराह रहा था। उसकी टांग टूट चुकी थी और वह खून से लथपथ था। रोहन दौड़कर उसके पास गया और उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। अगली सुबह पूरा मोहल्ला इकट्ठा हुआ। पुलिस ने बताया कि अगर शेरू समय पर न भौंकता, तो सेठ जी का घर पूरी तरह लुट जाता।

सेठ गिरधारी लाल की आंखों में आंसू थे। उन्होंने ऐलान किया कि शेरू के इलाज का सारा खर्च वे उठाएंगे। शेरू को अस्पताल ले जाया गया, उसकी टांग पर प्लास्टर चढ़ा। जब वह कुछ हफ्तों बाद लौटा, तो मोहल्ले वालों ने उसके लिए एक सुंदर सा लकड़ी का घर बनवाया, जिस पर लिखा था – “हमारा हीरो शेरू”।

अब शेरू आवारा नहीं रहा, बल्कि शांति विहार का गौरव बन गया। हर घर के बाहर उसके लिए रोटी और दूध रखा जाता, बच्चे उसके साथ खेलते, और बड़े उसकी पीठ थपथपाते। ब्रिगेडियर सिन्हा, जो कभी उसे भगाते थे, अब रोज सुबह उसकी सैर पर ले जाते। मिसेज वर्मा अपने हाथों से उसे दूध पिलातीं।

शेरू ने साबित कर दिया कि वफादारी और प्रेम किसी शक्ल या नस्ल के मोहताज नहीं होते। कभी-कभी एक छोटी सी रोटी और थोड़ा सा प्यार किसी बेजुबान को इतना वफादार बना सकता है कि वह आपके लिए अपनी जान भी दांव पर लगा दे।

अगर शेरू की वफादारी ने आपके दिल को छू लिया हो, तो इस कहानी को जरूर शेयर करें और जानवरों के प्रति प्रेम और सम्मान का संदेश सब तक पहुंचाएं।