पिता की आखिरी इच्छा के लिए बेटा 7 दिन के लिए किराए की बीवी लाया… फिर जो हुआ
यह कहानी वाकई इंसानियत और रिश्तों की गहराई को छू लेने वाली है। इसमें हमें यह सिखने को मिलता है कि कभी-कभी ज़िंदगी में मजबूरी से लिए गए फैसले ही हमारे लिए सबसे बड़े आशीर्वाद बन जाते हैं।
राजीव राठौर, एक करोड़पति बेटा, अपने पिता की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए सात दिन में शादी करने को मजबूर हो गया। उसकी मंगेतर वैष्णवी ने इंकार कर दिया, और परिस्थितियों ने उसे तनवी वर्मा तक पहुँचा दिया—एक साधारण लड़की, जो अपनी मां के इलाज के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थी। दोनों का रिश्ता सिर्फ सात दिन के कागजी समझौते से शुरू हुआ, लेकिन धीरे-धीरे उनके बीच भावनाएं, अपनापन और विश्वास पनपने लगे।
तनवी की खामोशी, उसकी सादगी और त्याग ने राजीव के दिल को छू लिया। वहीं राजीव की देखभाल और भरोसे ने तनवी के मन में जगह बना ली। सात दिनों का यह रिश्ता अब मजबूरी नहीं बल्कि एक गहरी मोहब्बत में बदल चुका था। जब विदा का समय आया, तो राजीव ने महसूस किया कि यह रिश्ता अब सिर्फ कागजों पर नहीं बल्कि दिल और आत्मा पर लिखा जा चुका है।
आखिरकार राजीव ने तनवी को रोक लिया और दोनों ने बिना शर्त एक नई जिंदगी की शुरुआत की। उनकी यह कहानी समाज के लिए एक आईना है कि रिश्ते दौलत या दिखावे से नहीं, बल्कि सच्चाई, भरोसे और छोटे-छोटे एहसासों से बनते हैं।
👉 यह कहानी हमें यह सिखाती है कि प्यार अक्सर वहीं से जन्म लेता है जहां हम उसकी उम्मीद तक नहीं करते। मजबूरी से शुरू हुए रिश्ते भी अगर दिल से निभाए जाएं तो जीवनभर का साथ बन सकते हैं।
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मेरे जीवन की शुरुआत बहुत साधारण थी। पढ़ाई ख़त्म करने के बाद मैं एक निर्माण कंपनी में काम करने लगा। शुरू-शुरू में मेरा काम सिर्फ़ मजदूरों और कर्मचारियों की टीम का प्रबंधन करना था। धीरे-धीरे मुझे काम की आदत हो गई, और जब लोगों से अच्छे रिश्ते बन गए तो मैंने हिम्मत जुटाई और अलग होकर अपनी एक छोटी सी कंपनी खड़ी कर दी। मेरी कंपनी देहरादून में थी, लेकिन काम पूरे उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में मिलता था। इसलिए मैं हमेशा यात्रा करता रहता था। जब भी घर लौटता, मेरी पत्नी सुनीता अपने चेहरे पर वही संतोष और अपनापन लिए मेरा इंतज़ार करती। उसने तीन बच्चों—दो बेटे और एक बेटी—को जन्म दिया। मैंने उससे कहा कि अब खेती-बाड़ी छोड़कर सिर्फ़ बच्चों और घर पर ध्यान दे। आर्थिक बोझ मैं उठा लूँगा। सुनीता ने मेरी बात मान ली।
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सिर्फ एक रात के लिए घर में सहारा माँगा था, उसने जिंदगी ही बदल दी 🥺😭
सिर्फ एक रात के लिए घर में सहारा माँगा था, उसने जिंदगी ही बदल दी 🥺😭 शाम का वक़्त था।…
देहरादून की ठंडी सर्दियों की एक सुबह। पहाड़ों पर बर्फ की हल्की चादर बिछी थी और सूरज की किरणें धीरे-धीरे बादलों के बीच से झाँक रही थीं। शहर के मध्यमवर्गीय रिहायशी इलाक़े में बसे शर्मा परिवार को लोग अक्सर सफलता और संतुलित जीवन का उदाहरण कहते थे। पति अर्जुन शर्मा एक सिविल इंजीनियर थे और एक नामी ठेकेदार कंपनी में काम करते थे। काम का दबाव भले ही ज़्यादा था, पर स्थिर आय और इमानदारी के लिए लोग उनका सम्मान करते थे। पत्नी नेहा, जो कुछ ही गलियों दूर स्थित एक छोटे से ब्यूटी सैलून में काम करती थी, पड़ोस की औरतों के बीच लोकप्रिय थी। उनके दो छोटे बच्चे—राघव और प्रिया—हर सुबह नीली यूनिफ़ॉर्म पहने, हाथों में पानी की बोतल और बैग लेकर हँसते-खेलते स्कूल जाते। मोहल्ले वाले अकसर कहते: “शर्मा परिवार का घर मंदिर जैसा शांत है, जहाँ से हमेशा हँसी-खुशी की आवाज़ें आती हैं।”
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