3 साल से गेट पर बैठा भिखारी बच्चा…प्रिंसिपल ने अंदर बुलाकर एक सवाल पूछा—फिर जो हुआ, सब दंग रह गए
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तीन साल से गेट पर बैठा भिखारी बच्चा… प्रिंसिपल ने अंदर बुलाकर एक सवाल पूछा—फिर जो हुआ, सब दंग रह गए
दिल्ली का सूर पब्लिक स्कूल, शहर के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक। हर सुबह यहां हजारों बच्चे हँसते-खिलखिलाते, अपने सपनों की ओर बढ़ते हुए स्कूल के गेट से भीतर जाते थे। गाड़ियों की कतार, हॉर्न की आवाज और बच्चों की चहल-पहल से माहौल हमेशा गुलजार रहता था। लेकिन इसी भीड़ के कोने में, स्कूल के मुख्य गेट के बाईं तरफ, पिछले तीन सालों से एक आठ साल का बच्चा चुपचाप बैठा रहता था। नंगे पैर, फटी शर्ट, धूल से सना चेहरा और आंखों में छुपा हुआ डर—वह डर जिसे देखकर पत्थर दिल भी पिघल जाए।
बच्चों के लिए वह बस एक डर था, कुछ बच्चों के लिए मजाक, लेकिन किसी के लिए वह एक इंसान नहीं था। कोई उसका नाम नहीं जानता था, किसी ने उसकी कहानी नहीं पूछी थी। वह हर दिन उसी जगह बैठा रहता, हाथ में एक पुराना कटोरा लेकर, जिसमें लोग कभी-कभी सिक्के डाल देते। उसके लिए दुनिया बस स्कूल के गेट तक सीमित थी।
लेकिन आज कुछ अलग होने वाला था। स्कूल की प्रिंसिपल अनुपमा शर्मा, जो पिछले 22 साल से यहां थीं, सख्त थीं, लेकिन दिल से बेहद संवेदनशील। सुबह 7:12 मिनट पर जब वह स्कूल के गेट से अंदर जा रही थीं, उनकी नजर पहली बार सीधे उस बच्चे की आंखों से मिली। बस एक ही पल में उन्होंने कुछ ऐसा देखा, जिसने उन्हें रोकने पर मजबूर कर दिया।
अनुपमा झुककर बोलीं, “बेटा, तुम रोज यहां बैठते हो? क्या नाम है तुम्हारा?” बच्चा चुप रहा, उसकी सांसें कांप रही थीं, आंखों में डर साफ झलक रहा था। अनुपमा ने प्यार से कहा, “डरो मत, मैं तुम्हें मारूंगी नहीं। चलो मेरे साथ आओ, अंदर चलकर बात करते हैं।” पूरे स्कूल ने इस पल को नोटिस किया, क्योंकि आज पहली बार वह बच्चा उठ रहा था, पहली बार किसी के साथ अंदर जा रहा था।
वह धीरे-धीरे प्रिंसिपल के पीछे चला, उसके नंगे पैर ठंडी फर्श पर कांप रहे थे। जैसे ही उसने प्रिंसिपल के ऑफिस में कदम रखा, अचानक दो टीचर और एक पीटी सर भागते हुए अंदर आए। उनके चेहरे पर दहशत थी। एक ने तो सीधे कहा, “मैडम, इसे अंदर मत लीजिए, ये बच्चा…” उनकी आवाज रुक गई, जैसे किसी ने उनका गला दबा दिया हो।
अनुपमा चौंककर बोलीं, “क्यों? क्या हुआ है? कोई बताएगा?” कमरे में सन्नाटा छा गया। सिर्फ बच्चे की तेज सांसें सुनाई दे रही थीं। तभी बच्चे की नजर टेबल पर रखे एक पुराने फोटो फ्रेम पर पड़ी। उसने कांपते हाथों से फोटो उठाया। उस फोटो ने पूरे कमरे की हवा बदल दी। फोटो में स्कूल की एक पुरानी क्लास थी और पहली बेंच पर बैठा था वही बच्चा। पूरा स्टाफ सदमे में था। अनुपमा धीरे से बोलीं, “यह इस स्कूल का ही बच्चा था?”
कमरे में खड़े टीचरों की सांसें अटक गईं। अब इस मासूम की सबसे छुपी हुई कहानी सामने आने वाली थी। अनुपमा ने जैसे ही फोटो उठाया, उनके हाथ कांपने लगे क्योंकि फोटो में वही बच्चा था—साफ यूनिफार्म में, मुस्कुराता हुआ, पहली बेंच पर बैठा हुआ। वे हड़बड़ा कर बोलीं, “ये… ये तो उसी क्लास का बच्चा है। लेकिन यह हालत कैसे?” उनका सवाल अधूरा रह गया। पीटी सर ने एक लंबी सांस भरी, जैसे तीन साल से सीने में दबा राज बाहर आ रहा हो। “मैडम, इसका नाम आरुष राठौर है। तीन साल पहले तक यह क्लास एक बी का सबसे होशियार स्टूडेंट था। शांत, सभ्य और सबका चहेता।”
अनुपमा के चेहरे पर अविश्वास था। वे आगे झुककर बोलीं, “लेकिन फिर इसके मां-बाप कहां हैं? इसे इस हालत में किसने छोड़ दिया?” कमरे में बैठे हर इंसान की आंखें झुक गईं, जैसे कोई भारी सच्चाई उनकी जुबान रोक रही थी। तभी एक टीचर धीरे-धीरे बोली, “मैडम, आपको याद होगा तीन साल पहले स्कूल वैन का एक्सीडेंट हुआ था।”
अनुपमा का चेहरा अचानक पीला पड़ गया। उनके दिमाग में वो दिन फ्लैशबैक की तरह दौड़ा—तेज बारिश, फिसली सड़क, खाई में गिरी वैन, और खून में लथपथ ड्राइवर। लेकिन उन्होंने याद करते हुए कहा, “उसमें कोई बच्चा था? पुलिस रिपोर्ट में तो सिर्फ ड्राइवर लिखा था।”
टीचर की आंखें भर आईं। “मैडम, पुलिस रिपोर्ट अधूरी थी। उस वैन में आरुष भी था।” कमरा अचानक भारी हो गया। अनुपमा का गला रुक गया। “तो उसे अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया?”
पीटी सर कांपती आवाज में बोले, “मैडम, ड्राइवर तो मौके पर ही मर गया था और आरुष खाई के किनारे बेहोश पड़ा था। भीड़ ने सोचा कि बच्चा मर चुका है, कोई उसे छूने तक नहीं गया।” अनुपमा की आंखों में पानी आ गया। “फिर यह कैसे बचा?”
टीचर ने कहा, “वही पास की एक झुग्गी में रहने वाली बूढ़ी औरत उसे उठाकर ले गई। सुनने में आया था कि उसने बच्चे को खाना-पानी दिया, बचा लिया। लेकिन वह औरत छह महीने बाद मर गई और बच्चा सड़कों पर अकेला रह गया।”

अब तक बच्चा यानी आरुष चुप खड़ा सब सुन रहा था। उसकी आंखों में कोई रोशनी नहीं, बस डर था—बहुत गहरा डर। अनुपमा उसके पास आईं, धीरे से बच्चे के कंधे पर हाथ रखा। और जो उन्होंने पूछा, उसने सबको अंदर तक हिला दिया। “बेटा, तुम तीन साल से स्कूल के बाहर क्यों बैठते थे?”
आरुष ने पहली बार सिर उठाया और धीमी आवाज में बोला, “मम्मा यहां आती थी।”
कमरा सन्न रह गया। अनुपमा हैरान थीं। “तुम्हारी मां… लेकिन तीन साल से उन्होंने तुम्हें क्यों नहीं लिया?”
बच्चे की आंखों से आंसू गिरने लगे, उसने अगला वाक्य कहा, “मम्मा मुझे लेने आई थी, पर उन्हें किसी ने स्कूल के गेट पर मार दिया।”
पूरा स्टाफ खून की तरह जम गया। पीटी सर पीछे हट गए, एक टीचर का हाथ मुंह पर चला गया। अनुपमा फुसफुसाई, “क्या? किसने?” बच्चे ने कांपते होठों से कहा, “वही आदमी जो आज भी हर सुबह स्कूल के बाहर खड़ा होता है।”
यह सुनते ही कमरे में मौजूद हर इंसान की धड़कन रुक गई, क्योंकि वो आदमी आज भी गेट के पास था। तेज सांसों के साथ हादसे की गुत्थियां खुलने वाली थीं। अनुपमा के हाथ कांपने लगे। उन्होंने तुरंत खिड़की से बाहर झांका और वहां स्कूल के मेन गेट के पास नीली जैकेट पहने एक आदमी खड़ा था—वही आदमी जो हर रोज बच्चों की भीड़ के बीच चुपचाप घूमता था। कभी किसी की कॉपी उठाकर देता, कभी सुरक्षा गार्ड की मदद करता। सबको लगता था यह शायद कोई अस्थाई चौकीदार है। आज पहली बार उसे देखकर स्टाफ के शरीर में डर दौड़ गया।
अनुपमा ने धीरे से पूछा, “आरुष बेटा, तुम्हारी मम्मी को किसने…” बच्चे ने कांपते होठों से इशारा किया उसी नीली जैकेट वाले आदमी की तरफ। यह सुनते ही पीटी सर का माथा पसीने से भीग गया, एक टीचर तो पीछे की कुर्सी पर बैठ गई। अनुपमा ने तुरंत ऑफिस स्टाफ से कहा, “किसी को बुलाओ नहीं, उस आदमी को यह पता नहीं चलना चाहिए कि हम जान गए हैं।” फिर वो बच्चे के पास आईं, “बेटा, धीरे-धीरे बताओ, क्या हुआ था उस दिन?”
आरुष की आवाज कांप रही थी, लेकिन उसने बोलना शुरू किया, “मैं स्कूल से निकला था, मम्मा मुझे लेने आई थी। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और कहा चलो घर चलते हैं। हम गेट तक पहुंचे ही थे कि वो आदमी आया। मम्मा उससे डर गई। वह बोला, ‘बच्चे को मेरे हवाले कर दो, नहीं तो अच्छा नहीं होगा।’ मम्मा ने मुझे पीछे कर दिया और वो आदमी मम्मा को बहुत जोर से धक्का देता है। मम्मा जमीन पर गिर गई, उनका सिर पत्थर से टकराया और फिर…”
बच्चे के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। “मम्मा उठे ही नहीं…” यह सुनकर अनुपमा का दिल टूट गया। उन्होंने बच्चे को कसकर सीने से लगा लिया। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल था—वह आदमी इस बच्चे के पीछे क्यों पड़ा था?
पीटी सर ने डरते हुए कहा, “मैडम, वो आदमी सुबह-सुबह यहां गेट के आसपास दिखता है। लेकिन हम सब उसे चौकीदार समझकर इग्नोर करते रहे।” अनुपमा ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “नहीं, अब और नहीं। यह बच्चा हमारे स्कूल का है। हम इसका सच जानकर रहेंगे।” उन्होंने तुरंत अपने कंप्यूटर खोला और बच्चे की पुरानी फाइल खोजने लगीं। जब उन्होंने फाइल खोली, उनकी आंखें फैल गईं। फाइल में सिर्फ दो पेज थे—नाम: आरुष राठौर, पिता का नाम: रिक्त, माता का नाम: नेहा राठौर। नीचे लिखा था—अभिभावक ने एड्रेस छुपाने का अनुरोध किया है।
अनुपमा ने बड़बड़ाते हुए कहा, “पता छुपाने की जरूरत क्यों पड़ी थी नेहा को?” तभी टीचर रानी की आवाज आई, “मैडम, मुझे कुछ याद आ रहा है। तीन साल पहले आरुष की मां अक्सर किसी बात से डरी रहती थी। एक बार उन्होंने मुझसे कहा था, ‘मैम, अगर कोई स्कूल में मेरे बारे में पूछे तो मुझे पहचानने से मना कर देना।’ मैंने पूछा भी, ‘क्यों?’ तो उन्होंने कहा, ‘मेरे बेटे की जान को खतरा है।’”
यह सुनकर अनुपमा का दिमाग सुन्न हो गया। तो क्या वही आदमी सालों से आरुष के पीछे था? क्या उसी ने इस बच्चे का घर उजाड़ा? और सबसे बड़ा सवाल—अब वो आदमी स्कूल के बाहर क्या कर रहा है?
अनुपमा ने तुरंत खिड़की के बाहर देखा, लेकिन इस बार वह आदमी गेट पर नहीं था। कमरे में मौजूद हर इंसान ने एक-दूसरे की तरफ देखा। एक अनजाना डर फैल चुका था। क्योंकि अगर वह आदमी गेट पर नहीं था, तो फिर वो कहां था?
जब अनुपमा ने खिड़की से बाहर देखा और वह आदमी गेट पर नहीं मिला, कमरे में बैठे सभी लोगों की धड़कन एक पल को थम गई। पीटी सर घबरा कर बोले, “मैडम, अभी पांच मिनट पहले तक तो यही था। कहीं… कहीं वह स्कूल के अंदर तो नहीं आ गया?”
अनुपमा ने तुरंत दरवाजा बंद कराया। उन्होंने स्टाफ से धीरे कहा, “किसी को डराने की जरूरत नहीं, लेकिन यह मामला सामान्य नहीं है। सब लोग बच्चे के आसपास रहें और बाहर किसी को कुछ ना बताएं।” फिर उन्होंने आरुष की तरफ देखा। बच्चा अपनी छोटी-छोटी उंगलियों से प्रिंसिपल की साड़ी को पकड़े खड़ा था—डरा हुआ, कांपता हुआ, लेकिन उसकी आंखों में एक ऐसी सच्चाई थी जो किसी को भी हिला दे।
अनुपमा ने धीरे से पूछा, “बेटा, क्या वो आदमी स्कूल के अंदर भी आता था?” आरुष ने सिर हिलाया। “हां, वो रोज आता है, मुझे ढूंढने।” कमरा एकदम शांत हो गया। ना किसी की सांस की आवाज, ना किसी के बोलने की हिम्मत। और तभी नीचे वाले स्टाफ रूम से एक चीख सुनाई दी, “मैडम, नीचे कोई अजनबी घुस आया है!” टीचर रानी डर के मारे कुर्सी से उठ खड़ी हुई। पीटी सर तुरंत बाहर भागे। अनुपमा ने बच्चे को पीछे किया, हाथ पकड़कर बोली, “डरो मत बेटा, मैं यहीं हूं।”
अब असली सस्पेंस शुरू होने वाला था। नीचे कॉरिडोर में हलचल मची हुई थी। वार्डन दौड़ती हुई आई, “मैडम, एक आदमी स्टाफ रूम में गया है, पर उसका चेहरा ढका हुआ है, कोई उसे पहचान नहीं पा रहा।” अनुपमा तुरंत नीचे पहुंचीं, सीढ़ियां उतरते हुए उनका दिल तेज धड़क रहा था। मन में एक ही बात थी—अगर वह आदमी वाकई वही है तो आज तीन साल पुरानी गुत्थी खुल सकती है।
कॉरिडोर खाली था, बस एक टूटी खिड़की से आती हवा की आवाज। अनुपमा ने दरवाजे की दरार से देखा—अंदर एक आदमी खड़ा था, नीली जैकेट, काले कैप, और मेज की दराजें खंगाल रहा था। वह शायद कोई दस्तावेज ढूंढ रहा था, कुछ ऐसा जो उसे मिलना नहीं चाहिए। अनुपमा ने हिम्मत करके कहा, “कौन हो तुम? और क्या ढूंढ रहे हो?” आदमी धीरे-धीरे मुड़ा, उसका चेहरा छुपा हुआ, आंखों में खतरनाक चमक। फिर उसने इतनी धीमी आवाज में कहा कि सुनकर किसी की भी रूह कांप जाए, “जिसे तीन साल से ढूंढ रहा हूं, वही लेने आया हूं।”
अनुपमा का गला सूख गया। उन्होंने हिम्मत जुटाकर कहा, “वो बच्चा अब सुरक्षित है, तुम उसे हाथ भी नहीं लगा सकते।” आदमी ने गुस्से से मेज पर मुक्का मारा, गूंज पूरे कमरे में फैल गई। “वह मेरा है!” अनुपमा चीखकर बोलीं, “झूठ! वो बच्चा तुम्हारा नहीं। तुमने उसकी मां को मारा है!”
आदमी हंसा, एक ऐसी हंसी जिसमें सन्नाटा, पागलपन और खून की बू थी। “हां, क्योंकि उसकी मां ने मुझसे बच्चा छीन लिया था।” अब यह बात साफ हो चुकी थी—वह आदमी आरुष का असली पिता था। पर पिता नाम का दानव, जिससे बचने के लिए नेहा ने स्कूल का एड्रेस तक छुपाया था।
जैसे ही पीटी सर कमरे में दौड़े, वह आदमी खिड़की तोड़कर कूद गया और दौड़ते हुए स्कूल की पीछे वाली दीवार पार करके गायब हो गया। पीटी सर हाफते हुए बोले, “मैडम, यह आदमी बहुत खतरनाक है। अब बच्चा यहां भी सुरक्षित नहीं है।”
अनुपमा ने पहली बार आरुष को कसकर अपने सीने से लगाया और कहा, “जब तक मैं जिंदा हूं, इस बच्चे का एक बाल भी कोई नहीं छू सकता।”
कहानी का डरावना हिस्सा अभी बाकी था। उसी रात्रि एक सीसीटीवी फुटेज मिली, जिसने पूरे स्कूल की नींद उड़ा दी। फुटेज में वह आदमी ठीक उसी रात स्कूल के अंदर एक दीवार के पीछे खड़ा दिखाई दिया और उसके हाथ में कुछ था—एक पुरानी फाइल जिस पर लिखा था: ‘राठौर फैमिली केस कॉन्फिडेंशियल’।
रात के 11:00 बजे पूरे स्कूल में सिर्फ एक ही जगह रोशनी जल रही थी—प्रिंसिपल अनुपमा का ऑफिस। उनके सामने टेबल पर वह सीसीटीवी फुटेज चल रही थी, जिसमें साफ दिख रहा था, नीली जैकेट वाला वही आदमी स्कूल की पीछे वाली दीवार के पास खड़ा, एक पुरानी फाइल में से कुछ कागज निकाल रहा था। फाइल पर बड़े अक्षरों में लिखा था: ‘राठौड़ फैमिली केस कॉन्फिडेंशियल’।
अनुपमा के हाथ कांप रहे थे। तीन साल से यह फाइल गायब थी और अब अचानक स्कूल की दीवार के पीछे मिल रही थी। पीटी सर बोले, “मैडम, यह फाइल तीन साल पहले केस बंद होने के बाद पुलिस को देनी थी, पर यह स्कूल में कैसे रह गई?” अनुपमा की नजर कागजों पर गई। उन्होंने पहला पेज उठाया। सच्चाई किसी तूफान की तरह सामने आ गई।
कागज में लिखा था: नेहा राठौर, उम्र 28 वर्ष। पति विक्रम राठौर, जो शराब और हिंसा में डूबा रहता था। फाइल में नेहा के कई बार घरेलू हिंसा की शिकायतें दर्ज थीं। उसमें लिखा था—पति रात में बच्चा छीनने की कोशिश करता था। नेहा ने कई बार पड़ोसियों से मदद मांगी। विक्रम ने धमकी दी थी, “बच्चा मेरा है, चाहे कैसे भी ले जाऊं।”
अनुपमा की आंखें भर आईं। वह धीरे से फुसफुसाई, “तो नेहा इसलिए डरती थी, इसलिए उसने एड्रेस भी छुपाया…” फिर उन्होंने फाइल का अगला पेज पलटा, और पेज पर सिर्फ एक फोटो चिपकी थी। फोटो में नेहा अपने बेटे आरुष को गोद में लेकर खड़ी थी, दोनों के चेहरे पर डर साफ लिखा था, जैसे दोनों किसी से छुप रहे हों। और फोटो के पीछे लिखा था, “अगर मुझे कुछ हो जाए तो मेरे बेटे को उसके पिता के पास मत भेजना, वह उसे मार देगा। — नेहा राठौर”
यह पढ़ते ही अनुपमा की आंखों से आंसू गिर पड़े। उन्होंने फाइल को सीने से लगा लिया, जैसे कोई खोई हुई मां का दर्द महसूस कर रही हो। पीटी सर धीमे बोले, “मैडम, इसका मतलब पति नेहा के पीछे पड़ा था, और स्कूल वैन का एक्सीडेंट… क्या वो भी?”
अनुपमा ने कांपती आवाज में कहा, “हां, वैन का एक्सीडेंट हादसा नहीं, शायद साजिश था…”
उसी समय डोरमेट्री में सोते हुए आरुष का बुरा सपना शुरू हो गया। वह चिल्ला उठा, “मम्मा मत ले जाओ, वो मुझे मार देगा!” अनुपमा दौड़कर पहुंचीं, बच्चा रोते-रोते जाग रहा था, उसकी सांसें तेज, आंसू लगातार बह रहे थे। अनुपमा ने उसे गोद में लिया, “डरो मत बेटा, मैं हूं, कोई तुम्हें छू भी नहीं सकता।”
आरुष ने रोते हुए बोला, “वो आदमी आज सुबह भी आया था…” अनुपमा कांप गईं, “कहां बेटा?” बच्चे ने धीरे कहा, “उसने पेड़ के पीछे से मुझे देखा और बोला, कल मैं तुम्हें लेने आऊंगा…”
यह सुनकर हर किसी का खून ठंडा हो गया। क्योंकि जिस आदमी से नेहा ने अपने बेटे को बचाने के लिए एड्रेस छुपाया, जिससे दूर रहने के लिए वो स्कूल तक भाग कर आती थी, जिससे बचते-बचते उसने अपनी जान गंवा दी—वो आदमी अब स्कूल के अंदर बच्चे को लेने आने की धमकी दे रहा था।
अनुपमा ने तुरंत फैसला किया, “आज रात स्कूल में रहने वाला हर व्यक्ति यहां गार्ड नहीं, इस बच्चे का रक्षक है। कल वह आदमी आएगा तो उसे पुलिस के हवाले कर देंगे। आरुष सुरक्षित रहेगा, किसी भी कीमत पर।”
उन्होंने पुलिस को भी सूचित किया। स्कूल के तीन गार्ड अतिरिक्त तैनात किए। सीसीटीवी कैमरे ऑन कराए। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि खतरा सामने से नहीं, किसी और जगह से आने वाला है…
रात के 2:00 बजे एक कैमरे में कैद हुआ—कोई आदमी दीवार के ऊपर चढ़ता हुआ सीधे उसी कमरे की ओर बढ़ रहा था, जहां आरुष सो रहा था। रात की खामोशी, स्कूल की इमारतों पर चढ़ती ठंडी हवा, और सीसीटीवी में दिखता एक साया—आज की इस कहानी का सबसे डरावना पल था। कैमरे में नीली जैकेट पहना वही आदमी धीरे-धीरे स्कूल की दीवार के ऊपर चढ़ रहा था। उसके हाथ में लोहे का रॉड था, जैसे वह दरवाजा तोड़ने नहीं, किसी को उठाकर ले जाने आया हो। गार्ड को देखते ही वो अंधेरे में घुल गया, लेकिन कैमरा उसे पकड़ चुका था।
अनुपमा मैडम ने जैसे ही सीसीटीवी देखा, तुरंत तीन बातें महसूस कीं—वह आदमी निश्चित रूप से आरुष को लेने आया है, नेहा की मौत कोई दुर्घटना नहीं थी, और आज अगर वे चूकीं तो बच्चा हमेशा के लिए खो जाएगा।
उन्होंने तुरंत कमरे में सो रहे आरुष को उठाया। बच्चा डर के मारे कांपने लगा, “मैम, वो आ गया, वो मुझे ले जाएगा…” अनुपमा ने उसे कसकर सीने से लगाया, “नहीं बेटा, जब तक मैं जिंदा हूं, कोई तुम्हें छू नहीं सकता।” गर्दन पर बच्चे के आंसू गिरते रहे, लेकिन आज पहली बार वह सुरक्षित महसूस कर रहा था।
रात के 3:05, कॉरिडोर की लाइट अचानक झिलमिलाने लगी। गार्ड ने टॉर्च चमकाई और अगले ही सेकंड टॉर्च उसके हाथ से गिर गई। वह आदमी सामने खड़ा था, चेहरा आधा दिखाई दे रहा था, लेकिन आंखों में खून उतर आया था। वह गुर्राते हुए बोला, “मुझे मेरा बच्चा दे दो, वरना यहां कोई नहीं बचेगा।” गार्ड ने उसे रोकने की कोशिश की, पर आदमी ने धक्का मारकर उसे गिरा दिया। फिर वह तेजी से प्रिंसिपल के ब्लॉक की तरफ भागा।
अनुपमा ने आरुष को पीछे किया और दरवाजा बंद कर कुंडी लगा दी। फिर उन्होंने फाइल से वह आखिरी कागज निकाला जिसमें नेहा ने लिखा था, “अगर मुझे कुछ हो जाए तो मेरे बेटे को उसके पिता से दूर रखना, वो इंसान नहीं, खौफ है…” अनुपमा की आंखों में आंसू भर आए। वे बोलीं, “बेटा, तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें बचाने के लिए जान दी है, तुम्हें अब डरना नहीं है। आज तुम्हारी मम्मी की आखिरी ख्वाहिश पूरी होगी।”
आरुष ने रोते हुए उनका हाथ पकड़ लिया, “मैम, आप मत जाइए, वो आपको भी मार देगा…” अनुपमा ने बच्चे का माथा चूमा, “अगर कोई मरने लायक है तो वह सिर्फ वही आदमी है।”
दरवाजा जोर से हिला—एक बार, दो बार, तीसरी बार इतनी जोर से कि कुंडी टूटने ही वाली थी। अनुपमा साहस जुटाकर बाहर निकलीं। कॉरिडोर में नीली जैकेट वाला आदमी खड़ा था। वो चिल्लाया, “मुझे मेरा बच्चा दे दो!” अनुपमा गरजते हुए बोलीं, “वो तुम्हारा नहीं है। तुम सिर्फ खून के रिश्ते से पिता हो, दिल से नहीं।”
आदमी ने उनके ऊपर रॉड उठाई, लेकिन अगले ही पल पुलिस पीछे से आ पहुंची। पीटी सर ने समय रहते उन्हें कॉल कर दिया था। पुलिस ने आदमी को पकड़ कर जमीन पर गिरा दिया। वह चीखता रहा, “मेरा बच्चा, मेरा बच्चा, वो मेरा है…” अनुपमा ने ठंडे स्वर में कहा, “नहीं, तुमने उसे सिर्फ डर दिया है। पिता उसका मैं हूं, और वो मां जिसने अपनी जान दी।”
आदमी हथकड़ियों में बंधा चिल्लाता रहा, लेकिन उसकी आवाज अब सिर्फ एक अपराधी की थी, पिता की नहीं। सुबह के सूरज की रोशनी खिड़की से अंदर आ रही थी। आरुष अनुपमा के पास बैठा था। पहली बार बिना डर के अनुपमा ने उसके सिर पर हाथ फेरा, “अब तुम कभी स्कूल के बाहर नहीं बैठोगे। यह स्कूल अब तुम्हारा घर है और मैं… मैं हूं तुम्हारी नई मां।”
बच्चा फूट-फूट कर रो पड़ा और उसने अनुपमा को कसकर गले लगा लिया। तीन साल का डर एक गले लगने में खत्म हो गया। स्कूल के बाहर अब वह भिखारी बच्चा नहीं था, बल्कि एक नया जीवन शुरू करने वाला बच्चा था, जिसे आखिरकार परिवार मिल गया था।
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