CT स्कैन में बच्चे के पेट से जो निकला उसे देखकर.. आंखें फटी की फटी रह गई – फिर जो हुआ

सीटी की गूंज – एक मां, एक बेटा और अतीत का सच”

पहला भाग: बारिश की शाम और मासूम बेहोशी

इंदौर की संकरी गली में हल्की बारिश पड़ रही थी।
आर्या अपने छह साल के बेटे वेदांश का हाथ पकड़कर सब्जी लेने निकली थी।
अचानक वेदांश लड़खड़ा गया, आंखें उलट गईं, और वह आर्या की गोद में बेहोश हो गया।
“वेदू, आंखें खोलो प्लीज!” आर्या चीख उठी।
आसपास लोग घबरा गए। एक ऑटो वाला बिना पैसे लिए उन्हें अरमान हॉस्पिटल ले गया।

डॉ. अनिरुद्ध मेहता ने तुरंत इमरजेंसी में बच्चे को लिया।
नर्स सुरभि ने पल्स देखी – ब्लड प्रेशर गिर रहा था।
आर्या कांपती आवाज में बोली, “डॉक्टर, उसे कुछ नहीं होगा ना?”
डॉक्टर ने भरोसा दिलाया, “जब तक मैं हूं, नहीं होगा। लेकिन हमें समय नहीं गंवाना।”

दूसरा भाग: पेट में रहस्य और डर

सीटी स्कैन रूम की तरफ स्ट्रेचर भागा।
तकनीशियन ने कहा, “बच्चा पेट पकड़ रहा है, एब्डोमेन अल्ट्रासाउंड पहले करें।”
डॉक्टर ने वेदांश की सूजी नाभि देखी – मशीन की ठंडी जेल पेट पर लगी।
मॉनिटर पर धूसर छाया उभरी।
डॉक्टर की भौहें सिकुड़ गईं, “यह सामान्य नहीं है।”

सीटी एब्डोमेन किया गया।
आर्या के होंठ सूख गए, “मेरे बेटे ने कोई खिलौना निगल लिया क्या?”
वेदांश ने आंखें आधी खोली, धीरे से फुसफुसाया, “मां… अंधेरा…”
नर्स ने ऑक्सीजन बढ़ाई।

सीटी रूम के बाहर आर्या अपनी दुपट्टे की कोर मरोड़ती रही।
स्कैन पूरा हुआ।
डॉक्टर अनिरुद्ध ने फिल्में देखीं, उनकी आंखें एक जगह टिक गईं।
नर्स बोली, “सर, यह फॉरेन बॉडी है?”
डॉक्टर बोले, “नहीं, टेक्सचर वैसा नहीं। यह एक पाउच सी थैली है, अंदर छोटे-छोटे धातु के टुकड़े और एक चिट्ठी!”

पेट में चिट्ठी?
आर्या के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।

तीसरा भाग: ऑपरेशन और चिट्ठी का सच

डॉक्टर ने ऑपरेशन की तैयारी की।
मिनी इंसीजन से थैली निकाली गई।
अंदर वही छोटे मैग्नेटिक पजल के टुकड़े, स्याही लगी, और बीच में कागज की पट्टी।

डॉक्टर ने कागज खोलकर पढ़ा –
“अगर तुम यह पढ़ रही हो तो सच मान लो कि तुम्हारा भूत लौट आया है।”

आर्या का दिल कांप गया।
डॉक्टर ने पूछा, “क्या तुम्हारे अतीत में कोई है जो तुमसे बदला लेना चाहता था?”
आर्या के दिमाग में एक नाम घुमड़ने लगा – ईशान, कॉलेज का सनकी लड़का, जिसने एक बार पीछा किया था।
एक रात बहस के बाद वह गायब हो गया था।
कुछ दिनों बाद खबर आई – ईशान शहर छोड़ गया।

नर्स ने कागज पलटा –
“अगली बार उसका दिल अगर तुमने सच नहीं बोला।”

डॉक्टर गंभीर हो गए, “यह सिर्फ मेडिकल केस नहीं रहा, पुलिस का मामला है।”

चौथा भाग: सीटी बजाने वाला और डर का जाल

इमरजेंसी के बाहर एक नीला रेनकोट पहने लंबा आदमी खड़ा था।
वह रिसेप्शनिस्ट से फुसफुसाकर पूछ रहा था, “जिस बच्चे को लाए, वो ठीक है?”
वह आदमी अचानक गायब हो गया।

आईसीयू के बाहर बैठी आर्या को याद आया – कई महीनों से कोई साइकिल वाला रात को उनके दरवाजे को देखता था।
शायद इंतजार वेदांश का था।

लैब रिपोर्ट आई – धातु के टुकड़ों पर इंडस्ट्रियल मार्कर पेंट था, जो शहर में सिर्फ सागर इंडस्ट्रीज में मिलता है।
इंडस्ट्री के मालिक – ईशान सागर।

अब सारा शक यकीन में बदलने लगा।

पांचवां भाग: वेदांश का बयान और सीटी की गूंज

आईसीयू में वेदांश ने डॉक्टर से कहा, “अंकल, पेट में जो था, उसने खेलने नहीं दिया। वो अंकल बोले थे, यह खेल है। अगर मैं राज रखूंगा तो बड़ा तोहफा मिलेगा।”
डॉक्टर ने पूछा, “कौन अंकल?”
“जो रात में सीढ़ियों पर सीटी बजाते थे।”
आर्या को बचपन की वही सीटी की धुन याद आई – जो ईशान कॉलेज में बजाया करता था।

सीसीटीवी फुटेज में नीला रेनकोट वाला आदमी, चेहरे पर नकाब, लेकिन कलाई पर दोस्ती वाली ब्रेसलेट – “ए एंड ई” (आर्या और ईशान)।
अब सब साफ था।

छठा भाग: पुलिस की कार्रवाई और सच का सामना

अस्पताल में इंस्पेक्टर कविता राव आई।
डॉक्टर ने सबूत दिए – कागज, पाउच, सीटी फिल्में, लैब नोट्स।
इंस्पेक्टर ने आर्या से कहा, “अब आधा सच नहीं चलेगा। वरना अगली चाल में वह एक कदम आगे होगा।”

तभी नर्स ने बताया, “कोई आपसे मिलना चाहता है – अमोल, वेदांश का ट्यूशन टीचर।”
अमोल ने डरते-डरते एक स्केच दिखाया – वही रेनकोट, वही ब्रेसलेट।
उसने बताया, “वो हर रात गिनता है – तीन, दो, एक – और किसी के फोन पर मैसेज आता है – अब तुम बोलोगी?”

उसी क्षण आर्या के मोबाइल पर मैसेज आया – “तीन, दो, एक, अब तुम बोलोगी।”
लोकेशन ट्रेस हुई – अस्पताल के सामने वाली अधूरी बिल्डिंग, चौथी मंजिल।

इंस्पेक्टर की टीम वहां पहुंची।
हर कदम पर सीटी की डरावनी धुन तैर रही थी।

सातवां भाग: क्लाइमेक्स – सच, सजा और हिम्मत

चौथी मंजिल पर नीला रेनकोट टंगा था, लेकिन कोई इंसान नहीं।
अचानक ऊपर से आवाज आई – “कविता राव, बहुत देर कर दी तुमने।”
अधूरी छत के कोने में एक आदमी – ईशान सागर।

इंस्पेक्टर ने बंदूक तान दी, “नीचे आ, सरेंडर कर।”
ईशान ने फोन निकाला, स्क्रीन पर कुछ टाइप किया – “असली मंच तो अस्पताल में है। अगर आर्या ने सच नहीं बोला तो तीन, दो, एक…”

अस्पताल में वेदांश की हार्टबीट गिरने लगी।
डॉक्टर ने देखा – वेंटिलेशन लाइन पर मिनिएचर ब्लूटूथ ट्रिगर लगा था।
डॉक्टर ने उसे निकाला, सिक्योरिटी ने वार्ड सील किया।

बिल्डिंग पर इंस्पेक्टर और ईशान की खतरनाक दौड़ – बारिश तेज हो गई।
ईशान चिल्लाया, “आर्या, बोल दे वरना वह मर जाएगा!”

अस्पताल में आर्या ने डॉक्टर से पूछा, “अगर मैं सच कह दूं तो क्या वह रुक जाएगा?”
डॉक्टर बोले, “मुझे नहीं पता, पर वक्त कम है।”

आर्या ने सर्वर रूम जाकर नेटवर्क पैनल खोला – वह कॉलेज में नेटवर्क इंजीनियर थी।
उसने लोकल ओवरराइट डाला, सिस्टम रिबूट हुआ, हार्टबीट नॉर्मल।
डॉक्टर ने चिल्लाया, “आर्या, तुमने कर दिखाया!”

वेदांश बच गया।

बिल्डिंग में इंस्पेक्टर ने ईशान को पकड़ लिया, लेकिन ईशान ने हाथ झटका और गहरी खाई में गिर गया।
टीम ने स्पॉटलाइट डाली – ईशान जिंदा था, पर अचेत।

अंतिम भाग: सच की जीत और नए वादे

अस्पताल में आर्या अपने बेटे के साथ बैठी थी।
इंस्पेक्टर ने पूछा, “यह ईशान का जुनून क्यों?”
आर्या ने जवाब दिया, “कॉलेज में उसने मुझे चाहा, मैंने मना किया। उसने धमकी दी, मैंने सबूत इकट्ठा कर पुलिस में दिया। केस टेक्निकल ग्राउंड पर गिर गया, वो शहर छोड़ गया। मैंने सोचा कहानी खत्म हो गई।”

इंस्पेक्टर ने कहा, “कहानियां अगर सच छुपाकर लिखी जाएं तो खलनायक अपना अंत खुद लिखते हैं।”
आर्या ने वेदांश के माथे को चूमा, “अब कोई राज नहीं रहेगा।”

डॉक्टर ने राहत की सांस ली, “वह बच्चा ही नहीं बचा, एक मां को उसका अतीत हराकर जीत दिलाई।”

अस्पताल के बाहर हल्की धूप निकल आई थी।
आईसीयू के कांच पर चिपकी नमी में कोई लाइन अब नहीं उभर रही थी – सिवाय एक धुंधली परत के, जो धीरे-धीरे मिट गई।

उस दिन आर्या ने तय किया – अब कभी नहीं भागेगी।

सीख:
अतीत से भागना कभी समाधान नहीं होता।
हिम्मत, सच और प्यार से ही हर डर को हराया जा सकता है।

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मिलते हैं एक नई कहानी में। जय हिंद।