करोडपति ने विधवा नौकरानी को फसाने के लिए तिजोरी खुली छोडी, लेकिन उसने जो किया चौंकाने वाला था!

यह कहानी एक छोटे से गांव की है, जहां के लोग सादगी और मेहनत से जीवन बिताते थे। गांव में हर कोई अपने काम में व्यस्त रहता और किसी के पास इतना समय नहीं होता कि वे दूसरों की समस्याओं में दखल दें। लेकिन इस गांव में एक महिला थी, जिसका नाम था सावित्री। सावित्री की कहानी बाकी सब से अलग थी। वह 32 साल की एक विधवा थी, जो अपने छोटे से बेटे मनु के साथ रहती थी।

सावित्री का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था। तीन साल पहले, उसके पति रमेश का एक फैक्ट्री हादसे में निधन हो गया था। रमेश एक ईमानदार और मेहनती इंसान थे, लेकिन उनकी मौत के बाद सावित्री के जीवन में अंधेरा छा गया। घर की सारी जिम्मेदारी अब सावित्री के कंधों पर थी।

वह दिनभर गांव के लोगों के घरों में बर्तन धोने, झाड़ू-पोंछा करने और खाना बनाने का काम करती। वह दिनभर मेहनत करती ताकि अपने बेटे को पढ़ा सके और उसे एक अच्छा भविष्य दे सके। सावित्री के पास पैसे नहीं थे, लेकिन उसके पास थी ईमानदारी, मेहनत और आत्मसम्मान।

शहर का अमीर आदमी

गांव से कुछ किलोमीटर दूर, शहर में एक बड़ा और आलीशान बंगला था। यह बंगला वीरेंद्र मल्होत्रा का था। वीरेंद्र शहर के सबसे अमीर और प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक था। उसकी उम्र 40 साल के करीब थी और वह व्यापार की दुनिया में अपनी सख्ती और कठोरता के लिए जाना जाता था।

लेकिन वीरेंद्र की जिंदगी बाहर से जितनी चमकदार थी, अंदर से उतनी ही खाली और ठंडी थी। उसकी पत्नी रिचा ने उसे पांच साल पहले छोड़ दिया था। रिचा के जाने के बाद वीरेंद्र का दिल टूट गया था और उसने मान लिया था कि इस दुनिया में हर रिश्ता पैसे पर आधारित है।

वह गरीब लोगों को हमेशा नीची नजरों से देखता था और मानता था कि गरीब लोग सिर्फ पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

सावित्री को नौकरी मिलती है

एक दिन सावित्री को खबर मिली कि वीरेंद्र मल्होत्रा के बंगले में सफाई के लिए एक नौकरानी की जरूरत है। सावित्री के पास उस समय कोई नौकरी नहीं थी। उसका बेटा मनु बीमार था और उसकी फीस भी बाकी थी। सावित्री ने सोचा कि अगर उसे यह नौकरी मिल जाए, तो उसकी परेशानियां कुछ हद तक कम हो सकती हैं।

अगले दिन, सावित्री अपनी पुरानी साड़ी पहनकर वीरेंद्र के बंगले पर पहुंची। बंगले का गेट बहुत बड़ा और भव्य था। वहां तैनात चौकीदार ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा और कहा, “क्या काम है?”

सावित्री ने विनम्रता से कहा, “मुझे काम की जरूरत है। सुना है यहां सफाई के लिए किसी की जरूरत है।”

चौकीदार ने उसे अंदर जाने दिया और वह बंगले के मैनेजर मिसेज फर्नांडिस के पास पहुंची। मिसेज फर्नांडिस ने सावित्री से कई सवाल किए। सावित्री ने ईमानदारी से अपने जीवन की कहानी सुनाई। उसकी सादगी और ईमानदारी ने मिसेज फर्नांडिस को प्रभावित किया और उन्होंने उसे नौकरी पर रख लिया।

वीरेंद्र की योजना

सावित्री ने अपनी नई नौकरी में पूरी मेहनत और लगन से काम करना शुरू किया। वह हर दिन समय पर आती, अपना काम करती और बिना किसी से ज्यादा बात किए वापस चली जाती।

वीरेंद्र ने सावित्री को कैमरों के जरिए देखा। उसने महसूस किया कि सावित्री बाकी नौकरों से अलग थी। वह कभी किसी चीज को छूती नहीं थी, जो उसका नहीं था। वह हमेशा ईमानदारी से अपना काम करती थी।

लेकिन वीरेंद्र को यकीन नहीं हुआ। उसने सोचा, “इतनी ईमानदारी? जरूर यह दिखावा कर रही होगी। गरीब लोग ऐसे ही होते हैं। मौका मिलने पर ये भी चोरी करेगी।”

वीरेंद्र ने सावित्री की परीक्षा लेने का फैसला किया। उसने अपने स्टडी रूम में एक पुरानी तिजोरी रखवाई, जिसमें लाखों रुपये और सोने के गहने थे। उसने तिजोरी का दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ दिया और मिसेज फर्नांडिस को कहा कि इस कमरे की सफाई सावित्री करेगी।

पहली परीक्षा

अगले दिन, सावित्री स्टडी रूम की सफाई करने पहुंची। उसने देखा कि तिजोरी का दरवाजा खुला हुआ है और अंदर नोटों की गड्डियां और गहने रखे हुए हैं।

उसके मन में कई ख्याल आए। उसने सोचा, “अगर मैं इसमें से थोड़ा सा भी ले लूं, तो मेरे बेटे की फीस भर जाएगी। उसका इलाज हो जाएगा।”

लेकिन अगले ही पल उसने अपने पति रमेश के शब्द याद किए, “सावित्री, चाहे जो भी हो जाए, हमें कभी अपनी ईमानदारी नहीं छोड़नी चाहिए।”

सावित्री ने तिजोरी को छुआ तक नहीं। उसने अपने काम को पूरा किया और कमरे से बाहर चली गई।

वीरेंद्र ने यह सब कैमरे में देखा और हैरान रह गया। उसने सोचा, “शायद इसे डर लग रहा है। कल देखता हूं।”

दूसरी परीक्षा

अगले दिन, वीरेंद्र ने तिजोरी का दरवाजा और ज्यादा खोल दिया। सावित्री फिर स्टडी रूम में सफाई करने आई। उसने तिजोरी को देखा, लेकिन उसने फिर से उसे छुआ तक नहीं।

इस बार वीरेंद्र को थोड़ा शक हुआ। उसने सोचा, “क्या वाकई यह महिला इतनी ईमानदार है?”

सावित्री की मजबूरी

उसी दिन, सावित्री को खबर मिली कि उसका बेटा मनु स्कूल में बेहोश हो गया है। डॉक्टर ने बताया कि उसे तुरंत इलाज की जरूरत है और इसके लिए बहुत सारे पैसे लगेंगे।

सावित्री के पास इतने पैसे नहीं थे। उसने अपने सारे गहने बेच दिए, लेकिन फिर भी रकम पूरी नहीं हुई।

अगले दिन, जब वह स्टडी रूम में सफाई करने गई, तो उसने फिर से तिजोरी को देखा। इस बार उसके मन में संघर्ष शुरू हो गया। उसने सोचा, “क्या मैं यह पैसे ले लूं? आखिर मेरे बेटे की जान का सवाल है।”

लेकिन अगले ही पल उसने खुद को रोका। उसने कहा, “नहीं। यह गलत है। अगर मैंने यह किया, तो मैं अपने बेटे को क्या सिखाऊंगी?”

सावित्री ने तिजोरी को बंद किया और कमरे से बाहर चली गई।

वीरेंद्र का बदलता दिल

वीरेंद्र ने यह सब कैमरे में देखा और उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने महसूस किया कि सावित्री जैसी ईमानदारी और आत्मसम्मान उसने अपने जीवन में कभी नहीं देखा।

वीरेंद्र ने सावित्री को बुलाया और उसे पूरी सच्चाई बताई। उसने कहा, “मैंने तुम्हारी परीक्षा ली। मुझे माफ कर दो। तुमने मुझे सिखाया है कि असली दौलत ईमानदारी और आत्मसम्मान है।”

उसने सावित्री के बेटे मनु का इलाज करवाया और उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने का वादा किया।

सावित्री की नई जिंदगी

सावित्री और मनु के जीवन में खुशियां लौट आईं। सावित्री ने वीरेंद्र का धन्यवाद किया, लेकिन उसने कहा, “मैंने जो किया, वह मेरे संस्कार थे। मैं आपकी मदद के लिए हमेशा शुक्रगुजार रहूंगी।”

वीरेंद्र ने सावित्री को अपने घर में एक खास जगह दी और उसे अपने परिवार का हिस्सा बना लिया।

कहानी का संदेश

यह कहानी हमें सिखाती है कि दौलत और ताकत से ज्यादा मूल्यवान ईमानदारी और आत्मसम्मान है। अगर इंसान अपनी सच्चाई और मेहनत पर विश्वास करे, तो वह किसी भी मुश्किल परिस्थिति से बाहर निकल सकता है।

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