“करोड़पति ने तलाक़शुदा पत्नी को शादी में बेइज़्ज़त करने बुलाया- पर जब वो पहुँची तो….
एक नई शुरुआत: सिया की कहानी
भूमिका
शाम के 7:00 बज चुके थे। शहर के सबसे बड़े होटल रॉयल पैलेस की जगमगाहट दूर से ही किसी सपनों के महल जैसी लग रही थी। चारों तरफ रोशनी की चमक, फूलों की सजावट और महंगे कपड़ों में सजे लोग। हर कोई इस भव्य शादी में शामिल होने के लिए बेहद उत्साहित था। आज का दिन था रणविजय कपूर की शादी का। रणविजय वही करोड़पति बिजनेसमैन था जिसका नाम अखबारों से लेकर न्यूज़ चैनलों तक छाया रहता था।
हॉल के अंदर हर तरफ बातें हो रही थीं। “वाह, रणविजय की शादी कितनी शाही है। लाखों का खर्च तो सिर्फ सजावट पर ही हुआ होगा।” “दुल्हन भी कितनी खूबसूरत लग रही है। बिल्कुल राजकुमारी जैसी।” रणविजय अपने महंगे शेरवानी में चेहरे पर गर्व और होठों पर हल्की मुस्कान लिए सबका स्वागत कर रहा था। उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। पर उस चमक के पीछे एक छिपा हुआ इरादा था।
पुरानी यादें
आज की इस शादी में उसने जानबूझकर किसी को बुलाया था। अपनी पुरानी पत्नी सिया। रणविजय सोच रहा था, “देखते हैं वो किस हालत में आएगी। टूटी-फूटी, बदहाल और शर्मिंदा होकर ताकि सबको दिखा सकूं कि मैंने उसे छोड़कर सही किया।”
सिया के बारे में सोचते ही रणविजय को पुरानी यादें ताजा हो गईं। कैसे उसने शादी के बाद सिया को हर कदम पर ताने दिए। कैसे पैसे और शोहरत के नशे में वह अपनी पत्नी को नीचा दिखाता रहा। और कैसे एक दिन उसने तलाक देकर उसे छोड़ दिया।
सिया की वापसी
तभी होटल के गेट पर एक चमचमाती ब्लैक रोल्स रॉयस आकर रुकी। गार्ड तुरंत दौड़ते हुए दरवाजा खोलने पहुंचे। जब कार का दरवाजा खुला, तो वहां से उतरी एक औरत सुनहरी साड़ी में लिपटी। चेहरे पर आत्मविश्वास की रोशनी और आंखों में गहरी चमक। उसके साथ थे तीन छोटे-छोटे बच्चे, दो बेटियां और एक बेटा।
भीड़ का शोर पल भर में थम गया। लोग एक-दूसरे से फुसफुसाने लगे। “यह कौन है? क्या यह सिया है?” “ओह माय गॉड। यह तो रणविजय की एक्स वाइफ है।” रणविजय की आंखें उस पल फटी की फटी रह गईं। उसने सोचा था कि सिया टूटी और बर्बाद हालत में आएगी। पर यहां तो कहानी ही उल्टी थी।
सिया शांति से मुस्कुराते हुए बच्चों का हाथ थामे सीधी चाल से अंदर बढ़ रही थी। उसकी मौजूदगी ने पूरे हॉल का माहौल बदल दिया। रणविजय के दोस्त उसके पास आकर धीरे से बोले, “अरे भाई, यह तो बड़ी अलग निकली। लग ही नहीं रहा कि यह कभी टूटी होगी।”
रणविजय ने गुस्से को मुस्कान के पीछे छिपाने की कोशिश की। लेकिन भीतर से उसका अहंकार चकनाचूर हो रहा था। सिया सीधी जाकर एक कोने में बैठ गई। बच्चे पास ही खड़े होकर मासूमियत से चारों तरफ देख रहे थे।
पुरानी यादें ताजा होती हैं
उसी वक्त रणविजय के दिमाग में पुरानी यादें ताजा होने लगीं। कैसे उसने शादी के बाद सिया को हर कदम पर ताने दिए। कैसे पैसे और शोहरत के नशे में वह अपनी पत्नी को नीचा दिखाता रहा। और कैसे एक दिन उसने तलाक देकर उसे छोड़ दिया।
चार साल पहले, एक छोटे से घर में सिया किचन में खड़ी चाय बना रही थी। रणविजय ने गुस्से से दरवाजा पटका और अंदर आया। “तुमसे कहा था ना, मुझे ऐसे कपड़े पहनकर मेरे ऑफिस पार्टी में मत आना। सबने हंसी उड़ाई मेरी।”
सिया ने धीमे स्वर में कहा, “रणविजय, मैंने तो वही ड्रेस पहनी थी जो आपने ही गिफ्ट की थी।”
रणविजय ने घृणा से कहा, “तुम्हें समझ नहीं आता। तुम मेरे स्टेटस के लायक नहीं हो। तुम गांव की सीधी साधी लड़की हो। मेरे लाइफस्टाइल में फिट नहीं बैठती।”
सिया की आंखों में आंसू भर आए थे। पर उसने कुछ नहीं कहा। रणविजय यहीं नहीं रुका। उसने बेहद कड़वे शब्द कहे, “तुम तो मुझे एक परफेक्ट फैमिली भी नहीं दे सकती। बच्चे मां बनने लायक नहीं हो तुम। मेरे दोस्तों की बीवियां देखो। सबकी फैमिली कितनी परफेक्ट है और तुम, तुमसे मुझे सिर्फ शर्म ही मिल सकती है।”
सिया का साहस
सिया का चेहरा सफेद पड़ गया। यह शब्द उसके दिल में तीर की तरह चुभ गए। उसने कांपते स्वर में कहा, “रणविजय, एक औरत के लिए मां बनने पर ताना मत मारो। मां बनने का हक भगवान देता है। तुम कौन होते हो मुझे अयोग्य कहने वाले?”
पर रणविजय ने ठंडी हंसी-हंसते हुए कहा, “बस, तुम्हारे नसीब में मेरी पत्नी कहलाने का भी हक नहीं है। साइन करो इन पेपर्स पर।” और उसने तलाक के कागज उसके सामने पटक दिए।
सिया ने कांपते हाथों से उन कागजों पर साइन किया। उस वक्त उसने सिर्फ एक बात कही थी, “रणविजय, आज तुम मुझे ठुकरा रहे हो। पर याद रखना, एक दिन यही दुनिया तुम्हें मेरे नाम से नहीं, मेरे बच्चों के नाम से पहचानेगी। जिन बच्चों को तुम कह रहे हो कि मैं नहीं पा सकती, वही मेरी सबसे बड़ी ताकत बनेंगे।”
रणविजय ने ठहाका लगाया था। “हां हां हां, बच्चों और तुम सपने देखना बंद करो सिया। तुम्हें देखकर कोई मां बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता।”
सिया की नई शुरुआत
तलाक के कागज पर साइन करने के बाद जब सिया उस घर से निकली थी, तब उसकी आंखों में आंसू नहीं बल्कि आग थी। उसके दिल को जितना रणविजय के तानों ने तोड़ा था, उतना ही उसने उसे मजबूत भी बना दिया था।
उस रात वह मायके लौटी। मां ने गले लगाकर पूछा, “बेटी, यह क्या हो गया?” सिया बस इतना ही बोली, “मां, रणविजय ने मुझे छोड़ दिया। कहा कि मैं मां बनने लायक नहीं। और एक परफेक्ट वाइफ नहीं।”
मां ने उसके सर पर हाथ रखकर कहा, “बेटी, दूसरों के शब्दों से अपनी पहचान मत मापना। भगवान सबका न्याय करता है। तुम्हें देखना, तुम्हारे हिस्से में भी एक नई सुबह जरूर आएगी।”
लेकिन उस रात मां के शब्दों के बावजूद सिया के अंदर खालीपन था। वक्त गुजरा। कुछ महीनों बाद भगवान ने सिया की झोली में सबसे बड़ा तोहफा रखा।
सिया की मां बनने की खुशी
सिया ने पहली बार डॉक्टर से सुना, “कांग्रेचुलेशंस, आप मां बनने वाली हैं।” उसके होंठ कांपे, आंसू आंखों से बहे और उसके कानों में रणविजय की हंसी गूंजने लगी। “तुमसे कोई मां बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता।”
लेकिन उस आवाज पर उसके अपने दिल की आवाज भारी पड़ी। उसने पेट पर हाथ रखा और कहा, “तुम ही मेरी सबसे बड़ी ताकत हो। तुमसे ही मेरी नई दुनिया शुरू होगी।”
रणविजय ने तलाक के कुछ ही महीनों बाद दूसरी शादी कर ली। उसकी नई पत्नी रिया एक बड़े बिजनेसमैन की बेटी थी। दोनों की शादी भी एक तमाशे से कम नहीं थी। अखबारों में तस्वीरें, टीवी पर न्यूज़ हेडलाइंस। “रणविजय कपूर की नई दुल्हन एक परफेक्ट जोड़ी।”
रणविजय अपने दोस्तों से शान से कहता, “अब देखो मेरी लाइफ कैसी परफेक्ट है। इस बार मुझे वह वाइफ मिली है जो मेरे स्टेटस के लायक है।”
सिया की मेहनत
इस बार वह पार्टियों में रिया का हाथ पकड़कर दिखावा करता। लेकिन अंदर से उसका अहंकार और लालच कभी शांत नहीं हुआ। समय बीतता गया। सिया ने पहली बेटी को जन्म दिया। फिर बेटे को और फिर सबसे छोटी बेटी को।
तीनों बच्चों को उसने अकेले पाला। दिन-रात की मेहनत, कभी ट्यूशन पढ़ाकर, कभी छोटे-मोटे काम करके, उसने बच्चों के लिए हर चीज जुटाई। कभी खाना कम पड़ता तो खुद भूख ही सो जाती। पर बच्चों की प्लेट में कमी नहीं आने देती।
एक रात बेटी ने कहा, “म्मी, सबके पास नए कपड़े हैं। हमारे पास क्यों नहीं?”
सिया ने हंसकर कहा, “क्योंकि मेरी राजकुमारी के कपड़े तो चांद तारों से सिलवाऊंगी। बस थोड़ा वक्त और।” बच्चों ने मां की बात पर मुस्कुरा दिया। उन्हें नहीं पता था कि उनकी मां ने उस रात अपने कानों की बालियां बेच दी थीं ताकि अगली सुबह उनके लिए नए कपड़े ला सके।
रणविजय की नई शादी
उधर रणविजय और रिया की शादी उतनी परफेक्ट नहीं निकली जितना उसने दुनिया को दिखाया था। रिया महलों और पार्टियों की आदि थी। लेकिन दिल से रणविजय से कभी जुड़ नहीं पाई। अक्सर कहती, “रणविजय, तुम सिर्फ पैसे के पीछे भागते हो। रिश्तों की कोई अहमियत तुम्हारे लिए नहीं है।”
रणविजय उसे नजरअंदाज कर देता। लेकिन अंदर से उसे एहसास होने लगा कि उसने सिया को छोड़कर गलती की थी। धीरे-धीरे बच्चों के साथ सिया की छोटी सी दुनिया बड़ी होने लगी।
सिया की सफलताएं
जहां रणविजय की जिंदगी दिखावे की चमक में खोती जा रही थी, वहीं सिया अपने बच्चों के साथ छोटी-छोटी जीतों से हिम्मत पा रही थी। कभी बेटी ने स्कूल में फर्स्ट आकर मां को मेडल पहनाया तो कभी बेटे ने खेल प्रतियोगिता में ट्रॉफी जीती।
हर बार सिया की आंखों में आंसू आ जाते और वह दिल ही दिल में कहती, “रणविजय, जिन बच्चों को पाने की योग्यता तुमने मुझ में नहीं देखी थी, वही आज मेरी सबसे बड़ी पहचान बन रहे हैं।”
बरसों बीत गए। अब सिया के तीनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे। घर की जिम्मेदारियां बढ़ गई थीं। लेकिन साथ ही सिया के इरादे भी और मजबूत हो चुके थे। वह जानती थी कि बच्चों के लिए उसे सिर्फ मां ही नहीं, पिता की भूमिका भी निभानी है और यही सोच उसे हर दिन मेहनत करने की ताकत देती थी।
सिया की नई जॉब
एक बार उसने एक बड़ी कंपनी में जॉब के लिए अप्लाई किया। इंटरव्यूअर ने उसका रिज्यूमे देखा और बोला, “आपने इतने साल काम क्यों नहीं किया?”
सिया ने धीमे स्वर में कहा, “मैं घर, परिवार और बच्चों में व्यस्त थी।”
इंटरव्यूअर ने हंसते हुए कहा, “तो अब अचानक याद आया कि काम करना है। देखिए मैडम, हमारी कंपनी को तेजतर्रार लोग चाहिए। आपके जैसे लोगों के लिए यहां जगह नहीं है।”
सिया की आंखों में आंसू आ गए। लेकिन उसने सिर झुका लिया। बाहर आकर उसने बच्चों की तस्वीर देखी और कहा, “नहीं, मैं हार नहीं मानूंगी। अगर दरवाजे बंद होते हैं तो अपनी खिड़की खुद खोलनी होगी।”
उसने अपनी जमा पूंजी से घर से ही एक छोटा काम शुरू किया। हाथ से बने कपड़े और क्राफ्ट आइटम्स बनाकर ऑनलाइन बेचना शुरू किया।
सिया की मेहनत और सफलता
शुरुआत में मुश्किलें आईं। कभी आर्डर नहीं मिलता, कभी सामान वापस हो जाता। लेकिन बच्चों ने उसका हौसला बढ़ाया। बेटी ने कहा, “मम्मी, हार मत मानना। एक दिन यह दुकान बहुत बड़ी कंपनी बनेगी।”
बेटे ने बोला, “हम भी मदद करेंगे। मम्मी, देखो, यह पैकिंग मैं कर देता हूं।” छोटी बेटी खिलखिलाई और बोली, “मैं इसमें दिल वाला स्टीकर लगाऊंगी।”
सिया हंस पड़ी। उसकी आंखों में वही चमक थी जो सालों पहले रणविजय के घर छोड़ते समय उसने देखी थी।
समय के साथ उसका छोटा कारोबार बढ़ता गया। ऑनलाइन आर्डर ज्यादा आने लगे और लोग उसकी मेहनत की सराहना करने लगे।
सिया की सफलता
एक दिन एक नामी डिजाइनर ने उसका काम देखा और कहा, “मैडम, आपके डिजाइन यूनिक हैं। क्या आप हमारे साथ टाई अप करना चाहेंगी?”
सिया के लिए यह बड़ा मौका था। उसने तुरंत हामी भरी। धीरे-धीरे उसका नाम मार्केट में फैलने लगा। अब वह सिर्फ एक छोटी उद्यमी नहीं बल्कि एक उभरती हुई बिजनेस वुमन बन रही थी।
रणविजय की असफलता
उधर रणविजय और रिया के रिश्ते में कड़वाहट बढ़ने लगी थी। रिया अक्सर कहती, “तुम्हें सिर्फ पैसे और दिखावे की चिंता है। रणविजय, रिश्तों को निभाना तुम जानते ही नहीं।”
एक दिन तो उसने यहां तक कह दिया, “तुम्हें लगता है कि तुम मुझे शोभा देते हो। लेकिन सच यह है कि तुम सिर्फ घमंड और अकेलापन लेकर चलते हो।”
रणविजय गुस्से से तमतमा गया। लेकिन सच यह था कि उसकी दूसरी शादी भी सिर्फ दिखावे की थी। अंदर से वह खाली होता जा रहा था।
सिया का उदय
इधर सिया ने अपने काम को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का रूप दिया। उसका ब्रांड अब देश भर में मशहूर होने लगा था। मीडिया ने भी उसकी कहानी उठाई। “एक सिंगल मदर ने बनाई करोड़ों की कंपनी।”
टीवी एंकर बोली, “सिया सिर्फ एक सफल बिजनेस वुमन नहीं, बल्कि लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।”
सिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं बस अपने बच्चों का चेहरा देखती थी और सोचती थी कि मुझे हार नहीं माननी है। आज अगर मैं यहां खड़ी हूं तो सिर्फ उन्हीं की वजह से।”
रणविजय की नई शादी
कुछ ही महीनों बाद रणविजय की शादी की खबर हर जगह फैल गई। रिया से तलाक लेने के बाद अब उसने एक और शादी तय कर ली थी। इस बार एक और बड़ी बिजनेस फैमिली में।
निमंत्रण कार्ड शहर के बड़े लोगों तक पहुंचे और आश्चर्य की बात यह थी कि एक कार्ड सिया के नाम भी आया। जब उसने लिफाफा खोला तो कुछ पल उसके हाथ कांपे। लेकिन फिर उसने मुस्कुराकर बच्चों से कहा, “लगता है भगवान ने मुझे मौका दिया है। अब वक्त आ गया है कि मैं दुनिया को दिखाऊं कि सिया कौन है।”
सिया की वापसी
यही वो रात थी जब तीन बच्चों का हाथ थामे सुनहरी साड़ी में सजी सिया चमचमाती रोल्स रॉयस से रणविजय की शादी में उतरी थी। भीड़ की नजरें दुल्हन से हटकर उसी पर टिक गई थीं। रणविजय की आंखें चौंधिया गई थीं।
जिस औरत को उसने कभी अपमानित किया था, वह आज उसकी शान के महल में उसकी सबसे बड़ी हार बनकर खड़ी थी। हॉल की रोशनी में हर कोई सिया की ओर देखने लगा। उसकी साड़ी की सादगी और आत्मविश्वास ने पूरे माहौल को बदल दिया था।
रणविजय का पछतावा
तीन नन्हे बच्चों का हाथ थामे वह खड़ी थी। वही औरत जिसे कभी रणविजय ने बांझ कहकर अपमानित किया था। रणविजय अपने नए अहंकार के साथ खड़ा था। पर अब उसका घमंड पिघल चुका था।
उसने धीरे से कहा, “तुम यहां क्यों आई हो?”
सिया ने उसकी आंखों में सीधे देखा और कहा, “मैं आई हूं तुम्हें यह दिखाने कि जिसे तुमने कभी टूटने दिया, वही आज खड़ी है। और जिसे तुमने कभी मां नहीं बन सकती कहा, वही आज तीन बच्चों की मां है। यही सच्चाई है रणविजय और यही असली जीत।”
सच्चाई का सामना
भीड़ में सन्नाटा छा गया। फुसफुसाहटें गूंजने लगीं। “कितनी मजबूत औरत है। देखो, राजस्व की दौलत सब कुछ नहीं होती।” रणविजय ने कुछ बोलने की कोशिश की लेकिन गला रुक गया। उसकी नई दुल्हन ने भी समझ लिया कि असली चमक वही है जो पैसे से नहीं आती।
सिया ने एक कदम बढ़ाया और बच्चों को गले लगाते हुए बोली, “तुमने मुझसे कहा था, मैं तुम्हारे लिए किसी काम की नहीं हूं। देखो, मैं आज अपने दम पर खड़ी हूं। और तुम अपनी दौलत और दिखावे में फंसे अकेले खड़े हो। यह वही न्याय है जो भगवान ने दिया। जो गिराते हैं वही अकेले रह जाते हैं और जो सहते हैं वही बुलंद होते हैं।”
रणविजय की हार
रणविजय की आंखों में पहली बार पछतावे के आंसू थे। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। वह समझ गया कि उसने जो खोया, वह सिर्फ दौलत और समय नहीं था। उसने अपनी इज्जत और आत्मा खो दी थी।
सिया ने बच्चों के साथ हाथ में हाथ डाले हौसले से कहा, “चलो बच्चों, जिनके दिल में सिर्फ घमंड और ताने हैं, उनके लिए रुकना बेकार है। हमें अपनी खुशियों की ओर बढ़ना है।”
वह धीरे-धीरे बाहर निकली। रोल्स की चमकती कार में बैठते हुए पीछे मुड़कर रणविजय की ओर देखा। उसकी आंखों में कोई नफरत नहीं थी। सिर्फ सच्चाई का आईना।
समापन
हॉल में तालियों की गूंज के साथ सन्नाटा छा गया। रणविजय अकेला खड़ा रहा। भले करोड़पति था, पर अंदर से पूरी तरह टूट चुका था। सिया ने अपने बच्चों के साथ मुस्कुराते हुए कार की ओर बढ़ते हुए कहा, “जो लोग तुम्हें कभी बोझ समझते हैं, वही एक दिन तुम्हारी ताकत बनते हैं। याद रखो, असली दौलत सिर्फ दिल, इरादों और रिश्तों में होती है।”
और यही इस रात के जादू में हम भी सीखते हैं। असली शक्ति और सम्मान कभी दिखावे में नहीं, बल्कि संघर्ष, धैर्य और सच्चाई में छिपा होता है।
कहानी का संदेश
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हुए हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। सिया ने अपने संघर्ष और मेहनत से साबित कर दिया कि असली ताकत और पहचान हमारे आत्मविश्वास और संघर्ष में होती है।
धन्यवाद!
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