डीएम मोमिता सिंह की लड़ाई
सोमपुर जिले की डीएम मोमिता सिंह अपनी मां कमला देवी के साथ बाजार जा रही थी। यह एक खास दिन था, क्योंकि उनकी मां बरसों बाद कुछ दिनों के लिए घर लौटी थीं। मोमिता चाहती थी कि इस खास पल को किसी सरकारी तामझाम से प्रभावित न किया जाए। वह साधारण कपड़े पहने हुए थी और अपनी मां के साथ खुशियों में खोई हुई थी।
बचपन की यादें
जैसे ही वे बाजार में पहुंची, मोमिता ने एक बंद पड़ी दुकान की ओर इशारा किया। “मां, आपको याद है वो सामने वाली दुकान? बचपन में यहां से आप मुझे स्कूल के लिए सफेद रिबन दिलाया करती थीं।”
कमला देवी मुस्कुराई, “हाँ बेटी, और तू हमेशा दो की जगह चार रिबन की जिद करती थी। तू कहती थी कि दो खो जाएंगे।” दोनों मां-बेटी हंसते-हंसते अपनी यादों में खो गईं।
लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनकी यह खुशियों भरी दुनिया कुछ ही पलों में तहस-नहस होने वाली है।
पुलिस का आतंक
तभी बाजार की गुनगुनाहट को चीरती हुई तीन पुलिस की मोटरसाइकिलों का खौफनाक सायरन गूंजा। बाइकें तेजी से भीड़ को हटाती हुई अंदर घुसीं। हर बाइक पर दो-दो सिपाही बैठे थे, जिनके चेहरे हेलमेट के काले शीशों के पीछे छिपे थे। लेकिन हाथों में लिए डंडों से उनकी नियत साफ झलक रही थी।
एक हवलदार चिल्लाते हुए बोला, “चलो, हटो! सब रास्ता खाली करो। दुकान के अंदर जाओ। सब ऊपर से हुक्म है। साहब का काफिला निकलने वाला है।”
यह सुनते ही बाजार में भगदड़ मच गई। लोग डर के मारे अपनी दुकानों और ठेलों को अंदर खींचने लगे। जो बाजार अभी जिंदगी से भरपूर लग रहा था, अब वहां एक अजीब सा डर पसर गया था।
बदसलूकी का सामना
एक सिपाही ने फूल बेच रही एक बूढ़ी औरत की टोकरी पर लात मार दी, जिससे सारे गेंदे के फूल सड़क पर बिखर गए। एक लड़का, जो यह सब अपने मोबाइल में रिकॉर्ड करने की कोशिश कर रहा था, उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ पड़ा।
“जब अफसर का दौरा हो, तो मक्खी भी नहीं दिखनी चाहिए। सब साफ चाहिए,” एक दरोगा गरज रहा था। उसका नाम था राकेश चौधरी। उसकी तोंद उसकी वर्दी से बाहर झांक रही थी और आंखों में सत्ता का नशा साफ दिख रहा था।
मोमिता का गुस्सा
मोमिता यह सब अपनी आंखों से देख रही थी। उसके चेहरे की हंसी गायब हो चुकी थी। उसकी आंखों में एक अजीब सी खामोशी थी। वह बाजार, जहां उसकी मां ने अपनी पूरी जिंदगी गुजार दी थी, आज वही वर्दी पहने कुछ लोग आम इंसानों के साथ ऐसा बर्ताव कर रहे थे जैसे वे किसी के गुलाम हों।
मोमिता ने उनके खिलाफ आवाज उठानी चाही, लेकिन उसकी मां ने उसे रोक लिया। “बेटा, चुप रहो,” उन्होंने कहा।
तभी चलते-चलते कमला देवी के पैर दुखने लगे और वह एक दुकान के बाहर रखे खाली बक्से पर बैठ गईं। “बेटी, तुम जाओ सब्जियां खरीद कर लाओ, तब तक मैं यहीं बैठी हूं,” उन्होंने कहा।
एक अप्रत्याशित घटना
मोमिता ने कहा, “मां, अपना ख्याल रखना।” इतना कहकर वह वहां से चली गई। तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने मोमिता की आत्मा को झिझोड़ कर रख दिया।
दरोगा राकेश चौधरी की नजर कमला जी पर पड़ी तो वह तुरंत उनके पास गया और चिल्लाते हुए बोला, “ए बुढ़िया, यहां क्यों बैठी है? यह वीआईपी रूट है, दिखाई नहीं देता?”
कमला जी ने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर कहा, “बेटा, बस पैर दुख रहे थे, अभी उठ जाती हूं।”
राकेश जहरीली हंसी हंसते हुए बोला, “तेरी उम्र के बराबर तो मेरी नौकरी हो गई है। तुम जैसे लोग ही गंदगी फैलाते हो। रुको, अभी सिखाता हूं तुझे तरीका।” और फिर उसने एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।
बाजार का सन्नाटा
उस थप्पड़ की आवाज हवा में गूंजी। ऐसा लगा जैसे उस एक आवाज ने बाजार के हर शोर को निगल लिया हो। बाजार में चारों तरफ लोगों की भीड़ झुट गई। लोग तमाशा देखने लगे लेकिन किसी के मुंह से एक शब्द नहीं निकला।
मोमिता जब वापस आई, तो देखा उसकी मां का चेहरा एक तरफ झुक गया था और उनकी आंखों में आंसू थे। मोमिता वहीं खड़ी रह गई। उसकी आंखें खुली थीं लेकिन उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। उसके कानों में बस उस थप्पड़ की गूंज थी।
एक बेटी का प्रतिशोध
मोमिता के अंदर गुस्सा इतना बढ़ गया कि उसने तेजी से राकेश की तरफ बढ़ी और बोली, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? मेरी मां पर हाथ उठाने की? तुम सब इस बाजार में गुंडागर्दी कर रहे हो।”
तभी दरोगा राकेश ने चिल्लाते हुए बोला, “चल भाग यहां से, ज्यादा ज्ञान मत दे। नहीं तो तुझे भी पड़ेगा।”
इतना सुनते ही मोमिता के अंदर तूफान खड़ा हो गया। उसने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर डायल किया। दूसरी तरफ से फोन उठते ही उसकी आवाज निकली, “मैं सोमपुर जिले की डीएम मोमिता सिंह बोल रही हूं।”
सिस्टम के खिलाफ लड़ाई
फोन के दूसरी तरफ बैठे ऑपरेटर ने हकलाते हुए कहा, “जी जी मैडम।” तभी मोमिता ने तेज आवाज में बोला, “इसी वक्त घंटाघर बाजार में मौजूद दरोगा राकेश चौधरी और उसकी पूरी टीम को सस्पेंड किया जाए। और एसपी साहब से कहो, 15 मिनट के अंदर वह मुझे इसी बाजार में मिले।”
फोन रखकर मोमिता अपनी मां के पास गई। उसने उन्हें उठाया, उनके आंसू पोंछे और उन्हें अपने सीने से लगा लिया। बाजार की हर नजर अब उन पर टिकी थी।
सच्चाई का सामना
कोई समझ नहीं पा रहा था कि यह गुलाबी सूट वाली लड़की कौन है, जिसके एक फोन कॉल ने पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मचा दिया था। दरोगा राकेश का चेहरा डर के मारे सफेद पड़ चुका था। वह कांपता हुआ आगे आया। “कौन हो तुम? झूठ बोल रही हो।”
मोमिता ने अपनी मां को सहारा देकर खड़ा किया और फिर घूमकर राकेश की आंखों में देखा। “मैं वो हूं जिसे तुमने एक आम औरत की बेटी समझा और मैं वो हूं जो अब तुम्हारे इस घमंड को तोड़ने वाली हूं। मैं इस जिले की डीएम हूं और तुमने मेरी मां पर हाथ उठाया है।”
एसपी की गाड़ी का आगमन
यह शब्द नहीं थे, बिजली थे जो राकेश पर गिरे थे। ठीक 15 मिनट बाद एसपी की गाड़ी सायरन बजाती हुई वहां पहुंची। एसपी साहब लगभग दौड़ते हुए गाड़ी से उतरे। उनके माथे पर पसीना था। “मैडम, मैडम, बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे।”
मोमिता ने हाथ उठाकर उन्हें कड़े आवाज में बोला, “यह गलती नहीं है। एसपी साहब, यह बहुत बड़ा अपराध है। यह कैसा नियम है? बाजार में आम गरीब बुजुर्ग लोगों के साथ ऐसा बर्ताव किया जाए और आप इसे गलती बोलेंगे?”
सिस्टम का सफाया
उसी वक्त पूरे बाजार के सामने दरोगा राकेश और उसकी टीम को सस्पेंड कर दिया गया। उन्हें जबरदस्ती जीप में ठूंसा गया। जो भीड़ अब तक सांस रोके खड़ी थी, अब वह धीरे-धीरे तालियां बजाने लगी।
किसी ने हिम्मत करके नारा लगाया, “डीएम साहिबा जिंदाबाद!” मोमिता ने अपनी मां का हाथ थामा और बोली, “अब आप ठीक हैं, मां।”
कमला जी की आंखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन यह आंसू बेबसी के नहीं, गर्व के थे। “आज तूने मुझे दुनिया की सबसे बड़ी दौलत, इज्जत दे दी, बेटी।”
रात की चिंताएं
उस रात मोमिता अपने सरकारी बंगले पहुंची। उसका दिमाग शांत था लेकिन दिल में एक तूफान था। यह सिर्फ एक दरोगा की बदतमीजी का मामला नहीं था। यह उस पूरे सड़े हुए सिस्टम की बीमारी का एक लक्षण था।
उसने एक फाइल निकाली जिस पर लिखा था “जन सुनवाई।” फाइल उन शिकायतों से भरी पड़ी थी जिन्हें रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया था। कहीं पुलिस की अवैध वसूली, कहीं बेगुनाहों को झूठे केस में फंसाने की दास्तान, तो कहीं किसी गरीब की एफआईआर तक ना लिखने की शिकायतें।
सच्चाई की लड़ाई
मोमिता समझ गई थी कि लड़ाई सिर्फ एक राकेश चौधरी से नहीं है। लड़ाई उस सोच से है जो वर्दी को इंसानियत से बड़ा समझती है। अगली सुबह मोमिता ने डीएम की गाड़ी नहीं बुलाई। उसने एक पुरानी हरा रंग का सलवार सूट पहना और एक आम लड़की की तरह स्कूटर उठाकर निकल पड़ी।
उसकी मंजिल थी थाना सूरजपुर। सबसे ज्यादा शिकायतें यहीं से आई थीं। वह थाने पहुंची तो पहरेदार ने उसे रोक लिया। “कहां, किससे मिलना है?”
उसने घबराई हुई लड़की की एक्टिंग करते हुए कहा, “एक शिकायत दर्ज करवानी है।” इतना बोलकर अंदर चली गई।
थाने में भ्रष्टाचार
अंदर थानेदार पान चबाता हुआ बैठा था। उसने मोमिता को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, “क्या हुआ? किसके खिलाफ शिकायत है?”
मोमिता ने नरम भाव से बोली, “यहीं के कुछ पुलिस वालों के खिलाफ। वो मेरे भाई को कल रात घर से उठाकर ले आए हैं और छोड़ने के लिए पैसे मांग रहे हैं।”
थानेदार जोर से हंसा। “अच्छा, पुलिस की शिकायत पुलिस से ही करने आई है। चल भाग यहां से। ज्यादा नाटक किया तो तुझे भी अंदर डाल दूंगा।”
सच्चाई का सामना
मोमिता मुस्कुराई, तभी दरवाजे से वहीं एसपी अंदर आया जो कुछ दिन पहले मोमिता के एक फोन पर बाजार में दौड़ते हुए आया था। थानेदार, दरोगा और सिपाहियों की आंखें जैसे उन्हें देखा, तुरंत खड़ी हो गईं।
एसपी ने मोमिता की ओर देखा और उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। “मैडम, मैंने आपको देखा नहीं? मुझे माफ कर दीजिए।”
थानेदार के चेहरे का रंग उड़ गया। वह कांपते हुए तुरंत दोनों हाथ जोड़कर मोमिता से माफी मांगने लगा। “मैडम, मुझसे गलती हो गई। मैं आपको पहचान नहीं पाया। दया कर दीजिए। दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी।”
मोमिता का फैसला
मोमिता ने उसकी ओर सख्त नजरों से देखा और ऊंची आवाज में बोली, “माफी से कानून नहीं चलता। दरोगा, तुम्हें सस्पेंड किया जाता है और तुम्हारे खिलाफ विभागीय जांच भी होगी। आज से तुम इस कुर्सी के लायक नहीं हो। तुम्हें जेल में डालना चाहिए। लेकिन अभी तुम्हें सिर्फ सस्पेंड करती हूं। ताकि बाकी पुलिस वालों को सबक मिले।”
एसपी ने तुरंत सिर झुकाकर आदेश मानते हुए सिपाहियों को इशारा किया। दो सिपाही आगे आए और थानेदार को पकड़ लिया।
सिस्टम में बदलाव
थानेदार हाथ जोड़कर रोने लगा। “मैडम, रहम कर दीजिए। मेरी नौकरी चली गई तो मेरा घर बर्बाद हो जाएगा।”
मोमिता ने एक कदम पीछे हटकर ठंडी आवाज में कहा, “जब तुम किसी गरीब की फरियाद सुनने के बजाय उसे धमकाते और थाने में बंद कर देते हो, तब उसके घर का क्या होता है? कभी सोचा है? यही सोचकर अब अपने घर की चिंता करना।”
थाने में सन्नाटा छा गया। सबकी निगाहें अब उस महिला डीएम पर थीं जिसकी आंखों में नरमी नहीं बल्कि न्याय की आग जल रही थी। अगले कुछ मिनटों में थाने का नक्शा बदल गया।
न्याय की जीत
अवैध रूप से हिरासत में रखे गए लड़के को तुरंत छुड़वा दिया गया और उस थानेदार समेत तीन पुलिस वालों को मौके पर ही सस्पेंड कर दिया गया। यह सिर्फ शुरुआत थी। अगले तीन-चार दिनों तक पूरे जिले में एक दहशत फैल गई। एक गुमनाम डीएम का खौफ।
कोई नहीं जानता था वह कब कहां किस रूप में पहुंच जाए। कभी वह एक किसान बनकर किसी तहसील ऑफिस पहुंच जाती तो कभी एक मजदूर बनकर किसी पुलिस चौकी। पूरे शहर में मोमिता सिंह के किस्से सुनाए जाने लगे।
सिस्टम के खिलाफ जंग
एक ऐसा अफसर जो दिखता नहीं, बस इंसाफ करता है। जनता खुश थी लेकिन सिस्टम के अंदर बैठे कुछ बेईमान लोग बेचैन हो उठे थे। उनकी अवैध कमाई बंद हो गई थी।
फिर वही हुआ जिसका मोमिता को अंदाजा था। एक दिन गृह मंत्रालय से एक चिट्ठी पहुंची। “डीएम मोमिता द्वारा की जा रही कार्यवाहियों की जांच के लिए एक विशेष समिति का गठन किया गया है।” यह एक सीधी-सीधी धमकी थी।
मां की चिंता
शाम को उसकी मां कमला जी ने फोन लगाकर उससे पूछा, “बेटी, यह सब खतरनाक है। तू अकेली इन सब से कैसे लड़ेगी?”
मोमिता ने अपनी मां को बड़े प्यार से कहा, “मां, जब आपने मुझे पढ़ाया था, तब यह नहीं सोचा था कि लड़ाई कितनी बड़ी होगी। आपने बस यह सिखाया था कि सच के लिए लड़ना है। और वैसे भी मैं अकेली कहां हूं। पूरा शहर मेरे साथ है।”
नई रणनीति
लेकिन मोमिता जानती थी कि यह लड़ाई अब और मुश्किल होने वाली है। रात को जब वह अपने काम खत्म करके सोने जा रही थी, तभी उसका एक भरोसेमंद जूनियर अफसर पंकज डरते हुए उसके पास आया।
“क्या हुआ पंकज?” मोमिता ने पूछा।
उसने सिर्फ अपने हाथ में पकड़ा हुआ टैबलेट मोमिता की ओर बढ़ा दिया। मोमिता ने टैबलेट पर देखा। एक बहुत पॉपुलर और सनसनीखेज न्यूज़ चैनल का लाइव शो चल रहा था।
न्यूज़ चैनल की साजिश
स्क्रीन पर मोमिता की तस्वीर थी और नीचे बड़ी-बड़ी हेडलाइन चमक रही थीं। “डीएम के दो चेहरे। क्या सोमपुर की मसीहा ही सबसे बड़ी मुजरिम है?” न्यूज़ एंकर चिल्ला-चिल्ला कर बोल रहा था।
यह वे एक्सक्लूसिव तस्वीरें थीं जो उनके स्टिंग ऑपरेशन में सामने आई थीं। यह वही डीएम है जो खुद को अविनाश मिश्रा बताकर घूम रही है। स्क्रीन पर एक धुंधला सा वीडियो चलने लगा।
सच्चाई की परतें
यह वीडियो भीमराव कॉलोनी का था जहां मोमिता भेष बदलकर गई थी। वीडियो को इस तरह से एडिट किया गया था कि ऐसा लग रहा था जैसे वह चाय वाले को धमका रही है और फिर उसे चुप रहने के लिए पैसे दे रही है।
एक ऑडियो चलाया गया जिसमें मोमिता की आवाज को बदलकर दिखाया गया था। एंकर चीख रहा था, “एक महिला डीएम एक पुरुष के नाम का इस्तेमाल क्यों कर रही है? क्या यह एक बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा है?”
मोमिता की प्रतिक्रिया
यह देखकर मोमिता के पैरों तले जमीन खिसक गई। यह हमला कोई आम लोगों ने नहीं किया था। यह हमला सिस्टम के एक ऐसे ताकतवर इंसान ने किया था जो सामने नहीं आता।
उसने मोमिता की सबसे बड़ी ताकत, उसकी ईमानदारी पर ही हमला कर दिया था। पंकज ने घबराई हुई आवाज में कहा, “मैम, यह वीडियो देश के हर न्यूज़ चैनल पर चल रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। उन्होंने आपके खिलाफ एक मीडिया ट्रायल शुरू कर दिया है। अब लड़ाई थाने या दफ्तर में नहीं है, मैम। अब यह लड़ाई पूरे देश के सामने है और इस लड़ाई में सच का कोई गवाह नहीं होता।”
अगला कदम
मोमिता की नजरें स्क्रीन पर जमी हुई थीं। जहां एक न्यूज़ एंकर चीख-चीख कर उसकी ईमानदारी की धज्जियां उड़ा रहा था। “धोखेबाज डीएम, सिस्टम को धोखा, झूठे स्टंट की सच्चाई।”
शब्द कानों में पिघले हुए शीशे की तरह उतर रहे थे। यह हमला अप्रत्याशित था। उसने सोचा था कि लड़ाई भ्रष्ट अफसरों से होगी, सिस्टम की धीमी रफ्तार से होगी। लेकिन यह लड़ाई तो अलग ही थी।
सच्चाई की लड़ाई
यह लड़ाई ना तोप से थी ना तलवार से। यह लड़ाई थी धारणा परसेप्शन से। एक ऐसे झूठ से जिसे इतनी बार दोहराया जा रहा था कि वह सच लगने लगा था।
पंकज ने बोला, “मैम, अब हम क्या करेंगे?”
पंकज की आवाज में चिंता और बेबसी साफ झलक रही थी। वह जानता था कि इस तरह के मीडिया ट्रायल के सामने बड़े-बड़े सुरमा भी घुटने टेक देते हैं।
नई योजना
मोमिता ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने टैबलेट पंकज को वापस थमाया और खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई। बाहर शहर की बत्तियां टिमटिमा रही थीं। वही शहर जिसके लोगों के लिए वह पिछले कुछ दिनों से दिन-रात एक किए हुए थी और आज उसी शहर के लोग टीवी पर देख रहे होंगे कि उनकी मसीहा असल में एक मुजरिम है।
मां की चिंता
एक अजीब सी कड़वाहट उसके दिल में घुल गई। तभी बंगले का लैंडलाइन फोन बज उठा। फिर दूसरा, फिर उसका मोबाइल एक के बाद एक कॉल्स। लखनऊ से बड़े-बड़े अधिकारियों के किसी की आवाज में हमदर्दी का दिखावा था तो किसी में डांट।
सबका सार एक ही था, “आपने यह क्या कर दिया? पूरे एडमिनिस्ट्रेशन की नाक कटवा दी। आपको तुरंत इस मामले पर सफाई देनी होगी।”
सिस्टम का दबाव
एक सीनियर अफसर ने तो यहां तक कह दिया, “ऊपर से दबाव है। बेहतर होगा आप कुछ दिनों की छुट्टी पर चली जाएं। जब तक मामला शांत नहीं हो जाता।”
उसे धीरे-धीरे अलग-थलग किया जा रहा था। सिस्टम जब किसी को बचा नहीं पाता तो सबसे पहले उससे पल्ला झाड़ता है।
कमला जी का डर
दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हुई। उसकी मां कमला जी खड़ी थीं। उनके चेहरे पर वह डर था जो हर मां अपनी औलाद को किसी मुसीबत में देखकर महसूस करती है।
“मिमी,” उनकी आवाज कांप रही थी। “मैंने टीवी पर देखा। यह लोग क्या बकवास कर रहे हैं तेरे बारे में।”
मोमिता ने खुद को समेटते हुए कहा, “कुछ नहीं मां, सब झूठ है। आप परेशान मत होइए।”
कमला जी उसकी आंखों में देखते हुए बोलीं, “मैंने कहा था ना बेटी, यह दुनिया बहुत खराब है। छोड़ दे यह सब। यह लड़ाई तेरे बस की नहीं है। चल, हम वापस अपने घर चलते हैं। मुझे नहीं चाहिए कोई डीएम की कुर्सी। मुझे बस मेरी बेटी सही सलामत चाहिए।”
मोमिता की हार
मां के मुंह से यह शब्द सुनना मोमिता के लिए सबसे बड़ी हार थी। वह पूरी दुनिया से लड़ सकती थी। लेकिन अपनी मां की आंखों में अपने लिए डर देखकर वह टूट गई। पहली बार उसे लगा कि शायद वह हार रही है।
नई सुबह
उस रात वह सो नहीं पाई। बार-बार उसके कानों में उस न्यूज़ एंकर की आवाज और उसकी मां के डरे हुए शब्द गूंज रहे थे। अगली सुबह जब वह उठी, तो उसकी आंखों में एक नई दृढ़ता थी।
वह हार नहीं सकती थी। अगर आज वह हार गई, तो फिर कोई भी सच के लिए लड़ने की हिम्मत नहीं करेगा। यह लड़ाई अब सिर्फ उसकी नहीं थी। यह लड़ाई उस भरोसे की थी जो सोमपुर के लोगों ने उस पर दिखाया था।
प्रोफेसर वर्मा की मदद
उसने अपना फोन उठाया और एक नंबर मिलाया। यह नंबर उसके एक पुराने कॉलेज प्रोफेसर प्रोफेसर वर्मा का था जो अब रिटायर होकर एक शांत जीवन जी रहे थे।
प्रोफेसर वर्मा सिर्फ एक टीचर नहीं थे। वह पत्रकारिता और जनसंचार के विशेषज्ञ थे। वह जानते थे कि शब्दों और तस्वीरों से कैसे खेला जाता है।
“सर, मुझे आपकी मदद चाहिए,” मोमिता ने बिना किसी भूमिका के कहा। प्रोफेसर वर्मा ने पूरी बात शांति से सुनी।
सच्चाई का सामना
सब कुछ सुनने के बाद वह बस इतना बोले, “मोमिता, याद रखना झूठ की रफ्तार हमेशा सच से तेज होती है। वह तुमसे आगे निकल चुका है। अब अगर उसे हराना है तो तुम्हें एक नया, उससे भी बड़ा सच बनाना होगा। तुम एक झूठ का जवाब 100 सबूतों से नहीं दे सकती। तुम्हें एक कहानी का जवाब एक ज्यादा सच्ची और ज्यादा असरदार कहानी से देना होगा।”
नई रणनीति
यह शब्द मोमिता के लिए एक दिशा निर्देश की तरह थे। वह समझ गई कि उसे क्या करना है। उसने तुरंत पंकज को बुलाया।
“पंकज, पिछले 4 दिनों में हमने जितने भी थानों और चौकियों पर कार्रवाई की है, उन सबकी अनएटेड वीडियो फुटेज, सस्पेंशन ऑर्डर की कॉपी और सबसे जरूरी उन सभी लोगों की लिस्ट निकालो जिनकी हमने मदद की है।”
साक्ष्य इकट्ठा करना
अगले 2 घंटे तक मोमिता और पंकज सबूत इकट्ठा करने में लगे रहे। उनके पास सूरजपुर थाने से छुड़वाए गए बेगुनाह लड़कों के बयान थे। भीमराव कॉलोनी के उन लोगों के वीडियो थे जो सालों से पुलिस के अत्याचार से परेशान थे।
उस बूढ़ी फूल वाली का इंटरव्यू था जिसकी टोकरी पर लात मारी गई थी। उनके पास एक-एक चीज का कच्चा चिट्ठा था।
मीडिया का सहारा
पंकज ने पूछा, “अब इन सबूतों का क्या करेंगे?”
“मैम, मेनस्ट्रीम मीडिया तो हमें दिखाएगा नहीं।”
मोमिता ने कहा, “मेनस्ट्रीम मीडिया कहानी दिखाता नहीं, कहानी बनाता है। हम अपनी कहानी खुद कहेंगे।”
उसने प्रोफेसर वर्मा की मदद से एक युवा स्वतंत्र पत्रकार से संपर्क किया। उसका नाम था अंजलि भारद्वाज। अंजलि किसी बड़े न्यूज़ चैनल के लिए काम नहीं करती थी। वह एक YouTube चैनल और एक वेबसाइट चलाती थी, जहां वह बेखौफ होकर खोजी पत्रकारिता करती थी।
खतरनाक मुलाकात
उसकी पहुंच करोड़ों लोगों तक थी। मोमिता ने आधी रात को शहर से बाहर एक सुनसान जगह पर अंजलि से मुलाकात की। यह एक बहुत बड़ा खतरा था। लेकिन अब खतरे उठाने के अलावा कोई चारा नहीं था।
मोमिता ने सीधे मुद्दे पर आते हुए कहा, “मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। यह एक पेन ड्राइव है। इसमें वह सब कुछ है जो आपको चाहिए।”
मोमिता के पास एक पेन ड्राइव था जिसमें पूरी साजिश और सबूत मौजूद थे। उसने अंजलि भारद्वाज को दिया जो तुरंत अपनी रिपोर्ट और डॉक्यूमेंट्री के जरिए सब सच उजागर कर दिया।
सच्चाई का उजागर होना
मोमिता की बेबसी और झूठ पर किए गए आरोपों की सारी परतें खोल दी गईं। वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया। हैशटैग #ISupportDMomita ट्रेंड करने लगा। सभी भ्रष्ट पुलिस अफसर बौखला गए।
मोमिता और पंकज ने साजिश के पीछे का नेटवर्क खोज निकाला और पता चला कि आईजी अजय शर्मा ही मास्टरमाइंड था। उसकी ईमानदार छवि के पीछे 20 साल पुराने अपने अतीत का गहरा राज छिपा था, जिसमें मोमिता के पिता की हत्या और केस दबाना शामिल था।
पिता की हत्या का खुलासा
मोमिता ने बूढ़े हवलदार रामफल से अपने पिता की हत्या का डाइंग डिक्लेरेशन दर्ज करवाया। उसके पास अब आईजी शर्मा के साम्राज्य को ध्वस्त करने के पुख्ता सबूत थे।
राज्य की उच्च स्तरीय जांच समिति के सामने सबूत पेश किए गए और आईजी अजय शर्मा को गिरफ्तार किया गया। मोमिता को पुनः डीएम के पद पर बहाल किया गया।
एक नई शुरुआत
20 साल बाद वह और उसकी मां वहीं गए जहां उनके पिता की मौत हुई थी। अब वहां डर नहीं, सिर्फ सुकून था। कमला जी की आंखों में गर्व और खुशी थी।
मोमिता ने अपनी और अपने पिता की लड़ाई पूरी कर दी थी।
समापन
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि ईमानदारी और साहस से भरे दिल के साथ हमें अन्याय के खिलाफ खड़े होना चाहिए। मोमिता की तरह हमें भी अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी अन्याय को सहन नहीं करना चाहिए।
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