जिस कंपनी में पत्नी मैनेजर थी, उसी में तलाकशुदा पति सिक्योरिटी गार्ड था… फिर जो हुआ इंसानियत रो पड़ी
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सुबह का समय था, जब अमृता टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड का बड़ा सा गेट खुला। गेट पर खड़ा सिक्योरिटी गार्ड, आरव, ने झट से सीधा होकर सलाम किया। एक सफेद कार धीरे-धीरे अंदर आई। ड्राइवर ने दरवाजा खोला और एक महिला बाहर उतरी। वह समीरा मेहता थी, जो कंपनी की नई शाखा की मैनेजर थी। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास था, लेकिन जैसे ही उसकी नजर आरव पर पड़ी, उसके कदम रुक गए। आरव, उसका तलाकशुदा पति, अब सिक्योरिटी गार्ड की वर्दी में खड़ा था।
समीरा की आंखों में आश्चर्य था। उसने आरव को पहचान लिया, लेकिन उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका पूर्व पति अब उसी कंपनी के गेट पर गार्ड है। आरव ने सिर झुका कर कहा, “गुड मॉर्निंग मैडम।” उसकी आवाज में वही आदर था, लेकिन अब वह रिश्ता नहीं था जो कभी था। समीरा के हंठ सूख गए। उसने बस इतना कहा, “ओह, ठीक है,” और बिना कुछ कहे अंदर चली गई। उसके दिल में तूफान उठ रहा था।
ऑफिस पहुंचकर, समीरा ने जल्दी से ब्लाइंड नीचे कर दिए। लेकिन उस एक झलक ने उसकी पूरी सुबह को उलझा दिया था। 8 साल पुराना अतीत आज उसकी कंपनी के गेट पर खड़ा था। आरव और समीरा एक ही कॉलेज से पढ़े थे। आरव तब एक होनहार इंजीनियर था, ईमानदार और सादगी से भरा। समीरा उसे पसंद करती थी क्योंकि वह दूसरों से अलग था। शादी प्यार से हुई थी, लेकिन वक्त ने सब कुछ बदल दिया।

समीरा की नौकरी चल निकली और उसने तेजी से तरक्की की। दूसरी तरफ, आरव की कंपनी घाटे में चली गई। घर में खर्च बढ़ता गया और समीरा को आरव की मेहनत पर विश्वास नहीं रहा। एक रात, झगड़ा इतना बढ़ा कि समीरा ने कहा, “मुझे ऐसा पति नहीं चाहिए जो दिन-रात संघर्ष करे। मैं किसी गार्ड की बीवी बनकर नहीं रह सकती।” यह बातें आरव के दिल में गहरी चोट पहुंचाई। कुछ दिनों बाद, समीरा ने चुपचाप तलाक के पेपर पर साइन कर दिए और घर छोड़ दिया।
अब वही आरव 8 साल बाद उसी शहर में, उसी औरत के ऑफिस के गेट पर गार्ड बनकर खड़ा था। समीरा दिनभर काम में लगी रही, लेकिन मन बेचैन था। बार-बार खिड़की से गेट की तरफ झांकती। हर बार उसे वही चेहरा दिखता, जो शांत था और बिना किसी शिकायत के। दोपहर में, जब उसकी दोस्त नीलिमा ने पूछा, “मैडम, आप ठीक हैं? आज कुछ परेशान लग रही हैं,” तो समीरा ने बस सिर हिलाया। लेकिन दिल में सवाल था, “आखिर वह यहां कैसे आया?”
शाम को जब वह निकल रही थी, तो गेट पर आरव फिर खड़ा था। उसने फिर कहा, “गुड नाइट मैडम।” समीरा के पैर वहीं रुक गए। वह पलटकर देखना चाहती थी, लेकिन नहीं देखा। गाड़ी में बैठी तो मन खुद से बातें करने लगा। “वह कैसे इतना शांत रह सकता है? मैंने उसे तोड़ दिया था, लेकिन वह टूटा नहीं। या शायद मैं ही टूट गई हूं।”
रात को घर पहुंचते ही समीरा ने लैपटॉप खोला और कंपनी की सिक्योरिटी एजेंसी का नाम देखा। “सेफ वॉच सर्विस पीवीटी लिमिटेड” के नीचे छोटे अक्षरों में लिखा था “सुपरवाइज्ड बाय मिस्टर आरव मेहता।” उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। वह कुर्सी पर टिक गई और बस एक ही ख्याल मन में गूंजा, “तो यह वही है, मेरा आरव।”
देर रात तक वह उसी स्क्रीन को देखती रही। उस नाम में जैसे हजारों यादें बंद थीं। हर झगड़ा, हर मुस्कान, हर वादा, सब एक-एक करके सामने आने लगे। उसने खुद से कहा, “वह यहां तक कैसे पहुंचा? और अगर वह इस एजेंसी का सुपरवाइजर है तो फिर गार्ड की वर्दी में क्यों?” वह रात करवटों में गुजारी।
सुबह जब ऑफिस पहुंची, तो चेहरे पर मेकअप था, लेकिन आंखों के नीचे नींद की कमी साफ झलक रही थी। लोग अपनी-अपनी डेस्क पर लगे हुए थे, लेकिन समीरा का ध्यान हर थोड़ी देर में उसी गेट की ओर चला जाता था। आरव अपने ड्यूटी पर था, कभी किसी विजिटर को अंदर जाने देता, कभी किसी फॉर्म पर साइन करवाता। उसकी हर हरकत में एक अजीब सलीका था, जैसे वह सिर्फ नौकरी नहीं, अपनी इज्जत निभा रहा हो।
दोपहर के वक्त, मिस्टर कपूर, कंपनी के डायरेक्टर, समीरा के केबिन में आए। उन्होंने कहा, “हमें अगले महीने सिक्योरिटी अपग्रेड करवाना है। सेफ सर्विस अब हमारे पूरे ग्रुप की सिक्योरिटी संभालेगी। आरव खुद इस प्रोजेक्ट को लीड करेगा।” समीरा के गले से आवाज ही नहीं निकली। वह बस सिर हिलाकर बोली, “ओके सर।” लेकिन अंदर सब कुछ हिल गया था। वह सोच भी नहीं पा रही थी कि कभी जिस आदमी को उसने कमजोर कहा था, वह अब उसकी कंपनी का कॉन्ट्रक्टर बन गया था।
शाम को जब बाकी लोग चले गए, समीरा ने अपने केबिन से बाहर झांका। आरव अब भी गेट पर था। बाकी गार्ड्स को कुछ समझा रहा था। उसकी आंखों में वही चमक थी, जो कभी उसके सपनों में होती थी। लेकिन अब वह चमक समीरा को चुभ रही थी। वह कुछ देर तक देखती रही, कैसे वह हर गार्ड को शालीनता से बोल रहा था। किसी की गलती पर चिल्ला नहीं रहा, बस सिखा रहा था। जैसे कोई बॉस नहीं, लीडर हो।
समीरा का मन नहीं माना। वह नीचे आई और धीरे-धीरे चलते हुए गेट तक पहुंची। आरव ने देखा और झट से सीधा खड़ा हो गया। “गुड इवनिंग मैडम।” समीरा ने उसकी आंखों में देखा, उन आंखों में जो कभी उसके सपनों का आईना थीं। आरव ने सहजता से कहा, “मैडम, मैं यहां कुछ हफ्तों तक सुपरवाइज कर रहा हूं।”
समीरा ने कहा, “तो तुम इस एजेंसी के मालिक हो?” आरव ने मुस्कुराते हुए कहा, “मालिक तो भगवान है। मैं बस उसके भरोसे अपना काम करता हूं।” समीरा कुछ कहना चाहती थी, लेकिन उसके शब्द गले में अटक गए। आरव ने शालीनता से कहा, “मैडम, आप अंदर जाइए। शाम ठंडी हो रही है।” वह वहीं ठिठक गई। वह आदमी, जिसे उसने कभी अपना सबसे बड़ा असफल फैसला कहा था, आज उसी के सामने सफलता की मिसाल बनकर खड़ा था।
उस रात समीरा घर लौटी और उसने आईने में खुद को देखा। वह खुद से पूछने लगी, “कौन छोटा था? वह या मैं? वह जो हार के बाद भी सिर ऊंचा रखे खड़ा है या मैं, जो जीत कर भी भीतर से खाली हूं?” उसने पुराना एल्बम खोला। तस्वीरें जिनमें आरव और वह मुस्कुरा रहे थे, साधारण कपड़े पहने हुए, पर चेहरों पर सुकून था। वह वक्त जब दोनों एक-दूसरे के सपनों पर भरोसा करते थे। समीरा की आंखों से आंसू बन निकले। “काश उस वक्त मैंने उसका हाथ ना छोड़ा होता। काश मैंने उसका संघर्ष देखा होता।”

दूसरी तरफ, आरव अपने छोटे से कमरे में बैठा था। एक पुरानी डायरी खुली हुई थी। उसमें वही वाक्य लिखा था जो उसके जीवन का मंत्र बन चुका था, “कभी किसी के तानों को अपनी सच्चाई से बड़ा मत होने देना।” उसे याद था वह रात जब उसने कंपनी खोई थी, घर छोड़ा था, और समीरा की वह आखिरी लाइन, “मैं किसी गार्ड की बीवी बनकर नहीं रह सकती।” वह लाइन उसके लिए अपमान नहीं, चुनौती बन गई थी।
उसने सोचा था, “अगर मुझे गार्ड बनना ही है, तो मैं ऐसा गार्ड बनूंगा जो दूसरों की इज्जत की रखवाली करे और अपनी खुद की इज्जत कभी ना खोए।” धीरे-धीरे उसने छोटे-छोटे ऑफिसों में सिक्योरिटी सर्विस देना शुरू किया। दिन में काम और रात में अकाउंट्स और ट्रेनिंग की पढ़ाई। कई बार खाना नहीं खाया, पर किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। 3 साल में उसने सेफ वॉच सर्विस पीवीटी लिमिटेड खड़ी कर दी। अब शहर के कई नामी ऑफिस उसी की एजेंसी से सिक्योरिटी लेते थे।
लेकिन आज जब उसने समीरा को देखा, दिल में एक पुरानी टीस उठी। अगले दिन कंपनी में नई मीटिंग थी। आरव और उसकी टीम सिक्योरिटी अपग्रेड पर प्रेजेंटेशन देने आने वाले थे। समीरा पूरे दिन सोचती रही, “क्या मैं उसका सामना कर पाऊंगी?” शाम को जब वह मीटिंग हॉल में दाखिल हुई, तो आरव पहले से वहां था। इस बार वर्दी में नहीं, बल्कि काले सूट और सफेद शर्ट में। चेहरा आत्मविश्वास से भरा, आंखें संयमित।
पूरा हॉल खड़ा हो गया। जब मिस्टर कपूर ने कहा, “लेट्स वेलकम मिस्टर आरव मेहता, अ न्यू सिक्योरिटी पार्टनर,” तो समीरा के हाथों से फाइल गिर पड़ी। सन्नाटा फैल गया। आरव ने धीमी मुस्कान के साथ कहा, “गुड इवनिंग मैडम।” और उसी पल वक्त सचमुच पलट गया। समीरा की आंखें ठहर गईं। वह वहीं बैठी रह गई, जैसे उसकी सांसें थम गई हों।
आरव ने प्रेजेंटेशन देना शुरू किया। उसकी आवाज पूरे हॉल में गूंज रही थी। “हमारा मकसद सिर्फ सिक्योरिटी देना नहीं, बल्कि भरोसा देना है। हर कंपनी की सुरक्षा तभी मजबूत होती है जब उसके गेट पर खड़ा हर इंसान अपने काम पर गर्व करें।” समीरा का दिल जैसे किसी ने भी लिया हो। वह हर लाइन में वह पुराना आरव सुन पा रही थी, जिसे कभी उसने समझा नहीं था। लोग तालियां बजा रहे थे, लेकिन समीरा का मन रो रहा था।
मीटिंग खत्म हुई। आरव ने सबको धन्यवाद कहा और बाहर निकल गया। समीरा अपनी कुर्सी पर जमी रह गई। मिस्टर कपूर ने उसके कंधे पर हाथ रखा। “समीरा, तुम ठीक हो ना?” उसने बस मुस्कुरा कर कहा, “जी सर, मैं ठीक हूं।” लेकिन उस मुस्कान के पीछे पछतावे का सागर छिपा था। वह मीटिंग रूम से निकलकर सीधे गेट की तरफ गई। आरव बाहर अपनी टीम के साथ कुछ चर्चा कर रहा था। समीरा धीरे से पास पहुंची।
“आरव,” वह पलटा। वही संयम, वही सादगी। “जी मैडम, थोड़ा समय मिलेगा?” उसने पूछा। “जरूर बताइए,” आरव ने कहा। दोनों कैफे के एक कोने में बैठ गए। पहली बार दोनों बिना किसी पद, बिना किसी औपचारिकता के आमने-सामने थे। समीरा बोली, “तुमने यह सब कैसे किया? आरव, इतनी मुश्किलों के बाद भी तुम ऐसे खड़े हो। मैंने तो सोचा था तुम टूट जाओगे।”
आरव ने मुस्कुराते हुए कहा, “टूटा था समीरा, पर जब कोई पूरी तरह टूट जाता है तो या तो खत्म हो जाता है या नया बन जाता है। मैंने दूसरा रास्ता चुना।” समीरा की आंखें नम थीं। “और वह वक्त जब मैंने तुम्हें छोड़ा था,” उसने कहा। आरव ने बात बीच में ही काट दी, “वो वक्त जरूरी था। अगर तुम नहीं छोड़ती, तो शायद मैं कभी खुद को पहचान नहीं पाता।”
कुछ देर दोनों खामोश बैठे रहे। समीरा ने धीरे से कहा, “मैंने तुमसे बहुत गलत बातें कही थीं। तुम्हें छोटा समझा। तुम्हारी मेहनत नहीं देखी। आज मुझे समझ आया है इंसान की असली कीमत उसके कपड़ों या पैसों से नहीं, उसके धैर्य और हिम्मत से होती है।” आरव ने सिर्फ इतना कहा, “हम सब गलतियां करते हैं। बस फर्क इतना है कि कोई माफ कर देता है और कोई उन गलतियों को अपनी ताकत बना लेता है।”
उस रात समीरा ने घर लौटकर पहली बार अपने सारे अवार्ड, ट्रॉफियां और सर्टिफिकेट्स एक साथ रख दिए। वह उन्हें देखती रही, लेकिन उनमें कहीं भी सुकून नहीं दिखा। उसने खुद से बोला, “मेरे पास सब है। बस वह नहीं है जो कभी मेरा अपना था। आरव जैसा सच्चा इंसान।” उसने फोन उठाया और आरव का नंबर ढूंढा। थोड़ी देर तक स्क्रीन पर उंगलियां थमी रहीं। फिर उसने मैसेज टाइप किया, “धन्यवाद आरव। मुझे आज इंसानियत का मतलब फिर से समझाने के लिए।”
लेकिन सेंड करने से पहले ही वह रुक गई क्योंकि उसे लगा वह जवाब देगा भी तो क्या कहेगा। उसने मैसेज डिलीट कर दिया और धीरे से आंखें बंद कर ली। दूसरी तरफ, आरव उसी रात अपनी कंपनी की टीम के साथ डिनर पर था। सभी उसके आसपास थे, मुस्कुराते हुए हंसते हुए, लेकिन उसकी निगाहें बीच-बीच में मोबाइल स्क्रीन पर टिक रही थीं। उसने भी वह नाम देखा, “समीरा मेहता,” लेकिन टाइपिंग पर कोई मैसेज नहीं आया। वह हल्के से मुस्कुराया।
राघव, उसका पुराना दोस्त, बोला, “क्यों मुस्कुरा रहा है यार?” आरव बोला, “बस यूं समझो, कुछ रिश्ते वक्त से नहीं, एहसास से पूरे होते हैं।” अगले दिन ऑफिस में नया सिक्योरिटी सिस्टम लगने वाला था। समीरा अपनी डेस्क पर बैठी थी, जब एक स्टाफ मेंबर घबराया हुआ आया। “मैडम, एक इमरजेंसी है। पार्किंग में शॉर्ट सर्किट से छोटा ब्लास्ट हुआ है। आग लगी है।”
समीरा बिना कुछ सोचे नीचे भागी। पार्किंग एरिया में धुआं फैला था। कर्मचारी घबराकर बाहर निकल रहे थे। वह चिल्लाई, “सारे लोग बाहर जाओ, जल्दी!” लेकिन तभी किसी ने चिल्लाया, “एक ड्राइवर अंदर फंसा हुआ है।” समीरा कुछ समझ पाती, उससे पहले उसने देखा आरव बिना किसी हिचकिचाहट के अंदर भाग चुका था। धुएं में घुसते हुए उसकी परछाई गायब हो गई।
समीरा चीखी, “आरव!” कुछ ही पलों में दो लोग घायल ड्राइवर को लेकर बाहर आए। पीछे आरव भी खांसते हुए निकला। उसका चेहरा धुएं से काला पड़ गया था, लेकिन आंखें अब भी वही शांत थीं। समीरा उसके पास भागी। “तुम पागल हो गए हो क्या? अंदर क्यों गए थे?” आरव ने मुस्कुरा कर कहा, “ड्यूटी थी। मैडम, गार्ड सिर्फ दरवाजे नहीं, जिंदगियां भी संभालते हैं।”
समीरा के गाल पर आंसू लुढ़क गया। वह पहली बार उसे “मैडम” नहीं, “आरव” कहकर पुकारना चाहती थी। लेकिन शब्द फिर से गले में अटक गए। मिस्टर कपूर भी वहां पहुंच चुके थे। उन्होंने सबके सामने कहा, “आरव, तुमने आज साबित कर दिया कि सिक्योरिटी यूनिफार्म सिर्फ काम नहीं, जिम्मेदारी का प्रतीक है। तुम्हारे जैसे लोग ही इंसानियत का असली चेहरा हैं।” भीड़ ने तालियां बजाई। समीरा की आंखों से अब खुलकर आंसू बहने लगे। वह सिर झुका कर रो पड़ी।
आरव ने बस हाथ जोड़कर कहा, “मैंने वही किया जो सही था।” लेकिन उस पल इंसानियत सचमुच रो पड़ी थी। पूरा स्टाफ आरव के चारों ओर खड़ा था। किसी ने पानी दिया, किसी ने तौलिया थमाया। धुएं से सना चेहरा, माथे पर हल्की चोट, लेकिन उसके होठों पर वही शांत मुस्कान थी। जैसे उसने कोई इनाम नहीं, बस अपना फर्ज पूरा किया हो।
समीरा कुछ कदम दूर खड़ी थी। दिल तेजी से धड़क रहा था। आंखें भर आई थीं। वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन लफ्ज कहीं गुम हो गए थे। आरव ने सिर्फ इतना कहा, “सब लोग सुरक्षित हैं। बस यही मायने रखता है।” इतना कहकर वह चल पड़ा, पीछे सन्नाटा छोड़कर। उस रात समीरा देर तक छत की ओर देखती रही। हर बार जब आंखें बंद करती, तो धुएं में लिपटा आरव उसके सामने आ खड़ा हो जाता।
वह सोचती थी, “जिस आदमी को मैंने नाकाम समझकर छोड़ा था, वह आज अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की जिंदगी बचाने वाला निकला।” दिल के भीतर कोई गांठ धीरे-धीरे खुल रही थी और उसके साथ पछतावे का दर्द और गहराता जा रहा था। अगले दिन कंपनी का माहौल बिल्कुल अलग था। हर कोना बस एक नाम से गूंज रहा था, “आरव मेहता।”
किसी ने कहा, “उन्होंने अपनी जान पर खेल दी।” किसी ने जोड़ा, “ऐसे लोग ही इंसानियत का चेहरा हैं।” समीरा हर आवाज सुन रही थी, पर बोल नहीं पा रही थी। दोपहर में मिस्टर कपूर ने मीटिंग बुलाई। उन्होंने कहा, “आज से हम सेफ वॉच सर्विस के साथ स्थाई साझेदारी कर रहे हैं। क्योंकि हमें समझ आ गया है कि सुरक्षा मशीनों से नहीं, उन दिलों से मिलती है जो काम को इबादत मानते हैं।” हॉल तालियों से गूंज उठा।
आरव सादे कपड़ों में भीतर आया। चेहरे पर विनम्रता, आंखों में सुकून। समीरा पीछे बैठी थी। अब उसकी निगाहों में न तो अहंकार था, न प्रश्न। बस एक भाव, पछतावा। मीटिंग के बाद वह धीरे-धीरे पार्किंग तक गई। आरव अपनी गाड़ी में फाइलें रख रहा था। समीरा उसके पास आई। “आरव,” वह पलटा। वही संयम, वही सादगी। “जी समीरा, कल जो हुआ। अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो?”
आरव ने मुस्कुरा कर कहा, “तो शायद कोई और ड्यूटी निभा लेता। पर मैं अपना फर्ज अधूरा नहीं छोड़ सकता।” समीरा की आंखें भीग गईं। “तुम अभी वैसे ही बोलते हो जैसे पहले। बस फर्क इतना है कि तब मैं सुनना नहीं चाहती थी।” आरव ने शांत स्वर में कहा, “वक्त इंसान को नहीं बदलता। बस दिखा देता है कि कौन सही था।”
समीरा बोली, “मैंने तुम्हें गलत समझा। आरव, तुम्हारी हकीकत नहीं, बस हालात देखे। मैंने सोचा तुम हार गए, पर असली जीत तो तुम्हारी थी क्योंकि तुमने खुद से लड़ाई जीती।” आरव ने कहा, “शायद हम दोनों ने देर से समझा कि रिश्ते सम्मान से चलते हैं, अहंकार से नहीं।”
समीरा की आंखों से आंसू गिरे। वह धीमे से बोली, “काश उस दिन मैंने तुम्हारा हाथ ना छोड़ा होता। काश थोड़ा और समझा होता।” कुछ क्षण की खामोशी के बाद उसने कहा, “क्या हम फिर से शुरू नहीं कर सकते? आरव, मैं सच में बदल गई हूं।”
आरव थोड़ी देर चुप रहा। फिर धीरे से बोला, “समीरा, मैं तुम्हें माफ करता हूं। पर वापस नहीं आ सकता। क्योंकि जब मैं टूटा था, तुम कहीं और थी। और जब मैं संभला, तब सीखा कि कुछ रिश्ते सम्मान के मुकाम तक ही ठीक लगते हैं। फिर उन्हें वहीं ठहर जाना चाहिए।”
समीरा सुनती रही, बिना कुछ कहे। उसकी आंखों से आंसू टपकते गए। वह धीरे से बोली, “तुम जीत गए आरव और मैं हार गई।” आरव ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “हम दोनों ने अपने-अपने हिस्से की सजा पा ली।” इतना कहकर वह चल पड़ा और पीछे सिर्फ खामोशी रह गई।
रात को जब समीरा घर लौटी, तो हर चीज अजनबी लगी। दीवारों पर लटके अवार्ड्स, शेल्फ पर ट्रॉफियां, टेबल पर सर्टिफिकेट्स सब वही थे, पर अब उनमें कोई गौरव नहीं था। बस खालीपन था। वह आईने के सामने रुक गई। सामने वही चेहरा, कामयाब पर अंदर से खाली। आंखों के नीचे थकान, होठों पर खामोशी। उसे पहली बार महसूस हुआ कि सफलता भी कभी-कभी सजा बन जाती है।

उसने धीरे से अलमारी खोली। वह पुरानी डायरी निकाली जो शादी के वक्त आरव ने दी थी। पहले पन्ने पर लिखा था, “सपने छोटे हो या बड़े, अगर भरोसा सच्चा हो तो दुनिया झुक जाती है।” समीरा के आंसू उस पन्ने पर गिर गए। वह धीरे से बोली, “तुम सही थे, आरव। मैंने सपने तो देखे पर भरोसा खो दिया।”
उसने दीवार पर लगी आरव की फोटो को देखा। वह मुस्कुरा रहा था, सादगी में भी गर्व का चमकता चेहरा। समीरा बुदबुदाई, “तुमने मुझे छोड़ा नहीं था। दरअसल मैंने खुद को ही खो दिया।” वह खिड़की के पास आकर रुक गई। बाहर आसमान में हल्की रोशनी थी। वह धीरे से बोली, “अब मेरे पास सब कुछ है। नाम, पैसा, पद, पर दिल खाली है। तुम चले गए। पर जो रह गया वह सिर्फ पछतावा है। और वह सजा जो जिंदगी ने मुझे दी है।”
उसकी आंखों से फिर आंसू बहने लगे, धीरे-धीरे बिना आवाज के। और पहली बार उसे महसूस हुआ कि कुछ दर्द सजा नहीं, न्याय होते हैं। जिस दिन उसने आरव का दिल तोड़ा था, उसी दिन किस्मत ने उसका फैसला लिख दिया था। एक दिन तू सब पाएगी, पर चैन नहीं पाएगी। अब हर सुबह उसके लिए एक सवाल बन गई थी। “क्या वाकई जिंदगी दौलत से चलती है या उन रिश्तों से जो हम वक्त की धूल में खो देते हैं?”
आरव तो अब आगे बढ़ चुका था, अपनी मेहनत, अपने सम्मान और अपने सुकून के साथ। और समीरा वही रह गई, चार दीवारों में ढेरों इनामों के बीच, लेकिन खुद के अंदर हारी हुई औरत बनकर। कभी-कभी जिंदगी सबसे बड़ी सजा यही देती है। माफी तो मिलती है, पर दूसरा मौका कभी नहीं।
दोस्तों, जिंदगी में पद, पैसा और शोहरत सब मिल सकता है। लेकिन एक बार खोया हुआ भरोसा और रिश्तों की गर्माहट कभी वापस नहीं आती। अहंकार जब रिश्तों पर हावी हो जाए, तो इंसान सब पाकर भी खाली रह जाता है। गौरव का फैसला अपनी राह अलग चुनना। क्या आपको सही लगा या गलत? अगर आप उसकी जगह होते तो क्या करते? कमेंट में जरूर बताइए।
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