डॉक्टर भी अरबपति की जान नहीं बचा सके, फिर गरीब नौकरानी ने जो किया, देखकर सब हैरान रह गए।
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अंजलि देवी एक 38 वर्षीय अकेली मां थीं, जो एक बड़े शहर के महंगे अस्पताल में सफाईकर्मी के रूप में काम करती थीं। उनका बचपन संघर्षों से भरा था। कॉलेज में केमिस्ट्री की होनहार छात्रा होने के बावजूद, परिवार की जिम्मेदारियों के कारण उन्हें पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी। लेकिन उन्होंने कभी अपने ज्ञान को नहीं छोड़ा। खाली समय में वह किताबें पढ़तीं, ऑनलाइन क्लासेस देखतीं और विज्ञान से जुड़ी मैगजीन पढ़ती रहती थीं।
अस्पताल में उनकी उपस्थिति को अक्सर नजरअंदाज किया जाता था। डॉक्टर और स्टाफ उन्हें केवल सफाई वाली के रूप में देखते थे, उनकी बुद्धिमत्ता को नहीं समझते थे। लेकिन अंजलि की नजरें हर छोटी-छोटी बात पर गहरी होती थीं। एक दिन जब वह विजय वर्मा के कमरे की सफाई कर रही थीं, तो उन्होंने एक अजीब मेटल जैसी गंध महसूस की। विजय वर्मा देश के एक बड़े कारोबारी थे, जिनका इलाज उसी अस्पताल में चल रहा था। उनकी हालत लगातार खराब हो रही थी, लेकिन डॉक्टर उनकी बीमारी का सही पता नहीं लगा पा रहे थे।
अंजलि ने विजय के नाखूनों का पीला पड़ना, बालों का अजीब तरह से झड़ना और मसूड़ों के रंग में बदलाव देखा। यह कोई सामान्य बीमारी नहीं थी, बल्कि जहर का असर लग रहा था। उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों की केमिस्ट्री की पढ़ाई याद की, जिसमें भारी धातुओं के जहर पर चर्चा हुई थी। उन्हें शक हुआ कि विजय को थैलियम नामक जहर दिया जा रहा है। पर एक सफाईकर्मी की बात किसी डॉक्टर को मानना मुश्किल था।
विजय के करीब जयदीप भार्गव नाम का एक व्यक्ति था, जो पहले उनका दुश्मन था लेकिन अब मददगार दोस्त बन गया था। जयदीप अक्सर विजय के लिए एक खास इंपोर्टेड हैंड क्रीम लाता था। अंजलि ने महसूस किया कि यही क्रीम जहर देने का माध्यम हो सकती है। उन्होंने चुपके से उस क्रीम का सैंपल लिया और अपने पुराने केमिस्ट्री ज्ञान का उपयोग करके जांच की। टेस्ट में थैलियम का पता चला।
अंजलि ने डॉक्टरों को यह बात बताने की कोशिश की, लेकिन वे उसे नजरअंदाज करते रहे। एक बार तो उसे चेतावनी भी मिली कि वह दवा मामलों में दखल न दे। लेकिन अंजलि ने हार नहीं मानी। उन्होंने डॉक्टर कपूर से बात की, जो एक युवा और समझदार डॉक्टर थे। डॉक्टर कपूर ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया।
जब विजय की हालत बहुत खराब हो गई, तब अंजलि ने अस्पताल के डॉक्टरों की मीटिंग में बिना अनुमति के प्रवेश किया और अपनी जांच के सबूत पेश किए। शुरुआत में डॉक्टर सिन्हा ने उसे डांटा, लेकिन जब उन्होंने सबूत देखे तो उनकी राय बदल गई। अन्य डॉक्टरों ने भी अंजलि के दावे को मान्यता दी।
अंजलि ने बताया कि जयदीप भार्गव ही जहर देने वाला था, जो रोजाना वही खास हैंड क्रीम लाता था। डॉक्टरों ने तुरंत थैलियम के लिए विशेष टेस्ट किया और जहर की पुष्टि हुई। इसके बाद विजय वर्मा का इलाज शुरू हुआ और कुछ हफ्तों में उनकी हालत में सुधार होने लगा।
इस पूरी घटना के बाद, अस्पताल में अंजलि की इज्जत बढ़ गई। डॉक्टरों ने उसकी काबिलियत को सराहा और उसे स्कॉलरशिप प्रदान की ताकि वह अपनी केमिस्ट्री की पढ़ाई पूरी कर सके। विजय वर्मा ने भी उसकी मदद का वादा किया और एक संस्था बनाई जो आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन प्रतिभाशाली छात्रों को सहायता प्रदान करती है।

अंजलि ने अपनी पढ़ाई पूरी की और अस्पताल में एक नई भूमिका में काम करने लगीं। वह अब दूसरों की जिंदगी बचाने वाली डॉक्टर बन गई थीं। उनकी कहानी यह सिखाती है कि ज्ञान और हुनर कहीं भी छुपा हो सकता है, और कभी-कभी वे लोग जो समाज में अदृश्य होते हैं, सबसे बड़ी ताकत होते हैं।
अंजलि कमरे की सफाई कर रही थी। अचानक उसे एक अजीब मेटल जैसी गंध महसूस हुई। उसने विजय वर्मा के नाखून, बाल और मसूड़ों को ध्यान से देखा। नाखून पीले पड़ रहे थे, बाल झड़ रहे थे और मसूड़ों का रंग भी बदल रहा था। अंजलि के दिमाग में कॉलेज की केमिस्ट्री की क्लास की याद आई। “यह थैलियम जहर हो सकता है,” उसने सोचा।
विजय वर्मा के कमरे में जयदीप भार्गव आए। उन्होंने एक इंपोर्टेड हैंड क्रीम दिया और जोर दिया कि विजय सिर्फ यही इस्तेमाल करें। अंजलि ने क्रीम का सैंपल चुपके से लिया।
अंजलि ने डॉक्टर कपूर से कहा, “डॉक्टर साहब, मुझे लगता है कि विजय वर्मा को थैलियम जहर दिया जा रहा है। उनके लक्षण पूरी तरह मेल खाते हैं।”
डॉक्टर कपूर ने कहा, “यह गंभीर बात है, मैं इसे जांचता हूं।”
जब विजय की हालत और खराब हो गई, तो अंजलि बिना अनुमति के डॉक्टरों की मीटिंग में गई और बोली, “मिस्टर वर्मा को थैलियम जहर दिया जा रहा है। मैंने इसका सबूत भी इकट्ठा किया है।”
डॉक्टर सिन्हा गुस्से में बोले, “तुम एक सफाईकर्मी हो, डॉक्टर नहीं!”
अंजलि ने जवाब दिया, “मैं जॉनस हॉपकिंस की पूर्व छात्रा हूं। यह सबूत देखें।”
डॉक्टरों ने सबूत देखे और चुप हो गए। थैलियम का टेस्ट पॉजिटिव आया। डॉक्टर मीना ने कहा, “हमें तुरंत प्रश ब्लू इलाज शुरू करना होगा।”
कुछ हफ्तों में विजय की हालत सुधरने लगी। विजय ने अंजलि को स्कॉलरशिप दी ताकि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सके। अंजलि ने पढ़ाई पूरी की और डॉक्टर बन गईं।
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