पति रोज बासी रोटी खाता था, पत्नी ने पीछा किया तो सच ने रुला दिया! 😭
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सुबह की पहली धूप जब दिल्ली के पुराने मोहल्ले की तंग गलियों में पड़ती थी, तब रमेश अपनी दिनचर्या में मशगूल होता था। उसकी दुनिया बेहद सादगी से भरी थी। उसकी पत्नी प्रिया और आठ साल का बेटा राहुल गहरी नींद में थे, लेकिन रमेश हमेशा उनसे पहले उठ जाता था। वह धीरे-धीरे उठकर, बिना किसी को जगाए, हाथ-मुंह धोकर रसोई में पहुंच जाता। वहां रात के बर्तन के बीच एक छोटी टोकरी में रखी हुई बासी रोटियां उसका इंतजार करती थीं। वह बिना किसी शिकायत के उन सूखी रोटियों को अचार के एक छोटे टुकड़े के साथ खाता।
प्रिया अक्सर नींद में होने का नाटक करती, लेकिन उसकी आधी खुली आंखें सब देखती थीं। वह जानती थी कि रमेश हर सुबह गरमागरम पराठों को छोड़कर सूखी रोटी क्यों खाता है। शुरुआत में उसने सोचा कि शायद यह एक-दो दिन की बात है, फिर उसने सुबह जल्दी उठकर आलू के पराठे बनाए। जब उसने पराठों की थाली रमेश के सामने रखी, तो उसने सिर्फ मुस्कुराकर कहा, “प्रिया, मैं बस यही एक रोटी खा लूंगा। तुम और राहुल खा लेना।” उस दिन प्रिया का दिल टूट गया था। यह सिर्फ एक पराठे की बात नहीं थी, बल्कि उसके प्यार और मेहनत की अनदेखी थी।
दिन बीतते गए, हफ्ते और महीने गुज़र गए, लेकिन रमेश की आदत नहीं बदली। प्रिया के मन में शक के पेड़ उगने लगे। क्या रमेश उससे नाराज है? क्या उसके हाथ का खाना अब उतना स्वादिष्ट नहीं रहा? या फिर कोई और वजह है? मोहल्ले की औरतों की बातें उसके कानों में गूंजने लगीं, “अरे बहन, मर्दों का क्या है? बाहर मुंह मारने लगते हैं तो घर का खाना जहर लगता है।” यह बातें प्रिया के दिल को चुभतीं। क्या रमेश की जिंदगी में कोई और आ गया है? क्या वह पैसे कहीं और खर्च कर रहा है?
रमेश एक छोटी सी स्टील फैक्ट्री में सुपरवाइजर था। उसकी तनख्वाह ठीक-ठाक थी, लेकिन पिछले कुछ महीनों से घर में पैसों की तंगी महसूस हो रही थी। रमेश अब छोटी-छोटी चीजों के लिए मना करने लगा था। राहुल ने जब नई क्रिकेट बैट की मांग की, तो रमेश ने कहा, “पुराना वाला अभी ठीक है।” प्रिया ने जब नई चादरें खरीदने की बात की, तो उसने कहा कि अभी पुरानी चल जाएंगी। यह सब देखकर प्रिया का शक और बढ़ गया।
एक दिन मकान मालिक शर्मा जी किराया लेने आए। रमेश ने उनसे दो दिन की मोहलत मांगी। शर्मा जी बड़बड़ाते हुए चले गए। यह देखकर प्रिया का मन और टूट गया। उसका पति जो हमेशा अपनी इज्जत को सबसे ऊपर रखता था, अब किराए के लिए मोहलत मांग रहा था और सुबह बासी रोटी खा रहा था।
रात को जब रमेश घर लौटा, तो प्रिया ने हिम्मत करके पूछा, “सुनिए, घर में सब ठीक तो है? आप कुछ परेशान लग रहे हैं।”
रमेश ने गहरी सांस ली, चेहरे पर झूठी मुस्कान सजाई और कहा, “नहीं प्रिया, बस काम का थोड़ा बोझ है। चिंता मत करो, सब ठीक है।”
प्रिया को लगा कि रमेश कुछ बड़ा छिपा रहा है। उसने ठान लिया कि वह इस राज का पता लगाएगी।
अगली सुबह प्रिया ने बिना कुछ कहे रमेश का पीछा किया। रमेश फैक्ट्री जाने की बजाय एक दूसरी बस में चढ़ गया जो शहर के पुराने हिस्से की ओर जा रही थी। वह महाकाल मंदिर के पास उतरा। प्रिया ने ऑटो लेकर उसका पीछा किया।

मंदिर के बाहर रमेश ने एक पुरानी लकड़ी की तख्ती पर अपना झोला रखा। झोले में से उसने गैस सिलेंडर, चूल्हा, बर्तन, आटा, पानी की बोतल और तवा निकाला। उसने चूल्हा जलाया, आटा गूंथा और रोटियां सेंकने लगा। प्रिया हैरान थी कि उसका पति मंदिर के बाहर भूखों को खाना परोस रहा था।
धीरे-धीरे आसपास के बेसहारा लोग उसके पास आने लगे। रमेश ने हर किसी की थाली में गरम-गरम रोटियां और सब्जी डाली। वह बुजुर्गों से बात करता, बच्चों को प्यार से रोटी खिलाता, कमजोरों को पानी पिलाता। उसकी आंखों में एक शांति थी जो प्रिया ने पहले कभी नहीं देखी थी।
तभी दो गुंडे वहां आए और रमेश को धमकाने लगे, “यहां बैठने का किराया कौन देगा? रोज़ का 500 रुपये।”
रमेश ने विनम्रता से कहा, “भाई साहब, मैं कोई धंधा नहीं कर रहा। बस भूखों को खाना खिला रहा हूं।”
गुंडे भड़क गए और एक ने रमेश के आटे के बर्तन में लात मारने की कोशिश की। प्रिया ने हिम्मत जुटाकर खंभे के पीछे से बाहर निकल कर कहा, “यह कोई धंधा नहीं, यह सेवा है। आपको शर्म आनी चाहिए।”
भीड़ में मौजूद लोग प्रिया का समर्थन करने लगे। बुजुर्ग महिलाओं ने कहा, “यह लड़का तो देवता है।” दुकानदारों ने कहा, “हमने कभी इस पर एक पैसा भी नहीं मांगा।”
गुंडे घबराकर वहां से भाग गए। प्रिया और रमेश की जोड़ी ने मिलकर वहां खाना बनाना और परोसना शुरू किया। रमेश ने बताया कि उसने यह सब इसलिए किया क्योंकि उसने एक गरीब आदमी को भूख से मरते देखा था और तब उसने कसम खाई थी कि वह अपनी कमाई का हिस्सा भूखों को खिलाएगा, चाहे खुद को बासी रोटी ही क्यों न खाना पड़े।
प्रिया ने अपनी शादी की दो महंगी साड़ियां बेच दीं और उन पैसों से मदद शुरू की। मोहल्ले के लोग भी जुड़ गए। अब “प्रियामेश की रसोई” मोहल्ले में एक मिसाल बन गई।
रमेश की फैक्ट्री के मालिक ने उसकी तनख्वाह बढ़ा दी और काम पर एक घंटा देर से आने की अनुमति भी दे दी।
रमेश और प्रिया का रिश्ता और मजबूत हो गया। वे सिर्फ पति-पत्नी नहीं, बल्कि इंसानियत की सेवा के साथी बन गए।
एक दिन रमेश ने मुस्कुराते हुए कहा, “वो बासी रोटी हमारे रिश्ते में दरार नहीं लाई, बल्कि उसे मजबूत किया।”
प्रिया ने कहा, “हां, उस सूखी रोटी के पीछे तुम्हारा त्याग और प्यार है, जो हमारे रिश्ते को फौलाद जैसा बना गया।”
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्यार और त्याग शक से कहीं ऊपर होता है। कभी-कभी जो हमें धोखा या कंजूसी लगता है, उसके पीछे एक महान उद्देश्य छिपा होता है। जब हम एक-दूसरे के सपनों और संघर्षों को समझते हैं, तभी रिश्ते मजबूत होते हैं।
और यही है रमेश और प्रिया की कहानी — प्यार, विश्वास और सेवा की एक अमर मिसाल।
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