बेटों ने बूढ़े माँ-बाप को घर से निकला… फिर जो हुआ, उसने पूरे समाज को हिला दिया
वृद्धाश्रम का चमत्कार
दोस्तों, कभी-कभी जिंदगी में ऐसा मोड़ आता है जब जिन बच्चों को अपनी आंखों का तारा समझा, वही बड़े होकर अपने मां-बाप को बोझ समझने लगते हैं। यह कहानी है शिव प्रसाद तिवारी और उनकी पत्नी कमला देवी की, जिन्होंने अपने बेटों के लिए हर सुख चैन कुर्बान कर दिया। लेकिन जब बुढ़ापे में सहारे की जरूरत थी, तो उसी बेटे ने उन्हें अपने ही घर से धक्के देकर निकाल दिया।
एक साधारण जीवन
शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी मध्य प्रदेश के शांत कस्बे रीवा में रहते थे। यह दंपति साधारण जीवन जीते हुए भी अपार संतोष रखता था। शिव प्रसाद जी ने पूरी उम्र सरकारी फैक्ट्री में काम करते हुए गुजारी। सुबह की सायरन की आवाज सुनते ही वे हमेशा समय पर पहुंचते और रात ढलते ही घर लौटते। उनकी ईमानदारी और मेहनत का लोहा पूरा शहर मानता था। दूसरी ओर, कमला देवी का संसार केवल अपने पति और बेटों तक सीमित था। रसोई की महक, बच्चों की पढ़ाई, त्योहारों की तैयारी और रिश्तेदारों का सत्कार यही उनके जीवन का आधार था।
कमला देवी खुद की इच्छाओं को दबाकर हमेशा परिवार की जरूरतों को प्राथमिकता देती थीं। इस दंपत्ति के दो बेटे थे। बड़े बेटे सुमित ने पढ़ाई के बाद नौकरी की तलाश में मुंबई का रुख किया और वहीं उसकी शादी प्रिया नाम की लड़की से हुई। अब वह वाशी के आधुनिक अपार्टमेंट में अपने परिवार के साथ रहता था। छोटा बेटा संदीप अभी कस्बे में ही था और नौकरी पाने की कोशिशों में लगा था।
रिटायरमेंट का समय
वक्त तेजी से गुजरता गया। तीन दशक से अधिक समय देने के बाद शिव प्रसाद जी का रिटायरमेंट नजदीक था। थका शरीर अब आराम चाहता था और मन सोचता था कि बुजुर्गी में बेटों का सहारा मिलेगा। तभी एक दिन बड़े बेटे सुमित का फोन आया।
“पिताजी, अब आप नौकरी छोड़ दीजिए। हम सब मुंबई में हैं। यहां बड़ा घर है। आपको कोई कठिनाई नहीं होगी। आपके लिए यही बेहतर है कि अब आराम कीजिए।”
यह शब्द सुनकर शिव प्रसाद जी और कमला देवी का दिल भर आया। उन्हें लगा कि बेटा अब सचमुच अपने माता-पिता को सहारा देना चाहता है। शिव प्रसाद जी ने निश्चय किया कि वे स्वेच्छा से रिटायर हो जाएंगे। सारी जमा पूंजी उन्होंने बैंक में सुरक्षित कर दी क्योंकि बेटे ने समझाया था कि नकदी घर पर रखना खतरनाक है।
मुंबई की यात्रा
मुंबई जाने की तैयारी शुरू हुई। टिकट कटे और दिलों में नए सपनों की चादर बिछ गई। ट्रेन की खिड़की से बाहर देखते हुए कमला देवी कभी मुस्कुराती, कभी भावुक हो जातीं। वह कल्पना करतीं कि कैसे वे पोते-पोतियों को गोद में खिलाएंगी। शिव प्रसाद जी भी उत्साहित थे कि अब जीवन की शाम चैन और स्नेह से गुजरेगी। पूरा सफर उन दोनों के लिए उम्मीदों से भरा हुआ था।
लेकिन दोस्तों, किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही लिखा था। मुंबई पहुंचते ही उन्हें ऐसी हकीकत का सामना करना पड़ा जिसने उनके सारे सपनों को चूर-चूर कर दिया। मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो भीड़ का शोर कानों को फाड़ देने जैसा था। शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी ने जिंदगी में कभी इतना बड़ा और तेज शहर नहीं देखा था।
पहली मुश्किल
जहां तक नजर जाती, लोग भागते-दौड़ते नजर आते। भीड़ का सैलाब ऐसा कि लगता हो जैसे हर कोई अपनी ही दुनिया में खोया हुआ है। दोनों थके कदमों से प्लेटफार्म पार करने लगे। हाथों में छोटे-छोटे बैग थे। आंखों में उम्मीदें और दिल में बेटे के घर की कल्पना।
कमला देवी ने घबराकर कहा, “जी, यहां तो बहुत शोर है। हमें टैक्सी कैसे मिलेगी?”
शिव प्रसाद जी ने हिम्मत बांधते हुए पास खड़े एक ड्राइवर से पूछा, “भाई साहब, वाशी जाना है, छोड़ दोगे?”
ड्राइवर ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा और रूखे स्वर में बोला, “बैठ जाइए। मीटर जितना दिखाएगा उतना देना पड़ेगा।” दोनों को राहत मिली। वे जल्दी से गाड़ी में बैठ गए।
ड्राइवर की बेरुखी
रास्ते भर शिव प्रसाद जी बेटे की बातें करते रहे। बेटा कहता था अब नकदी रखना ठीक नहीं। एटीएम से ही काम चल जाएगा। इसलिए पैसे बैंक में जमा कर दिए। यह सुनते ही ड्राइवर ने अचानक गाड़ी रोक दी। चेहरे पर गुस्से की लकीरें खींच गईं। वह झल्ला कर बोला, “मत जेब में एक रुपया भी नहीं है और टैक्सी में बैठ गए।”
शिव प्रसाद जी ने विनम्रता से कहा, “भाई, चिंता मत करो। हमें बेटे के घर छोड़ दो। वहां पहुंचकर पूरा किराया मिल जाएगा।” लेकिन ड्राइवर की आंखों में जरा भी दया नहीं थी। वो और उग्र होकर चिल्लाया, “अम्मा, तुम्हारे पास कुछ है तो दो। वरना अभी यहीं उतर जाओ।”
कमला देवी के हाथ कांप उठे। उन्होंने पल्लू की गांठ खोली और कांपती आवाज में बोलीं, “यह देखो बेटा, मेरे पास ₹200 हैं। यही रख लो।”
ड्राइवर ने नोट झपट लिया और तिरस्कार भरी हंसी के साथ बोला, “यही मेरा किराया है। अब उतरो और आगे का रास्ता खुद देखो।” गाड़ी धूल उड़ाती हुई चली गई। और दोनों बुजुर्ग उस अनजान शहर की सड़क पर अकेले खड़े रह गए।
बिछड़ने का दर्द
कमला देवी की आंखों से आंसू बहने लगे। उन्होंने अपने पति का हाथ थामते हुए कहा, “क्या यही वह शहर है जहां हमें चैन और सहारा मिलने वाला था?” शिव प्रसाद जी ने हिम्मत जुटाई और पास के फोन बूथ से बेटे को कॉल लगाया। आवाज में थरथराहट थी।
“सुमित, बेटे, टैक्सी वाले ने धोखा दिया। हमारे पास सिर्फ कार्ड है। क्या तुम किसी को भेज सकते हो?” उधर से बेटे की झुझुलाती हुई आवाज आई, “बाबूजी, मैं ऑफिस में हूं। मेरे पास फालतू टाइम नहीं है। दूसरी टैक्सी पकड़ लो। 700-900 लगेंगे तो क्या हुआ? एटीएम से निकाल लेना।”
यह सुनकर शिव प्रसाद जी आवाक रह गए। जिस बेटे के सहारे उन्होंने अपना सब कुछ छोड़ दिया था, वही आज उनकी बेबसी पर झुझला रहा था।
मददगार की उपस्थिति
लेकिन भगवान ने मददगार भेज दिया। वहां खड़े एक भले इंसान ने उनकी परेशानी समझी और अपने पैसे से टैक्सी करवा दी। “बाबूजी, चिंता मत कीजिए। आप लोग सुरक्षित घर पहुंच जाएं। यही बहुत है।” उसके शब्द सुनकर कमला देवी की आंखें और भीग गईं।
आखिरकार वाशी पहुंचे। घर के दरवाजे पर बेटे ने उन्हें देखा। लेकिन चेहरे पर जरा भी खुशी नहीं थी। सबसे पहला सवाल यही था, “पिताजी, पैसे लाए हो ना? रिटायरमेंट का पैसा नकद दिया है या बैंक में जमा कर दिया?”
बेटे का असली चेहरा
शिव प्रसाद जी ने सच्चाई बताई। “बेटा, सब बैंक में ही रखा है। नकदी साथ लाना ठीक नहीं लगा।” यह सुनते ही सुमित का चेहरा बदल गया। उसने तुरंत पत्नी प्रिया को कॉल किया और स्पीकर ऑन कर दिया।
फोन से आई ठंडी आवाज ने माता-पिता का दिल चीर दिया। “अगर पैसे नहीं लाए तो अभी इन्हें घर से बाहर निकाल दो। मुझे कोई बोझ अपने घर में नहीं चाहिए।” यह सुनते ही कमला देवी जमीन पर गिर पड़ीं। उनके कांपते होठों से बस इतना निकला, “हे भगवान, क्या यही वही बेटा है जिसके लिए हमने अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी थी?”
अपमान का सामना
प्रिया की बेरहम आवाज सुनकर कमला देवी जमीन पर गिर पड़ीं। आंखों से आंसू बहते रहे और दिल में बरसों की ममता का बोझ टूटकर बिखर गया। शिव प्रसाद तिवारी ने पत्नी को सहारा दिया। फिर बेटे की ओर घूरते हुए बोले, “सुमित, आज तूने मेरी आत्मा को घायल कर दिया है। जिस बेटे के लिए हमने अपनी रगों का खून सुखाया, उसी ने हमें बोझ कह दिया। याद रख, आज से हमारा और तेरा कोई रिश्ता नहीं रहा।”
उनकी आवाज कांपते हुए भी आग की तरह सख्त थी। सुमित ने सिर झुका लिया। लेकिन चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था। कमला देवी बुदबुदाई, “कितना धोखा दिया इसने हमें और हम कितने अंधे बनकर आए थे।” दोनों ने भारी मन से बैग समेटे और बेटे का घर छोड़ दिया।
नई शुरुआत
मुंबई जैसी भीड़ में वे दो परछाइयों की तरह भटकते रहे। रात भर प्लेटफार्म पर बैठकर गुजारा किया। कमला देवी बार-बार पूछतीं, “अब कहां जाएंगे? जी किसके सहारे जिएंगे?” शिव प्रसाद जी ने उनके कांपते हाथ थामते हुए कहा, “कमला, अगर भगवान ने हमें अपमान दिखाया है तो वह हमें सम्मान भी दिलाएगा। हम टूटेंगे नहीं।”
अगली सुबह दोनों ने निर्णय लिया कि वे वापस रीवा लौटेंगे। गांव की हवा ही उन्हें ताकत देगी। वहां पहुंचकर शिव प्रसाद जी ने फैक्ट्री जाकर अधिकारियों से मुलाकात की। उन्होंने सच्चाई बताते हुए कहा, “मैंने गलती से रिटायरमेंट ले लिया था। लेकिन मेरा आवेदन अभी आगे नहीं बढ़ा है, तो कृपया मुझे दोबारा काम पर रख लीजिए।”
अधिकारी जो उनकी ईमानदारी से परिचित थे, बोले, “तिवारी जी, हमारे लिए भी गर्व की बात है कि आप जैसे लोग फिर से काम करना चाहते हैं। आपकी नौकरी यही सुरक्षित है।”
आत्मसम्मान की वापसी
यह सुनकर शिव प्रसाद जी की आंखों में चमक लौट आई। उन्होंने रिटायरमेंट की रकम भी वापस जमा कर दी और दोबारा उसी जोश से काम पर लग गए। कमला देवी ने राहत की सांस ली और पति का हाथ पकड़कर कहा, “सच है जी, भगवान देर करता है लेकिन अंधेर नहीं। हमने बेटे का सहारा छोड़ा लेकिन आत्मसम्मान का सहारा पा लिया।”
समय बीतने लगा। अब शिव प्रसाद जी पहले से भी ज्यादा मेहनत करने लगे। उनके चेहरे पर दृढ़ता साफ झलकती थी। वे रोज देर तक काम करते और मन ही मन यही ठान चुके थे कि अपनी बुजुर्गी अब किसी पर बोझ बनकर नहीं बिताएंगे।
छोटे बेटे का लालच
इधर, छोटा बेटा संदीप भी धीरे-धीरे अपने असली रंग में आने लगा। शुरुआत में उसने मां-बाप से सेवा भाव दिखाया। लेकिन अंदर ही अंदर उसके दिल में भी लालच पलने लगा। वो दोस्तों से कहता, “अगर यह बूढ़े ना रहे तो सारी पेंशन और घर हमारा हो जाएगा। हमें आजादी से जीने में कोई दिक्कत नहीं होगी।”
दीवार के उस पार बैठी कमला देवी ने अपने ही कानों से यह बातें सुनीं। दिल जैसे किसी ने चाकू से काट दिया हो। रात को उन्होंने पति से कहा, “क्या हमारी सारी मेहनत का यही फल है? दोनों बेटे हमें बोझ समझते हैं। जब अपने ही अपमान करने लगे तो जीने की चाह मर जाती है।”
संघर्ष का समय
शिव प्रसाद जी ने उनकी आंखों में गहराई से देखा और गंभीर स्वर में कहा, “कमला, अगर हम आज चुप रहे तो आने वाली पीढ़ियां भी यही सीखेंगी कि बूढ़े मां-बाप बोझ होते हैं। हमें अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ा होना होगा।”
उस रात दोनों देर तक जागते रहे। कमला देवी पुरानी बातें याद करतीं। कैसे उन्होंने भूखे रहकर भी बच्चों को पढ़ाया। त्याग करके उनकी इच्छाएं पूरी कीं। आंखों से आंसू बहते रहे। लेकिन इस बार शिव प्रसाद जी ने उन्हें पोंछ डाला और कहा, “अब और नहीं। कमला, अब हमें अपने लिए जीना होगा। बूढ़े मां-बाप भी अगर ठान लें तो नई शुरुआत कर सकते हैं।”
नई शुरुआत की ओर
अगली सुबह उन्होंने अपनी बचत और तनख्वाह से कस्बे में एक छोटी सी दुकान खोल ली। कमला देवी भी रोज वहां जातीं और मुस्कान के साथ ग्राहकों का स्वागत करतीं। धीरे-धीरे दुकान चल पड़ी और लोग कहने लगे, “देखो इन्हें, बेटे ने ठुकरा दिया था। लेकिन यह हार नहीं माने। अपने बलबूते पर फिर से खड़े हो गए।”
उनकी मेहनत अब समाज की मिसाल बनने लगी। जहां पहले आंसू और बेबसी थी, वही अब आत्मविश्वास और उत्साह लौट आई थी। शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी की छोटी सी दुकान अब धीरे-धीरे पूरे कस्बे की पहचान बनने लगी।
समाज में बदलाव
सुबह-सुबह लोग उनकी दुकान पर आते, सामान खरीदते और बातचीत में कहते, “देखो, बूढ़े होकर भी इनका हौसला जवानों से ज्यादा है। बेटे ने ठुकराया फिर भी टूटे नहीं। अपने बल पर खड़े होकर जी रहे हैं।” कमला देवी हर ग्राहक को मुस्कुराकर नमस्कार करतीं। उनके चेहरे पर दर्द अभी भी था। लेकिन उस पर आत्मसम्मान की चमक भी जुड़ गई थी।
शिव प्रसाद जी रोज दुकान बंद करने से पहले भगवान की मूर्ति के सामने हाथ जोड़ते और मन ही मन कहते, “हे प्रभु, अब हमें अपने पैरों पर टिकाए रखना। बेटों का सहारा तो खो दिया लेकिन आत्मसम्मान हमें मिला है।”
धीरे-धीरे यह बात पूरे शहर में फैल गई। लोग उन्हें प्रेरणा मानने लगे। गांव-गांव में चर्चा होने लगी कि कैसे बूढ़े माता-पिता ने अपमान झेलकर भी हिम्मत नहीं हारी और मेहनत से नया जीवन शुरू किया।
बेटों का पतन
इधर, दोनों बेटों की जिंदगी बिखरने लगी। बड़ा बेटा सुमित और उसकी पत्नी प्रिया पैसों की भूख में अपने ही घर को नरक बना बैठे थे। प्रिया के मायके वालों ने उसे उकसाया, “पति से ज्यादा पैसा कमाने की जिद करो। वरना सारा जीवन यूं ही बीतेगा।” घर में रोज झगड़े होने लगे। बच्चे सहमकर कोनों में छिपकर आंसू बहाने लगे।
सुमित समझ ही नहीं पा रहा था कि लालच ने उसकी खुशियों का गला घोंट दिया है। छोटा बेटा संदीप भी उसी राह पर चल पड़ा। उसने दोस्तों के साथ मिलकर व्यापार करने की कोशिश की। लेकिन जो लोग माता-पिता की इज्जत नहीं करते, वे दुनिया में भी धोखा खा ही जाते हैं।
पछतावा
संदीप के दोस्त उसका पैसा लेकर भाग गए। वह कर्ज में डूब गया और अपने ही घर में दिन-रात तनाव से जूझने लगा। अब दोनों भाइयों को धीरे-धीरे समझ आने लगा कि जिन मां-बाप को उन्होंने बोझ समझकर अपमानित किया, वही उनके जीवन का असली सहारा थे। लेकिन अफसोस, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
नया अध्याय
इधर, कमला देवी और शिव प्रसाद जी का आत्मविश्वास और भी ऊंचाइयां छू रहा था। उन्होंने अपनी दुकान से कमाई का हिस्सा अलग निकालना शुरू किया और कहा, “क्यों ना इस पैसे से किसी ने काम की शुरुआत की जाए। जैसे हमने अपमान सहा, वैसे ही कई बुजुर्ग अकेले तड़प रहे होंगे।”
और फिर एक दिन उन्होंने शहर में एक निशुल्क भोजनालय शुरू कर दिया। यहां हर दिन सैकड़ों बुजुर्गों को मुफ्त खाना मिलता। लोग दूर-दूर से आकर कहते, “यह है असली सेवा। यह है असली उदाहरण, जिन्हें बेटों ने ठुकरा दिया, वही आज सैकड़ों लोगों का सहारा बन गए।”
समाज की पहचान
अखबारों में सुर्खियां छपने लगीं। शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी ने बुजुर्गों के लिए मिसाल कायम की। टीवी चैनल उनकी दुकान और भोजनालय पर कैमरे लेकर पहुंचे। कैमरे के सामने शिव प्रसाद जी की आवाज गूंज उठी, “मां-बाप का सहारा जरूरी नहीं कि बेटे ही हों। अगर आत्मसम्मान और मेहनत हो, तो बुजुर्ग भी खुद अपनी दुनिया बना सकते हैं। भगवान देर करता है, अंधेर नहीं।”
यह शब्द सुनकर पूरा कस्बा भावुक हो गया। लोगों की आंखें नम हो गईं और दिल से तालियां गूंज उठीं।
बेटों की शर्मिंदगी
इधर, जब यह खबर सुमित और संदीप तक पहुंची तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। टीवी स्क्रीन पर अपने ही माता-पिता को समाज का नायक बनते देख उनका घमंड चूर-चूर हो गया। वे सोचने लगे, “जिन्हें हमने अपमानित किया, वही आज सबकी नजरों में हैं और हम अपने लालच और स्वार्थ में सब कुछ खो बैठे।”
उनके दिलों में पछतावे की आग जलने लगी। अब सवाल यह था कि क्या वे माता-पिता से माफी मांग पाएंगे? क्या इतने गहरे घाव भर पाएंगे? समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर लगातार सुर्खियां गूंज रही थीं, “शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी समाज के लिए मिसाल।”
पुनर्मिलन का समय
हर तरफ उनकी चर्चा थी। लोग कहते, “जिन्हें बेटे ने बोझ कहकर घर से निकाल दिया था, वही आज सैकड़ों बुजुर्गों का सहारा बने हैं।” पूरा कस्बा उनके साहस और त्याग से प्रभावित था। भोजनालय में रोज लंबी कतारें लगतीं और लोग न सिर्फ खाना खाते बल्कि उनका आशीर्वाद भी लेते।
कमला देवी का चेहरा अब आंसुओं से नहीं बल्कि संतोष की चमक से दमकता था। शिव प्रसाद जी रोज शाम को कहते, “कमला, हमने बेटों का सहारा खोया लेकिन अब हमें सैकड़ों बेटे-बेटियां मिल गए हैं। यही असली सुख है।”
बेटे की वापसी
इधर, सुमित और संदीप की हालत लगातार बिगड़ती गई। सुमित के घर में कल चरम पर पहुंच गई। प्रिया की लालच ने उसके घर को बर्बाद कर दिया। बच्चे डर से कोनों में छिपकर आंसू बहाने लगे। सुमित समझ ही नहीं पा रहा था कि लालच ने उसकी खुशियों का गला घोंट दिया है।
छोटा बेटा संदीप भी उसी राह पर चल पड़ा। उसने दोस्तों के साथ मिलकर व्यापार करने की कोशिश की। लेकिन जो लोग माता-पिता की इज्जत नहीं करते, वे दुनिया में भी धोखा खा ही जाते हैं। संदीप के दोस्त उसका पैसा लेकर भाग गए। वह कर्ज में डूब गया और अपने ही घर में दिन-रात तनाव से जूझने लगा।
पछतावे का एहसास
अब दोनों भाइयों को धीरे-धीरे समझ आने लगा कि जिन मां-बाप को उन्होंने बोझ समझकर अपमानित किया वही उनके जीवन का असली सहारा थे। लेकिन अफसोस तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
नया अध्याय
इधर, कमला देवी और शिव प्रसाद जी का आत्मविश्वास और भी ऊंचाइयां छू रहा था। उन्होंने अपनी दुकान से कमाई का हिस्सा अलग निकालना शुरू किया और कहा, “क्यों ना इस पैसे से किसी ने काम की शुरुआत की जाए। जैसे हमने अपमान सहा, वैसे ही कई बुजुर्ग अकेले तड़प रहे होंगे।”
और फिर एक दिन उन्होंने शहर में एक निशुल्क भोजनालय शुरू कर दिया। यहां हर दिन सैकड़ों बुजुर्गों को मुफ्त खाना मिलता। लोग दूर-दूर से आकर कहते, “यह है असली सेवा। यह है असली उदाहरण, जिन्हें बेटों ने ठुकरा दिया, वही आज सैकड़ों लोगों का सहारा बन गए।”
समाज की पहचान
अखबारों में सुर्खियां छपने लगीं। शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी ने बुजुर्गों के लिए मिसाल कायम की। टीवी चैनल उनकी दुकान और भोजनालय पर कैमरे लेकर पहुंचे। कैमरे के सामने शिव प्रसाद जी की आवाज गूंज उठी, “मां-बाप का सहारा जरूरी नहीं कि बेटे ही हों। अगर आत्मसम्मान और मेहनत हो, तो बुजुर्ग भी खुद अपनी दुनिया बना सकते हैं। भगवान देर करता है, अंधेर नहीं।”
यह शब्द सुनकर पूरा कस्बा भावुक हो गया। लोगों की आंखें नम हो गईं और दिल से तालियां गूंज उठीं।
बेटों की शर्मिंदगी
इधर, जब यह खबर सुमित और संदीप तक पहुंची तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। टीवी स्क्रीन पर अपने ही माता-पिता को समाज का नायक बनते देख उनका घमंड चूर-चूर हो गया। वे सोचने लगे, “जिन्हें हमने अपमानित किया, वही आज सबकी नजरों में हैं और हम अपने लालच और स्वार्थ में सब कुछ खो बैठे।”
उनके दिलों में पछतावे की आग जलने लगी। अब सवाल यह था कि क्या वे माता-पिता से माफी मांग पाएंगे? क्या इतने गहरे घाव भर पाएंगे? समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर लगातार सुर्खियां गूंज रही थीं, “शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी समाज के लिए मिसाल।”
पुनर्मिलन का समय
हर तरफ उनकी चर्चा थी। लोग कहते, “जिन्हें बेटे ने बोझ कहकर घर से निकाल दिया था, वही आज सैकड़ों बुजुर्गों का सहारा बने हैं।” पूरा कस्बा उनके साहस और त्याग से प्रभावित था। भोजनालय में रोज लंबी कतारें लगतीं और लोग न सिर्फ खाना खाते बल्कि उनका आशीर्वाद भी लेते।
कमला देवी का चेहरा अब आंसुओं से नहीं बल्कि संतोष की चमक से दमकता था। शिव प्रसाद जी रोज शाम को कहते, “कमला, हमने बेटों का सहारा खोया लेकिन अब हमें सैकड़ों बेटे-बेटियां मिल गए हैं। यही असली सुख है।”
बेटों की वापसी
इधर, सुमित और संदीप की हालत लगातार बिगड़ती गई। सुमित के घर में कल चरम पर पहुंच गई। प्रिया की लालच ने उसके घर को बर्बाद कर दिया। बच्चे डर से कोनों में छिपकर आंसू बहाने लगे। सुमित समझ ही नहीं पा रहा था कि लालच ने उसकी खुशियों का गला घोंट दिया है।
छोटा बेटा संदीप भी उसी राह पर चल पड़ा। उसने दोस्तों के साथ मिलकर व्यापार करने की कोशिश की। लेकिन जो लोग माता-पिता की इज्जत नहीं करते, वे दुनिया में भी धोखा खा ही जाते हैं। संदीप के दोस्त उसका पैसा लेकर भाग गए। वह कर्ज में डूब गया और अपने ही घर में दिन-रात तनाव से जूझने लगा।
पछतावे का एहसास
अब दोनों भाइयों को धीरे-धीरे समझ आने लगा कि जिन मां-बाप को उन्होंने बोझ समझकर अपमानित किया वही उनके जीवन का असली सहारा थे। लेकिन अफसोस तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
नया अध्याय
इधर, कमला देवी और शिव प्रसाद जी का आत्मविश्वास और भी ऊंचाइयां छू रहा था। उन्होंने अपनी दुकान से कमाई का हिस्सा अलग निकालना शुरू किया और कहा, “क्यों ना इस पैसे से किसी ने काम की शुरुआत की जाए। जैसे हमने अपमान सहा, वैसे ही कई बुजुर्ग अकेले तड़प रहे होंगे।”
और फिर एक दिन उन्होंने शहर में एक निशुल्क भोजनालय शुरू कर दिया। यहां हर दिन सैकड़ों बुजुर्गों को मुफ्त खाना मिलता। लोग दूर-दूर से आकर कहते, “यह है असली सेवा। यह है असली उदाहरण, जिन्हें बेटों ने ठुकरा दिया, वही आज सैकड़ों लोगों का सहारा बन गए।”
समाज की पहचान
अखबारों में सुर्खियां छपने लगीं। शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी ने बुजुर्गों के लिए मिसाल कायम की। टीवी चैनल उनकी दुकान और भोजनालय पर कैमरे लेकर पहुंचे। कैमरे के सामने शिव प्रसाद जी की आवाज गूंज उठी, “मां-बाप का सहारा जरूरी नहीं कि बेटे ही हों। अगर आत्मसम्मान और मेहनत हो, तो बुजुर्ग भी खुद अपनी दुनिया बना सकते हैं। भगवान देर करता है, अंधेर नहीं।”
यह शब्द सुनकर पूरा कस्बा भावुक हो गया। लोगों की आंखें नम हो गईं और दिल से तालियां गूंज उठीं।
बेटों की शर्मिंदगी
इधर, जब यह खबर सुमित और संदीप तक पहुंची तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। टीवी स्क्रीन पर अपने ही माता-पिता को समाज का नायक बनते देख उनका घमंड चूर-चूर हो गया। वे सोचने लगे, “जिन्हें हमने अपमानित किया, वही आज सबकी नजरों में हैं और हम अपने लालच और स्वार्थ में सब कुछ खो बैठे।”
उनके दिलों में पछतावे की आग जलने लगी। अब सवाल यह था कि क्या वे माता-पिता से माफी मांग पाएंगे? क्या इतने गहरे घाव भर पाएंगे? समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर लगातार सुर्खियां गूंज रही थीं, “शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी समाज के लिए मिसाल।”
पुनर्मिलन का समय
हर तरफ उनकी चर्चा थी। लोग कहते, “जिन्हें बेटे ने बोझ कहकर घर से निकाल दिया था, वही आज सैकड़ों बुजुर्गों का सहारा बने हैं।” पूरा कस्बा उनके साहस और त्याग से प्रभावित था। भोजनालय में रोज लंबी कतारें लगतीं और लोग न सिर्फ खाना खाते बल्कि उनका आशीर्वाद भी लेते।
कमला देवी का चेहरा अब आंसुओं से नहीं बल्कि संतोष की चमक से दमकता था। शिव प्रसाद जी रोज शाम को कहते, “कमला, हमने बेटों का सहारा खोया लेकिन अब हमें सैकड़ों बेटे-बेटियां मिल गए हैं। यही असली सुख है।”
बेटों की वापसी
इधर, सुमित और संदीप की हालत लगातार बिगड़ती गई। सुमित के घर में कल चरम पर पहुंच गई। प्रिया की लालच ने उसके घर को बर्बाद कर दिया। बच्चे डर से कोनों में छिपकर आंसू बहाने लगे। सुमित समझ ही नहीं पा रहा था कि लालच ने उसकी खुशियों का गला घोंट दिया है।
छोटा बेटा संदीप भी उसी राह पर चल पड़ा। उसने दोस्तों के साथ मिलकर व्यापार करने की कोशिश की। लेकिन जो लोग माता-पिता की इज्जत नहीं करते, वे दुनिया में भी धोखा खा ही जाते हैं। संदीप के दोस्त उसका पैसा लेकर भाग गए। वह कर्ज में डूब गया और अपने ही घर में दिन-रात तनाव से जूझने लगा।
पछतावे का एहसास
अब दोनों भाइयों को धीरे-धीरे समझ आने लगा कि जिन मां-बाप को उन्होंने बोझ समझकर अपमानित किया वही उनके जीवन का असली सहारा थे। लेकिन अफसोस तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
नया अध्याय
इधर, कमला देवी और शिव प्रसाद जी का आत्मविश्वास और भी ऊंचाइयां छू रहा था। उन्होंने अपनी दुकान से कमाई का हिस्सा अलग निकालना शुरू किया और कहा, “क्यों ना इस पैसे से किसी ने काम की शुरुआत की जाए। जैसे हमने अपमान सहा, वैसे ही कई बुजुर्ग अकेले तड़प रहे होंगे।”
और फिर एक दिन उन्होंने शहर में एक निशुल्क भोजनालय शुरू कर दिया। यहां हर दिन सैकड़ों बुजुर्गों को मुफ्त खाना मिलता। लोग दूर-दूर से आकर कहते, “यह है असली सेवा। यह है असली उदाहरण, जिन्हें बेटों ने ठुकरा दिया, वही आज सैकड़ों लोगों का सहारा बन गए।”
समाज की पहचान
अखबारों में सुर्खियां छपने लगीं। शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी ने बुजुर्गों के लिए मिसाल कायम की। टीवी चैनल उनकी दुकान और भोजनालय पर कैमरे लेकर पहुंचे। कैमरे के सामने शिव प्रसाद जी की आवाज गूंज उठी, “मां-बाप का सहारा जरूरी नहीं कि बेटे ही हों। अगर आत्मसम्मान और मेहनत हो, तो बुजुर्ग भी खुद अपनी दुनिया बना सकते हैं। भगवान देर करता है, अंधेर नहीं।”
यह शब्द सुनकर पूरा कस्बा भावुक हो गया। लोगों की आंखें नम हो गईं और दिल से तालियां गूंज उठीं।
बेटों की शर्मिंदगी
इधर, जब यह खबर सुमित और संदीप तक पहुंची तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। टीवी स्क्रीन पर अपने ही माता-पिता को समाज का नायक बनते देख उनका घमंड चूर-चूर हो गया। वे सोचने लगे, “जिन्हें हमने अपमानित किया, वही आज सबकी नजरों में हैं और हम अपने लालच और स्वार्थ में सब कुछ खो बैठे।”
उनके दिलों में पछतावे की आग जलने लगी। अब सवाल यह था कि क्या वे माता-पिता से माफी मांग पाएंगे? क्या इतने गहरे घाव भर पाएंगे? समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर लगातार सुर्खियां गूंज रही थीं, “शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी समाज के लिए मिसाल।”
पुनर्मिलन का समय
हर तरफ उनकी चर्चा थी। लोग कहते, “जिन्हें बेटे ने बोझ कहकर घर से निकाल दिया था, वही आज सैकड़ों बुजुर्गों का सहारा बने हैं।” पूरा कस्बा उनके साहस और त्याग से प्रभावित था। भोजनालय में रोज लंबी कतारें लगतीं और लोग न सिर्फ खाना खाते बल्कि उनका आशीर्वाद भी लेते।
कमला देवी का चेहरा अब आंसुओं से नहीं बल्कि संतोष की चमक से दमकता था। शिव प्रसाद जी रोज शाम को कहते, “कमला, हमने बेटों का सहारा खोया लेकिन अब हमें सैकड़ों बेटे-बेटियां मिल गए हैं। यही असली सुख है।”
बेटों की वापसी
इधर, सुमित और संदीप की हालत लगातार बिगड़ती गई। सुमित के घर में कल चरम पर पहुंच गई। प्रिया की लालच ने उसके घर को बर्बाद कर दिया। बच्चे डर से कोनों में छिपकर आंसू बहाने लगे। सुमित समझ ही नहीं पा रहा था कि लालच ने उसकी खुशियों का गला घोंट दिया है।
छोटा बेटा संदीप भी उसी राह पर चल पड़ा। उसने दोस्तों के साथ मिलकर व्यापार करने की कोशिश की। लेकिन जो लोग माता-पिता की इज्जत नहीं करते, वे दुनिया में भी धोखा खा ही जाते हैं।
पछतावे का एहसास
संदीप के दोस्त उसका पैसा लेकर भाग गए। वह कर्ज में डूब गया और अपने ही घर में दिन-रात तनाव से जूझने लगा। अब दोनों भाइयों को धीरे-धीरे समझ आने लगा कि जिन मां-बाप को उन्होंने बोझ समझकर अपमानित किया वही उनके जीवन का असली सहारा थे। लेकिन अफसोस तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
नया अध्याय
इधर, कमला देवी और शिव प्रसाद जी का आत्मविश्वास और भी ऊंचाइयां छू रहा था। उन्होंने अपनी दुकान से कमाई का हिस्सा अलग निकालना शुरू किया और कहा, “क्यों ना इस पैसे से किसी ने काम की शुरुआत की जाए। जैसे हमने अपमान सहा, वैसे ही कई बुजुर्ग अकेले तड़प रहे होंगे।”
और फिर एक दिन उन्होंने शहर में एक निशुल्क भोजनालय शुरू कर दिया। यहां हर दिन सैकड़ों बुजुर्गों को मुफ्त खाना मिलता। लोग दूर-दूर से आकर कहते, “यह है असली सेवा। यह है असली उदाहरण, जिन्हें बेटों ने ठुकरा दिया, वही आज सैकड़ों लोगों का सहारा बन गए।”
समाज की पहचान
अखबारों में सुर्खियां छपने लगीं। शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी ने बुजुर्गों के लिए मिसाल कायम की। टीवी चैनल उनकी दुकान और भोजनालय पर कैमरे लेकर पहुंचे। कैमरे के सामने शिव प्रसाद जी की आवाज गूंज उठी, “मां-बाप का सहारा जरूरी नहीं कि बेटे ही हों। अगर आत्मसम्मान और मेहनत हो, तो बुजुर्ग भी खुद अपनी दुनिया बना सकते हैं। भगवान देर करता है, अंधेर नहीं।”
यह शब्द सुनकर पूरा कस्बा भावुक हो गया। लोगों की आंखें नम हो गईं और दिल से तालियां गूंज उठीं।
बेटों की शर्मिंदगी
इधर, जब यह खबर सुमित और संदीप तक पहुंची तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। टीवी स्क्रीन पर अपने ही माता-पिता को समाज का नायक बनते देख उनका घमंड चूर-चूर हो गया। वे सोचने लगे, “जिन्हें हमने अपमानित किया, वही आज सबकी नजरों में हैं और हम अपने लालच और स्वार्थ में सब कुछ खो बैठे।”
उनके दिलों में पछतावे की आग जलने लगी। अब सवाल यह था कि क्या वे माता-पिता से माफी मांग पाएंगे? क्या इतने गहरे घाव भर पाएंगे? समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर लगातार सुर्खियां गूंज रही थीं, “शिव प्रसाद तिवारी और कमला देवी समाज के लिए मिसाल।”
पुनर्मिलन का समय
हर तरफ उनकी चर्चा थी। लोग कहते, “जिन्हें बेटे ने बोझ कहकर घर से निकाल दिया था, वही आज सैकड़ों बुजुर्गों का सहारा बने हैं।” पूरा कस्बा उनके साहस और त्याग से प्रभावित था। भोजनालय में रोज लंबी कतारें लगतीं और लोग न सिर्फ खाना खाते बल्कि उनका आशीर्वाद भी लेते।
कमला देवी का चेहरा अब आंसुओं से नहीं बल्कि संतोष की चमक से दमकता था। शिव प्रसाद जी रोज शाम को कहते, “कमला, हमने बेटों का सहारा खोया लेकिन अब हमें सैकड़ों बेटे-बेटियां मिल गए हैं। यही असली सुख है।”
बेटों की वापसी
इधर, सुमित और संदीप की हालत लगातार बिगड़ती गई। सुमित के घर में कल चरम पर पहुंच गई। प्रिया की लालच ने उसके घर को बर्बाद कर दिया। बच्चे डर से कोनों में छिपकर आंसू बहाने लगे। सुमित समझ ही नहीं पा रहा था कि लालच ने उसकी खुशियों का गला घोंट दिया है।
छोटा बेटा संदीप भी उसी राह पर चल पड़ा। उसने दोस्तों के साथ मिलकर व्यापार करने की कोशिश की। लेकिन जो लोग माता-पिता की इज्जत नहीं करते, वे दुनिया में भी धोखा खा ही जाते हैं।
पछतावे का एहसास
संदीप के दोस्त उसका पैसा लेकर भाग गए। वह कर्ज में डूब गया और अपने ही घर में दिन-रात तनाव से जूझने लगा। अब दोनों भाइयों को धीरे-धीरे समझ आने लगा कि जिन मां-बाप को उन्होंने बोझ समझकर अपमानित किया वही उनके जीवन का असली सहारा थे। लेकिन अफसोस तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
नया अध्याय
इधर, कमला देवी और शिव प्रसाद जी का आत्मविश्वास और भी ऊंचाइयां छू रहा था। उन्होंने अपनी दुकान
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