15 साल बाद जब कॉलेज का प्यार मिला… उसकी हालत देखकर आंखें भर आईं फिर जो हुआ
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सुबह का वक्त था। लखनऊ शहर की गोमती किनारे वाली सड़क पर भीड़भाड़ के बीच सड़क किनारे एक छोटी सी चाय की दुकान थी। टीन की छत, लकड़ी की बेंचे और चूल्हे पर उबलती हुई केतली से उठती भाप। उस दुकान में खड़ी थी मीरा। साधारण सी साड़ी में माथे पर बिंदी, चेहरे पर थकान की हल्की लकीरें। लेकिन आंखों में अजीब सी दृढ़ता और सादगी। उसके हाथ लगातार चल रहे थे। चाय बनाना, कुल्हड़ सजाना, ग्राहकों को चाय थमाना, उसकी थकी हुई उंगलियां मेहनत का बोझ ढो रही थी। पर चेहरे पर आत्मसम्मान का भाव अब भी जिंदा था।
उसी समय सड़क पर एक चमचमाती काली एसयूवी रेड सिग्नल पर आकर रुकी। गाड़ी के शीशे के पीछे बैठा था आदित्य। आज वह करोड़पति बिजनेसमैन था। लाखों की गाड़ियों और करोड़ों के बिजनेस का मालिक। पर उस वक्त उसकी आंखें गहरी सोच में डूबी हुई थीं। उसने अनजाने में बाहर देखा और नजर उस चाय की दुकान पर जाकर ठहर गई। जैसे ही उसकी आंखें मीरा पर पड़ी, उसका दिल जोरों से धड़क उठा। होंठ कांप गए और उसने अनजाने में बुदबुदाया, “मीरा…”
सिग्नल हरा हुआ तो बाकी गाड़ियां आगे बढ़ गईं। लेकिन आदित्य ने ड्राइवर से कहा, “गाड़ी यहीं साइड में लगाओ।” ड्राइवर ने चौंक कर पूछा, “सर, सब ठीक है?” आदित्य ने धीमी आवाज में कहा, “बस 2 मिनट।” गाड़ी किनारे लग गई और आदित्य उतरा। महंगे सूट और चमकते जूतों में उसकी पहचान साफ झलक रही थी। पर चेहरा तनाव और बेचैनी से भरा हुआ था। उसके कदम धीरे-धीरे उस चाय की दुकान की ओर बढ़ रहे थे। जैसे बरसों का बोझ पैरों में पहला दाराहा बंध गया हो।
मीरा ने सिर उठाया। उसकी नजर सामने खड़े शख्स पर पड़ी। हाथ में पकड़ी चम्मच ठहर गई। आंखें फैल गई। चेहरा शून्य रह गया। 15 बरसों बाद सामने वही चेहरा था। वही आदित्य। होठ कांप उठे और धीमे स्वर में उसके मुंह से निकला, “आदित्य…” आदित्य ने कुछ कदम और बढ़ाए। उसकी आंखों में बरसों की जुदाई का सैलाब उमड़ पड़ा। “हां मीरा, मैं ही हूं। सोचा नहीं था कि किस्मत मुझे यहां ले आएगी।”
मीरा ने अपनी पलकों को झुका लिया। दिल कांप रहा था। पर आवाज को संभालते हुए बोली, “चाय बना दूं?” उसकी आवाज में वही सादगी थी। लेकिन भीतर का दर्द साफ झलक रहा था। आदित्य ने सिर हिलाया। मीरा ने केतली से चाय निकाली और कुल्हड़ में डालकर उसके सामने रख दी। आदित्य ने कांपते हाथों से कुल्हड़ थामा। जैसे ही पहला घूंट गले से उतरा, उसके दिल में भूली बिसरी यादों का सैलाब उमड़ पड़ा।

लखनऊ का डीएवी कॉलेज, बड़ा सा कैंपस, बड़े-बड़े क्लासरूम और जब नया सेशन शुरू हुआ था, भीड़ में ढेरों नए चेहरे थे। लेकिन आदित्य की नजर ठहर गई थी। सिर्फ एक पर, मीरा पर। वह सफेद सलवार कुर्ते में हाथों में किताबों का ढेर लिए तेज-तेज कदमों से क्लास की ओर भाग रही थी। माथे पर हल्का पसीना और चेहरे पर मासूमियत। तभी अचानक उसकी किताबें जमीन पर बिखर गईं। सब लोग आगे बढ़ते गए। कोई पलट कर रुका तक नहीं। आदित्य आगे झुका, किताबें उठाई और मुस्कुरा कर कहा, “यह आपकी है।” मीरा ने नजर उठाई। उसकी आंखों में झिझक थी, पर होठों पर हल्की सी मुस्कान भी थी। “थैंक यू।”
बस उसी पल से आदित्य के दिल में कुछ नया अंकुर फूट गया। धीरे-धीरे उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं। कभी लाइब्रेरी में, कभी गलियारे में तो कभी कैंटीन में। एक बार कैंटीन में मीरा अकेली बैठी थी। उसने चाय का कप उठाया तो देखा बगल में आदित्य पहले से खड़ा था। “कप खाली है। अगर बुरा ना मानो तो साथ बैठ सकता हूं,” आदित्य ने सहज भाव से कहा। मीरा ने सिर झुका लिया पर होठों पर मुस्कान आ गई। उस दिन से दोनों अक्सर साथ चाय पीने लगे।
मीरा पढ़ाई में अच्छी थी। पर मंच पर जाने से डरती थी। एक बार कॉलेज में डिबेट प्रतियोगिता हुई। उसका नाम लिखा गया लेकिन मंच पर कदम रखते ही उसकी आवाज कांपने लगी। लोग हंसने लगे। तभी पीछे से आदित्य ने जोर से ताली बजाई और कहा, “तुम बोल सकती हो मीरा, मुझे पता है तुम सबसे अच्छी हो।” वो शब्द मीरा के लिए जैसे जादू बन गए। उसने कांपते होंठ खोले और धीरे-धीरे बोलना शुरू किया। पूरी ऑडियंस खामोश हो गई। जब उसका भाषण खत्म हुआ, तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। वह प्रतियोगिता जीत गई। मंच से उतरते समय उसने सबसे पहले आदित्य की तरफ देखा। उसकी आंखों में गर्व साफ छलक रहा था। उस नजर ने मीरा को पहली बार यह यकीन दिलाया कि कोई है जो उस पर भरोसा करता है।
दिन बीतते गए। अब उनकी बातें किताबों से निकलकर सपनों तक पहुंच गई थीं। गोमती किनारे बैठना उनकी आदत बन गया था। मीरा अक्सर पानी की लहरों में कंकड़ फेंकती और पूछती, “आदित्य, तुम्हारे सपने क्या हैं?” आदित्य आसमान की तरफ देखता और कहता, “सपने बड़े हैं। लेकिन अगर तुम साथ हो तो हर सपना पूरा कर लूंगा।” मीरा मुस्कुरा कर चुप हो जाती। उसकी आंखों की चमक बहुत कुछ कह देती थी। धीरे-धीरे यह दोस्ती मोहब्बत में बदल गई। मगर दोनों ने कभी सीधे-सीधे इजहार नहीं किया। वे सिर्फ आंखों से बातें करते, मुस्कानों से एहसास जताते। बरगद की छांव, क्लास की खिड़कियां और कैंटीन की चाय हर जगह उनकी खामोश मोहब्बत गूंजती थी।
लेकिन जिंदगी हमेशा एक सी नहीं रहती। आदित्य का परिवार गरीब था। पिता ने साफ कह दिया, “अब पढ़ाई छोड़कर कमाने जा। घर चलाने के लिए पैसे चाहिए।” आदित्य का दिल टूटा। उसे पता था कि हालात के आगे वह बेबस है। एक शाम गोमती किनारे जब सूरज ढल रहा था, उसने मीरा से कहा, “अगर कभी मैं दूर चला जाऊं तो याद रखना लौट कर जरूर आऊंगा।” मीरा की आंखें भर आई। उसने पहली बार उसका हाथ थाम कर कहा, “कभी मत कहना कि हमारी राहें अलग हो सकती हैं। मैं इंतजार करूंगी चाहे जितना वक्त लगे।”
हवा भारी हो गई थी। गोमती की लहरें जैसे उनकी कस्मों को अपने साथ बहा ले गईं। लेकिन किस्मत ने बेरहम मोड़ लिया। कुछ महीनों बाद मीरा की शादी गांव में कर दी गई। आदित्य दूसरे शहर चला गया था। संघर्ष और सपनों की उस दुनिया में जहां रिश्तों की जगह जिम्मेदारियों ने ले ली थी। समय ने रफ्तार पकड़ी। देखते-देखते 15 साल बीत गए।
खैर, अब आदित्य की चाय खत्म हो चुकी थी। स्वाद जुबान से मिट गए थे और उसकी आंखों में नमी उतर आई थी। उसने धीरे से नजरें उठाकर देखा। सामने वही मीरा थी। पर अब कॉलेज की लड़की नहीं बल्कि सड़क किनारे चाय बेचती मजबूत औरत। और तभी दुकान के भीतर से एक मासूम आवाज आई, “मां…” आदित्य का दिल धक से रह गया। आदित्य उस मासूम आवाज को सुनकर जैसे पत्थर का हो गया। उसके कानों में “मां” शब्द बार-बार गूंज रहा था। धीरे-धीरे उसकी नजर दुकान के भीतर की ओर गई। वहां खड़ा था 8-9 साल का एक बच्चा। दुबला पतला शरीर, साफ लेकिन पुराने कपड़े, पीठ पर किताबों से भरा बैग। उसकी आंखों में मासूम चमक थी। चेहरे पर वही निश्चल मुस्कान जो कभी मीरा के चेहरे पर दिखा करती थी।
बच्चा दौड़कर मीरा के पास आया और उसका आंचल पकड़ते हुए बोला, “मां, स्कूल देर हो रही है। चलो ना।” आदित्य की सांसे थम सी गईं। उसने कांपती आवाज में पूछा, “मीरा, यह तुम्हारा बेटा है?” मीरा ने चुपचाप बेटे के सिर पर हाथ फेरा और धीमी आवाज में बोली, “हां, यही मेरी दुनिया है।” उसकी आंखें नम थीं लेकिन चेहरे पर आत्मसम्मान की वही रेखा बनी हुई थी।
आदित्य की आंखों में बरसों की मोहब्बत, जुदाई और अब दर्द एक साथ उमड़ आए। वो कुछ पल चुप रहा। फिर धीमे स्वर में बोला, “पर मीरा, तुम्हें यह सब अकेले क्यों झेलना पड़ा? शादी तो हुई थी ना…” मीरा ने एक गहरी सांस ली। उसकी नजरें दूर सड़क की ओर चली गईं जैसे वहां उसे अपने जवाब मिल रहे हों। “हां, शादी हुई थी गांव में। लेकिन पति शराब का आदि था। घर में मारपीट, अपमान और लानत ही मिली। मैंने बहुत सहा सिर्फ अपने बच्चे के लिए। पर जब लगा कि अब उसकी मासूमियत भी उस जहर में डूब जाएगी। तब मैं सब छोड़कर शहर चली आई। दूसरी शादी का सहारा ले सकती थी। मगर मैं नहीं चाहती थी कि मेरा बच्चा सौतेलेपन की चोट खाए। इसलिए इस चूल्हे को, इस धुएं को ही अपनी इज्जत बना लिया।”
आदित्य का गला भर आया। उसके होंठ कांपे, आंखें लाल हो गईं। “मीरा, तुमने यह सब अकेले झेला और मैं कहीं और दुनिया जीतने में लगा रहा।” मीरा ने उसकी ओर देखा। उसकी आंखों में ना शिकायत थी ना इल्जाम। बस एक थकी हुई सच्चाई थी। “आदित्य, जिंदगी हमेशा हमारी चाहतों के हिसाब से नहीं चलती। मैंने जो रास्ता चुना वो सिर्फ अपने बेटे के लिए था। मुझे किसी से हमदर्दी नहीं चाहिए। मैं बस इतनी चाहती हूं कि मेरा बच्चा पढ़े-लिखे और कभी किसी के सामने हाथ ना फैलाए।”
बच्चा मासूमियत से आदित्य की ओर देख रहा था। वो कुछ समझ नहीं पा रहा था। पर उसकी आंखों में अनकही उम्मीद थी। शायद उसे महसूस हो गया था कि यह अंकल उसकी मां की आंखों में आंसू ला रहा है और उसकी मुस्कान भी। आदित्य झुक कर बच्चे के पास गया और उसके सिर पर हाथ फेरा। “क्या नाम है तुम्हारा?” “आरव,” बच्चे ने मासूम मुस्कान दी। “मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूंगा ताकि मम्मी को कभी तकलीफ ना हो।” यह सुनकर आदित्य की आंखों से आंसू छलक पड़े। उसने मीरा की ओर देखा। “मीरा, मैं करोड़ों का मालिक हूं। पर आज मुझे लग रहा है कि असली दौलत तुम्हारे पास है। यह बेटा, जिसकी आंखों में सपने हैं और दिल में मां का भरोसा।”
मीरा चुप रही। उसके होंठ कांपे लेकिन कुछ कह ना पाई। कुछ देर का सन्नाटा छाया रहा। सड़क पर शोर था। गाड़ियों की रफ्तार थी। पर इस छोटे से चाय के ठेले पर खड़ा हर पल किसी अधूरी दास्तान की तरह भारी था। आदित्य ने धीरे से कहा, “मीरा, तुम्हें अकेले यह सब और नहीं सहना चाहिए। अगर तुम इजाजत दो तो मैं तुम्हारे और आरव के लिए…” वो रुक गया। उसकी आवाज में सच्चाई थी। पर मीरा की आंखों में शंका और डर। लेकिन आदित्य की आंखों में आंसू थे। आवाज कांप रही थी। पर दिल से निकली बात सच्चाई से भरी थी।
“मीरा, बरसों से मैं सिर्फ दौलत और शोहरत कमाता रहा। पर आज मुझे एहसास हो रहा है कि मैंने असली जिंदगी खो दी। अगर तुम इजाजत दो तो मैं तुम्हारे और आरव के लिए सब कुछ बदल सकता हूं। तुम अकेली क्यों लड़ो? मैं हूं ना तुम्हारे साथ।” मीरा का दिल एक पल को धक से रह गया। बरसों पहले जिस आवाज को उसने अपने दिल में कैद कर लिया था, वही आवाज आज फिर उसके सामने खड़ी थी। उसकी आंखें भर आईं, होठ कांपे, लेकिन उसने तुरंत खुद को संभाला। धीर से बोली, “आदित्य, तुम्हारे शब्द मीठे हैं पर जिंदगी इतनी आसान नहीं है। मैं सिर्फ अपने लिए नहीं जी रही। मेरे बेटे के लिए जी रही हूं और उसके लिए मुझे डर है। अगर समाज ने सवाल उठाए, अगर उसने एक दिन मुझसे पूछा कि ‘मम्मी, आपने दोबारा क्यों शादी की?’ क्या तुम्हें यकीन है कि वह सौतेलेपन की छाया से बच पाएगा?”
आदित्य ने तुरंत कहा, “पर मैं तो उसका बाप बनना चाहता हूं। मीरा, दिल से अपनाना चाहता हूं। उसे अपना बेटा कहकर दुनिया के सामने खड़ा करना चाहता हूं। क्या यह सौतेलापन होगा?” मीरा की आंखों से आंसू गिर पड़े। उसने कांपते स्वर में कहा, “तुम्हारी नियत पर मुझे शक नहीं पर दुनिया की नियत पर है। लोग मेरे बेटे को उंगलियों से दिखाएंगे, ताने देंगे। कहेंगे कि उसकी मां ने करोड़पति से शादी कर ली ताकि आराम पा सके। मैं अपने बेटे की नजरों में कभी गिरना नहीं चाहती।”

आदित्य का दिल चीर गया। उसने आगे बढ़कर कहा, “मीरा, क्या सचमुच तुम्हें लगता है कि मैं सिर्फ सहारा देना चाहता हूं? नहीं, मैं तुम्हें वापस पाना चाहता हूं। मैंने दौलत, शोहरत सब पा लिया। लेकिन जब रात को अकेला होता हूं तो खालीपन मुझे खा जाता है। और आज जब तुम्हें देखा, तुम्हारे बेटे को देखा। मुझे लगा मेरी अधूरी दुनिया पूरी हो सकती है।”
मीरा ने कांपते हाथ से आंसू पोंछे। उसकी आंखों में वही पुराना प्यार झलक रहा था। लेकिन आवाज में कड़वाहट घुली हुई थी। “आदित्य, तुम्हारी बात सुनकर दिल तो मान जाता है पर दिमाग नहीं। मैंने समाज की चोटें खाई हैं। रिश्तों की गालियां सुनी हैं। मैं अपने बेटे को दोबारा उसी दलदल में नहीं झोंक सकती। अगर मुझे अपने आंसू पीने पड़े तो पी लूंगी। पर अपने बच्चे की हां पर कोई दाग नहीं लगने दूंगी।”
कुछ पल दोनों खामोश खड़े रहे। सड़क का शोर, हॉर्न, भीड़ सब कुछ फीका पड़ गया था। जैसे दुनिया ने उनके लिए सांसें थाम ली हों। आरव मां का आंचल पकड़े मासूमियत से देख रहा था। उसे समझ नहीं था कि यह दोनों बड़े लोग क्यों इतने भारी शब्द बोल रहे हैं। उसने धीरे से मां का हाथ खींचा। “मम्मी, स्कूल जाना है ना?” मीरा ने उसकी ओर देखा और उसके बालों को सहलाया। फिर नजरें आदित्य की तरफ उठाई। “तुम्हारी बातें मीठी हैं आदित्य पर मेरा सच बहुत कड़वा है। शायद इस जन्म में हमारी मोहब्बत सिर्फ यादों में ही पूरी होगी।”
आदित्य की आंखें भीग गईं। उसने कुछ कहना चाहा पर शब्द गले में ही अटक गए। उसके दिल पर भारी पत्थर जैसा बोझ उतर आया। आदित्य कुछ देर तक चुप खड़ा रहा। उसकी आंखों में आंसू थे। लेकिन उनमें एक ज़िद भी झलक रही थी। उसने गहरी सांस ली और सीधे मीरा की आंखों में देखा। “अगर इस जन्म में भी हमारी मोहब्बत अधूरी रही तो यह दुनिया जीते जी हमें मार देगी। तुम कहती हो समाज ताने देगा तो मैं चाहता हूं कि समाज के सामने ही तुम्हारा और आरव का हाथ थाम लूं ताकि कोई उंगली ना उठे बल्कि सबको दिखे कि मैं तुम दोनों का अपनाया हूं।”
मीरा चौंक गई। “आदित्य, यह इतना आसान नहीं है।” आदित्य ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी आवाज में ठहराव और सच्चाई थी। “आसान मैं भी जानता हूं नहीं है। लेकिन अगर हम डरते रहे तो कभी जी ही नहीं पाएंगे। मीरा, तुम्हारी आंखों में मैं वह सपना देखता हूं जिसे अधूरा छोड़कर मैं सालों तक भटकता रहा। आज जब किस्मत ने हमें फिर मिलाया है तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। मैं तुम्हें और आरव को दुनिया के सामने अपनाऊंगा।”
भीड़ में खड़े कुछ लोग उन्हें देख रहे थे। कोई फुसफुसा रहा था। कोई मुस्कुरा रहा था। मीरा का चेहरा शर्म और डर से लाल हो गया। “लोग क्या सोचेंगे आदित्य?” उसने धीमी आवाज में पूछा। आदित्य ने दृढ़ स्वर में कहा, “लोग कल भी बोलते थे, आज भी बोलेंगे और कल भी बोलेंगे। लेकिन हमारी जिंदगी उनकी सोच से नहीं चलेगी। मैं चाहता हूं कि आरव कल जब बड़ा हो तो गर्व से कह सके ‘यह मेरे पापा हैं।’ और तुम कह सको ‘हां, यह मेरे पति हैं।’”
मीरा की आंखें भर आईं। उसकी बरसों की कसमें, डर और समाज की परवाह एक ही पल में टूटने लगी। उसने कांपते होठों से कहा, “अगर तुम सच में इतना साहस रखते हो, तो मैं भी पीछे नहीं हटूंगी। पर याद रखना, यह सिर्फ हमारी मोहब्बत की नहीं, इज्जत की लड़ाई भी होगी।”
आदित्य ने हल्की मुस्कान दी और अपना हाथ आगे बढ़ाया। “मैं तुम्हें वादा करता हूं मीरा, अब कोई जुदाई नहीं होगी।” मीरा ने कुछ पल हिचकिचाकर उसका हाथ थाम लिया। आरव मासूमियत से दोनों को देख रहा था। उसकी आंखों में खुशी की चमक थी। जैसे उसने बिना समझे ही सब कुछ समझ लिया हो।
सड़क किनारे खड़ी उस छोटी सी चाय की दुकान पर लोग ताली बजाने लगे। किसी ने कहा, “सच में यह मोहब्बत की जीत है।” बरसों से बिछड़े दो दिल फिर से मिल गए थे। और इस बार सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि उस छोटे से मासूम के लिए भी जिसकी आंखों में अब पूरा परिवार होने की चमक थी।
कभी-कभी जिंदगी हमें दूसरा मौका देती है। लेकिन हिम्मत वही कर पाते हैं जो समाज की परवाह से ऊपर उठकर सच्चाई को अपनाते हैं। मीरा और आदित्य ने साबित कर दिया कि मोहब्बत सिर्फ इजहार का नाम नहीं बल्कि संघर्ष, सम्मान और जिम्मेदारी निभाने का नाम भी है।
आदित्य और मीरा ने एक नई शुरुआत की। उन्होंने आरव को हर संभव तरीके से एक सुरक्षित और खुशहाल जीवन देने का वादा किया। मीरा ने आदित्य के साथ मिलकर अपने जीवन को फिर से संवारने का फैसला किया। उन्होंने अपने रिश्ते को एक नई दिशा देने का मन बनाया।
आदित्य ने मीरा की मदद से एक छोटी सी दुकान खोली, जहां वे दोनों मिलकर काम करते थे। मीरा ने अपनी चाय की दुकान को एक नया रूप दिया। धीरे-धीरे, उनकी दुकान मशहूर हो गई। लोग दूर-दूर से उनकी चाय पीने आते थे। आदित्य ने अपने बिजनेस को भी बढ़ाना शुरू किया और मीरा के साथ मिलकर उन्होंने एक नई जिंदगी की शुरुआत की।
आरव स्कूल जाने लगा। मीरा ने उसे पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया। आदित्य ने आरव को हर संभव तरीके से सपोर्ट किया। उन्होंने आरव को यह समझाया कि शिक्षा सबसे बड़ी दौलत है। आरव ने भी अपने माता-पिता की मेहनत को समझा और पढ़ाई में अच्छा करने की कोशिश की।
समय बीतने के साथ, मीरा और आदित्य का रिश्ता मजबूत होता गया। उन्होंने एक-दूसरे का साथ निभाया और हर मुश्किल का सामना किया। उनकी मोहब्बत ने उन्हें एक नई पहचान दी। मीरा ने आदित्य के साथ मिलकर न केवल अपने सपनों को पूरा किया बल्कि अपने बेटे के लिए भी एक उज्ज्वल भविष्य की नींव रखी।
आदित्य ने भी मीरा के साथ मिलकर अपने बिजनेस को और बढ़ाया। उन्होंने अपने काम में ईमानदारी और मेहनत को प्राथमिकता दी। उनकी दुकान अब एक ब्रांड बन चुकी थी। लोग उनकी चाय की तारीफ करते नहीं थकते थे। मीरा की मेहनत और आदित्य की बुद्धिमानी ने उन्हें सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
आरव बड़ा होने लगा। उसने अपने माता-पिता की मेहनत को देखा और हमेशा उन्हें गर्व महसूस कराया। वह पढ़ाई में अव्वल आने लगा। उसकी मेहनत ने उसे एक अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाया। मीरा और आदित्य ने उसे हर संभव सपोर्ट दिया। वे चाहते थे कि आरव अपनी मां की तरह मजबूत बने और अपने सपनों को पूरा करने में सक्षम हो।
एक दिन, आरव ने अपने माता-पिता से कहा, “मम्मी, पापा, मैं बड़ा होकर एक डॉक्टर बनना चाहता हूं।” यह सुनकर मीरा और आदित्य की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने अपने बेटे को गले लगाया और कहा, “हम तुम्हारे सपनों का समर्थन करेंगे।”
आदित्य और मीरा ने अपने बेटे के सपनों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने आरव को हर संभव संसाधन उपलब्ध करवाए। आरव ने अपनी पढ़ाई में मेहनत की और धीरे-धीरे वह एक सफल छात्र बन गया। उसकी मेहनत और माता-पिता के सपोर्ट ने उसे एक सफल डॉक्टर बनने की दिशा में अग्रसर किया।
समय के साथ, मीरा और आदित्य की मोहब्बत और भी गहरी होती गई। उन्होंने एक-दूसरे के साथ हर सुख-दुख को साझा किया। उनकी जिंदगी में खुशियों की कोई कमी नहीं थी। उन्होंने अपने रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए हमेशा एक-दूसरे का साथ दिया।
आखिरकार, आरव ने अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की और एक सफल डॉक्टर बन गया। उसने अपने माता-पिता को गर्व महसूस कराया। मीरा और आदित्य ने अपने बेटे की सफलता पर गर्व किया और उसकी मेहनत को सराहा। उन्होंने अपने बेटे को यह सिखाया कि जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन अगर मेहनत की जाए तो हर सपना सच हो सकता है।

इस प्रकार, मीरा और आदित्य की कहानी एक नई शुरुआत की कहानी बन गई। उन्होंने साबित कर दिया कि सच्ची मोहब्बत और मेहनत से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है। उनका रिश्ता न केवल प्यार का प्रतीक था, बल्कि यह संघर्ष, सम्मान और जिम्मेदारी निभाने का भी एक उदाहरण था।
उनकी कहानी ने यह सिखाया कि जीवन में सच्ची मोहब्बत कभी खत्म नहीं होती। यह हमेशा एक नई दिशा में आगे बढ़ती है। मीरा और आदित्य ने एक-दूसरे के साथ मिलकर अपने सपनों को पूरा किया और अपने बेटे को एक उज्ज्वल भविष्य दिया। उनकी कहानी ने यह साबित कर दिया कि प्यार और मेहनत से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है।
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