DM मैडम गरीब भेष में अपनी मां के साथ पैसा निकलने पहुंची तो भिखारी समझ बैंक मैनेजर ने पैसे नहीं निकला
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सादगी और सम्मान: एक बैंक की कहानी
शहर के बीचोंबीच एक बड़ा सरकारी बैंक था, जहाँ रोजाना सैकड़ों लोग आते-जाते रहते थे। इस बैंक की पहचान थी उसके बड़े-बड़े ग्राहक, ऊँची पहुंच वाले अधिकारी, और चमकदार फॉर्मल ड्रेस में सजे कर्मचारी। यहाँ हर कोई अपने आपको खास समझता था। लेकिन इस खास माहौल के बीच एक दिन ऐसी घटना हुई जिसने सबकी सोच बदल दी।
नीतू वर्मा, जिले की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, एक दिन अपनी मां के साथ बैंक में आईं। उनका पहनावा साधारण था—साड़ी, बिना किसी आभूषण के, और चेहरे पर कोई बनावट नहीं। बैंक के कर्मचारी और ग्राहक उन्हें एक आम ग्रामीण महिला समझ बैठे। किसी को अंदाजा भी नहीं था कि यह वही नीतू वर्मा हैं, जिनके फैसलों का जिले में असर होता था।
नीतू ने विनम्रता से बैंक की महिला कर्मचारी संगीता से कहा कि उनकी मां की पेंशन पिछले महीने से नहीं आई है। संगीता ने ऊपर से नीचे तक उन्हें देखा और व्यंग्य करते हुए कहा, “यह बैंक हाई प्रोफाइल अकाउंट्स के लिए है, आप शायद गलत जगह आ गई हैं।” नीतू ने मुस्कुराते हुए कहा, “बस एक बार देख लीजिए, अगर नहीं है तो हम चले जाएंगे।”
संगीता ने लिफाफा लिया और कहा, “थोड़ा समय लगेगा, बैठिए वहीं।” नीतू चुपचाप वहीं खड़ी रही। कुछ मिनट बाद उन्होंने कहा, “अगर आप व्यस्त हैं तो मैनेजर से मिलवा दीजिए।” संगीता ने फोन उठाया और मैनेजर को कॉल कर दिया। मैनेजर ने झुंझलाते हुए कहा, “मेरे पास फालतू लोगों के लिए टाइम नहीं है, बैठा दो कहीं, इंतजार करें।”
नीतू ने मां का हाथ थामा और वेटिंग एरिया की ओर बढ़ गई। बैंक में मौजूद लोग उन्हें घूर रहे थे। वे सोच रहे थे कि यह कौन हैं, किस गांव से आई हैं, और यहाँ क्या कर रही हैं। बैंक की चमक-धमक के बीच यह सादी सी महिला और उसकी मां जैसे किसी और ग्रह से आई हों।
बैंक का एक कर्मचारी पवन, जो पद में छोटा था लेकिन इंसानियत में बड़ा, यह सब देख रहा था। वह सीधे नीतू के पास गया और विनम्रता से पूछा, “मैडम, आपको कुछ मदद चाहिए?” नीतू ने कहा, “हां बेटा, मुझे मैनेजर से कुछ जरूरी बात करनी है।” पवन तुरंत मैनेजर से बात करने चला गया।
पवन ने मैनेजर को बताया कि बाहर एक महिला अपनी मां के साथ बैठी है, कुछ जरूरी काम है। मैनेजर ने झुंझलाते हुए कहा, “यह बैंक है, कोई चाय की दुकान नहीं।” पवन ने फिर भी कहा, “सर, एक बार देख लीजिए।” लेकिन मैनेजर ने उसे टाल दिया।
नीतू ने संयम बनाए रखा। लेकिन जब वह मैनेजर के केबिन की ओर बढ़ीं, तो मैनेजर घबराया और बाहर आकर रास्ता रोकते हुए बोला, “क्या काम है?” नीतू ने वही लिफाफा आगे बढ़ाया जिसमें मां के खाते की जानकारी थी। मैनेजर ने बिना देखे कहा, “जब खाते में पैसे नहीं होते तो ट्रांजैक्शन भी नहीं होता। शायद आपने पैसे जमा नहीं करवाए।”
नीतू ने विनम्रता से कहा, “एक बार चेक कर लेना बेहतर रहेगा।” मैनेजर ने हंसते हुए कहा, “मुझे शक्ल देखकर पता चल जाता है कि किसके पास क्या है। तुम्हारे जैसे लोग रोज आते हैं।” उसने कहा, “अब ज्यादा भीड़ मत लगाओ, अच्छा होगा अगर तुम चली जाओ।”
नीतू की आंखों में अब सख्ती थी। उन्होंने कहा, “ठीक है, मैं जा रही हूं, लेकिन इस लिफाफे की जानकारी एक बार जरूर पढ़ लेना। शायद तुम्हारे काम की हो।” वह मां का हाथ थामे बैंक से बाहर चली गईं। मैनेजर ने लिफाफा अनदेखा छोड़ दिया।
पवन ने लिफाफा उठाया और बैंक के सिस्टम में खाता खोजा। उसे हैरानी हुई जब पता चला कि यह महिला बैंक की मूल शेयर होल्डर हैं। उनके नाम बैंक के रजिस्ट्रार रिकॉर्ड में वीआईपी सेक्शन में दर्ज थे। पवन ने रिपोर्ट की एक कॉपी बनाई और सीधे मैनेजर के केबिन में पहुंचा।
मैनेजर एक अमीर ग्राहक को स्कीमें समझा रहा था, unaware कि उसकी दुनिया पलटने वाली है। पवन ने रिपोर्ट दिखाते हुए कहा, “सर, यह उसी महिला की रिपोर्ट है जो कल आई थी।” मैनेजर ने झुंझलाते हुए कहा, “मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है।” फिर भी पवन ने रिपोर्ट रख दी।
अगले दिन वही महिला, नीतू वर्मा, एक सूट-बूट में एक अफसर के साथ बैंक में आईं। बैंक का माहौल बदल गया। सभी की नजरें उसी पर थीं। वह सीधे मैनेजर के केबिन गईं। मैनेजर घबरा गया।
नीतू ने सख्त आवाज़ में कहा, “मैंने कल कहा था कि तुम्हें तुम्हारे व्यवहार का अंजाम भुगतना होगा। तुमने मुझे और आम नागरिकों को नीचा दिखाया। अब सजा भुगतने के लिए तैयार रहो।” मैनेजर ने पूछा, “आप कौन हैं?” नीतू ने कहा, “मैं नीतू वर्मा, जिले की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और इस बैंक की 60% शेयर होल्डर हूं।”
नीतू ने घोषणा की कि मैनेजर को पद से हटाया जा रहा है और पवन को शाखा प्रबंधक बनाया जा रहा है। मैनेजर घबराया और माफी मांगने लगा। नीतू ने कहा, “माफी किस बात की? तुमने सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि हर आम नागरिक का अपमान किया।”
नीतू ने बैंक की पॉलिसी का जिक्र किया जिसमें लिखा था कि हर ग्राहक समान होगा। उन्होंने कहा, “मैं चाहती तो तुम्हें तुरंत सस्पेंड करवा देती, लेकिन मैं तुम्हें सुधार का मौका दे रही हूं।” फिर संगीता को बुलाकर कहा, “किसी को छोटा मत समझना। यह सीख जिंदगी भर याद रखना।”
नीतू ने सभी कर्मचारियों को पवन से सीखने को कहा कि इंसानियत और ईमानदारी से काम करना सबसे बड़ा गुण है। इतना कहकर वह बैंक से बाहर चली गईं। बैंक में सन्नाटा छा गया। सबकी सोच बदल गई।
उस दिन के बाद बैंक का माहौल बदल गया। हर ग्राहक को सम्मान मिलने लगा और हर कर्मचारी ने सीखा कि अगली बार कोई भी आम आदमी खास बनकर सामने आ सकता है।
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