DM मैडम ने खोए हुए बेटे को जूते साफ करते देखा स्टेशन पर फिर जो हुआ… DM Madam Story
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सुबह की हल्की धूप रेलवे स्टेशन की भीड़ में छिपी थी। 10 साल का गौरव, फटे-पुराने कपड़ों में, छोटे-छोटे हाथों से यात्रियों के जूते चमकाने में लगा था। उसकी मेहनत बड़ी थी, पर वह नहीं जानता था कि कभी उसका भी एक घर था, एक मां थी, एक परिवार था जिसे वह खो चुका था। आज उसकी दुनिया सिर्फ जूते चमकाने तक सीमित थी, और वह बस जीने की जद्दोजहद में लगा था।
गौरव की आंखों में कोई शिकवा नहीं था, लेकिन उसके दिल में एक अनजाना खालीपन था। वह खुद को कभी अकेला महसूस करता, कभी भूखा, लेकिन कभी भी हार नहीं माना। वह नहीं जानता था कि 10 साल पहले एक दर्दनाक हादसे ने उसकी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया था।
10 साल पहले की बात है, डीएम राधिका वर्मा अपनी ड्यूटी से लौट रही थीं। उनके पति विदेश में काम कर रहे थे, इसलिए उन्होंने अपने छोटे बेटे गौरव को अपने साथ ले लिया था। शाम का वक्त था, बारिश हो रही थी, सड़कें फिसलन भरी थीं। अचानक उनकी गाड़ी पुल पर फिसल गई और नीचे नहर में जा गिरी। राधिका वर्मा किसी तरह बच गईं, लेकिन जब होश आया तो गौरव कहीं नजर नहीं आ रहा था। रेस्क्यू टीम ने खूब खोजा, लेकिन बच्चे का कोई पता नहीं चला। डॉक्टरों ने कहा कि शायद वह नहर में बह गया होगा।
उसी रात, नहर के किनारे लकड़हारा संतोष लकड़ियां काट रहा था। उसने पानी में तैरते हुए एक बच्चे को देखा। वह बेहोश था, लेकिन सांस ले रहा था। संतोष ने बच्चे को तुरंत पानी से निकाला और अपने झोपड़े में ले गया। बच्चे के कपड़े फटे हुए थे, माथे पर चोट का निशान था। दो दिन बाद जब बच्चे की आंखें खुलीं, तो वह कुछ भी याद नहीं कर पाया था — न अपना नाम, न माता-पिता के बारे में कुछ। संतोष ने उसे गौरव नाम दिया और अपने बेटे की तरह पालने लगा।
संतोष का जीवन बहुत कठिन था। वह दिनभर जंगल में लकड़ियां काटता और शहर में बेचकर दो वक्त का खाना जुटाता। लेकिन गौरव के आने के बाद उसकी जिम्मेदारी बढ़ गई थी। वह रोज सुबह चार बजे उठता, गौरव के लिए खाना बनाता, फिर जंगल जाता। शाम को लौटकर गौरव को पढ़ाई में मदद करता। गौरव तेज बुद्धि का था और जल्दी सीखता था।
संतोष चाहता था कि गौरव पढ़-लिखकर कुछ बड़ा बने, लेकिन गरीबी की मार में कई बार स्कूल की फीस भी जुटाना मुश्किल हो जाता था। फिर भी उसने कभी हिम्मत नहीं हारी। गौरव भी संतोष को अपना पिता मानता था और उसका पूरा सम्मान करता था।
10 साल बीत गए। गौरव अब एक समझदार लड़का बन चुका था। उसने देखा कि संतोष काका दिन-ब-दिन कमजोर होते जा रहे थे। उनके हाथ कांपने लगे थे, और सांस लेने में भी तकलीफ होती थी। एक दिन गौरव ने देखा कि संतोष काका कुल्हाड़ी उठाने में भी मुश्किल महसूस कर रहे थे। उसका मन भर आया। शाम को जब संतोष काका थके हुए घर लौटे, तो गौरव ने कहा, “अब आप काम मत कीजिए, मैं करूँगा।”
संतोष ने मना किया, “मैं अभी भी कर सकता हूँ बेटा।”
लेकिन गौरव जिद पर अड़ा रहा, “आपने मुझे 10 साल तक पाला है। अब मेरी बारी है।”
गौरव ने तय किया कि वह रेलवे स्टेशन जाकर जूते साफ करने का काम करेगा। वह काम उसे पहले से पता था क्योंकि कभी-कभी वह संतोष काका के साथ स्टेशन गया करता था। पहले दिन उसने सिर्फ ₹50 कमाए, लेकिन वह खुश था। घर जाकर उसने संतोष काका को पैसे दिए। उनकी आंखें भर आईं।
धीरे-धीरे गौरव के ग्राहक बढ़ने लगे। वह मेहनत से काम करता और ईमानदारी से पैसे लेता था। लोग उसकी तारीफ करने लगे। कुछ हफ्तों में वह दिन में ₹200-₹300 कमाने लगा। संतोष काका की तबीयत भी धीरे-धीरे सुधरने लगी।

उधर, डीएम राधिका वर्मा ने इन 10 सालों में बहुत कुछ झेला था। गौरव की मृत्यु का गम उन्होंने कभी नहीं भुलाया था। उनके पति भी वापस आ गए थे, लेकिन दुख की वजह से उनके रिश्ते में दरार आ गई थी। राधिका वर्मा अपने काम में व्यस्त रहती थीं, लेकिन रात में अकेले होते हुए गौरव की यादें सताती थीं। वे सोचती थीं कि अगर वे उस दिन गौरव को साथ लेकर नहीं जातीं तो शायद वह आज उनके साथ होता। यह अपराधबोध उन्हें हमेशा सताता रहता था।
एक दिन की बात है, रेलवे स्टेशन पर दिलीप यादव नाम का एक अमीर आदमी आया। वह एक बिल्डर था, महंगी कार, ब्रांडेड कपड़े और सोने के गहनों से सजा हुआ। उसने देखा कि उसके जूते गंदे हो गए हैं, इसलिए उसने गौरव को आवाज लगाई। गौरव तुरंत दौड़ा और बड़े प्रेम से उसके जूते साफ करने लगा। वह मेहनत से काम कर रहा था क्योंकि उसे लग रहा था कि यह ग्राहक उसे अच्छे पैसे देगा।
जब काम पूरा हुआ, तो जूते बिल्कुल नए जैसे चमक रहे थे। गौरव ने विनम्रता से कहा, “साहब, इसके ₹50 हो गए।” यह उसकी तय की हुई दर थी और वह कभी किसी से ज्यादा पैसे नहीं मांगता था।
लेकिन दिलीप यादव ने घमंड से कहा, “मैं तुझे ₹10 दूंगा। तेरी यही औकात है।”
गौरव को लगा कि शायद उसने गलत सुना है। उसने विनम्रता से कहा, “साहब, इसमें बहुत मेहनत लगती है और मैंने आपके जूते इतने अच्छे से साफ किए हैं। चलो 50 नहीं तो कम से कम ₹40 तो दे दो।”
यह सुनकर दिलीप यादव का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने गौरव के चेहरे पर जोर से थप्पड़ मारा और कहा, “तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे जैसे अमीर इंसान से इस तरह बात करने की?”
गौरव का गाल लाल हो गया था, लेकिन वह डरा नहीं। उसने कहा, “साहब, मैं तो आपकी इज्जत कर रहा हूं। मैं तो अपने पैसे मांग रहा हूं।”
लेकिन दिलीप यादव और भड़क गया। उसने गौरव को लात मारी और कहा, “जा, कोई पैसा नहीं है। मैं तुझे यह ₹10 भी नहीं दूंगा।”
गौरव गिर गया, लेकिन वह उठकर खड़ा हो गया। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन वह रो नहीं रहा था। वह सिर्फ सोच रहा था कि संतोष काका के लिए दवाई कैसे लाएगा।
स्टेशन पर कुछ लोग यह सब देख रहे थे, लेकिन दिलीप यादव के डर से कोई कुछ नहीं कह रहा था। गौरव चुपचाप अपना सामान समेटने लगा। उसे लग रहा था कि शायद यही उसकी किस्मत है।
इसी वक्त डीएम राधिका वर्मा स्टेशन पर पहुंची। वे किसी काम से दूसरे शहर जा रही थीं। जब उन्होंने यह सब देखा तो उनका खून खौल गया। वे तुरंत दिलीप यादव के पास गईं और कहा, “आपने इस बच्चे को लात क्यों मारी?”
दिलीप यादव ने घमंड से कहा, “तू कौन होती है मुझसे सवाल करने वाली?”
राधिका वर्मा ने शांति से कहा, “इससे आपको क्या मतलब कि मैं कौन हूं? लेकिन यह इसका हक है और यह अपनी मेहनत के पैसे मांग रहा है।”
दिलीप यादव हंसकर कहने लगा, “जा, जो तुमसे कर सको वो करो। मैं अब इसे एक भी पैसा नहीं दूंगा।”
राधिका वर्मा को लगा कि यह इंसान बिल्कुल गलत है और किसी को इसका सबक सिखाना चाहिए। उन्होंने गौरव से कहा, “बेटा, मेरे साथ चलो।”
गौरव पहले डरा, लेकिन जब उसने राधिका वर्मा की आंखों में स्नेह देखा तो उसका डर भाग गया। राधिका वर्मा उसे पास के पुलिस स्टेशन ले गईं। वहां उन्होंने थानेदार से कहा कि इस बच्चे का एफआईआर लिखवाना है।
गौरव ने कहा, “मैडम, मैं तो गरीब हूं। मैं इन अमीरों से कैसे लड़ूंगा? और यही तो ₹50 की बात है।”
राधिका वर्मा ने समझाया, “बात सिर्फ ₹50 की नहीं है बेटा, बात तुम्हारी इज्जत की है। तुम्हारे सम्मान की है। अगर हर किसी का ऐसा ही होता रहे तो यह दुनिया कैसे चलेगी?”
गौरव को समझ आ गया कि यह औरत उसकी सच्ची मदद करना चाहती है। उसने हिम्मत करके एफआईआर लिखवा दी।
उसी समय स्टेशन पर एक पत्रकार भी मौजूद था। जब दिलीप यादव ने गौरव को लात मारी थी, तो उसने पूरा वीडियो रिकॉर्ड कर लिया था। वह जिम्मेदार पत्रकार था और उसे लगता था कि इस तरह की घटनाओं को लोगों के सामने लाना चाहिए। उसने तुरंत वह वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया।
वीडियो में साफ दिख रहा था कि कैसे एक अमीर आदमी ने एक गरीब बच्चे को मारा था और उसके पैसे भी नहीं दिए थे। वीडियो के साथ उसने लिखा था कि यह है हमारे समाज की सच्चाई। कुछ ही घंटों में यह वीडियो वायरल हो गया। हजारों लोग इसे शेयर कर रहे थे और दिलीप यादव की भरपाई कर रहे थे। लोग कह रहे थे कि ऐसे लोगों को सबक सिखाना चाहिए।
वीडियो वायरल होने के बाद मीडिया ने इस मामले पर बहुत शोर मचाया। अखबारों में यह खबर फ्रंट पेज पर छपी। टीवी चैनलों पर बहस हो रही थी। सभी कह रहे थे कि मेहनतकश बच्चे के साथ जो हुआ वह गलत है।
गौरव की तस्वीर अखबारों में छपी तो राधिका वर्मा ने उसे ध्यान से देखा। उन्हें कुछ अजीब सा लगा। बच्चे के चेहरे में कुछ ऐसी बात थी जो उन्हें जानी-पहचानी लग रही थी, लेकिन वे समझ नहीं पा रही थीं कि क्यों। उन्होंने सोचा कि शायद यह इसलिए हो रहा है क्योंकि वे अपने बेटे को याद कर रही थीं।
दिलीप यादव पर दबाव बढ़ता गया। उसके बिजनेस पार्टनर भी उससे दूरी बनाने लगे। कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। दिलीप यादव ने महंगे वकील रखे थे, लेकिन वीडियो के सामने उनके सारे तर्क फेल हो रहे थे।
गौरव की तरफ से राधिका वर्मा ने एक अच्छे वकील का इंतजाम किया था। कोर्ट में जब गौरव ने अपनी गवाही दी तो जज साहब भी उसकी बातों से प्रभावित हुए। गौरव ने कहा कि वह सिर्फ अपनी मेहनत के पैसे मांग रहा था। उसने बताया कि वह अपने संतोष काका की दवाई के लिए पैसे कमाता है।
जज साहब ने कहा, “यह बच्चा सिर्फ अपना हक मांग रहा था और दिलीप यादव ने उसके साथ मारपीट की है।”
दिलीप यादव के वकील ने कई तर्क दिए, लेकिन वीडियो सबूत इतना साफ था कि कोई बचने का रास्ता नहीं था।
अदालत में रोज भीड़ लगी रहती थी क्योंकि लोग इस केस में बहुत दिलचस्पी ले रहे थे। कोर्ट के फैसले का दिन आया। जज साहब ने दिलीप यादव को दोषी पाया। उन्होंने कहा, “समाज में अमीर-गरीब का भेद हो सकता है, लेकिन कानून की नजर में सभी बराबर हैं। मेहनत करने वाले इंसान का अपमान करना और उसके साथ मारपीट करना गुनाह है।”
जज साहब ने दिलीप यादव को छह महीने की जेल की सजा सुनाई और ₹5 लाख का जुर्माना भरने को कहा जो गौरव को दिया जाएगा। यह सुनकर पूरी कोर्ट में तालियां गूंज उठीं।
गौरव को विश्वास नहीं हो रहा था कि उसे इतने पैसे मिल गए हैं। उसने राधिका वर्मा के पैर छुए और कहा कि उन्होंने उसकी बहुत मदद की है। राधिका वर्मा की आंखें भर आईं। उन्हें लग रहा था कि यह बच्चा उनके अपने बेटे जैसा है।
गौरव के पास अब पैसे थे। उसने सबसे पहले संतोष काका का इलाज कराया। अच्छे डॉक्टरों ने देखा तो पता चला कि संतोष काका को दिल की बीमारी थी। ऑपरेशन के बाद वे बिल्कुल ठीक हो गए।
गौरव ने अपने गांव में एक छोटी दुकान भी खोली जहां वह रोजमर्रा का सामान बेचता था। दुकान अच्छी चलने लगी क्योंकि गौरव ईमानदार था और सभी को सही दाम में सामान देता था। अब वे दोनों खुशी-खुशी रह रहे थे। संतोष काका गर्व से सभी को बताते थे कि गौरव उनका बेटा है और उसने बड़े-बड़े अमीरों से लड़कर न्याय पाया है।
गौरव हमेशा राधिका वर्मा को याद करता था। राधिका वर्मा का मन इस पूरे केस के बाद बहुत भारी था। गौरव को देखकर उन्हें अपने खोए हुए बेटे की याद आती रहती थी। वे रोज सोचती थीं कि काश उनका बेटा भी कहीं जिंदा हो और इसी तरह किसी की मदद से पल रहा हो।
एक दिन उन्होंने तय किया कि वे गौरव से मिलने जाएंगी। वे उसके गांव पहुंचीं तो देखा कि गौरव की दुकान अच्छी चल रही थी। संतोष काका भी स्वस्थ लग रहे थे। गौरव ने जब उन्हें देखा तो तुरंत दौड़ कर आया और उनके पैर छुए।
राधिका वर्मा ने उससे पूरी कहानी पूछी। जब गौरव ने बताया कि 10 साल पहले संतोष काका ने उसे नहर से निकाला था तो उनका दिल जोर से धड़कने लगा। उन्होंने पूछा कि उसे कुछ याद है या नहीं। गौरव ने कहा कि उसे कुछ भी याद नहीं है।
राधिका वर्मा ने संतोष से विस्तार से पूछा कि उन्होंने गौरव को कहां से पाया था। संतोष ने बताया कि 10 साल पहले एक रात वे नहर के किनारे लकड़ी काट रहे थे, तब उन्होंने एक बच्चे को पानी में तैरते देखा था। बच्चा बेहोश था लेकिन सांस ले रहा था। वे उसे घर ले आए और उसकी देखभाल की। बच्चे को कुछ याद नहीं था इसलिए उन्होंने उसका नाम गौरव रखा।
राधिका वर्मा को लगा कि यह वही समय था जब उनका एक्सीडेंट हुआ था, लेकिन वे पूरी तरह यकीन नहीं कर पा रही थीं। उन्होंने गौरव के माथे पर एक निशान देखा जो बिल्कुल वैसा ही था जैसा उनके बेटे के माथे पर था। अब उनका संदेह और भी गहरा हो गया।
वे घर लौटीं तो बहुत परेशान थीं। उन्होंने तय किया कि वे गौरव का डीएनए टेस्ट कराएंगी। डॉक्टर से बात की और गौरव के बाल का सैंपल लिया। कुछ दिनों बाद रिपोर्ट आई तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। डीएनए मैच हो गया था। गौरव वाकई उनका बेटा था। 10 सालों बाद उन्हें अपना खोया हुआ बेटा मिल गया था।
लेकिन अब उनके सामने एक बड़ी समस्या थी। गौरव को संतोष के अलावा कोई और पिता नहीं पता था। अगर वे अचानक जाकर बताएंगी तो गौरव को बहुत धक्का लगेगा। उन्होंने सोचा कि पहले वे संतोष से बात करेंगी। आखिरकार संतोष ने उनके बेटे को 10 साल तक पाला था। वे संतोष के एहसान को कभी नहीं भूल सकती थीं।
उन्होंने तय किया कि वे धीरे-धीरे इस सच्चाई को सामने लाएंगी। राधिका वर्मा फिर से संतोष के पास गईं। इस बार वे अकेली थीं और उनके चेहरे पर गंभीरता थी। उन्होंने संतोष से कहा कि वे गौरव की असली मां हैं। डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट दिखाकर सारी बात बताई।
संतोष को पहले विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब उन्होंने रिपोर्ट देखी तो वे समझ गए। उनकी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा कि उन्होंने हमेशा सोचा था कि एक दिन गौरव का असली परिवार आएगा। लेकिन अब जब वह दिन आ गया था तो उन्हें बहुत दुख हो रहा था।
राधिका वर्मा ने कहा कि वे संतोष के एहसान को कभी नहीं भूलेंगी। उन्होंने कहा कि गौरव के लिए संतोष ही उसके असली पिता हैं क्योंकि उन्होंने ही उसे पाला है। वे चाहती थीं कि गौरव दोनों परिवारों से जुड़ा रहे।
अब समय आ गया था कि गौरव को सच्चाई बताई जाए। राधिका वर्मा और संतोष दोनों ने मिलकर तय किया कि वे आराम से गौरव को सब कुछ बताएंगे।
एक दिन जब गौरव दुकान बंद करके घर आया तो उसने देखा कि राधिका वर्मा मैडम घर पर बैठी थीं। वे अक्सर आने लगी थीं इसलिए गौरव को कुछ अजीब नहीं लगा। संतोष काका ने प्यार से गौरव को अपने पास बिठाया और कहा कि आज उसे कुछ जरूरी बात बतानी है।
गौरव ने देखा कि दोनों के चेहरे पर गंभीरता है। संतोष काका ने धीरे-धीरे सारी कहानी बताई। जब गौरव को पता चला कि राधिका वर्मा उसकी असली मां हैं तो वह सन्न रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जिसे वह मैडम कहकर बुलाता था, वे उसकी मां हैं।
गौरव को समझने में कुछ समय लगा। फिर वह राधिका वर्मा के पास गया और बोला, “मां।”
यह शब्द सुनकर राधिका वर्मा की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला। 10 साल बाद किसी ने उन्हें मां कहा था। वे गौरव को गले लगाकर रोने लगीं। गौरव भी समझ गया था कि यह वही मां हैं जिनकी तलाश उसे अपने दिल में हमेशा रहती थी।
लेकिन गौरव ने साफ कह दिया कि संतोष काका हमेशा उसके पिता रहेंगे क्योंकि उन्होंने उसे पाला है।
राधिका वर्मा ने कहा कि वे भी यही चाहती हैं। उन्होंने संतोष से कहा कि वे उन्हें अपना बड़ा भाई मानती हैं और गौरव दोनों घरों का बेटा रहेगा।
संतोष काका भी खुश हो गए कि अब गौरव को उसकी असली मां मिल गई है। वे सब एक परिवार की तरह साथ रहने लगे।
यह कहानी हमें सिखाती है कि असली परिवार सिर्फ खून का बंधन नहीं होता, बल्कि प्यार, समर्पण और साथ निभाने का नाम होता है। कभी-कभी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशियां अनपेक्षित जगहों से आती हैं, जहां हमें उम्मीद भी नहीं होती।
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