अस्पताल में 8 साल के बच्चे का बैग खोला तो नर्स की आंखें फटी रह गईं – फिर जो हुआ

“जादुई घड़ी – प्रियांश और उसके पापा की कहानी”

पहला भाग: मासूमियत का खजाना

सिटी हॉस्पिटल की चौथी मंजिल पर बच्चों का वार्ड था। दोपहर के 2 बजे, नर्स प्रिया अपनी ड्यूटी में व्यस्त थी।
अचानक बेड नंबर 23 से एक मासूम आवाज आई—”आंटी, मुझे घर जाना है।”
आठ साल का प्रियांश रो रहा था।
प्रिया उसके पास गई, “बेटा, डॉक्टर अंकल ने कहा है कि तुम्हें एक दिन और रुकना होगा। बुखार अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है।”

प्रियांश की आंखों से आंसू बह रहे थे, “मैं अपने पापा को मिस कर रहा हूं।”
प्रिया का दिल पिघल गया।
वह जानती थी कि प्रियांश के पापा कल रात ही एक्सीडेंट में गुजर गए थे। लेकिन बच्चे को सच्चाई नहीं बताई गई थी।
“तुम्हारे पापा बहुत जल्दी आएंगे तुम्हें लेने।” प्रिया ने झूठ बोला।

प्रियांश ने अपना छोटा सा स्कूल बैग अपनी छाती से लगा लिया, “आंटी, मैं अपने बैग को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। इसमें मेरे पापा का दिया हुआ खुशी का खजाना है।”
प्रिया को जिज्ञासा हुई—आखिर इस बैग में क्या है जो इतना खास है?

दूसरा भाग: रहस्य और भावनाएं

प्रियांश ने बैग कसकर पकड़ लिया, “यह मेरा और पापा का राज है।”
अचानक उसे तेज बुखार आया और वह बेहोश हो गया।
प्रिया ने तुरंत डॉक्टर को बुलाया।
डॉक्टर शर्मा आए, “इस बच्चे को तुरंत आईसीयू में शिफ्ट करना होगा।”

जल्दबाजी में प्रियांश का बैग बेड पर ही छूट गया।
प्रिया ने बैग उठाया, उसका वजन महसूस किया—इतने छोटे बैग में इतना वजन कैसे?
रात के 11 बजे, प्रिया अपने केबिन में अकेली थी।
बैग से टिक टिक की आवाज आ रही थी।
क्या यह कोई बम है?
डरते-डरते प्रिया ने बैग खोला।
पहले नोटबुक, फिर पेंसिल, इरेजर।
फिर एक छोटा सा डिब्बा, काले कपड़े में लिपटा।
डिब्बे में एक छोटी सी घड़ी थी।
इस पर एक आदमी की तस्वीर लगी थी—मुस्कुराता चेहरा, नीचे लिखा—”पापा, आपको याद करते हुए हर सेकंड गिनता हूं।”

प्रिया की आंखों में आंसू आ गए।
यह तस्वीर प्रियांश के पापा की थी।
लेकिन घड़ी रुकी हुई थी, समय 11:47 पर अटका था, फिर भी टिक टिक की आवाज आ रही थी।
घड़ी के पीछे एक छोटा सा कागज चिपका था—

“प्रिय प्रियांश बेटा,
यह घड़ी मेरे दादा जी की है। यह तब से चल रही है जब मैं तुम्हारी उम्र का था।
यह घड़ी खास है, क्योंकि यह सिर्फ तब चलती है जब इसके पास का इंसान किसी मुसीबत में होता है।
अगर तुम कभी अकेले हो या डरे हुए हो तो यह घड़ी तुम्हें बताएगी कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं।
यह हमारा प्यार का निशान है।
तुम्हारे पापा”

प्रिया समझ गई—यह घड़ी सिर्फ एक घड़ी नहीं, एक भावनात्मक कनेक्शन है।

तीसरा भाग: सच्चाई और दुविधा

अब सवाल था—क्या प्रियांश को सच्चाई बताई जाए या उसे झूठ बोलकर खुश रखा जाए?
तभी डॉक्टर शर्मा का फोन आया, “प्रिया, प्रियांश होश में आ गया है और अपने बैग के लिए रो रहा है।”

प्रिया ने घड़ी को वापस डिब्बे में रखा और बैग बंद किया।
आईसीयू में पहुंची।
प्रियांश बेड पर बैठा था, “डॉक्टर अंकल, मेरा बैग कहां है? मुझे अपने पापा से बात करनी है।”
डॉक्टर ने प्रिया की तरफ देखा जैसे कह रहा हो—अब बच्चे को सच्चाई बताना होगी।

प्रिया ने बैग दिया।
प्रियांश ने घड़ी निकाली, “देखो आंटी, मेरे पापा की घड़ी अब भी चल रही है। इसका मतलब है कि वह मेरे साथ हैं।”
प्रिया की आंखों में आंसू थे।
“बेटा, तुम्हारे पापा बहुत प्यार करते हैं तुमसे।”
“हां आंटी, और यह घड़ी इसका सबूत है। जब भी मैं डरता हूं तो यह और तेज चलने लगती है। जैसे पापा कह रहे हो—घबराओ मत, मैं हूं ना।”

चौथा भाग: पुलिस और एक बड़ा रहस्य

अचानक आईसीयू के दरवाजे पर दस्तक हुई।
पुलिस इंस्पेक्टर राघव अंदर आया।
“प्रिया, मैंने सुना है यहां प्रियांश राजपूत भर्ती है। मुझे उससे कुछ सवाल पूछने हैं।”

प्रिया ने कहा, “बच्चा अभी बीमार है, आप बाद में आ सकते हैं।”
राघव बोला, “यह बहुत जरूरी है। कल रात जो एक्सीडेंट हुआ था, वह कोई साधारण एक्सीडेंट नहीं था—यह हत्या है।”

राजेश राजपूत, प्रियांश के पापा, एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे। उन्होंने कंपनी के भ्रष्टाचार पकड़ा था। कंपनी के मालिक ने उन्हें मरवा दिया।

अब राघव को शक था—राजेश ने अपने बेटे को कुछ दिया या बताया हो, जो सबूत हो सकता है।

प्रिया को घड़ी का ख्याल आया।
राघव ने कहा, “हमें वह घड़ी देखनी होगी। हो सकता है उसमें कोई सबूत छुपा हो।”
लेकिन प्रियांश से घड़ी लेना आसान नहीं था।

पांचवा भाग: जादुई घड़ी का सच

राघव ने प्रियांश से घड़ी मांगी।
प्रियांश रोने लगा, “यह मेरे पापा ने दी है। इसे कभी किसी को मत देना।”
प्रिया ने समझाया, “अगर इंस्पेक्टर अंकल को घड़ी दिखाओगे तो वह तुम्हारे पापा को जल्दी ढूंढ कर ले आएंगे।”

प्रियांश ने हिचकिचाहट के साथ घड़ी राघव को दे दी।
राघव ने घड़ी को ध्यान से देखा।
पीछे एक छोटा सा बटन था।
बटन दबाया—घड़ी का बैक कवर खुल गया।
अंदर से एक छोटी सी मेमोरी कार्ड निकली।

राघव ने कहा, “राजेश ने अपनी कंपनी के भ्रष्टाचार के सबूत इस मेमोरी कार्ड में छुपाए होंगे।”

प्रियांश बोला, “अंकल, मेरे पापा की घड़ी वापस कर दो।”
राघव ने घड़ी लौटा दी, लेकिन मेमोरी कार्ड अपने पास रख ली।
“बेटा, इससे हम तुम्हारे पापा के दुश्मनों को पकड़ सकेंगे।”

छठा भाग: सच्चाई का सामना

राघव ने कहा, “प्रिया जी, पहले हमें केस सुलझाना होगा। फिर बच्चे को संभालना है। अभी के लिए उसे खुश रखिए।”

रात के 2 बजे, प्रिया अकेली प्रियांश के पास बैठी थी।
बच्चा सो रहा था, घड़ी छाती से लगाए हुए।
अचानक प्रियांश की नींद खुली, “आंटी, मेरी घड़ी रुक गई है।”
प्रिया घबरा गई।
“आंटी, मेरे पापा को कुछ हुआ है।”
प्रिया ने उसे गले लगाकर रोना शुरू कर दिया।

“आंटी, आप क्यों रो रही हैं? सच बताइए, मेरे पापा को क्या हुआ है?”
प्रिया ने हिम्मत जुटाई, “बेटा, तुम्हारे पापा…”
प्रियांश ने समझ लिया, “आंटी, मेरे पापा मर गए हैं ना?”
हां बेटा।

प्रियांश ने घड़ी को कसकर पकड़ा, “लेकिन आंटी, घड़ी कहती थी कि पापा मेरे साथ हैं।”
“हां बेटा, तुम्हारे पापा हमेशा तुम्हारे दिल में रहेंगे। इस घड़ी में रहेंगे। तुम्हारी हर सांस में रहेंगे।”

सातवां भाग: उम्मीद और न्याय

प्रियांश ने घड़ी को गाल पर लगाया, “पापा, मुझे माफ कर देना। मैंने आपका राज दे दिया। लेकिन आपने कहा था ना कि यह घड़ी सबको बचाएगी।”

तभी घड़ी फिर से चलने लगी।
“देखो आंटी, पापा वापस आ गए। अब मुझे डरने की जरूरत नहीं।”

सुबह 6 बजे राघव का फोन आया, “मेमोरी कार्ड में बहुत बड़ा खजाना था। राजेश ने कंपनी के सारे काले कारनामे रिकॉर्ड किए थे। सभी अपराधी गिरफ्तार। प्रियांश का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उसके पापा एक हीरो थे।”

प्रिया ने कहा, “प्रियांश को सब पता चल गया है, लेकिन वह बहुत बहादुर है।”
राघव बोला, “वह अपने पापा का बेटा है, बहादुर तो होगा ही।”

अब प्रियांश की दादी आ रही थीं।
वह अकेला नहीं रहेगा।

अंतिम भाग: जादू, प्यार और नई शुरुआत

सिटी हॉस्पिटल की सुबह की किरणें आईसीयू की खिड़कियों से छनकर आ रही थीं।
प्रियांश अपनी घड़ी को कसकर पकड़कर सो रहा था।
प्रिया उसके पास बैठी थी।
राघव और साइबर सेल की टीम आई।
घड़ी का मेमोरी कार्ड फिर निकाला गया।
अब न्याय हो चुका था।

प्रियांश की दादी उसे गले से लगाती हैं, “बेटा, अब तुम्हें अकेले नहीं रहना पड़ेगा। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं।”
प्रियांश मुस्कुराता है, अपनी घड़ी को गले लगाता है।

राघव का कॉल आता है, “केस पूरा हो गया। अपराधी गिरफ्तार हैं। राजेश राजपूत के नाम पर न्याय हुआ। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि प्रियांश ने साबित कर दिया—मासूमियत और हिम्मत सबसे बड़ी ताकत है।”

प्रिया मुस्कुराती है, “अब यह बच्चा अपने पापा की याद के साथ सुरक्षित और खुश रहेगा।”

घड़ी अब सिर्फ समय नहीं, प्यार, याद और उम्मीद का प्रतीक बन चुकी थी।

अंत में, घड़ी की तस्वीर पर हल्की हलचल होती है।
प्रियांश देखता है—पापा की आंखों में मुस्कान है।
धीरे से आवाज आती है—”बेटा, हमेशा बहादुर रहो। हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं।”

सीख:
मासूमियत, विश्वास और सच्चाई की ताकत हर परिस्थिति को बदल सकती है।
प्यार की निशानी कभी खत्म नहीं होती।

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मिलते हैं एक नई कहानी में। जय हिंद।