सिमरन: एक साहसी एसडीएम की कहानी
शहर की गलियों में हल्की सी ठंडक थी। सुबह की धुंध अभी पूरी तरह छटी नहीं थी और सूरज की किरणें धीरे-धीरे कोहरे को चीर रही थीं। साधारण सलवार कमीज में लिपटी एक युवती, जिसका नाम सिमरन था, अपने सिर पर हल्का सा दुपट्टा लपेटे धीमे कदमों से बाजार की ओर बढ़ रही थी। सिमरन कोई साधारण लड़की नहीं थी; वह थी शहर की नई एसडीएम (सबस डिवीजनल मजिस्ट्रेट)। लेकिन आज वह अपने पद की आधिकारिक वर्दी और गाड़ी को पीछे छोड़कर एक आम नागरिक की तरह शहर का जायजा लेने निकली थी।
सिमरन का मकसद था शहर की सच्चाई को समझना, वो सच्चाई जो फाइलों में नहीं बल्कि गलियों, चौराहों और लोगों की बातों में छिपी होती है। उसने जानबूझकर मेकअप नहीं किया था और अपने बालों को एक साधारण सी चोटी में बांध रखा था। उसकी आंखें तेज थीं, जो हर छोटी बड़ी चीज को गौर से देख रही थीं।
बाजार में भीड़ थी। दुकानदार अपनी दुकानों के सामने सामान सजा रहे थे। तभी सिमरन ने देखा कि सड़क के किनारे एक चाय की दुकान पर कुछ लोग आपस में जोर-जोर से बात कर रहे थे। उसने चाय मांगकर बैठ गई और बातचीत में शामिल हो गई। चाय वाले ने बताया कि पुलिस वाले अब तो हद कर रहे हैं। रात को बाजार बंद होने के बाद दुकानदारों से हफ्ता वसूलने आते हैं। सिमरन की आंखों में एक चमक सी आई। उसने तय किया कि वह पूरे बाजार का चक्कर लगाएगी और खुद देखेगी कि यह सब कितना सच है।
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बाजार की एक तंग गली में पहुंची, जहां कुछ रेड़ी वाले अपनी ठेलियां सजा रहे थे। तभी उसकी नजर एक पुलिस जीप पर पड़ी। सिपाही रेड़ी वाले से पैसे मांग रहे थे। सिमरन ने चुपके से उस घटना का वीडियो बना लिया। रेड़ी वाला गिड़गिड़ा रहा था, लेकिन पुलिस वाले ने उसे धमकी दी। सिमरन का खून खौल उठा, लेकिन उसने खुद को रोका। वह जानती थी कि बिना पूरी जानकारी के कोई कदम उठाना ठीक नहीं होगा।
सिमरन ने पूरे दिन बाजार का दौरा किया और हर जगह उसे एक ही कहानी सुनाई दी। पुलिस की मनमानी और भ्रष्टाचार। उसने तय किया कि वह इस भ्रष्टाचार की जड़ तक जाएगी। रात को अपने कमरे में बैठकर उसने दिनभर की घटनाओं को एक डायरी में लिखने लगी। उसने अपने दोस्त अजय से मदद मांगी, जो पुलिस विभाग में इंस्पेक्टर था। अजय ने उसे भरोसा दिलाया कि वह उसकी मदद करेगा।
अगले दिन, सिमरन ने एक हल्के हरे रंग की सलवार कमीज पहनी और शहर के उन इलाकों में जाने का निर्णय लिया, जहां भ्रष्टाचार की शिकायतें सबसे ज्यादा थीं। उसने देखा कि यहां की सड़कों में गड्ढे थे और नालियां कचरे से भरी पड़ी थीं। लोगों के चेहरों पर उदासी थी। उन्होंने बताया कि पुलिस वाले और नगर निगम के लोग मिलकर उन्हें लूट रहे हैं। सिमरन ने सबूत इकट्ठा करने का फैसला किया।
एक दिन, सिमरन ने नगर निगम के एक क्लर्क से मुलाकात की, जो भ्रष्टाचार के तंत्र के अंदर की बातें जानता था। राकेश ने बताया कि यह सब एक बड़ा रैकेट है। इसमें सिर्फ पुलिस वाले नहीं, बल्कि नगर निगम के बड़े अफसर और कुछ ठेकेदार भी शामिल हैं। सिमरन ने राकेश से मदद मांगी और उसे फाइलों तक पहुंचाने का वादा किया।
सिमरन ने सबूत इकट्ठा करने के बाद एक योजना बनाई। उसने अजय और कुछ भरोसेमंद पुलिस वालों के साथ मिलकर किशन लाल और उसके साथियों को पकड़ने का निर्णय लिया। रात को बस अड्डे पर, जब किशन लाल और उसके साथी रेड़ी वालों से हफ्ता वसूल कर रहे थे, सिमरन ने उन्हें रंगे हाथ पकड़ लिया।
सिमरन ने अपनी मेहनत से भ्रष्टाचार के इस जाल को तोड़ दिया। कमिश्नर रमेश चंद्रा और अन्य बड़े अफसरों के खिलाफ जांच शुरू हुई। सिमरन ने अपनी डायरी में लिखा, “आज मैंने इस शहर को एक नई उम्मीद दी। भ्रष्टाचार का यह जाल टूट चुका है।”
इस तरह सिमरन ने साबित कर दिया कि सच्चाई और साहस के साथ खड़े रहकर हम किसी भी स्थिति का सामना कर सकते हैं। उसकी कहानी हर उस लड़की के लिए प्रेरणा है जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत रखती है। सिमरन ने अपने कर्तव्य को निभाया और यह दिखाया कि एक एसडीएम का असली मकसद लोगों के जीवन को बेहतर बनाना है।
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