गरीब रिक्शे वाले ने अमीर लड़की की मदद की थी, बदले में लड़की ने जो किया किसी ने सोचा नहीं था…

गरीब रिक्शे वाले की इंसानियत – एक अमीर बेटी, एक ईमानदार दिल और बदलती किस्मत

बरसात का मौसम था। आसमान में घने बादल छाए हुए थे, सड़कों पर कीचड़ और पानी भरा पड़ा था। इसी बीच शहर की सबसे बड़ी सड़क पर एक चमचमाती काली कार अचानक बंद हो गई। पीछे खड़े वाहन जोर-जोर से हॉर्न बजाने लगे। लोग बड़बड़ाने लगे – “अरे ये अमीर लोग भी बस गाड़ियाँ खरीद लेते हैं, चलाना नहीं आता।” भीड़ में से किसी ने चिल्लाया, “ओ मैडम, जल्दी गाड़ी हटाओ! रोड जाम है!”

कार के अंदर बैठी लड़की बार-बार चाबी घुमा रही थी, लेकिन इंजन बिल्कुल जवाब दे चुका था। उसका माथा पसीने से भीग गया। वह लड़की थी रिया – शहर के सबसे बड़े उद्योगपति की इकलौती बेटी। उसके लिए यह नजारा बिल्कुल नया था। ट्रैफिक, लोगों की चिल्लाहट और एक ऐसी समस्या जहां उसके लाखों की कार भी बेकार साबित हो रही थी।

रिया घबराकर मोबाइल निकालती है। ड्राइवर को कॉल करती है, लेकिन वह छुट्टी पर था और फोन स्विच ऑफ। सर्विस सेंटर को कॉल करना चाहती है, लेकिन नेटवर्क बार-बार कट रहा था। रिया की आंखों में पहली बार डर और असहायता झलकने लगी। चारों तरफ गाड़ियां खड़ी थीं, लोग घूर रहे थे, कुछ हंस रहे थे – लेकिन कोई भी आगे आकर उसकी मदद करने को तैयार नहीं था।

इसी वक्त सड़क के उस पार से एक पुराना जर्जर सा ई-रिक्शा धीरे-धीरे आता दिखा। उसने भीड़ को चीरते हुए गाड़ी के पास आकर रिक्शा रोका। वह कार के पास पहुंचा और खिड़की पर दस्तक दी। रिया ने थोड़ा रुखाई से खिड़की नीचे की और बोली, “हां, क्या बात है? बताओ।”

गोपाल ने शांत लेकिन दृढ़ आवाज में कहा, “मैडम, आपकी गाड़ी खराब हो गई है। रोड जाम पड़ा है और लोगों को निकलने में परेशानी हो रही है। आपकी गाड़ी को साइड करना पड़ेगा, धक्का देकर ही साइड लगेगी।” रिया ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, मन में सोचा – ये आदमी मदद के बहाने पैसे मांगेगा। लेकिन भीड़ की नजरें उस पर थीं, मजबूरी में सिर हिलाती है।

गोपाल ने पीछे जाकर कार को धक्का देना शुरू किया। उसके पैर कीचड़ में फिसल रहे थे, लेकिन चेहरे पर हार मानने का कोई भाव नहीं था। लोग तमाशा देख रहे थे, कोई मदद नहीं कर रहा था – बस अकेला यही गरीब रिक्शे वाला उस वक्त रिया की मदद के लिए अपनी जान लगा रहा था। धीरे-धीरे कार खिसकने लगी, गोपाल ने और जोर लगाया, उसकी नसें फूल गईं, सांसें तेज हो गईं – लेकिन उसने तब तक नहीं छोड़ा जब तक कार साइड में नहीं लग गई।

रिया ने चैन की सांस ली। पर्स खोला और 500 के दो नोट निकालकर खिड़की से बाहर बढ़ाए, “यह लो, तुमने जो मेरी मदद की है उसके पैसे।” गोपाल ने उसकी ओर देखा, हाथ पीछे कर लिया और गहरी आवाज में कहा, “मैडम, पैसे उस काम के होते हैं जो पैसों के लिए किया जाए। मैंने तो इंसानियत के लिए हाथ बढ़ाया है और इंसानियत का कभी दाम नहीं लगाया जाता।” इतना कहकर उसने अपना गमछा कंधे पर डाला और वापस अपने रिक्शे की ओर बढ़ गया।

रिया के हाथ में नोट वैसे ही रह गए। उसका दिल धक-धक करने लगा। उसने पहली बार महसूस किया कि इस शहर की भीड़ में कोई ऐसा भी है जिसे पैसे से खरीदा नहीं जा सकता। वह खिड़की से बाहर झांकती रही, बारिश में भीगते जाते हुए उस आदमी को देखती रही। उसके शब्द, उसकी इंसानियत और खुद्दारी उसकी स्मृतियों में गहराई तक उतर गई। भीड़ छूट गई, ट्रैफिक फिर चल पड़ा – लेकिन रिया का मन वहीं अटक गया।

उसे अंदाजा भी नहीं था कि यह मुलाकात उसकी जिंदगी की दिशा बदलने वाली है।

कुछ दिनों बाद रिया को ऑफिस की एक अर्जेंट मीटिंग में जाना था। लेट होने का मतलब था कंपनी के बड़े क्लाइंट्स का भरोसा टूटना, करोड़ों की डील का हाथ से निकल जाना और उसके पिता की साख पर सवाल। लेकिन ड्राइवर अभी तक नहीं पहुंचा था। उसने तय किया – ड्राइवर का ज्यादा वेट करना ठीक नहीं, पास से गुजरते किसी रिक्शे में ही बैठ जाएगी।