एक बुजुर्ग शोरूम मे फरचूनर खरीदने गया तो मनेजर ने गरीब समझकर धके मारकर निकाला फिर जो हुवा…

भगवत मेहता की कहानी – असली अमीरी की पहचान

सुबह के ठीक 10:00 बजे का समय था। शहर की बड़ी-बड़ी दुकानें खुल चुकी थीं, शोरूम सज चुके थे और गलियों में चहल-पहल लौट आई थी। शहर के सबसे बड़े कार शोरूम में उसी वक्त एक बुजुर्ग आदमी दाखिल हुआ। साधारण कपड़े, पैरों में घिसी हुई चप्पल और हाथ में छोटा सा कपड़े का बैग। चेहरे पर सादगी और आंखों में सीधी-सादी चमक। जैसे ही वह अंदर आया, वहां मौजूद खरीदार और काम करने वाले लड़के अलग नजरों से उसे देखने लगे। किसी की नजर में आश्चर्य था, किसी की नजर में हल्की हंसी। इतने चमक-दमक वाले माहौल में वह सीधा-साधा आदमी अलग ही दिख रहा था। पर बुजुर्ग आदमी बिना किसी झिझक के आगे बढ़ता गया। उसकी चाल में आत्मविश्वास था। नाम था भगवत मेहता।

एक हाथ में पतली बांस की लाठी, दूसरे हाथ में छोटा सा बैग। भगवत मेहता काउंटर की ओर बढ़े, जहां सभी ग्राहक खड़े थे। काउंटर को एक औरत संभाल रही थी, जिसका नाम था ममता। अब शोरूम में उपस्थित सभी लोगों की नजर भगवत मेहता पर बनी हुई थी। छोटी-छोटी कदम बढ़ाते हुए वे काउंटर पर खड़ी ममता के पास पहुंचे और विनम्र भाव में बोले, “बेटी, मैं कुछ पैसा लाया हूं। अब चला नहीं जाता है, इसलिए फॉर्च्यूनर खरीदने आया हूं।” और जैसे ही उन्होंने अपने बैग में हाथ डालकर पैसे निकालने की कोशिश की, ममता ने उनके चेहरे और कपड़ों को देखकर परखते हुए कहा, “दादा, आप कहीं गलत तो जगह नहीं आ गए हैं? मुझे नहीं लगता आपकी बस की बात है ये Fortuner खरीदना, क्योंकि बड़े-बड़े अमीर भी इसे नहीं खरीद पाते।”

भगवत मेहता बड़े सीधे-साधे अंदाज में बोले, “बेटी, एक बार पैसे तो देख लो। थोड़ा कैश है, थोड़ा ऑनलाइन दे दूंगा, कार्ड भी साथ लाया हूं।” लेकिन ममता ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और अपने काम में लग गई। यह देखकर बुजुर्ग आदमी प्यार से बोले, “बेटी, मुझे मैनेजर से मिलना है, उनसे कुछ बात करनी है।” इस बार ममता की आवाज थोड़ी कठोर हो गई, “आप उधर जाकर बैठ जाइए, थोड़ा इंतजार कीजिए, मुझे अभी परेशान मत कीजिए।” फिर वह बाकी ग्राहकों से बातचीत में लग गई।

भगवत मेहता चुपचाप वहीं खड़े होकर इंतजार करने लगे। कुछ देर बाद वे फिर से ममता के पास आए और धीमी सरल आवाज में बोले, “बेटी, अगर तुम व्यस्त हो तो मैनेजर को फोन मिलाओ, मुझे उनसे ही बात करनी है। वे मुझे समझ जाएंगे।” ना चाहते हुए भी ममता ने फोन उठाया और मैनेजर अश्विनी शुक्ला का नंबर डायल किया। उस वक्त मैनेजर अपनी केबिन में थे। ममता ने उन्हें सब हाल बता दिया। शोरूम के अंदर हलचल थी। उसी बीच भगवत मेहता धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए आए। उनकी हुलिया बहुत साधारण और गरीब जैसी लग रही थी। दूर से ही मैनेजर अश्विनी ने उन्हें देख लिया।

“यह गाड़ी खरीदने वाले लगते हैं क्या या ऐसे ही कोई चला आया है?” मैनेजर ने फोन पर ममता से पूछा। “सर, ये तो आपसे मिलने की बात कर रहे हैं, बाकी मुझे नहीं पता,” ममता बोली। मैनेजर ने हंसते हुए कहा, “ऐसे लोगों के लिए मेरे पास समय नहीं है। इन्हें कोने में बैठा दो, दो-चार घंटे बैठेंगे फिर अपने आप चले जाएंगे। मैं अपना टाइम क्यों बर्बाद करूं?”

ममता ने वैसा ही किया। भगवत मेहता चुपचाप सिर हिलाते हुए कोने की तरफ बढ़े और एक पुरानी बेंच पर जाकर बैठ गए। उनका चेहरा शांत था, लेकिन आंखों में गहराई छिपी थी। सभी लोग अभी भी भगवत मेहता की तरफ देख रहे थे, क्योंकि वहां जितने भी ग्राहक आते थे, वे सूट-बूट में होते थे, जबकि भगवत जी ने साधारण पुराने कपड़े पहन रखे थे। देखने से भी नहीं लग रहा था कि वह बुजुर्ग गाड़ी का एक टायर भी खरीद पाएगा। सभी लोग उनका मजाक उड़ा रहे थे, लेकिन भगवत मेहता जी इन सभी बातों को अनसुना करते रहे और मैनेजर का आने का इंतजार करते रहे।

सूरज की संवेदनशीलता

इसी शोरूम में एक लड़का काम करता था, जिसका नाम सूरज था। वह एक बिल्कुल साधारण परिवार से था, गांव का बेटा, जिसके पिता किसान थे और मां सीधी-साधी गृहिणी। पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन घर की आर्थिक हालत ठीक न होने के कारण पढ़ाई अधूरी छोड़कर नौकरी पकड़नी पड़ी और यह नौकरी उसे एक कार शोरूम में मिली थी। उसका काम बहुत साधारण था—कभी ग्राहक को पानी देना, कभी गाड़ियों की धूल झाड़ना, कभी किसी को गाड़ी के फीचर बताना, तो कभी टेस्ट ड्राइव के लिए ले जाना। उसे ज्यादा वेतन भी नहीं मिलता था, लेकिन वह अपने काम से खुश था। सूरज की सबसे बड़ी खासियत उसका स्वभाव था। वह चाहे बूढ़ा हो, बच्चा हो या अमीर-गरीब, हर किसी से सम्मान से बात करता। उसे अपने घर की गरीबी याद थी, पिता की फटी धोती और मां की पैबंद लगी साड़ी याद थी। वह जानता था कि इंसान की पहचान कपड़ों से नहीं, दिल से होती है।

सूरज किसी जरूरी काम से बाहर गया हुआ था। जैसे ही वह शोरूम के अंदर लौटा, उसने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति कोने में कुर्सी पर चुपचाप बैठा हुआ है और पूरे हॉल में मौजूद लोग उसी की तरफ देख रहे हैं, तरह-तरह की बातें बना रहे हैं। कोई उसे भिखारी कह रहा था, कोई मजाक उड़ाते हुए बोल रहा था कि इसका दिमाग सही नहीं है, कोई कह रहा था कि ऐसे लोगों को शोरूम में घुसने ही क्यों देते हैं? यह सब सुनकर सूरज का दिल भारी हो गया। वह बिना देर किए सीधे उस बुजुर्ग के पास पहुंचा, झुककर बड़े आदर से बोला, “बाबा, आप यहां क्यों आए हो? आपको क्या काम है?”

बुजुर्ग ने धीरे से कहा, “बेटा, मुझे मैनेजर से मिलना है, कुछ जरूरी बात करनी है।” सूरज ने मुस्कुराकर कहा, “ठीक है बाबा, आप यहीं आराम से बैठिए, मैं अभी मैनेजर से बात करके आता हूं।” इतना कहकर सूरज फौरन मैनेजर के केबिन की तरफ बढ़ गया और उन्हें उस बुजुर्ग व्यक्ति के बारे में बताया। लेकिन मैनेजर अश्विनी पहले से ही उस बुजुर्ग व्यक्ति के बारे में जानता था, “मुझे पता है, मैंने ही उसे वहां बिठा रखा है। थोड़ी देर बैठेगा, फिर अपने आप चला जाएगा। तुम अपना काम करो।”

अपमान और इंतजार

धीरे-धीरे उस बुजुर्ग को वहां बैठे हुए लगभग तीन घंटे हो गए। तीन घंटे तक बुजुर्ग व्यक्ति अपना धैर्य रखते हैं, लेकिन उसके बाद उन्हें यह बात सहन नहीं होती। वे खड़े होते हैं और मैनेजर अश्विनी के केबिन की तरफ बढ़ने लगते हैं। जैसे ही वह मैनेजर के केबिन की तरफ बढ़ते हैं, मैनेजर देखता है कि वह बुजुर्ग व्यक्ति उसके पास ही आ रहा है, तो वह फौरन अपने केबिन से बाहर निकलता है और अकड़ते हुए पूछने लगता है, “हां बाबा, बताइए, आपको क्या काम है?”

भगवत जी कहते हैं, “मुझे Fortuner गाड़ी लेनी है। आप मुझे Fortuner दिला दो।” उन्होंने छोटे से बैग को आगे बढ़ाते हुए कहा, “बेटा, ये देखो, मेरे नामांकन की डिटेल इसके अंदर है।” मैनेजर अश्विनी हंसते हुए कहता है, “बाबा, सालों का अनुभव है, आप जैसे लोगों की शक्ल देखकर मैं बता देता हूं कि कौन गाड़ी खरीद सकता है और कौन नहीं। आपके कंगाली के अलावा तो मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा, अब आप यहां से चले जाइए।”

भगवत मेहता कहते हैं, “ठीक है बेटा, मैं जा रहा हूं, लेकिन तूने मेरे साथ ठीक नहीं किया। इसके लिए तुम्हें बहुत पछताना पड़ेगा।” और वे गाड़ी शोरूम के मुख्य द्वार से बाहर निकल गए।

सच्चाई का खुलासा

दूसरे दिन ठीक सुबह 11:00 बजे एक चमचमाती गाड़ी शोरूम के सामने आकर रुकी। आगे के दरवाजे से दो सिक्योरिटी गार्ड निकले। एक सिक्योरिटी गार्ड ने पीछे का दरवाजा खोला। अंदर से एक सूट-बूट पहने, हाथों में काला ब्रिफकेस लिए बुजुर्ग आदमी निकला, जो अपनी आंखों पर काला चश्मा पहने हुए था। जैसे ही बुजुर्ग शोरूम के अंदर आता है, सब अचंभित हो जाते हैं। वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि कल शोरूम में आया भगवत मेहता था। अंदर आने के बाद वह मैनेजर अश्विनी को अपनी तरफ आने का इशारा करते हैं। मैनेजर डरते हुए उनके सामने आकर खड़ा हो जाता है।

भगवत मेहता जी मैनेजर अश्विनी से कहते हैं, “मैनेजर साहब, मैंने आपसे कहा था ना कि यह बात आपको बहुत भारी पड़ेगी। आपने जो कुछ भी कल मेरे साथ किया था, वह बिल्कुल भी बर्दाश्त के लायक नहीं है। अब आप अपनी सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाइए।”

अश्विनी सोचता है कि भला ये क्या कर सकते हैं? तभी भगवत मेहता जी अपने काले ब्रिफकेस से शोरूम के मालिकाना दस्तावेज निकालकर अश्विनी को दे देते हैं। अश्विनी शुक्ला जब पढ़ता है तो उसके होश उड़ जाते हैं। दरअसल, वह बुजुर्ग व्यक्ति कोई और नहीं, उसी शोरूम का असली मालिक था। उसकी ऐसी हजारों शोरूम देश-विदेश में थीं। इस शोरूम में वह पहली बार देखने के लिए आया था कि कर्मचारी कैसे काम कर रहे हैं और लोगों के साथ उनका व्यवहार कैसा है।

अब बुजुर्ग मालिक अश्विनी से कहते हैं, “मैं चाहूं तो तुम्हें हटा भी सकता हूं और किसी और को तुम्हारी जगह लगा भी सकता हूं।” यह सुनकर शोरूम के सभी कर्मचारी और ग्राहक हैरान रह जाते हैं। सिक्योरिटी गार्ड भगवत मेहता जी के ब्रिफकेस से सूरज की पदोन्नति का लेटर निकालता है—उसे शोरूम का नया मैनेजर बना दिया जाता है। वहीं अश्विनी को फील्ड का काम दिया जाता है, मैनेजर पद से हटा दिया जाता है।

सबक और बदलाव

अश्विनी के पसीने छूटने लगते हैं और वह माफी मांगने लगता है। भगवत मेहता जी कहते हैं, “माफी किस बात की मांग रहे हो? और मैं किस वजह से तुम्हें माफ कर दूं? तुमने मेरे साथ जो व्यवहार किया, वह हमारे शोरूम की पॉलिसी के खिलाफ है। क्या तुमने कभी भी इस शोरूम की पॉलिसी नहीं पढ़ी? यहां पर गरीब और अमीर में कोई फर्क नहीं किया जाएगा और सभी को एक ही पलड़े में तोला जाएगा।”

भगवत मेहता जी ममता को भी बुलाते हैं और उसे भी फटकार लगाते हैं, “मैं पहली गलती समझकर तुम्हें माफ कर रहा हूं, लेकिन आगे से किसी भी ग्राहक को उसके कपड़ों से जज नहीं करना है। अगर तुम मुझे पहले ही समझ लेती तो मुझे अपमान का सामना नहीं करना पड़ता।”

ममता हाथ जोड़कर माफी मांगती है। भगवत मेहता जी वहां से सिक्योरिटी गार्ड के साथ वापस जाने लगते हैं और सभी लोगों से कहते हैं, “सूरज से बहुत कुछ तुम्हें सीखने की जरूरत है। तुम्हारे लिए अच्छा होगा। मैं बीच-बीच में यहां किसी न किसी को भेजता रहूंगा, जो तुम्हारी हरकतों की रिपोर्ट देगा।”

अंत में

भगवत मेहता जी का यह कारनामा चारों तरफ फैल गया। लोग कहने लगे, “मालिक हो तो ऐसा हो वरना बेशक से ना हो।” पूरा शोरूम सुधर गया और सभी कर्मचारी अब हर ग्राहक का सम्मान करने लगे। भगवत मेहता जी ने अपने मालिक होने का असली कर्तव्य निभाया और सबको सबक सिखाया कि इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, बल्कि उसके दिल और व्यवहार से होती है।

सीख:
किसी को उसके पहनावे या हालात से जज मत करो, असली अमीरी दिल में होती है।
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समाप्त