गरीब लड़की रोज होटल जाकर बचा हुआ खाना मांगती थी, फिर मालिक ने जो किया…
शीर्षक: एक इंसानियत की मिसाल – पूजा की कहानी
शहर के बड़े होटल के बाहर, चमचमाती गाड़ियों की भीड़ के बीच, एक कोने में रोज एक छोटी बच्ची खड़ी होती थी। नाम था पूजा। उम्र सिर्फ दस साल, लेकिन आंखों में भूख और मजबूरी की गहरी छाया। फटे कपड़े, बिखरे बाल, पैरों में चप्पल भी नहीं। उसके जीवन में सिर्फ एक ही चाह थी – पेट भर खाना।
हर दिन पूजा होटल के गेट पर खड़ी होकर हाथ जोड़ती, “भैया, थोड़ा बचा खाना दे दो। भूख लगी है।” लेकिन जवाब मिलता, “जा, कचरे में देख, वहीं से उठा ले।” कभी-कभी कर्मचारी गुस्से में उसे धक्का देकर फुटपाथ पर गिरा देते। उसके छोटे से पैर लड़खड़ाते, आंखों से आंसू छलक पड़ते, लेकिन भूख इतनी तेज थी कि आंसू भी उसे रोक नहीं पाते।
पूजा का परिवार बेहद गरीब था। पिता दिहाड़ी मजदूरी करते थे, लेकिन एक हादसे में उनकी मौत हो गई। मां सिलाई का काम करती थी, पर लगातार बीमार रहने लगी। घर का गुजारा मुश्किल हो गया। पूजा सबसे बड़ी थी, लेकिन खुद भी बच्ची थी। उसके छोटे भाई-बहन हर रोज रोते रहते, “दीदी, भूख लगी है।” मां आंखों में आंसू भरकर कहती, “बेटा, भगवान सब ठीक करेगा।” लेकिन भगवान शायद कहीं और व्यस्त था।
पूजा ने देखा कि होटल से बचा खाना फेंक दिया जाता है – कभी रोटी, कभी बिरयानी, कभी छोले कुलचे। भूख से तड़पती पूजा कचरे के पास जाने लगी। शुरुआत में उसे बचा खाना मिल जाता, लेकिन धीरे-धीरे कर्मचारियों को उसकी आदत चुभने लगी। “रोज क्यों आती है? भिखारण कहीं की।” एक दिन जब पूजा ने हाथ फैलाया तो एक कर्मचारी ने उसकी थाली छीन ली और बोला, “फ्री का खाने का शौक है तो झूठे बर्तन धो तभी मिलेगा।”
अब पूजा के नन्हे हाथ झूठे बर्तनों में डूब जाते – चिकन की हड्डियां, पिज्जा के टुकड़े, गंदगी। वह बर्तन साफ करती, फिर वही बचे टुकड़े खा लेती। यही उसकी रोज की जिंदगी बन गई थी – सिर्फ पेट भरने के लिए अपना बचपन खो रही थी।
किस्मत का मोड़
एक दिन होटल के सामने एक बड़ी गाड़ी आकर रुकी। गाड़ी से उतरे आमिर मलिक – शहर के मशहूर बिजनेसमैन और इसी होटल के मालिक। कर्मचारी तुरंत लाइन में खड़े हो गए, “नमस्ते मालिक, आइए आइए।” आमिर अंदर जा रहे थे कि उनकी नजर एक कोने में पूजा पर पड़ी। वह गंदे पानी से बर्तन धो रही थी और आधी जली रोटी खा रही थी।
आमिर रुक गए, “यह बच्ची कौन है? यहां क्यों काम कर रही है?” कर्मचारी घबरा गए, “साहब, यह रोज खाना मांगने आती थी, तो हमने इसे काम पर रख लिया।” आमिर की आंखों में गुस्सा भर गया, “तुम लोगों को शर्म नहीं आती? इतनी छोटी बच्ची से काम करवा रहे हो? होटल है या नरकखाना?”
पूजा डर के मारे बोली, “साहब, मेरी गलती नहीं। मुझे भूख लगी थी। मैं काम करके खाना खाती हूं।” आमिर झुककर उसके पास गए, उसका सिर सहलाया, “बेटी, अब तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा। तुम्हें भूखा नहीं रहना पड़ेगा।”
पूजा की आंखें चौड़ी हो गई, “क्या सच?” आमिर बोले, “हां, आज से तुम मेरे साथ चलोगी।”
कार में बैठते समय आमिर का दिमाग कई साल पीछे चला गया। वह खुद भी कभी गरीब था, फुटपाथ पर सोया था, भूख झेली थी। लेकिन एक अच्छे आदमी ने उसकी मदद की थी, स्कूल भेजा था। आज वही आमिर करोड़पति था। वह सोच रहा था, “अगर मुझे किसी ने मदद की थी, तो अब बारी मेरी है।”
आमिर पूजा को अपने घर ले आए। बड़ा बंगला, रंग बिरंगे पर्दे, चमकते झूमर। पूजा सहम गई, “इतना बड़ा घर, मैं यहां कैसे?” आमिर की पत्नी ने प्यार से कहा, “बेटी, अब यह तुम्हारा घर है।” उस शाम पूजा को गरमगरम खाना मिला – पूरी प्लेट में दाल, सब्जी, चावल, मिठाई। उसने आंसुओं से भरी आंखों से प्लेट उठाई और धीरे-धीरे खाने लगी।
नई शुरुआत
अगले दिन आमिर होटल पहुंचे और सभी कर्मचारियों को बुलाया, “आज से इस होटल में कोई भी भूखा नहीं जाएगा। अगर कोई गरीब खाना मांगेगा तो उसे मुफ्त में मिलेगा। और अगर किसी ने उन्हें धक्का मारा तो नौकरी से बाहर।” कर्मचारियों के चेहरे उतर गए, लेकिन लोगों ने तालियां बजाईं।
पूजा अब आमिर की बेटी जैसी बन गई। वह स्कूल जाने लगी, किताबें मिलीं, नए कपड़े मिले। उसकी मां का इलाज भी आमिर ने करवाया। सालों बाद पूजा डॉक्टर बनी। एक इंटरव्यू में जब पूछा गया, “तुम्हारी सफलता का राज क्या है?” पूजा मुस्कुराकर बोली, “एक आदमी की इंसानियत। अगर उसने मुझे होटल से उठाकर घर नहीं लाया होता तो शायद मैं आज जिंदा भी नहीं होती।” उसने आमिर मलिक का नाम लिया। लोगों की आंखें भर आईं।
सीख
यह कहानी सिखाती है कि भूख सिर्फ पेट की नहीं होती, कभी-कभी इंसानियत की भी होती है। एक छोटी बच्ची की भूख ने एक बड़े आदमी की इंसानियत को जगा दिया। और यही इंसानियत किसी की जिंदगी बदल सकती है। अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो इसे जरूर शेयर करें। इंसानियत की लौ हर दिल में जलनी चाहिए।
समाप्त
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