Dharmendra’s will was revealed on the second day of his death.
कहानी: धर्मेंद्र की वसीहत और परिवार की सच्चाई
प्रारंभ
दोस्तों, धर्मेंद्र को गए हुए अभी हफ्ते भी नहीं हुए हैं और उनके घर में जिस तरह का तनाव बना हुआ है, उसे देखकर हर कोई हैरान है। उनके जाने से पूरा फिल्मी दुनिया सदमे में था, लेकिन असली हलचल शुरू हुई अगले ही दिन जब उनके कमरे की अलमारी से एक सील बंद लिफाफा निकला, जिस पर साफ लिखा था “मेरी वसीहत, मेरे जाने के बाद खोलना।” बस दोस्तों, यहीं से कहानी की हवा एकदम बदल गई।
परिवार का माहौल
सनी देओल, बॉबी देओल, ईशा देओल, और अहाना देओल सब एक कमरे में मौजूद थे। माहौल इतना शांत था जैसे कोई आवाज भी करने से डर रहा हो। सभी की सांसें अटकी थीं और उस लिफाफे को खोलने का वक्त जैसे भारी पड़ रहा था। जब लिफाफा खोला गया, तो उसमें लिखी हर लाइन ने पूरे घर का माहौल बदल दिया। धर्मेंद्र ने अपने आखिरी दिनों में बहुत सोच-समझकर यह वसीहत लिखी थी।
उन्होंने साफ लिखा था कि “मेरे जाने के बाद परिवार में जरा भी फूट नहीं आनी चाहिए।” शायद यही डर था जो उन्हें इतने सालों से भीतर ही भीतर परेशान करता रहा। एक तरफ प्रकाश कौर का घर, जिसके साथ उन्होंने जिंदगी की शुरुआत की, और दूसरी तरफ हेमा मालिनी का घर, जिसे उन्होंने अपने दिल से अपनाया। लेकिन यह हमेशा एक संवेदनशील मुद्दा बना रहा।
वसीहत का खुलासा
जब वसीहत पढ़ी गई, तो सबसे पहला नाम उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर का था। धर्मेंद्र ने लिखा था कि “मेरी आधी संपत्ति प्रकाश और उनके बच्चों सनी, बॉबी, अजीता और विजेता के नाम रहेगी।” यह सुनते ही प्रकाश कौर के घर की तरफ हल्की सी राहत की सांस आई। उन्हें हमेशा डर था कि कहीं उनके बच्चों का हिस्सा कम न हो जाए।
लेकिन धर्मेंद्र ने साफ कहा था कि “यह मेरा पहला परिवार है और इनका हक सबसे पहले बनता है।” फिर असली झटका और भावुक करने वाला पल तब आया जब वसीहत की अगली लाइन पढ़ी गई, जिसमें लिखा था कि “मेरी बाकी आधी संपत्ति हेमा मालिनी और उनकी दोनों बेटियों ईशा और अहाना को दी जाए।” यह पढ़ते ही कमरे में मौजूद हर चेहरा बदल गया।
हेमा का भावुक पल
हेमा मालिनी की आंखें भर आईं। वह कुछ बोल भी नहीं पा रही थीं, क्योंकि उन्होंने कभी उम्मीद ही नहीं की थी कि धर्मेंद्र उन्हें और उनकी बेटियों को ऐसा सम्मान देंगे। उन्होंने कभी संपत्ति के लिए आगे नहीं आईं, कभी किसी से कुछ नहीं मांगा, धर्मेंद्र से भी नहीं। उन्होंने हमेशा दूरी बनाए रखी ताकि परिवार में कोई टकराव न हो।
धर्मेंद्र ने लिखा था, “हेमा ने मुझसे जिंदगी में कभी कुछ नहीं मांगा है। इसलिए जो भी दे रहा हूं, दिल से दे रहा हूं।” यह पढ़ते ही ईशा और अहाना अपनी मां के गले लग गईं। वह रो रही थीं क्योंकि वह जानती थीं कि उनकी मां ने कितनी चुपचाप सब कुछ सहा है और सबके बीच संतुलन बनाए रखा है।
सनी का संघर्ष
तभी सनी देओल की तरफ सबकी नजर गई। सनी हमेशा से इस बात को लेकर संवेदनशील थे कि उनके पापा ने दूसरी शादी की थी और उनकी मां प्रकाश कौर ने उस दौर में कितना दर्द झेला था। यही वजह थी कि सनी और हेमा के बीच दूरी हमेशा रही। लेकिन आज उस वसीहत में लिखा हर शब्द जैसे सनी को भी अंदर से हिला गया। उनके चेहरे पर मिलाजुला भाव था, दुख भी था, गुस्सा भी था, लेकिन एक बेटे का प्यार भी था।
धर्मेंद्र ने वसीहत में यह भी लिखा था कि “मेरे जाने के बाद दोनों घर एक होकर रहें। कोई झगड़ा न हो, कोई विवाद न हो। मैं नहीं चाहता कि मेरे बाद रिश्ते टूटें।” सनी ने यह पढ़कर बस सिर झुका लिया, क्योंकि अंदर ही अंदर वह भी जानते थे कि पापा की बात टालना आसान नहीं है। धर्मेंद्र हमेशा कहते थे कि “सम्मान सबसे बड़ा धर्म है” और दोनों परिवारों को बराबर का सम्मान देना ही सही रास्ता है।

हेमा की आवाज
उस वक्त हेमा मालिनी की आवाज कांपते हुए निकली, “मुझे कुछ नहीं चाहिए। मेरे पास जो है, वह काफी है। मुझे बस धर्म जी की यादें चाहिए।” यह सुनकर कमरे का माहौल और भी भावुक हो गया। क्योंकि हेमा सच में कभी संपत्ति को लेकर नहीं लड़ना चाहती थीं।
श्मशान घाट पर भी जब वह आखिरी बार धर्मेंद्र को देखने पहुंचीं, तो उनकी आंखें लाल थीं। चेहरा पूरी तरह भीग चुका था और लोग यही कह रहे थे कि हेमा के लिए यह सम्मान दौलत से कहीं ज्यादा बड़ा है।
धर्मेंद्र की संपत्ति
अगर हम उनके पूरे प्रॉपर्टी की बात करें तो आपको बता दें कि उन्होंने सिर्फ प्रॉपर्टी नहीं बनाई, बल्कि अपने लिए एक बहुत बड़ा एंपायर खड़ा किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, धर्मेंद्र की नेट वर्थ 335 करोड़ से लेकर 450 करोड़ के बीच मानी जाती है। यानी सैकड़ों करोड़ की दौलत जो सिर्फ एक्टर की फीस से नहीं आई, बल्कि समझदारी से किए गए इन्वेस्टमेंट से आई।
देओल परिवार की कुल दौलत की बात करें तो वह तो हजार करोड़ से भी ऊपर बताई जाती है। यानी एक पूरा फिल्मी परिवार जिसने कैमरे के सामने भी राज किया और कारोबार में भी अपनी पकड़ बनाए रखी।
जूहू का बंगला
देखा जाए तो उनका एक इकोनॉमिक साम्राज्य भी था, जो साल दर साल तैयार हुआ था। सबसे पहली और सबसे आइकॉनिक चीज थी मुंबई के जूहू में उनका बंगला। यह बंगला सिर्फ एक मकान नहीं, बल्कि बॉलीवुड के सुनहरे दौर की निशानी था। समंदर के किनारे बना यह घर कितने ही सालों से उनकी जिंदगी का केंद्र रहा।
शूटिंग के बाद वो यहीं लौटते, मेहमान यहीं आते, पार्टियां यहीं होतीं। नए फिल्मों की स्क्रिप्टें यहीं सुनी जातीं और बच्चों की हंसी भी इन्हीं दीवारों में गूंजी। इस बंगले की वैल्यू आज के वक्त में कितना करोड़ है? यह तो बाजार की हालत पर चलता रहता है। लेकिन इतना साफ है कि यह सिर्फ प्रॉपर्टी वैल्यू नहीं है, यह इमोशन की वैल्यू भी है।
वसीहत का महत्व
वसीहत में इस घर को लेकर भी बारीकी से सोचा गया था ताकि आगे चलकर किसी तरह का विवाद न हो। इसके अलावा, महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में उनकी और भी प्रॉपर्टीज की बात रिपोर्ट्स में आती है। कुछ शहरों में बने फ्लैट, कुछ जमीन के टुकड़े जिनकी वैल्यू 17 करोड़ से ज्यादा बताई जाती है।
यह सब सालों की कमाई से धीरे-धीरे खरीदा गया था। किसी साल हिट फिल्म से आई रकम से प्लॉट खरीदा गया। किसी साल प्रोडक्शन हाउस की कमाई से कोई और निवेश किया गया और धीरे-धीरे यह पूरा नेटवर्क तैयार हुआ।
धर्मेंद्र का बिजनेस
अब आते हैं उस चीज पर जिसने धर्मेंद्र को सिर्फ एक्टर नहीं बल्कि प्रोड्यूसर और समझदार बिजनेसमैन भी बना दिया, और वो है विजेता फिल्म्स। यह उनका अपना प्रोडक्शन हाउस था जिसे उन्होंने आठवें दशक की शुरुआत में खड़ा किया था। इस बैनर की पहली बड़ी फिल्म थी “बेताब,” जिसमें सनी देओल ने डेब्यू किया।
यह फिल्म जब चली तो सिर्फ बेटे का करियर नहीं बना, बल्कि प्रोडक्शन हाउस की नींव भी मजबूत हो गई। इसके बाद आया “घायल,” जिसने तो इतिहास बना दिया। यह फिल्म न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही, बल्कि इसे कई अवार्ड भी मिले।
परिवार की एकता
विजेता फिल्म्स के बैनर तले बाद में कई और भी फिल्में बनीं। हर फिल्म ने किसी ना किसी तरह इस फैमिली के नाम को आगे बढ़ाया। इसी के जरिए धर्मेंद्र ने अपने दोनों बेटों को आगे बढ़ाया। उन्हें प्रोडक्शन की जिम्मेदारी दी।
यहां से जो कमाई हुई, वह भी आगे चलकर अलग-अलग प्रॉपर्टीज और इन्वेस्टमेंट में लगी। कभी मुंबई की रियलस्टेट में, तो कभी जमीन में, तो कभी नए प्रोजेक्ट तैयार करने में।
निष्कर्ष
अब जरा सोचिए, जब इतना बड़ा एंपायर हो और घर के बड़े की तबीयत बिगड़ने लगे, तो उनके मन में सबसे बड़ा डर क्या होगा? यही ना कि “मेरे जाने के बाद कहीं मेरे अपने आपस में उलझ न जाएं।” शायद यही वजह थी कि उन्होंने वसीहत लिखते वक्त सिर्फ रकम और प्रॉपर्टी नहीं देखी।
उन्होंने दिल भी देखा। उन्होंने सोचा कि यह जूहू वाला बंगला किसके लिए कितना मायने रखता है। लोनावाला वाला फार्म हाउस किसके लिए कितनी यादों से भरा है। विजेता फिल्म्स की हिस्सेदारी किस तरह दोनों बेटों और पूरे परिवार के बीच संतुलित की जा सकती है।
धर्मेंद्र जी चले गए, लेकिन उनकी वसीहत ने यह साबित कर दिया कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में सिर्फ जोड़ने की कोशिश की है, तोड़ने की नहीं। उनकी वसीहत एक तरह से उनकी लाइफ के पूरे सफर का निचोड़ बन गई।
आपकी राय इस बारे में क्या है? क्या आपको लगता है कि धर्मेंद्र जी का फैसला सही था? क्या वसीहत में दिए गए हिस्से से परिवार में एकता बनी रहेगी? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर बताएं।
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