एक अनोखा चोर , पहले पैसे चोरी किये , फिर वापस भी रख गया , और छोड़ गया एक भावुक खत , पढ़कर सब हैरान

पूरी लंबी कहानी हिंदी में (फुल स्टोरी):

भोपाल के भारत नगर की पुरानी बस्ती में एक छोटा सा घर था, जिसमें आकाश अपनी मां विमला के साथ रहता था। आकाश एक होनहार छात्र था, जिसकी आंखों में बड़े-बड़े सपने थे, लेकिन गरीबी उसकी किस्मत में गहरी दरारें डाल चुकी थी। उसके पिता का कई साल पहले एक हादसे में देहांत हो गया था, और मां विमला दूसरों के घरों में काम करके जैसे-तैसे घर चलाती थीं। आकाश मैकेनिकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में था और पढ़ाई के साथ-साथ गैराज में पार्ट टाइम काम करता, ट्यूशन भी पढ़ाता, लेकिन हालात इतने खराब थे कि कई-कई रातें सिर्फ पानी पीकर सो जाता।

एक दिन मां की बीमारी और कॉलेज की फीस की आखिरी तारीख सिर पर आ गई। ₹5000 की फीस उसके लिए पहाड़ जैसी थी। उसने दोस्तों से उधार मांगा, बैंक से लोन लेने की कोशिश की, कॉलेज में मिन्नतें कीं, लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली। मां की तकलीफ और खुद की बेबसी ने उसे अंदर तक तोड़ दिया। उसी रात उसने मजबूरी में चोरी करने का फैसला किया। वह जानता था कि मिश्रा जी का घर शांत और सुरक्षित है, और वहां की स्टडी रूम की खिड़की खुली रहती है।

आधी रात को आकाश मिश्रा जी के घर पहुंचा, दीवार फांदकर स्टडी रूम की खिड़की से अंदर गया। कांपते हाथों से दराज खोली, और सिर्फ ₹5000 निकाले। बाकी पैसे नहीं छुए। वह चुपचाप बाहर निकल आया। अगले दिन मिश्रा जी को चोरी का पता चला, उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई, लेकिन मन ही मन जानते थे कि पैसे वापस मिलना मुश्किल है।

आकाश ने कॉलेज की फीस जमा की, परीक्षा दी, और शानदार नंबरों से टॉप किया। उसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी में नौकरी मिल गई। पहली तनख्वाह से मां का इलाज कराया, घर का कर्जा चुकाया, और एक अच्छा फ्लैट किराए पर ले लिया। मां खुश थी, लेकिन आकाश के अंदर अपराधबोध की आग जल रही थी। उसे हर रात मिश्रा जी का चेहरा, वो स्टडी रूम, वो दराज याद आती थी। उसे लगता था कि उसकी नई जिंदगी एक चोरी की नींव पर खड़ी है।

आकाश ने फैसला किया कि वह पैसे लौटाएगा। उसने अपनी तनख्वाह से ₹5000 अलग रखे, और ₹2000 अतिरिक्त शुक्रिया के लिए। छह महीने बाद एक सर्द रात को वह फिर मिश्रा जी के घर पहुंचा, उसी खिड़की से अंदर गया, तीसरी दराज में एक लिफाफा रखा जिसमें पैसे और एक भावुक खत था। उसने मन ही मन माफी मांगी और चुपचाप निकल गया।

अगली सुबह सरिता जी ने दराज खोली, लिफाफा देखा, मिश्रा जी को बुलाया। दोनों ने लिफाफा खोला, नोटों की गड्डी और खत देखा। खत में लिखा था:

“आदरणीय अंकल जी और आंटी जी,
मुझे माफ कर दीजिए। मैं वह बदनसीब चोर हूं जिसने 6 महीने पहले आपके घर से ₹5000 की चोरी की थी। मेरी मजबूरी थी, मां बीमार थी, फीस जमा नहीं होती तो सारी मेहनत बर्बाद हो जाती। आपके पैसों ने मेरी जिंदगी बचाई। आज नौकरी लग गई है, मां का इलाज चल रहा है। यह पैसे लौटाकर प्रायश्चित कर रहा हूं, साथ में ₹2000 शुक्रिया के तौर पर। कृपया मुझे खोजने की कोशिश मत कीजिएगा, वरना मेरी नौकरी, इज्जत सब कुछ चला जाएगा। यह मेरी पहली और आखिरी गलती है। बस अपने इस गुनहगार बेटे को माफ कर दीजिए।”

खत पढ़ते-पढ़ते मिश्रा जी और सरिता जी की आंखों से आंसू बहने लगे। सरिता जी ने कहा, “बड़ा ही अनोखा चोर है, चोरी भी की तो सिर्फ जरूरत भर की, और मौका मिला तो ब्याज समेत वापस भी कर गया।” मिश्रा जी ने कहा, “यह चोर नहीं है, बहुत अच्छा बच्चा है, जिसे हालात ने एक रात के लिए भटका दिया था। जिस इंसान के अंदर इतना जमीर जिंदा हो, वह कभी गलत नहीं हो सकता।”

उन्होंने पुलिस स्टेशन जाकर अपनी चोरी की रिपोर्ट वापस ले ली। उसके बाद दोनों अक्सर उस अनजान लड़के के लिए प्रार्थना करते, उन्हें लगता जैसे उनका एक और बेटा है, जो कहीं दूर अपनी जिंदगी में बहुत कामयाब हो रहा है।

यह कहानी हमें सिखाती है कि हर गुनाह के पीछे एक मजबूरी, एक कहानी होती है। आकाश ने गलती की, लेकिन अपनी गलती सुधारी, यही अच्छे इंसान की निशानी है। मिश्रा जी जैसे नेक दिल लोग सजा देने से ज्यादा माफ करने और दूसरा मौका देने में यकीन रखते हैं।

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