रीमा की कहानी: हिम्मत और इंसाफ की लड़ाई

दोपहर का वक्त था, सूरज की तपिश ने धरती को पिघलाने का मन बना लिया था। लोग अपने घरों में दुबके हुए थे, और जो बाहर निकले थे, उनके कदम तेज थे। इन्हीं गलियों में 16 साल की रीमा स्कूल से घर लौट रही थी। उसकी कलाई में पुरानी घड़ी थी और हाथ में बस्ता। आज उसके इम्तिहान खत्म हो गए थे, और वह हल्के मन से चल रही थी।

जैसे ही वह मुख्य सड़क पर पहुंची, अचानक एक पुलिस वाले ने उसका रास्ता रोक लिया। वह करीब 40 साल का था, भारी शरीर और कठोर चेहरे के साथ। उसकी आवाज ऊंची और सख्त थी। “ए लड़की, रुको! तुम गलत लेन से आ रही हो,” उसने कहा। रीमा का दिल धड़कने लगा। उसने डरते हुए कहा, “सर, मुझे नहीं पता था। मैं तो हमेशा इसी गली से आती हूं।” लेकिन पुलिस वाले का चेहरा कठोर बना रहा।

.

.

.

उसने धमकी दी, “अगर अभी पैसे नहीं निकाले, तो तुम्हारी इज्जत मिट्टी में मिला दूंगा।” रीमा का खून जम गया। उसने कहा, “सर, मैं तो बस एक छात्र हूं। मेरे पास पैसे नहीं हैं।” लेकिन पुलिस वाला मुस्कुराते हुए बोला, “देखो इसे, कानून तोड़ा और अब गलती मानने को तैयार नहीं।”

भीड़ इकट्ठा हो गई, लेकिन कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया। रीमा की आंखों में आंसू थे, और उसने आसमान की तरफ देखा, जैसे मदद की उम्मीद कर रही हो। तभी पुलिस वाले ने उसकी कलाई पकड़कर कस दिया और कहा, “गलती बस इतनी है कि तुम कमजोर हो।” यह शब्द रीमा के दिल को चीर गए।

अचानक, बूटों की भारी आहट सुनाई दी। कर्नल दीपक वर्मा, रीमा के पिता, वहां पहुंचे। उनके चेहरे पर गुस्से की लाली थी। जैसे ही उन्होंने अपनी बेटी को खंभे से लटका देखा, उनके कदम थम गए। “किसकी हिम्मत हुई कि मेरी बेटी को इस हाल में लटकाया?” उन्होंने दहाड़ते हुए पूछा।

पुलिस वाला घबराया, लेकिन अपनी अकड़ बनाए रखने के लिए बोला, “यह अनुशासन है।” दीपक वर्मा ने कहा, “यह जुल्म है और जुल्म बर्दाश्त नहीं होगा।” भीड़ में जोश उठने लगा। उन्होंने पुलिस वाले को धक्का देकर रीमा को रस्सी से मुक्त किया।

रीमा अपने पिता के गले लग गई और रोते हुए कहा, “पापा, मुझे बहुत डर लग रहा था।” दीपक ने कहा, “अब कोई तुम्हें हाथ नहीं लगा सकता। तुम सुरक्षित हो।” भीड़ ने ताली बजाई और इंसाफ की आवाजें उठने लगीं।

इस घटना के बाद, मामला अदालत में पहुंचा। जज ने पुलिस अफसर को कठोर सजा दी। “तुमने एक छात्रा को शारीरिक कष्ट दिया और उसकी इज्जत को रौंदा,” जज ने कहा। यह सुनकर पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।

रीमा ने कांपते हाथों से अपने पिता का हाथ पकड़ा और कहा, “यह सब आपकी हिम्मत की वजह से हुआ।” दीपक ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं, यह तुम्हारी सच्चाई और साहस की वजह से हुआ।”

धीरे-धीरे, रीमा की कहानी ने पूरे देश में एक आंदोलन का रूप ले लिया। लोग कहने लगे, “अगर एक आम छात्रा जुल्म के खिलाफ खड़ी हो सकती है, तो हम सब क्यों नहीं?” रीमा की हिम्मत ने साबित कर दिया कि सच की आवाज कभी दब नहीं सकती।

इस तरह, रीमा ने न केवल अपनी लड़ाई लड़ी, बल्कि दूसरी लड़कियों के लिए भी एक मिसाल कायम की। उसकी कहानी ने यह दिखा दिया कि अगर हिम्मत हो, तो हर आवाज बुलंद हो सकती है।