राजनेता बनते ही महिला ने दिया पति को धोखा,फिर पति पुलिस इन्स्पेक्टर बनकर आया फिर जो हुआ जानकर होश
सत्ता, मोहब्बत और इंसाफ की सच्ची जंग
क्या होता है जब सत्ता का नशा मोहब्बत और वफादारी के वादों को रौंद देता है? क्या होता है जब एक सीधी-सादी गृहिणी के सिर पर सियासत का ताज सज जाता है और वह अपने पति को मामूली प्यादा समझकर जिंदगी के बिसात से बाहर फेंक देती है?
यह कहानी है एक आदर्शवादी पति आदर्श की, जिसने अपनी पत्नी आरती के सपनों को पंख देने के लिए अपनी पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी। और एक ऐसी महत्वाकांक्षी पत्नी आरती की, जिसने सत्ता की पहली सीढ़ी पर कदम रखते ही अपने उसी पति को धोखा दे दिया जिसने उसे वहां तक पहुंचाया था। जब आदर्श ने अपनी आंखों के सामने अपनी दुनिया लूटते देखी, तो वह टूट गया। लेकिन किस्मत ने उसे सिर्फ एक हारा हुआ पति नहीं, कानून का ताकतवर सिपाही बना दिया। सालों बाद जब वह लौटा, तो अपनी बेवफा पत्नी और उसके नए साथी के भ्रष्टाचार के साम्राज्य की नींव हिला दी।
इलाहाबाद – गंगा-यमुना के संगम की पवित्र धरती, जहां एक पुरानी कॉलोनी अशोक नगर के छोटे से क्वार्टर में रहते थे आदर्श। वह सरकारी कॉलेज में इतिहास का लेक्चरर था। उसकी दुनिया उसकी किताबों, छात्रों और पत्नी आरती के इर्द-गिर्द थी।
आरती खूबसूरत, समझदार और महत्वाकांक्षी थी। वह सिर्फ गृहिणी बनकर नहीं रहना चाहती थी। उसकी आंखों में राजनीति का सपना था – सिस्टम बदलना, गरीबों की आवाज बनना। आदर्श ने उसकी पढ़ाई, लॉ कॉलेज में दाखिला, उसके लिए नोट्स बनाना, घर के काम करना – सब कुछ किया ताकि आरती अपने सपनों को पूरा कर सके।
आरती ने लॉ की पढ़ाई पूरी की, राजनीति में जुड़ी, भाषण देने की कला और आकर्षक पर्सनालिटी से पार्टी के नेताओं की नजरों में आ गई। आदर्श ने अपनी सारी बचत, ऊर्जा, समय उसकी सफलता में लगा दिया। उसने अपनी ख्वाहिशें, तरक्की सब कुछ आरती के सपनों के आगे कुर्बान कर दी।
कुछ साल बाद पार्टी ने आरती को विधानसभा चुनाव का टिकट दिया। आदर्श ने नौकरी से लंबी छुट्टी ली, प्रोविडेंट फंड तक निकाल लिया – अपनी पुरानी स्कूटर पर पोस्टर-बैनर लेकर वोट मांगता, रैलियों में दरी बिछाता, पानी का इंतजाम करता। उसने एक पति नहीं, गुमनाम कार्यकर्ता की तरह दिन-रात एक कर दिया।
परिश्रम रंग लाया, आरती भारी मतों से जीत गई – माननीय विधायक श्रीमती आरती देवी बन गई। आदर्श की आंखों में खुशी के आंसू थे, उसने गले लगाकर कहा – “मुझे तुम पर गर्व है, अब तुम उन लोगों के लिए काम करना जिन्होंने तुम पर भरोसा किया।”
लेकिन सत्ता की चमक ने आरती को बदल दिया। उसका उठना-बैठना अब बड़े अधिकारियों, उद्योगपतियों और नेताओं के साथ होने लगा। उसे लखनऊ में बड़ा सरकारी बंगला मिला, वह वहीं रहने लगी। आदर्श इलाहाबाद में ही था।
शुरुआत में सब ठीक था, फिर आरती का घर आना कम हुआ, फोन में प्यार की जगह बेरुखी आ गई। आदर्श को लगा राजनीति में ऐसा होता है, लेकिन सच्चाई कुछ और थी।
आरती की मुलाकात हुई राज्य के ताकतवर मंत्री प्रवीण सिंह से – भ्रष्टाचार और बाहुबल का सबसे बड़ा खिलाड़ी। प्रवीण सिंह आरती की खूबसूरती और महत्वाकांक्षा पर मोहित हो गया, उसे मंत्री बनाने का लालच दिया।
आरती सत्ता की भूखी थी, वह इस जाल में फंस गई। अब उसे आदर्शवादी पति शर्मिंदगी का कारण लगने लगा।
एक दिन आदर्श बिना बताए लखनऊ के बंगले पहुंचा, दरवाजे पर नेम प्लेट – ‘आरती सिंह’। अंदर देखा तो आरती प्रवीण सिंह की बाहों में थी। उसकी दुनिया, प्यार, विश्वास सब एक पल में चकनाचूर हो गया।
उस रात आरती ने साफ कहा, “आदर्श, मैं तुमसे तलाक चाहती हूं। हम दोनों की दुनिया अब अलग है। मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती। प्रवीण जी मुझसे शादी करना चाहते हैं, मंत्री बनाएंगे, वो सब देंगे जो तुम नहीं दे सकते।”
आदर्श पत्थर की तरह सुनता रहा। उसने बिना लड़ाई-झगड़े के तलाक के कागजों पर दस्तखत कर दिए।
अगले ही महीने आरती ने प्रवीण सिंह से शादी कर ली, उसे राज्य सरकार में मंत्रालय भी मिल गया।
आदर्श पूरी तरह टूट गया, नौकरी छोड़ दी, शहर छोड़ दिया, गुमनामी में खो गया।
समय बीता, 7 साल गुजर गए।
इन सात सालों में आरती और प्रवीण सिंह की जोड़ी राज्य की सबसे ताकतवर और भ्रष्ट जोड़ी बन गई। उन्होंने अपनी ताकत से हजारों करोड़ का साम्राज्य खड़ा कर लिया – सरकारी ठेकों में दलाली, जमीनों पर अवैध कब्जा, ट्रांसफर-पोस्टिंग का खेल, हर भ्रष्टाचार में उनका हाथ था। उन्हें लगता था कानून जेब में है, कोई छू नहीं सकता।
दूसरी तरफ आदर्श ने खुद को नई आग में तपाया। गहरे डिप्रेशन के बाद उसे एहसास हुआ – रोने से कुछ नहीं होगा। आरती ने सिर्फ उसे नहीं, लाखों लोगों के विश्वास को तोड़ा था।
उसका आदर्शवाद जाग उठा – उसने सिविल सर्विस की तैयारी शुरू की। दिन-रात पढ़ाई, मेहनत, यह सिर्फ नौकरी नहीं, स्वाभिमान और इंसाफ की जंग थी।
पहले ही प्रयास में यूपीएससी पास की, आईपीएस बना। ट्रेनिंग के बाद अलग-अलग जिलों में पोस्टिंग मिली। वह जहां भी गया, ईमानदारी, सख्ती, निडर कार्यशैली के लिए मशहूर हुआ। अपराधियों और भ्रष्ट नेताओं के लिए उसका नाम डर का दूसरा नाम बन गया।
किस्मत ने अपना सबसे बड़ा दांव खेला – 7 साल बाद आदर्श कुमार उसी जिले में इंस्पेक्टर बनकर लौटा, जहां आरती और प्रवीण सिंह भ्रष्टाचार का साम्राज्य चला रहे थे।
उसके आने से जिले के भ्रष्ट अधिकारियों-नेताओं में हड़कंप मच गया। आरती और प्रवीण सिंह ने खबर सुनी, लेकिन गंभीरता से नहीं लिया – उन्हें लगा आदर्श क्या बिगाड़ लेगा?
यह वह पुराना लेक्चरर आदर्श नहीं था, यह इंस्पेक्टर आदर्श कुमार था – कानून और इंसाफ का सिपाही।
आदर्श ने आते ही पुरानी फाइलें खुलवाई, आरती-प्रवीण सिंह से जुड़े घोटालों की जांच शुरू की। खुफिया टीम बनाई, सबूत जुटाए।
जांच में हजारों करोड़ के फंड का गबन, योजनाओं में धांधली, बेनामी संपत्तियों का खुलासा हुआ।
आरती-प्रवीण सिंह घबराए, राजनीतिक ताकत से आदर्श का ट्रांसफर करवाने, धमकाने, खरीदने की कोशिश की।
एक रात आरती खुद आदर्श से मिलने आई – आंसुओं, पुरानी मोहब्बत का वास्ता दिया, “मुझे माफ कर दो, केस बंद कर दो, हम तुम्हारी जिंदगी में दोबारा नहीं आएंगे।”
आदर्श ने शांत, ठंडी आवाज में कहा – “मैडम, यहां आपका पुराना पति नहीं, कानून का सिपाही बैठा है। आपके अपराध की सजा जरूर मिलेगी।”
आखिरकार महीनों की मेहनत के बाद आदर्श और टीम ने इतने मजबूत सबूत इकट्ठा कर लिए कि आरती और प्रवीण सिंह का बचना नामुमकिन था।
एक सुबह पुलिस के काफिले ने बंगला घेर लिया। इंस्पेक्टर आदर्श कुमार ने गिरफ्तारी वारंट के साथ दरवाजा तोड़ा –
“श्रीमती आरती सिंह और श्री प्रवीण सिंह, आपको भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और सरकारी संपत्ति के गबन के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है।”
आरती-प्रवीण सिंह के चेहरे का रंग उड़ गया, चीखते-चिल्लाते रहे, ताकत की धौंस दिखाते रहे।
पुलिस ने हथकड़ियां पहनाई। बाहर जाते हुए आरती ने आखिरी हारती नजर आदर्श को देखी – आंखों में नफरत, गुस्सा, पछतावा।
आदर्श ने बस इतना कहा – “कर्मों का हिसाब इसी जिंदगी में देना पड़ता है, कानून ने अपना काम किया।”
मुकदमा चला, सारे सबूतों के आधार पर अदालत ने आरती-प्रवीण सिंह को लंबी कैद की सजा सुनाई, सारी अवैध संपत्ति जब्त कर ली गई।
सत्ता के शिखर से वे दोनों सीधे जेल पहुंच गए।
आदर्श कुमार ने अपना फर्ज निभाया, उसके दिल में नफरत नहीं, सिर्फ इंसाफ का सुकून था।
सीख:
यह कहानी सिखाती है – सत्ता और दौलत का नशा इंसान को अंधा बना सकता है, लेकिन कानून और कर्म के हाथ बहुत लंबे होते हैं।
आरती ने धोखे और भ्रष्टाचार का रास्ता चुना, उसका अंत बर्बादी में हुआ। आदर्श ने सच्चाई और इंसाफ का रास्ता चुना – उसने ना सिर्फ अपना स्वाभिमान पाया, बल्कि समाज के सामने मिसाल कायम की।
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