“IPS Kiran Devi vs Minister Vijay Singh | थप्पड़ कांड जिसने हिला दिया सिस्टम

“एसडीएम किरण देवी – सच की जंग”

लखनऊ की तपती सड़कों पर पुलिस की गहमागहमी थी। ट्रैफिक सामान्य था, लेकिन अचानक सड़क किनारे एक महिला अधिकारी सबका ध्यान अपनी ओर खींच रही थी। यह थीं आईपीएस किरण देवी, जिनके चेहरे की चमक बाकी सभी दरोगाओं से अलग थी। उनकी फिट और कसी हुई यूनिफॉर्म अपने आप में संदेश दे रही थी – कानून यहां जिंदा है।

तभी दूर से इंजनों की गड़गड़ाहट और हॉर्न की आवाजें गूंजने लगीं। यह आम गाड़ी नहीं थी, बल्कि मंत्री विजय सिंह के बेटे राघव सिंह का काफिला था। काले शीशों वाली महंगी गाड़ियां, नशे में चूर दोस्त, चेहरों पर सत्ता का गुरूर। गाड़ियां इतनी रफ्तार से भाग रही थीं कि सड़क पर चलते लोगों की जान मुश्किल में पड़ गई। कई लोग डरकर किनारे भाग गए।

किरण देवी ने अपनी बाइक आगे बढ़ाकर रास्ता रोक दिया। तेज आवाज में आदेश दिया – “गाड़ी रोको!” राघव की गाड़ी चीखती हुई ब्रेक लगाकर कुछ इंच दूर रुकी। दरवाजा खुला, और बाहर निकला राघव – ऊंचा चौड़ा शरीर, महंगे कपड़े, चेहरे पर नशा और अहंकार। उसने भीड़ को घूरते हुए कहा, “कौन है जिसने मेरी गाड़ी रोकी?”

किरण देवी आगे बढ़ीं – “मैं हूं आईपीएस किरण देवी। तुमने सिग्नल तोड़ा है, लोगों की जान खतरे में डाली है। अब तुम्हारी गाड़ी सीज होगी।” भीड़ जमा हो रही थी, मोबाइल कैमरे ऑन थे, हर तरफ सन्नाटा। राघव जोर से हंसा – “पगली, तू जानती है मैं कौन हूं? मंत्री विजय सिंह का बेटा हूं। तू मेरी गाड़ी सीज करेगी? अपनी नौकरी खतरे में डाल दी है!”

मगर किरण ने ठंडी आवाज में कहा – “कानून सबके लिए बराबर है। चाहे तू मंत्री का बेटा हो या गरीब का।” भीड़ से वाह-वाह की आवाजें आईं। पहली बार कोई अधिकारी खुलेआम मंत्री के बेटे को रोक रहा था।

राघव का खून खौल गया। उसने गुस्से में आगे बढ़कर एक जोरदार थप्पड़ किरण देवी के चेहरे पर जड़ दिया। पल भर के लिए भीड़ हक्का-बक्का रह गई। कोई सोच नहीं सकता था कि मंत्री का बेटा बीच सड़क पर एक आईपीएस अधिकारी को थप्पड़ मार देगा। मगर किरण पीछे नहीं हटीं। चेहरे पर लालिमा थी, आंखों में आंधी। उन्होंने तुरंत राघव का कॉलर पकड़ा – “अब तू जेल जाएगा, इतनी आसानी से नहीं बचेगा।”

पुलिस वालों ने राघव को घेर लिया। राघव चिल्लाता रहा – “तुम नहीं जानती मैं कौन हूं। अभी तुम्हारी वर्दी उतरवाऊंगा। मेरे पापा आएंगे सब देख लेंगे।” किरण ने आदेश दिया – “हथकड़ी लगाओ इसे।” भीड़ तालियां बजाने लगी, वीडियो बनने लगे। राघव को पकड़कर थाने ले जाया गया। वह रास्ते भर गालियां देता रहा, धमकियां देता रहा, लेकिन किरण हर शब्द रिकॉर्ड कराती गई, ताकि बाद में कोई सबूत गुम न हो।

कुछ देर बाद थाने में फोन बजा – कमिश्नर थे। “किरण, क्या कर दिया तुमने? मंत्री के बेटे को गिरफ्तार कर लिया?” किरण ने सख्त आवाज में कहा – “सर, उसने कानून तोड़ा है, मेरे साथ बदतमीजी की है, थप्पड़ मारा है, मेरे पास सबूत हैं।”

कमिश्नर ने धीमी आवाज में कहा – “मंत्री विजय सिंह का फोन आया है, बहुत नाराज हैं, कह रहे हैं लड़के को छोड़ दो, वरना अंजाम बुरा होगा।” मगर किरण ने कहा – “सर, मैं दबाव में नहीं आ सकती। अगर आज इसे छोड़ दिया, तो कल कोई और अधिकारी सड़क पर बेइज्जत होगा।” कमिश्नर चुप हो गए। उन्हें पता था कि किरण सही है, लेकिन राजनीति का दबाव बहुत बड़ा होता है।

रात होने लगी। थाने के बाहर गाड़ियों का काफिला रुका। लाल बत्ती वाली गाड़ी से उतरे मंत्री विजय सिंह – सफेद कुर्ता-पायजामा, मोटा शरीर, चौड़ा सीना, चेहरे पर सत्ता का गुरूर। वे सीधे थाने में घुसे – “कहां है वह औरत जिसने मेरे बेटे को जेल में डाला?”

किरण सामने खड़ी थी – “मैं हूं। आपके बेटे ने कानून तोड़ा है, इसलिए वह अंदर है।”

मंत्री गरजे – “तुझे पता है तू किससे बात कर रही है? मैं मंत्री विजय सिंह हूं। तू मेरी इज्जत मिट्टी में मिला रही है।” मगर किरण अपनी जगह डटी रही। तभी मंत्री ने भी वही किया जो बेटे ने किया था – उन्होंने किरण के गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया। पूरा थाना दहल गया। पुलिसकर्मी सहम गए। मगर वहीं खड़ा कांस्टेबल राजीव चुपचाप वीडियो बना रहा था।

अब यह टकराव केवल मंत्री और महिला अधिकारी के बीच नहीं, पूरे सिस्टम और सच की लड़ाई में बदल चुका था। किरण देवी थप्पड़ खाकर भी डटी रहीं। उनके चेहरे पर गुस्सा, आवाज स्थिर – “मंत्री विजय सिंह को गिरफ्तार करो।” पूरा थाना कांप गया। किसी कांस्टेबल की हिम्मत नहीं थी कि मंत्री को छुए। मगर किरण ने खुद जाकर मंत्री का हाथ पकड़ लिया – “आप कानून से ऊपर नहीं हैं। चाहे आप मंत्री हों या प्रधानमंत्री। कानून सबके लिए बराबर है।” उन्होंने मंत्री को हिरासत में ले लिया।

भीड़ चिल्लाने लगी – “वाह मैडम वाह!” पहली बार किसी ने सत्ता के सामने ऐसी हिम्मत दिखाई। मंत्री गरजते रहे – “किरण, तुझे सस्पेंड करवाऊंगा, नौकरी से निकाल दूंगा।” मगर किरण ने ठंडे लहजे में कहा – “जो करना है कीजिए। कानून की किताब अब आपके लिए खुलेगी।”

कांस्टेबल ने वीडियो दिखाया। किरण ने आदेश दिया – “यह वीडियो सुरक्षित रखो। कंट्रोल रूम और मीडिया सेल को भेजो।” मंत्री और उनके बेटे दोनों को अलग-अलग लॉकअप में डाल दिया गया।

रात गहराती गई। पूरे थाने में सन्नाटा था। लेकिन हर पुलिसकर्मी के दिल में डर और गर्व दोनों थे, क्योंकि पहली बार देखा था कि कोई अधिकारी राजनीति की धौंस को नजरअंदाज करके सीधा कार्रवाई कर रहा है।

सुबह होते ही खबर मीडिया तक पहुंच गई। सबसे पहले लोकल चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ चली – “लखनऊ में मंत्री के बेटे और मंत्री दोनों को महिला आईपीएस ने जेल में डाल दिया।” देखते ही देखते खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। मंत्री समर्थक भड़क उठे, थाने के बाहर नारेबाजी, धमकियां, सरकार पर दबाव – किरण देवी को तुरंत निलंबित किया जाए। मगर किरण ने परवाह नहीं की। एफआईआर दर्ज की, धारा लगाई, सबूतों को केस डायरी में लिखा।

कमिश्नर का फोन फिर आया – “किरण, तुमने तो हद कर दी, मंत्री को ही अंदर डाल दिया। अब ऊपर से आदेश आ रहा है तुम्हें निलंबित करने का।” मगर किरण ने शांत स्वर में कहा – “सर, आप चाहे तो मुझे निलंबित कर दीजिए, लेकिन सच्चाई को दबाने की कोशिश मत कीजिए। यह वीडियो अब सिर्फ मेरे पास नहीं बल्कि कंट्रोल रूम में भी है, और अगर मुझे निलंबित किया गया तो यह वीडियो मीडिया में जाएगा।”

कमिश्नर समझ गया कि अब खेल पलट चुका है। मंत्री के बेटे का थप्पड़ तो जनता निगल भी जाती, लेकिन मंत्री का थप्पड़ और बदतमीजी कैमरे में कैद हो चुकी है। इसी डर से उसने कोई कदम नहीं उठाया।

मंत्री का गुस्सा सातवें आसमान पर था। जेल से ही अपने खास आदमियों को फोन – “इस औरत को कुचल दो, इसके खिलाफ साजिश रचो, मीडिया में चरित्र पर सवाल उठाओ, झूठे केस लगाओ।” उधर किरण पूरी रात जागती रहीं, फाइलें बनाई, सबूत सुरक्षित किए, गवाहों के बयान दर्ज किए। उन्हें पता था – यह लड़ाई आसान नहीं है, यह सिर्फ केस नहीं बल्कि सत्ता और सच की सीधी टक्कर है।

सुबह शहर में हलचल और बढ़ गई। थाने के बाहर हजारों की भीड़ – कोई किरण के समर्थन में, कोई मंत्री के पक्ष में। मीडिया सवाल पूछ रही थी – क्या महिला आईपीएस ने सही किया या हद पार की? मामला सीएम ऑफिस तक पहुंच गया। मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट पढ़ी, वीडियो देखा। सीएम जानते थे – मंत्री को बचाने की कोशिश की तो जनता का गुस्सा फूट पड़ेगा। उन्होंने चुप्पी साध ली – “कोर्ट जो भी फैसला करेगा वही मान्य होगा।”

मंत्री और बेकाबू हो गए, सीएम को धमकाया। लेकिन इस बार उनकी धमकी बेअसर थी। जनता उनके खिलाफ खड़ी हो चुकी थी। किरण देवी को लगातार धमकी भरे फोन आने लगे – “आज रात तेरा एनकाउंटर हो जाएगा”, “तेरा अपहरण कर लेंगे”, “तेरे परिवार को खत्म कर देंगे।” मगर किरण निडर थीं। हर धमकी रिकॉर्ड की, केस डायरी में जोड़ा। जानती थीं – यह लड़ाई जानलेवा भी हो सकती है, मगर पीछे हट गईं तो पूरा पुलिस तंत्र कलंकित हो जाएगा।

राघव थाने में बंद, हर पुलिसकर्मी को गालियां, धमकियां – “मैं छूटते ही सबको बर्बाद कर दूंगा।” मगर धीरे-धीरे उसे भी एहसास हुआ – मामला साधारण नहीं है, बाहर माहौल बदल चुका है। लोग किरण के समर्थन में उतर आए थे। सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड – “किरण देवी की हिम्मत सलाम”, “मंत्री गिरफ्तार करो”। हर जगह किरण की तस्वीरें वायरल।

मंत्री ने दिल्ली तक फोन लगाए, लेकिन हर तरफ जवाब – “वीडियो सामने है, कोई मदद नहीं कर सकता।” मंत्री बौखला उठे – “किरण को रास्ते से हटाओ।” मगर किरण सतर्क थीं। सुरक्षा बढ़ा दी, हर कदम सोच समझकर रखा। जानती थीं – मामला अब अदालत का ही नहीं जनता की अदालत का भी है।

कांस्टेबल राजीव का नाम भी उभर आया – वही जिसने वीडियो बनाया था। “मैडम, मैं आपके साथ खड़ा हूं, वीडियो सुरक्षित रखूंगा।” किरण ने उसकी पीठ थपथपाई – “यह लड़ाई अब हमारी नहीं, पूरे सिस्टम की है।”

मंत्री और बेटा भूख हड़ताल पर – “हमें साजिश के तहत फंसाया गया है।” मगर जनता समझ चुकी थी असलियत। अगले दिन कोर्ट में पेशी – प्रदेश की सबसे बड़ी खबर। पूरा शहर इंतजार – क्या मंत्री को सच में कानून के कटघरे में खड़ा किया जाएगा?

जिला अदालत के बाहर हजारों की भीड़ – कोई किरण के समर्थन में, कोई मंत्री के पक्ष में। मीडिया चैनल लाइव। भारी सुरक्षा में मंत्री और बेटे को पेशी के लिए निकाला गया। मंत्री का चेहरा अब भी अहंकार से भरा, बेटे के चेहरे पर घबराहट। भीड़ कानून का राज कायम करो, मंत्री को जेल भेजो – नारे। किरण देवी भी कड़ी सुरक्षा में कोर्ट पहुंचीं। चेहरे पर ठंडा आत्मविश्वास, लोग तालियां बजाने लगे।

कोर्ट के अंदर कार्यवाही शुरू – बचाव पक्ष के वकील ने आरोपों को झूठा और राजनीतिक षड्यंत्र बताया। “महिला अधिकारी ने अपनी पब्लिसिटी के लिए नाटक रचा है।” मगर जैसे ही किरण देवी ने सबूत और वीडियो पेश किया – पूरा हॉल गूंज उठा। वीडियो में साफ दिख रहा था – पहले राघव ने थप्पड़ मारा, फिर मंत्री ने थाने में हरकत दोहराई। वीडियो देखते ही जज का रंग बदल गया – “यह सबूत किसी भी बहस से ज्यादा मजबूत है। अभियुक्तों के खिलाफ गंभीर धाराएं बनती हैं।”

मंत्री तिलमिला उठे – “जज साहब, आप भी बिके हुए हैं, यह सब मेरे खिलाफ साजिश है।” जज ने चेतावनी दी – “अदालत की अवमानना मत कीजिए।” भीड़ में तालियों की गड़गड़ाहट। मंत्री की वर्षों की दहशत उस पल पिघलती नजर आई।

मगर असली मुश्किल अब किरण देवी के सामने थी – मंत्री ने अफवाह फैलाई कि किरण देवी और कांस्टेबल राजीव ने मिलकर वीडियो एडिट किया है। कुछ मीडिया चैनल पैसे लेकर यह खबर चलाने लगे। सोशल मीडिया पर किरण के खिलाफ झूठी कहानियां – निजी बदला, विपक्षी पार्टी का इशारा। इस झूठी प्रचार ने किरण को परेशान जरूर किया, लेकिन हार नहीं मानी। जांच रिपोर्ट, गवाह, आम लोगों के बयान, चश्मदीद गवाहों ने अदालत में कहा – “हमने अपनी आंखों से देखा है, मंत्री का बेटा तेज रफ्तार से गाड़ी चला रहा था, फिर महिला अधिकारी को थप्पड़ मारा।”

भीड़ के गवाहों की गवाही ने मंत्री और राघव की आखिरी उम्मीद भी खत्म कर दी। सुनवाई आगे बढ़ी, मंत्री के गुर्गे हरकत में – कोर्ट के बाहर पथराव, पुलिस लाठीचार्ज, परिसर रणभूमि। मीडिया लाइव दिखा रही थी, पूरा देश स्क्रीन पर देख रहा था।

ऐसे माहौल में भी किरण देवी अदालत के भीतर मजबूती से खड़ी थीं। “माननीय न्यायाधीश, यह मामला सिर्फ मेरे अपमान का नहीं, पूरे सिस्टम की मर्यादा का है। अगर आज सजा नहीं मिली तो कल कोई भी नेता या उसका बेटा खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ाएगा।”

अदालत की दीवारें गूंज उठीं। लोगों की आंखों में आंसू, पत्रकारों के कैमरे साहसी महिला अधिकारी के शब्दों को कैद कर रहे थे। मंत्री और बेटे की बेचैनी साफ नजर आ रही थी। मंत्री बार-बार जज को धमकी देने की कोशिश, लेकिन जनता की अदालत पहले ही फैसला सुना चुकी थी।

अदालत की कार्यवाही देर रात तक चली। आखिरकार जज ने आदेश दिया – अगले दिन सुबह फैसला सुनाया जाएगा। मंत्री का चेहरा उतर गया, किरण देवी की आंखों में दृढ़ संकल्प।

रात भर लखनऊ की सड़कों पर तनाव – कहीं मंत्री समर्थक आगजनी, कहीं आम लोग किरण के समर्थन में मोमबत्तियां जलाकर प्रदर्शन। पूरा शहर दो खेमों में – एक तरफ सत्ता का गुरूर, दूसरी तरफ सच की ताकत।

सुबह का सूरज एक ऐसे दिन की शुरुआत – जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बनने वाला था। न्याय का पल बेहद करीब था। मंत्री को पहली बार एहसास – शायद इस बार ताकत और कुर्सी बचा नहीं पाएगी।

अदालत में फैसले का दिन – हजारों लोग पहुंचे। मंत्री के समर्थक, किरण देवी के समर्थक। अदालत परिसर पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स से घिरा, बैरिकेड, तलाशी। मीडिया कैमरे लाइव प्रसारण।

मंत्री और राघव को जेल से अदालत लाया गया। मंत्री का चेहरा थका और उदास, बेटा डर के मारे कांप रहा था। दोनों अब उस रब में नहीं थे जो कभी सड़कों और थानों में दिखा करते थे। जज की बेंच के सामने मंत्री खड़ा, पूरा हॉल सन्नाटा।

जज ने गंभीर आवाज में फैसला पढ़ना शुरू किया – “सबूत, वीडियो, गवाहों और प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही से साबित होता है कि अभियुक्त राघव सिंह ने बीच सड़क पर महिला अधिकारी किरण देवी पर हमला किया और अभियुक्त विजय सिंह ने थाने में जाकर सरकारी कामकाज में बाधा डालते हुए उन्हीं अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया, जो कानून की नजर में गंभीर अपराध है।”

भीड़ में तालियों की गड़गड़ाहट। जज ने आगे कहा – “अदालत अभियुक्त राघव को 2 साल की सजा और जुर्माने की सजा सुनाती है, अभियुक्त विजय सिंह को 3 साल की सजा तथा सरकारी पद के दुरुपयोग के मामले में अतिरिक्त दंड भी दिया जाएगा।”

फैसला सुनते ही मंत्री जमीन पर बैठ गया, सदमे का भाव। उसका बेटा जोर-जोर से रोने लगा। अदालत की सुरक्षा बढ़ा दी गई। बाहर भीड़ खुशी से झूम उठी। लोग मिठाई खिलाने लगे, महिलाएं नारे, बच्चों ने तख्तियां – “सच की जीत हुई है।”

मगर कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। मंत्री ने जेल जाने से पहले आखिरी चाल – “यह साजिश है, मैं फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दूंगा, मैं किरण देवी को चैन से जीने नहीं दूंगा।”

किरण देवी ने पत्रकारों से कहा – “यह जीत सिर्फ मेरी नहीं, उन सभी ईमानदार अधिकारियों की है जो हर दिन सिस्टम की लड़ाई लड़ते हैं। मैं किसी धमकी से डरने वाली नहीं हूं।”

फैसला आते ही पूरे प्रदेश में हलचल – जगह-जगह जश्न, लेकिन मंत्री के गुर्गे हिंसक। कहीं बसों को आग, कहीं पुलिस थाने पर हमला। सरकार को कर्फ्यू लगाना पड़ा। मंत्री की राजनीतिक जमीन खिसक चुकी थी। मगर असली खतरा बाकी था – जेल में बंद मंत्री के पास समर्थक थे, किरण देवी जानती थीं – असली इम्तिहान अभी बाकी है।

फैसले की रात – सरकारी आवास पर हलचल। सुरक्षाकर्मी दौड़ते हुए – “मैडम, बाहर संदिग्ध लोग हैं, हथियार बंद हो सकते हैं।” किरण देवी ने सुरक्षा बढ़ाई। मंत्री अपने बदले की शुरुआत कर चुका था।

एक रात, कलेक्टर ऑफिस लौटते समय गाड़ी के सामने ट्रक रुका, चारों ओर से गोलियों की आवाज। सुरक्षाकर्मी सक्रिय, जवाबी फायरिंग, सड़क गूंज उठी। किरण देवी को सुरक्षित गाड़ी में बिठाकर बाहर निकाला गया। काफिले की दो गाड़ियां क्षतिग्रस्त, दो पुलिसकर्मी शहीद। मगर किरण देवी बच गईं।

इस वारदात ने प्रदेश को हिला दिया। मीडिया ब्रेकिंग न्यूज़, मुख्यमंत्री ने हाई लेवल मीटिंग – “मंत्री के पूरे गैंग को खत्म करो।” पुलिस और एसटीएफ की टीमें छापेमारी, मंत्री के करीबियों की गिरफ्तारी। मगर मंत्री जेल से चाले चलता रहा। मुलाकातें सीमित, फोन बंद। फिर भी हाई कोर्ट में अपील – “आरोप झूठे, सबूत गढ़े गए।” कोर्ट ने अपील ठुकराई – “सबूत पक्के हैं, सजा से बचना नामुमकिन।”

मंत्री का गुस्सा बढ़ा – “अगर बाहर नहीं जा सका तो कम से कम किरण देवी को चैन से नहीं जीने दूंगा।” इसी बीच किरण देवी को गुमनाम चिट्ठी – “मंत्री ने मौत का जाल बिछा दिया है, इस्तीफा दे दो।” किरण देवी ने गहरी सांस ली – “डर ही इनका सबसे बड़ा हथियार है, अगर डर गई तो सारी लड़ाई बेकार।”

मीडिया के सामने बयान – “मैं मंत्री की धमकियों से डरने वाली नहीं हूं। मेरा कर्तव्य है जनता की रक्षा करना और मैं आखिरी सांस तक यही करूंगी।” जनता का समर्थन और बढ़ गया – रैलियां, नारे – “किरण देवी तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।”

मंत्री की जिद खत्म नहीं हुई। एक रात जेल में दंगा – मंत्री समर्थकों के साथ फरार। राज्य में हाई अलर्ट, नाकाबंदी, चेकिंग। किरण देवी ने ठिकाना बदल लिया, एसटीएफ के साथ प्लान बनाया। सूचना – मंत्री पुराने गोदाम में छिपा है। पुलिस ने घेराबंदी की। दरवाजा तोड़ा, गोलियों की बौछार। मंत्री बंदूक लेकर सामने – “किरण देवी, अगर हिम्मत है तो सामने आओ। आज या तो तू बचेगी या मैं।”

किरण देवी ने बिना डरे कदम बढ़ाया – “आज कानून और अपराध का आखिरी फैसला होगा।” मंत्री ने गोली चलाई, किरण देवी ने झुककर जवाबी फायर, मंत्री के हाथ से बंदूक छीन ली। पुलिस ने उसे गिराकर हथकड़ी डाल दी। मंत्री को खून से लथपथ गिरफ्तार किया गया, हाई सिक्योरिटी सेल में रखा गया। उसकी राजनीतिक जमीन खत्म, समर्थक भागे या गिरफ्तार। जनता ने राहत की सांस ली।

मीडिया ने इस घटना को देश की सबसे बड़ी जीत बताया – “सच की जीत, भ्रष्ट ताकतें हारी।” किरण देवी जब दफ्तर लौटीं – लोगों ने फूल बरसाकर स्वागत किया। हर आंख में सम्मान और गर्व। “यह जीत सिर्फ मेरी नहीं, उन सभी की है जिन्होंने डरकर झुकने से इंकार किया। अगर इंसान सच्चाई पर अडिग रहे तो सबसे ताकतवर अपराधी भी गिर सकता है।”

रात को अकेली बैठीं तो शहीद साथियों की याद आई। आंखों से आंसू, दिल में सुकून – कुर्बानी बेकार नहीं गई। देश ने देख लिया – ईमानदारी कभी हार नहीं मानती। आसमान की ओर देखा – “यह तो बस शुरुआत है। असली जंग अभी बाकी है। जब तक देश से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होता, मेरी लड़ाई जारी रहेगी।”

किरण देवी – एक जिंदा मिसाल। सच्चाई की राह कठिन जरूर होती है, मगर जीत उसी की होती है।