मां का कर्ज: सूरज और पार्वती देवी की कहानी

भद्रपुर गांव की तंग गलियों में एक पुरानी खाट पर बैठी पार्वती देवी अपने बेटे सूरज का इंतजार कर रही थी। उम्र 70 साल, चेहरे पर झुर्रियां, लेकिन आंखों में ममता की चमक। उनका इकलौता बेटा सूरज हैदराबाद में एक बड़ी टेक कंपनी का सीईओ था, अरबों की संपत्ति, आलीशान बंगला, चमचमाती गाड़ियां, लेकिन मां की दुनिया से दूर।

पार्वती देवी की जिंदगी कभी आसान नहीं रही। पति की मौत के बाद, 28 साल की उम्र में उन्होंने सूरज को अकेले पाला। गांव के खेतों में मजदूरी की, दूसरों के घरों में बर्तन मांजे, कई बार भूखी सोईं लेकिन बेटे का पेट कभी खाली नहीं रहने दिया। स्कूल की फीस के लिए अपनी सोने की चूड़ियां बेच दीं, पति की निशानी अंगूठी भी बाजार में उतार दी। सूरज को कभी नहीं बताया कि उसकी किताबों के लिए मां ने क्या-क्या कुर्बान किया।

सूरज पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बन गया। हैदराबाद में बस गया, लेकिन मां की दुनिया सिमटती गई। पहले हर हफ्ते फोन करता, फिर महीने में एक बार, अब तो साल में ही आवाज सुनाई देती। आज सूरज का जन्मदिन था। पार्वती देवी सुबह से ही पुराने फीचर फोन को हाथ में थामे बैठी थीं। उम्मीद थी कि आज सूरज जरूर फोन करेगा। लेकिन दिन ढल गया, सूरज डूब गया, और फोन की स्क्रीन खामोश रही।

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रात के 11 बजे कांपते हाथों से पार्वती देवी ने खुद फोन लगाया। उस वक्त सूरज क्लब में दोस्तों के साथ पार्टी मना रहा था। फोन की घंटी बजी, स्क्रीन पर मां का नाम चमका। सूरज ने एक नजर देखा और फोन साइड में रख दिया। मां ने बार-बार कॉल किया, लेकिन जवाब नहीं मिला। जब सूरज देर रात घर लौटा, थकान और शराब से बोझिल आंखें, फिर फोन बजा। गुस्से में सूरज ने फोन उठाया और चिल्लाया, “मां बार-बार फोन क्यों कर रही हो? मैं थक गया हूं। सुबह नहीं कॉल कर सकती थी क्या?”

दूसरी तरफ पार्वती देवी की आवाज कांपी, लेकिन ममता की मिठास वही थी। “बेटा, आज तेरा जन्मदिन है। बस तुझे दुआ देने का मन किया। दो साल हो गए तुझे देखे हुए। बस एक बार आजा, मैं तुझे देखना चाहती हूं।” सूरज ने झुझलाहट में कहा, “ठीक है मां, मैं परसों आता हूं। अभी मीटिंग्स हैं, टाइम नहीं है।”

परसों सुबह सूरज गांव पहुंचा। मां उसे देखते ही लिपट गईं। तीन साल बाद बेटे को देख आंखों में आंसू और खुशी थी। लेकिन सूरज का चेहरा ठंडा था। वह मां की ममता को नहीं, बल्कि अपनी जैकेट पर लगी धूल को झाड़ रहा था। उसने मां से कहा, “मां जल्दी बोल, कितने दिन रुकना है? मेरे पास टाइम कम है। अगले हफ्ते दुबई की फ्लाइट है। तू हमेशा कहती थी कि मां का कर्ज कोई नहीं चुका सकता, लेकिन मैं तेरा कर्ज जरूर चुकाऊंगा। बता क्या चाहिए? बंगला, गाड़ी, पैसा सब अरेंज कर दूंगा।”

पार्वती देवी मुस्कुराईं, लेकिन उनकी मुस्कान में दर्द था। “बेटा, मुझे तेरा प्यार चाहिए। अगर सचमुच मेरा कर्ज चुकाना है तो तीन काम करने होंगे।” सूरज ने तुरंत कहा, “ठीक है मां, बता मैं हर काम करूंगा।”

पहला काम: “तुझे पांच किलो का पत्थर पेट से बांधकर 24 घंटे हर काम करना होगा।” सूरज ने हंसते हुए पत्थर बांध लिया, लेकिन कुछ घंटों में ही दर्द से तड़प उठा। मां ने कहा, “मैंने तुझे 9 महीने गर्भ में रखा, कभी शिकायत नहीं की।”

दूसरा काम: “आज मेरे कमरे में सो जा।” रात में मां ने दो बार पानी मांगा और गलती से सूरज के बिस्तर पर गिरा दिया। सूरज झुझलाया, मां ने कहा, “जब तू छोटा था, तू हर रात बिस्तर गीला करता था, मैं तुझे सूखी जगह पर सुलाती थी।”

तीसरा काम: सुबह मां ने खिड़की पर बैठे कबूतर की ओर इशारा किया, “यह क्या है?” सूरज ने तीन बार जवाब दिया और झुझला गया। मां बोली, “जब तू तीन साल का था, यही सवाल 40 बार पूछा था, मैंने हर बार प्यार से जवाब दिया।”

सूरज मां के पैरों में गिर पड़ा, “मां, मुझे माफ कर दो। मैंने कभी तुम्हारी ममता की कीमत नहीं समझी। अब समझ आया कि मां का कर्ज चुकाया नहीं जा सकता, बस निभाया जा सकता है।”

मां ने बेटे को गले लगाया, “बस इतना कर कि मुझे कभी दुख ना दे। यही सबसे बड़ी दौलत है।”

यह कहानी हमें सिखाती है कि मां का प्यार, उसकी ममता और त्याग की कोई कीमत नहीं होती। हमें अपने माता-पिता को समय, प्यार और सम्मान देना चाहिए, क्योंकि यही असली जीवन की दौलत है।