जब मां की इज्जत पर वार हुआ… तो दो बहनों ने उठा लिया कानून का सहारा”
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जब मां की इज्जत पर वार हुआ… दो बहनों की लड़ाई
1. बाजार की सुबह
सावित्री देवी रोज की तरह अपनी छोटी सी टोकरी में मीठे पके हुए अमरूद लेकर शहर के सबसे व्यस्त बाजार में बैठ गई थीं। उनके चेहरे पर उम्र की लकीरें थीं, लेकिन आंखों में उम्मीद की चमक। दो बेटियां थीं उनकी—अंजलि और राधिका। अंजलि देश की सरहद पर फौज में अफसर थी, तो राधिका इसी शहर की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, यानी डीएम। सावित्री देवी को अपनी बेटियों पर बहुत गर्व था। जब भी कोई पूछता, “अम्मा, आपकी बेटियां क्या करती हैं?” तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता। “एक देश की रक्षा करती है, दूसरी जिले की,” वे मुस्कुराकर कहतीं।
लेकिन सावित्री देवी आज भी कभी-कभी बाजार में अमरूद बेचने बैठ जाती थीं। अपनी बेटियों को कभी नहीं बताती थीं कि वे अब भी मेहनत करती हैं। उनका मानना था कि आत्मनिर्भरता ही असली सम्मान है।
2. अमरूद की टोकरी पर हमला
सब कुछ सामान्य चल रहा था। तभी एक इंस्पेक्टर, रवि मेहरा, अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर वहां आया। उसने बाइक सड़क किनारे रोकी और सीधा सावित्री देवी की टोकरी के पास आकर खड़ा हो गया। रवि ने टोकरी में से एक अमरूद उठाया और बिना कुछ कहे मुंह में डाल लिया।
“साहब, अमरूद बहुत रसीले हैं। आप चाहे तो वजन कर दूं,” सावित्री देवी ने सकुचाते हुए कहा।
रवि मेहरा ने अकड़ते हुए जवाब दिया, “अरे दे ना एक किलो जल्दी!”
सावित्री देवी ने कांपते हाथों से अमरूद तोलकर पॉलिथीन में डाल दिए। रवि ने पैकेट लिया, फिर से एक अमरूद निकाला और सामने ही काटकर खाने लगा। कुछ देर तक चबाने के बाद उसने मुंह बनाते हुए कहा, “अरे ये क्या दिया रे? एकदम फीक है। अमरूद मीठा तो बिल्कुल भी नहीं है।”
“नहीं साहब, बहुत रसीले हैं। आप चाहे तो दूसरा टेस्ट कर लीजिए,” सावित्री देवी घबराकर बोलीं।
रवि मेहरा हंसते हुए बोला, “चुप! तेरे अमरूद का एक टुकड़ा भी मीठा नहीं। तूने मुझे ठग लिया है। और सुन, मैं एक पैसा भी नहीं दूंगा। समझी?”
सावित्री देवी ने हिम्मत करके हाथ जोड़ते हुए कहा, “साहब, मेहनत से लाए हैं। थोड़ा सा तो दे दीजिए बस।”
रवि मेहरा का पारा चढ़ गया। उसने गुस्से में झुककर पूरी टोकरी उठाई और सड़क की दूसरी तरफ जोर से फेंक दी। टोकरी पलट गई और सारे अमरूद सड़क पर गाड़ियों और नाली में बिखर गए। सावित्री देवी हक्कीबक्की रह गईं। उनकी आंखों में आंसू भर आए, होंठ कांपने लगे। उनकी मेहनत और इज्जत दोनों ही सड़क पर कुचल गई थीं। आसपास भीड़ जमा हो गई थी, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उस वर्दी वाले से कुछ कहे।
3. वीडियो का सच
पास के ही एक घर की छत पर खड़ा एक नौजवान लड़का, आरव, यह सब कुछ अपने मोबाइल फोन में रिकॉर्ड कर रहा था। उसका खून खौल रहा था। वह सावित्री अम्मा को बचपन से जानता था और उनका बहुत सम्मान करता था।
रवि मेहरा ने अपनी मूछों पर ताव दिया, बाइक स्टार्ट की और वहां से ऐसे चला गया जैसे कुछ हुआ ही ना हो। भीड़ में से किसी ने सावित्री देवी की मदद नहीं की। आरव ने वीडियो रिकॉर्ड करना बंद किया और सोचने लगा कि इस वीडियो का क्या किया जाए। उसे पता था कि सावित्री अम्मा की एक बेटी फौज में है। उसने कहीं से उनका नंबर जुगाड़ किया और तुरंत वह वीडियो अंजलि सिंह के WhatsApp पर भेज दिया। नीचे लिखा, “अंजलि दीदी, देखिए आज बाजार में आपकी मां के साथ क्या हुआ।”
4. फौज की चौकी से आवाज
हजारों किलोमीटर दूर बर्फीली पहाड़ियों के बीच बॉर्डर की एक चौकी पर अंजलि सिंह अपनी राइफल साफ कर रही थी। तभी उसके फोन पर WhatsApp का मैसेज टोन बजा। उसने फोन उठाकर देखा। एक अनजान नंबर से वीडियो आया था। उसने वीडियो प्ले किया। जैसे-जैसे वीडियो आगे बढ़ा, अंजलि के चेहरे का रंग बदलता गया। उसकी शांत आंखें गुस्से से लाल हो गईं। जब उसने इंस्पेक्टर रवि मेहरा को अपनी मां की टोकरी उठाकर फेंकते देखा तो उसके हाथ कांपने लगे।
उसकी मां, जिसने उसे और उसकी बहन को पालने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी थी, आज सड़क पर बेबस रो रही थी और लोग तमाशा देख रहे थे। उसके अंदर का फौजी जाग उठा। उसका मन किया कि अभी यहां से जाए और उस इंस्पेक्टर की वर्दी नोच ले। उसने तुरंत वह वीडियो अपनी छोटी बहन डीएम राधिका सिंह को फॉरवर्ड किया। वीडियो भेजते ही उसने राधिका को फोन लगाया।
5. डीएम की प्रतिक्रिया
राधिका उस वक्त अपने ऑफिस में एक जरूरी मीटिंग में थी। उसने अपनी बड़ी बहन का फोन देखा तो मीटिंग रोक कर फोन उठाया। “हां दीदी, सब ठीक है?”
“कुछ भी ठीक नहीं है,” अंजलि की आवाज में गुस्सा और दर्द साफ झलक रहा था। “मैंने तुझे एक वीडियो भेजा है। उसे देख अभी के अभी देख।”
राधिका ने फोन होल्ड पर रखा और WhatsApp खोला। वीडियो देखते ही उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। उसकी प्यारी मां सड़क पर बिखरे अमरूद के लिए रो रही थी। एक मामूली इंस्पेक्टर ने उसकी मां की इज्जत को सड़क पर रौंद दिया था। राधिका की आंखों में भी आंसू आ गए, लेकिन उसने खुद को संभाला। वह एक डीएम थी। उसे भावनाओं में बहने का हक नहीं था।
“दीदी, मैं यह सब सह नहीं सकती।”
“मैं आ रही हूं। छुट्टी लेकर मैं उसको नहीं छोड़ूंगी।”
“नहीं दीदी, आपकी जरूरत देश की सरहद पर है। यह मेरा इलाका है। यह लड़ाई मैं लूंगी। मां को इंसाफ मैं दिलाऊंगी कानून के तरीके से।”
अंजलि कुछ देर चुप रही। वह अपनी बहन की आवाज में छिपे इरादे को समझ गई थी। “ठीक है, लेकिन उसे ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि उसकी नींद उड़ जाए।”
“आप चिंता मत करो दीदी। अब यह मेरा काम है।”
6. बेटी का वादा
राधिका अपनी सरकारी गाड़ी में नहीं बल्कि एक प्राइवेट गाड़ी में बैठकर अपने पुराने घर की तरफ निकली। रास्ते में उसने अपने डीएम वाले कपड़े बदलकर एक साधारण सा गुलाबी रंग का सलवार सूट पहन लिया। वह अपनी मां के पास एक बेटी बनकर जाना चाहती थी, डीएम बनकर नहीं।
जब वह घर पहुंची तो सावित्री देवी एक कोने में चुपचाप बैठी थीं। उनकी आंखें सूजी हुई थीं। अपनी बेटी को अचानक देखकर वह घबरा गईं।
“राधिका, तू यहां? सब ठीक तो है?”
राधिका कुछ नहीं बोली। वह बस अपनी मां के पास गई और उन्हें कसकर गले लगा लिया। मां की गोद में सिर रखकर वह अपने आंसू नहीं रोक पाई।
“मां, आपने मुझे बताया क्यों नहीं?”
सावित्री देवी ने सिसकते हुए कहा, “क्या बताती बेटी? मैं नहीं चाहती थी कि तुम लोगों को कोई परेशानी हो और वह पुलिस वाला है। छोड़ उसकी बात। आज तू इतने दिनों बाद आई है। आज मैं बहुत खुश हूं।”
राधिका ने अपनी मां के आंसू पोंछे और उनका हाथ अपने हाथ में ले लिया। “अब आप गरीब और अकेली नहीं हैं। मां आपकी बेटी इस जिले की मालिक है। मैं वादा करती हूं जिसने भी आपके साथ ऐसे दुर्व्यवहार किया है उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। आपकी खोई हुई इज्जत मैं वापस लाऊंगी।”
7. कानून का सहारा
राधिका ने एक पूरा प्लान बनाया। वह जानती थी कि अगर वह डीएम बनकर थाने जाएगी तो सारे पुलिस वाले उसके पैरों में गिर जाएंगे और असली गुनहगार कभी सामने नहीं आएगा। उसे उन्हें हाथों पकड़ना था।
अगली सुबह उसने अपने सबसे भरोसेमंद अफसर एसडीएम अजय को फोन किया। “अजय, मैं तुम्हें एक काम दे रही हूं और यह बात हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए।”
“जी मैडम, हुकुम कीजिए।”
“मैं अभी सिविल ड्रेस में शहर के कोतवाली थाने में एक रिपोर्ट लिखवाने जा रही हूं। अपनी पहचान छिपाकर। तुम ठीक दो घंटे बाद जिले के एएसपी, डीएसपी और बाकी बड़े पुलिस अफसरों की टीम के साथ थाने पहुंचो। जब तक मैं इशारा ना करूं कोई कुछ नहीं बोलेगा।”
“ठीक है मैडम, जैसा आप कहें।”
8. थाने में आम लड़की
राधिका अपनी सलवार सूट में आम नागरिक की तरह ऑटो पकड़कर कोतवाली थाने पहुंची। थाने का माहौल वैसा ही था जैसा उसने सोचा था। एक हवलदार ऊंघ रहा था और इंस्पेक्टर रवि मेहरा और एसओ कपिल शर्मा चाय पीते हुए हंसी-ठिठोली कर रहे थे।
राधिका डरते-डरते उनकी टेबल के पास गई। “जी मुझे एक शिकायत दर्ज करवानी है।”
एसओ कपिल शर्मा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। “क्या हुआ? किसने परेशान किया?”
“जी, कल बाजार में इंस्पेक्टर साहब ने।”
जैसे ही उसने इंस्पेक्टर का नाम लिया, रवि मेहरा चौकन्ना हो गया। “क्या इंस्पेक्टर साहब ने? नाम क्या है तेरा और किस इंस्पेक्टर की बात कर रही है?”
“जी आप ही थे। आपने कल बाजार में एक बुजुर्ग महिला के अमरूद की टोकरी सड़क पर फेंकी थी। मैं उनकी बेटी हूं,” राधिका ने अपनी आवाज में थोड़ी घबराहट लाने की कोशिश की।
यह सुनते ही रवि और कपिल जोर-जोर से हंसने लगे। “तू उस बुढ़िया की बेटी है? तो क्या हुआ, सड़क पर गंदगी फैलाएगी तो डंडा पड़ेगा ना। चल भाग यहां से, कोई एफआईआर नहीं लिखी जाएगी।”
राधिका ने थोड़ा साहस दिखाते हुए कहा, “लेकिन यह गैरकानूनी है। आपने वर्दी का गलत इस्तेमाल किया है।”
“ओ कपिल गरजा, तू हमें कानून सिखाएगी? ज्यादा जुबान चलाई तो तुझे ही अंदर कर दूंगा। सरकारी काम में बाधा डालने के जुर्म में।”
राधिका वहीं खड़ी रही और बोली, “मैं एफआईआर लिखवाए बिना नहीं जाऊंगी।”
9. सीन बदलता है
बहस बढ़ रही थी कि तभी एक हवलदार भागता हुआ अंदर आया। “सर, राम सिंह चौहान जी थाने में आ रहे हैं।”
राम सिंह शहर का एक बहुत बड़ा और दबंग नेता था। उसके इशारे पर पुलिस वाले नाचते थे। दोनों इंस्पेक्टर अपनी कुर्सी से ऐसे उछले जैसे करंट लग गया हो। एक सफेद सफारी गाड़ी थाने के अंदर आकर रुकी। उसमें से सफेद कुर्ता-पायजामा पहने राम सिंह चौहान उतरा।
अंदर आते ही उसने अपने मजाकिया अंदाज में कहा, “क्या हाल है मेहरा कामधाम? अच्छा चल रहा है ना, कोई मुर्गा वर्गा फंसाया कि नहीं?”
रवि और कपिल हाथ जोड़कर मुस्कुराने लगे। “साहब आपकी कृपा है। आइए बैठिए।”
लेकिन तभी राम सिंह की नजर कोने में खड़ी राधिका पर पड़ी। राधिका को देखते ही उसके चेहरे की हंसी गायब हो गई। उसके माथे पर पसीना आ गया। वह जिस लड़की को एक आम लड़की समझ रहा था, उसे पहचानते ही उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। वह तेजी से आगे बढ़ा और राधिका के सामने जाकर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
“नमस्ते मैडम आप… आप यहां… इस वक्त… मुझे फोन कर लिया होता, मैं हाजिर हो जाता।”
उसकी आवाज में हकलाहट साफ थी। इंस्पेक्टर रवि और एसओ कपिल हैरान रह गए। उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं। यह हो क्या रहा है? यह तो उस बुढ़िया की बेटी है। राम सिंह जी इसके सामने हाथ क्यों जोड़े खड़े?
10. असली पहचान
थाने के बाहर गाड़ियों के रुकने की आवाज आई। एक के बाद एक लाल बत्ती वाली गाड़ियां थाने के सामने आकर रुकीं। गाड़ियों से डीएसपी, एसडीएम और जिले के कई बड़े अफसर उतरे और तेजी से थाने के अंदर आए। वे सब आकर चुपचाप राधिका के पीछे लाइन बनाकर खड़े हो गए। अब थाने में सन्नाटा था।
रवि मेहरा और कपिल शर्मा पत्थर के बुद्ध बन चुके थे। तभी डीएसपी ने आगे बढ़कर गुस्से में रवि मेहरा की तरफ देखकर कहा, “इंस्पेक्टर, तमीज से खड़े हो जाओ। तुम डीएम मैडम राधिका सिंह के सामने खड़े हो।”
“डीएम मैडम…” यह शब्द किसी बम की तरह थाने में फटा। रवि और कपिल के पैरों तले जमीन खिसक गई। वे कांपते हुए राधिका को देखने लगे जिसे वे कुछ देर पहले अमरूद वाली की बेटी कहकर बेइज्जत कर रहे थे।
राधिका की आंखों में अब एक आम लड़की की घबराहट नहीं, बल्कि एक डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट का रौब और गुस्सा था।
“इंस्पेक्टर रवि मेहरा और एसएचओ कपिल शर्मा, यू आर सस्पेंडेड विद इमीडिएट इफेक्ट। एसडीएम साहब, इन दोनों के खिलाफ वर्दी की आड़ में गुंडागर्दी, एक आम नागरिक को अपमानित करने और अपनी ड्यूटी ना करने के जुर्म में एफआईआर दर्ज कीजिए। साथ ही इनके खिलाफ विभागीय जांच भी बिठाई जाए।”
एसपी साहब ने तुरंत आदेश दिया और दोनों इंस्पेक्टरों की बेल्ट और टोपी उतरवा दी गई। कल तक जो शेर बने घूम रहे थे, आज बीगी बिल्ली की तरह सिर झुकाए खड़े थे।
11. राजनीति की चाल
नेता राम सिंह चौहान ने हिम्मत करके कहा, “मैडम, नादान हैं। गलती हो जाती है। माफ कर दीजिए, मैं समझा दूंगा इनको।”
राधिका ने घूमकर राम सिंह को ऐसी नजरों से देखा कि वह कांप गया। “नेताजी, ये नादान नहीं, सरकारी वर्दी में छुपे गुंडे हैं। और जहां तक समझाने की बात है, अब इन्हें कानून समझाएगा। बेहतर होगा आप इस मामले से दूर रहें वरना जांच की आंच आप तक भी पहुंच सकती है।”
राम सिंह चौहान का चेहरा सफेद पड़ गया। वह समझ गया कि इस नई डीएम से टकराना आसान नहीं है। वह चुपचाप सिर झुकाकर वहां से खिसक गया। लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी नफरत और गुस्सा था, जो राधिका ने पढ़ लिया था।
12. साजिश की शुरुआत
अगली सुबह सब समझ रहे थे कि डीएम बेटी ने मां को इंसाफ दिलाया। सब कुछ ठीक लग रहा था। लेकिन राधिका एक दिन रात को जब खाना खा रही थी, तभी उसके पर्सनल फोन पर एक अननोन नंबर से कॉल आया। उसने फोन उठाया।
“हेलो…”
दूसरी तरफ से कोई कुछ नहीं बोला। बस एक भारी सांस लेने की आवाज आई। फिर एक बदली हुई मशीनी आवाज में कोई बोला, “डीएम साहिबा, शहर में नहीं हो। ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करो। इंस्पेक्टर तो बस मोहरे थे। खेल तो अब शुरू होगा।”
“कौन बोल रहा है?”
“वही जिसकी दुम पर तुमने पैर रख दिया है।”
फोन कट गया। राधिका के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं। वह समझ गई थी कि राम सिंह चौहान इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं है। यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई थी बल्कि अब और भी ज्यादा खतरनाक होने वाली थी।
13. मां पर साजिश
एक सुबह सावित्री देवी बाजार से अमरूद खरीद कर आ रही थीं कि अचानक पुलिस की तीन गाड़ियां वहां आकर रुकीं। उनमें से एक नया इंस्पेक्टर उतरा जिसे राधिका नहीं जानती थी। उसने सावित्री देवी की थैली की तरफ देखा और इशारा करते हुए कहा, “हमें सूचना मिली है इन अमरूदों की नाड़ में नशीले पदार्थ की तस्करी हो रही है। तलाशी लो।”
एक सिपाही ने अमरूदों के नीचे से भूरे रंग का नशीला पदार्थ निकाला और चिल्लाया, “सर मिल गया!”
बाजार में हड़कंप मच गया। लोग कानाफूसी करने लगे, “देखो डीएम की मां नशीले पदार्थ ले जा रही थी।”
सावित्री देवी सन रह गईं। वह रोते हुए बोलीं, “नहीं साहब, यह मेरा नहीं है। किसी ने मुझे फंसाया है।” लेकिन किसी ने उनकी एक ना सुनी। पुलिस उन्हें जबरदस्ती जीप में बिठाकर ले गई।
यह खबर आग की तरह पूरे शहर में फैल गई। न्यूज़ चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ चलने लगी, “डीएम राधिका सिंह की मां नशीले पदार्थ के आरोप में गिरफ्तार।”
यह राम सिंह चौहान का मास्टर स्ट्रोक था। उसने राधिका पर सीधा हमला नहीं किया, बल्कि उसकी सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ी कमजोरी—उसकी मां—पर वार किया था।
14. कानून की परीक्षा
अब राधिका एक अजीब दुविधा में फंस गई थी। अगर वह अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके मां को छुड़ाती तो उस पर पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगता, और अगर वह चुप रहती तो उसकी बेगुनाह मां जेल में सड़ती।
राधिका के ऑफिस में फोन की घंटियां बजने लगीं। मीडिया, मंत्री, सीनियर अधिकारी, हर कोई जवाब मांग रहा था। तभी उसकी बहन आर्मी ऑफिसर अंजलि का फोन आया।
“बहन, यह क्या हो रहा है? मैं आ रही हूं। मैं उस राम सिंह को नहीं छोड़ूंगी।”
राधिका ने गहरी सांस ली और अपनी आवाज को स्थिर करते हुए कहा, “नहीं दीदी, तुम्हें आने की जरूरत नहीं है। अगर हम भी उनकी तरह गैरकानूनी काम करेंगे, तो उनमें और हम में फर्क क्या रह जाएगा? यह लड़ाई अब कानून के दायरे में ही लड़ी जाएगी और जीतेगी भी।”
15. प्रेस कॉन्फ्रेंस
राधिका ने तुरंत एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। पूरा मीडिया हॉल खचाखच भरा था। कैमरों की फ्लैश लाइट उसकी आंखों में चुभ रही थी। उसने माइक संभाला और कहा, “मैं जानती हूं आप सबके मन में क्या सवाल है। मेरी मां पर गंभीर आरोप लगे हैं। कानून सबके लिए बराबर है, चाहे वह एक आम नागरिक हो या डीएम की मां। इसीलिए मैं इस केस की जांच से खुद को अलग करती हूं ताकि जांच पर कोई असर ना पड़े। एसपी साहब एक स्पेशल टीम बनाकर इस मामले की निष्पक्ष जांच करेंगे। मुझे भारत के कानून पर पूरा भरोसा है। दूध का दूध और पानी का पानी होकर रहेगा।”
राधिका का यह दांव देखकर राम सिंह चौहान भी हैरान रह गया। उसे लगा था कि राधिका बौखलाकर कोई गलत कदम उठाएगी। लेकिन उसने तो बड़ी समझदारी से खुद को जांच से अलग कर लिया था।
16. सच की तलाश
लेकिन राधिका सिर्फ कानून के भरोसे नहीं बैठी थी। उसने आरव को बुलाया। वही लड़का जिसने पहला वीडियो बनाया था।
“आरव, मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। तुम बाजार में रहते हो। वहां की हर हरकत पर तुम्हारी नजर रहती है। पता लगाओ उस दिन मां की टोकरी के पास कौन-कौन आया था। कोई भी अजीब हरकत, कोई भी नया चेहरा, मुझे हर छोटी-बड़ी जानकारी चाहिए।”
आरव अपनी डीएम दीदी की मदद करने के लिए तुरंत तैयार हो गया। उसने बाजार के दूसरे दुकानदारों और अपने दोस्तों से पूछताछ शुरू कर दी। दो दिन की कड़ी मेहनत के बाद उसे एक सुराग मिला। पास की एक दुकान के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में एक आदमी सावित्री देवी की टोकरी के पास कुछ रखते हुए दिखा था। उसका चेहरा साफ नहीं था, लेकिन वह वही आदमी था जिसे लोगों ने सस्पेंड हुए इंस्पेक्टर रवि मेहरा के साथ कई बार देखा था।
17. जाल बिछता है
अब बारी राधिका की थी। उसने एएसपी के साथ मिलकर एक जाल बिछाया। उन्होंने यह झूठी खबर फैलाई कि सीसीटीवी फुटेज में नशीला पदार्थ रखने वाले का चेहरा साफ-साफ आ गया है और पुलिस उसे पकड़ने ही वाली है।
यह खबर सुनते ही राम सिंह चौहान के कैंप में खलबली मच गई। उसने तुरंत रवि मेहरा को फोन किया, “वह आदमी पकड़ा नहीं जाना चाहिए। उसको कुछ करो वरना हम सब पकड़े जाएंगे।”
राम सिंह को नहीं पता था कि उसका फोन पहले से ही पुलिस के सर्विलांस पर था। रवि मेहरा और कपिल शर्मा उस आदमी को ठिकाने लगाने के लिए जैसे ही शहर के बाहर एक सुनसान जगह पर पहुंचे, राधिका और एएसपी ने अपनी पूरी टीम के साथ उन्हें घेर लिया। नंगे हाथों पकड़े जाने पर दोनों ने राम सिंह चौहान के खिलाफ अपना मुंह खोल दिया।
18. न्याय की जीत
अगली सुबह जब राम सिंह चौहान अपने घर पर बैठकर चाय पी रहा था और अपनी जीत का जश्न मनाने की सोच रहा था, तभी दरवाजे पर जोरदार दस्तक हुई। उसने दरवाजा खोला तो सामने डीएम राधिका सिंह, एसपी और भारी पुलिस फोर्स को देखकर उसके होश उड़ गए।
“यह क्या हो रहा है मैडम?”
राधिका ने अपनी आंखों में इस्पात जैसी कठोरता कहा, “खेल खत्म हो गया नेताजी। आपके मोहरे पकड़े जा चुके हैं और उन्होंने आपके सारे राज उगल दिए हैं।”
“आपके पास कोई सबूत नहीं है। आप मुझे हाथ नहीं लगा सकती।”
एसपी ने आगे बढ़कर उसके हाथ में अरेस्ट वारंट थमाते हुए कहा, “हमारे पास आपकी फोन रिकॉर्डिंग है जिसमें आप एक गवाह के खिलाफ अभिशब्द बोल रहे थे। अब आप हमारे साथ थाने चलेंगे।”
राम सिंह चौहान का राजनीतिक साम्राज्य एक ही पल में ढह गया। उसे हदकड़ी पहनाकर पुलिस जीप में ले जाया गया।
19. मां का सम्मान
उसी शाम सावित्री देवी को बाइज्जत बरी कर दिया गया। जब वह जेल से बाहर आईं तो राधिका उन्हें लेने आई थी। मां-बेटी एक दूसरे के गले लगकर रो पड़ीं। अगली सुबह राधिका ने अपनी मां को अपनी गाड़ी में बैठाकर अपनी पोस्टिंग पर लेकर चली गई और दोनों साथ में हंसी-खुशी रहने लगे। जब उसकी बड़ी बहन की आर्मी से छुट्टी मिलती तो वह भी आ जाती। तीनों साथ में हंसी-खुशी रहते।
20. परिवार का संदेश
कहानी का अंत एक संदेश के साथ होता है—कानून का सहारा लेने से ही न्याय मिलता है, चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों। परिवार, सम्मान और हिम्मत सबसे बड़ी ताकत हैं। सावित्री देवी, अंजलि और राधिका की लड़ाई हर उस महिला की लड़ाई है, जो समाज में अपने हक के लिए खड़ी होती है।
अगर कहानी अच्छी लगी हो तो लाइक करके अपना प्यार जरूर दिखाइए। चैनल सब्सक्राइब करके हमारे परिवार का हिस्सा बन जाइए और कमेंट में बताइए अगली कहानी किस विषय पर देखना चाहेंगे।
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