सड़क पर गाड़ी पोंछती पत्नी और पति की टूटी दुनिया

दिल्ली की व्यस्त सड़कों पर सुबह की हलचल शुरू हो चुकी थी। चमचमाती महंगी गाड़ियों के बीच एक साधारण सी महिला, मीरा, हाथ में पुराना कपड़ा और छोटी बाल्टी लिए गाड़ियों के शीशे साफ कर रही थी। कभी राजमहल जैसे घर में रहने वाली मीरा आज सड़क पर गाड़ी पोंछती दिख रही थी। उसके चेहरे पर थकान थी, लेकिन उसकी आंखों में गहरी शालीनता और मजबूती झलक रही थी।

कुछ साल पहले मीरा की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी जैसी थी। उसका पति अर्जुन शहर का नामी कारोबारी था। बंगला, नौकर-चाकर, विलासिता—सबकुछ था। मीरा गर्व से अपने परिवार और समाज में सर उठाकर चलती थी। लेकिन वक्त के खेल ने सब बदल दिया। अर्जुन ने एक गलत बिजनेस डील की, जिससे उसका साम्राज्य एक झटके में बिखर गया। कर्ज और बर्बादी के बोझ तले अर्जुन टूट गया। रोज़-रोज़ की अनबन ने घर का माहौल बदल दिया। एक रात, झगड़े के बाद अर्जुन घर छोड़कर चला गया। उसने कहा—”मीरा, तुम्हें मेरी नाकामी के साथ नहीं जीना पड़ेगा। मैं लौटकर नहीं आऊंगा।”

मीरा के पास अब कोई सहारा नहीं था। घर बिक चुका था, रिश्तेदार मुंह फेर चुके थे, और दोस्तों ने भी किनारा कर लिया था। मीरा ने हार मानने के बजाय खुद आगे बढ़ने का फैसला किया। छोटे-छोटे काम करके गुजारा शुरू किया, लेकिन किराया, खाना और बाकी जरूरतें पूरी करना आसान नहीं था। तब किसी ने बताया कि मॉल्स और दफ्तरों के बाहर गाड़ियां साफ करने से रोज़ कुछ पैसे मिल सकते हैं। मीरा ने सोचा, “ईमानदारी से कमाया हर पैसा सोने से भी कीमती होता है।”

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एक सुबह, जब मीरा एक काली चमचमाती गाड़ी साफ कर रही थी, अचानक कार का शीशा नीचे हुआ। सामने अर्जुन था। महीनों बाद दोनों की आंखें मिलीं। अर्जुन की आंखों में हैरानी और पछतावा था। मीरा ने सिर झुका लिया और अपने काम में लग गई। उसकी चुप्पी अर्जुन के दिल को भीतर तक चीर गई। वह सोचने लगा—”क्या मैंने सच में उसे अकेला छोड़कर सबसे बड़ी गलती की थी?”

तभी मॉल के गेट से एक शख्स दौड़ता हुआ आया, मीरा को नाम लेकर पुकारा। अर्जुन हैरान रह गया। यह विक्रम था, मीरा का पुराना जानकार, जो अब एक एनजीओ चलाता था। उसने मीरा को स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की नौकरी का ऑफर दिया। मीरा ने धन्यवाद कहा, लेकिन पहले अपना काम पूरा करने की जिद दिखाई। अर्जुन दूर से यह सब देख रहा था। उसके मन में सवाल उठ रहे थे—”क्या मीरा ने किसी और का सहारा ले लिया है? क्या मैंने सच में उसे खो दिया है?”

भीड़ में से एक बच्चा दौड़ता हुआ आया और मीरा से लिपट गया। वह उनका बेटा आरव था। अर्जुन का दिल फिर टूट गया। उसका अपना बेटा उसे पहचान भी नहीं पा रहा था। मीरा ने आरव का हाथ थामा और विक्रम के साथ आगे बढ़ गई। अर्जुन वहीं खड़ा रह गया, अपराध बोध और पछतावे से घिरा हुआ।

उस रात अर्जुन देर तक जागता रहा। उसने ठान लिया—”अब मैं अपनी गलतियों को सुधारूंगा। मीरा और बेटे का भरोसा वापस जीतूंगा।” अगले दिन वह मीरा से मिला और माफी मांगी। मीरा ने कहा, “तुम्हारे लौट आने से सब कुछ वैसे का वैसा नहीं हो जाएगा। तुम्हें बदलना होगा, सिर्फ कह देने से कुछ नहीं होता।”

अर्जुन ने अपने पुराने वकील से मुलाकात की। दस्तावेजों से पता चला कि विक्रम ही उस डील का गवाह और सलाहकार था, जिसने उसकी कंपनी को कर्ज में डुबोया था। अर्जुन को शक हुआ कि विक्रम ने ही उसकी बर्बादी की बुनियाद रखी। उसने सबूत जुटाए और मीरा को सच बताने का फैसला किया।

एक दिन, मीरा को विक्रम के एनजीओ में भाषण देने के लिए बुलाया गया। मंच पर मीरा ने अपनी संघर्ष की कहानी सुनाई। तभी अर्जुन ने सबूतों की फाइल सबके सामने रख दी—”विक्रम ही तुम्हारी बर्बादी की असली वजह है।” वकील ने भी पुष्टि की। भीड़ में सन्नाटा छा गया। विक्रम की असलियत सबके सामने आ गई और पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया।

मीरा की आंखों में आंसू थे। उसने अर्जुन से कहा, “तुम्हारी गलतियों ने मुझे बहुत तोड़ा था, लेकिन आज तुम्हारी सच्चाई ने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि शायद इंसान बदल भी सकता है।” अर्जुन ने वादा किया, “अब मैं सिर्फ पति नहीं, एक पिता के तौर पर आरव के साथ रहूंगा।”

कुछ महीने बाद, मीरा बच्चों की शिक्षा के लिए खुद एक छोटी संस्था चला रही थी। अर्जुन उसकी मदद करता था और आरव दोनों के बीच पुल बन चुका था। मीरा जानती थी कि जिंदगी अभी भी आसान नहीं होगी, लेकिन अब उसके पास सच्चाई और विश्वास का सहारा था।