सच्चाई का तमाचा: डीएम मैडम की साहसी शाम
लखनऊ की एक आम शाम थी। बाजार में रौनक थी, लोग सड़कों पर घूम रहे थे। ठेले वाले अपने ग्राहकों को लुभाने में लगे थे। उसी भीड़ में एक साधारण सी महिला सूती साड़ी, सिर पर पल्लू और मोटा चश्मा लगाए पानीपुरी के ठेले पर खड़ी थी। कोई भी उसे देखता तो यही सोचता—एक आम घरेलू महिला, शायद बच्चों के लिए बाजार आई है। लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि यह महिला शहर की डीएम, यानी जिला अधिकारी है, जो आज आम लोगों की तकलीफ जानने के लिए अपना असली रूप छुपाकर आई है।
मैडम ने पानीपुरी वाले से कहा, “भैया, तीखी वाली बनाना।” पानीपुरी वाला मुस्कुराया, “मैडम, बहुत मजेदार बनाऊंगा।” मैडम ने पहला कौर लिया, स्वाद सच में लाजवाब था। वह ठेले वाले की मेहनत और व्यवहार को परख रही थीं। तभी अचानक माहौल बदल गया। चार पुलिस वाले मोटर बाइक पर आए, उनके चेहरे पर घमंड साफ झलक रहा था। उनमें से एक दरोगा ने ठेले वाले को घूरते हुए कहा, “अबे, तेरा ठेला यहां कैसे लगा है? कितनी बार कहा है सड़क पर अतिक्रमण मत कर!”
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पानीपुरी वाला हाथ जोड़कर बोला, “साहब, गरीब आदमी हूं। यही करके परिवार चलाता हूं।” लेकिन पुलिस वाले सुनने को तैयार नहीं थे। दरोगा ने ठेले पर जोरदार लात मारी, सारी पानीपुरी सड़क पर बिखर गई। भीड़ सहम गई, लेकिन कोई आगे नहीं आया। डीएम मैडम से रहा नहीं गया, उन्होंने दरोगा से कहा, “यह क्या तरीका है? किसी गरीब की रोजीरोटी उजाड़ दी।” दरोगा ने तिरस्कार से हंसते हुए जवाब दिया, “मैडम, अपने घर जाओ, यह हमारा मामला है।”
मैडम ने सख्त आवाज में कहा, “गरीबों के साथ अत्याचार करना कौन सा कानून है?” दरोगा को यह बात पसंद नहीं आई। उसने गुस्से में आकर मैडम को थप्पड़ मार दिया। मैडम का चश्मा गिर गया, चेहरा लाल हो गया। चारों ओर सन्नाटा छा गया। कोई यकीन नहीं कर पा रहा था कि पुलिस ने एक महिला पर हाथ उठाया है। दरोगा ने मैडम का हाथ पकड़कर थाने ले जाने की कोशिश की। मैडम ने अपनी पहचान नहीं बताई, वे देखना चाहती थीं कि आम जनता के साथ पुलिस कैसा व्यवहार करती है।
थाने में उन्हें लॉकअप में डाल दिया गया। वहां गंदगी, बदबू और बेबसी का माहौल था। कुछ अन्य महिलाएं भी थीं, जिनके चेहरे पर डर साफ दिख रहा था। एक महिला ने पूछा, “बहन, तुझे क्यों पकड़ा?” मैडम ने मुस्कुराकर कहा, “गरीब की मदद करने की गलती कर दी।” दूसरी महिला ने आह भरते हुए कहा, “हम गरीबों के लिए इस देश में कोई जगह नहीं। पुलिस वाले हमें इंसान नहीं समझते।”
कुछ देर बाद इंस्पेक्टर आया और मैडम को धमकाने लगा, “चल, साइन कर कि तूने सरकारी काम में बाधा पहुंचाई है, नहीं तो रात भर यही रहेगी।” मैडम ने साफ मना कर दिया। इंस्पेक्टर ने गुस्से में सिपाही को इशारा किया, जिसने मैडम के बाल पकड़कर जबरदस्ती साइन करवाने की कोशिश की। लेकिन मैडम ने विरोध किया, “गलत है या अन्याय है?” सिपाही हंसने लगा, “यहां हमारा कानून चलता है।”
मैडम पर अत्याचार बढ़ता गया, लेकिन उन्होंने अपनी पहचान नहीं बताई। बाहर पत्रकार भी आ गए थे, जिन्होंने मैडम की गिरफ्तारी की खबर सुनी थी। पत्रकार ने पूछा, “मैडम, आप पर क्या आरोप है?” मैडम ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “इंसानियत दिखाने की सजा मिली है।”
अब मैडम ने सोचा, समय आ गया है कि सच्चाई सबके सामने लाई जाए। उन्होंने जेब से फोन निकाला और अपने ऑफिस को कॉल किया, “पुलिस स्टेशन में आओ, पूरी टीम के साथ।” थोड़ी ही देर में पुलिस स्टेशन में हड़कंप मच गया। सरकारी गाड़ियाँ आईं, बड़े अधिकारी उतरे। मैडम ने बाल ठीक किए, और सबके सामने कहा, “मैं जिला अधिकारी हूं।”
इतना सुनते ही दरोगा और पुलिस वाले अवाक रह गए। इंस्पेक्टर घुटनों के बल गिर गया, “मैडम, हमें माफ कर दीजिए, हमें नहीं पता था…” मैडम ने कठोर स्वर में कहा, “अगर मैं डीएम नहीं होती तो क्या तुम एक आम महिला को ऐसे ही पीटते?” पूरा पुलिस स्टेशन सन्नाटे में था। मैडम ने आदेश दिया, “दोषी पुलिस वालों को निलंबित करो, गरीबों की शिकायतें दर्ज करो, और थाने में सीसीटीवी कैमरे लगाओ।”
इस घटना ने पूरे जिले में बदलाव की लहर ला दी। लोग अब पुलिस से डरने के बजाय उनकी जवाबदेही मांगने लगे। डीएम मैडम की ईमानदारी और साहस ने सबको सिखा दिया कि सत्ता का सही इस्तेमाल जनता के भले के लिए होना चाहिए। अब लखनऊ में हर नागरिक जानता था—कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।
क्या आप भी ऐसी सच्चाई का सामना करने की हिम्मत रखते हैं? अपनी राय जरूर बताएं!
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