गरीबी, अमीरी और जिंदगी का असली खेल: अजय और रीमा की कहानी
एक छोटे से कस्बे में अजय नाम का युवक रहता था। वह एक साधारण मजदूर था, जो हर सुबह ईंट भट्टे पर काम करने जाता और शाम को थककर घर लौटता। उसकी हथेलियां फटी हुई और धूल से सनी रहती थीं, लेकिन उसके दिल में हमेशा प्यार और अपनापन भरा था। अजय की पत्नी रीमा, सुंदर और बड़े सपनों वाली लड़की थी। जब दोनों की शादी हुई, तो पूरे मोहल्ले में चर्चा थी कि रीमा जैसी पढ़ी-लिखी और खूबसूरत लड़की ने अजय जैसे मजदूर से शादी कैसे कर ली। लेकिन रीमा का कहना था कि प्यार सबसे बड़ा होता है।
शुरुआती दिन बहुत खुशनुमा थे। छोटा सा किराए का घर, टूटी चारपाई, मिट्टी का चूल्हा—इन सबके बीच अजय हर शाम रीमा के लिए कोई ना कोई छोटी सी खुशी ले आता। कभी गुड़, कभी मीठा पकवान, कभी रंगीन चुनरी। लेकिन वक्त के साथ रीमा के सपने और अजय की कमाई के बीच का फासला बढ़ने लगा। रीमा चाहती थी कि उसका पति अच्छा सूट-बूट पहने, बाइक चलाए, रेस्टोरेंट में खाना खिलाए और उसे सोने की चूड़ियां दिलाए। अजय हर बार सिर झुका देता, “अभी हालात ऐसे नहीं हैं रीमा, थोड़ा वक्त दो।”
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समस्या तब और बढ़ गई जब मोहल्ले में एक अमीर व्यापारी राहुल मेहता का घर बनने लगा। राहुल की कार, ब्रांडेड कपड़े और मुस्कान ने रीमा को अपनी ओर आकर्षित किया। रीमा की बातें बदलने लगीं। वह कहने लगी, “अजय, जिंदगी सिर्फ रोटी और दाल से नहीं चलती। औरत को भी हक है अच्छा पहनने-ओढ़ने का।” अजय चुप रहता, उसकी कमाई रीमा की तमन्नाओं के आगे छोटी पड़ जाती थी।
एक दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि रीमा ने गुस्से में कह दिया, “मैंने गलती कर दी तुमसे शादी करके। अगर चाहती तो किसी अमीर आदमी की बीवी होती, कार-बंगला होता। तुमने मुझे सिर्फ गरीबी दी है।” अजय का दिल टूट गया। कुछ ही हफ्तों बाद रीमा ने घर छोड़ दिया, तलाक भेज दिया और शहर जाकर राहुल से शादी कर ली।
रीमा के जाने के बाद अजय की जिंदगी वीरान हो गई। लेकिन उसने हार नहीं मानी, दिन-रात मेहनत करने लगा। पांच साल बाद कस्बे में मेला लगा। अजय काम से थका हुआ लौट रहा था, तभी उसकी नजर भीड़ में एक औरत पर पड़ी—वो रीमा थी। लेकिन अब उसके चेहरे पर चमक नहीं थी, कपड़े मैले, बाल बिखरे हुए, आंखों के नीचे काले घेरे। रीमा भीख मांग रही थी, “कुछ खाना दे दीजिए, दो दिन से भूखी हूं।” लोग हंस रहे थे, “अमीर घर की बहू भिखारिन बन गई।”
अजय का दिल छलनी हो गया। उसने देखा, रीमा के पास एक छोटा बच्चा भी था। रीमा ने अजय को देखा, आंखों में शर्म, डर और पछतावा था। रीमा फूट-फूटकर रोने लगी, “अजय, जिस अमीरी के लिए तुम्हें छोड़ा, उसी ने मुझे सड़क पर ला दिया। राहुल ने मुझे धोखा दिया, सब कुछ छीन गया। अब मेरे पास बस यह बच्चा है, भूख, दर्द और तन्हाई।”
अजय की आंखें नम हो गईं। उसके मन में दो आवाजें गूंज रही थीं—एक कहती थी, “इसे इसकी हालत पर छोड़ दे, यही इसका अंजाम है।” दूसरी कहती थी, “यह औरत टूट चुकी है, और बच्चा इसका क्या कसूर है?” अजय ने बच्चे को गले लगा लिया। रीमा ने कहा, “अगर मुझसे नफरत हो तो मत अपनाना, लेकिन इस बच्चे को मत ठुकराना।”
अजय ने गहरी सांस ली, “रीमा, मैं तुम्हें माफ तो नहीं कर पाया, लेकिन तुम्हें अकेला भी नहीं छोड़ सकता। इस बच्चे का हक है कि वह मां-बाप दोनों के साथ जिए।”
अजय ने रीमा और बच्चे को अपने घर ले लिया। मोहल्ले वाले ताने मारते रहे, लेकिन अजय ने सबको जवाब दिया, “यह मेरी पत्नी है, अब मेरे साथ रहेगी।” रीमा ने अपने गुनाहों का प्रायश्चित शुरू किया—घर संभाला, मजदूरी की, मेहनत की। धीरे-धीरे मोहल्ले वालों का नजरिया बदलने लगा। रीमा ने साबित कर दिया कि इंसान बदल सकता है, और अजय ने अपने दिल के जख्म भरने की कोशिश की।
एक दिन कस्बे के मेले में राहुल फिर से मिला—अब वह भी गरीबी में था। रीमा ने कहा, “असली दौलत गहनों में नहीं, एक ईमानदार पति और मासूम बच्चे में है।” अजय ने रीमा का हाथ थाम लिया, भीड़ तालियों से गूंज उठी। इस कहानी ने पूरे गांव को एक बड़ी सीख दी—गलती मानकर उसे सुधारना ही सबसे बड़ी जीत है।
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