उसे गरीब समझकर उसे मॉल से भगा दिया गया, और उसने एक ही बार में पूरा मॉल खरीद लिया।
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रोहित और उसकी छोटी बहन रिया की कहानी एक छोटे से कस्बे से शुरू हुई, जहाँ हर कोई अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी-जान से मेहनत करता था। रोहित एक मेहनती युवक था, जो अपनी बहन के लिए बेहतर जिंदगी का सपना देखता था। रिया कॉलेज में दाखिला लेने वाली थी और उसके लिए एक खास ड्रेस खरीदना रोहित की पहली प्राथमिकता थी।
एक दिन, रोहित ने अपनी बहन को लेकर शहर के सबसे बड़े मॉल, सिटी स्क्वायर मॉल, गया। मॉल की चमचमाती कांच की दीवारों के पीछे एक अलग ही दुनिया बसी थी, जहाँ हर चीज़ महंगी और शानदार लगती थी। रिया की आंखें उस मॉल की हर चीज़ को देखकर चमक रही थीं, लेकिन रोहित की जेब में पैसे कम थे।
दोनों उस बड़े शोरूम के सामने रुके जहाँ डिस्प्ले में एक नीली रंग की सादी लेकिन खूबसूरत ड्रेस टंगी थी। रिया ने फुसफुसाते हुए कहा, “भैया, यही।” रोहित ने हिम्मत जुटाई और अंदर कदम रखा। लेकिन जैसे ही सेल्समैन ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा, उसकी मुस्कान में एक नकली चमक थी। उसने ऊंची आवाज़ में कहा, “यह सेक्शन 6990 रुपये से शुरू होता है। आपकी जेब के हिसाब से डिस्काउंट रैक भी है, पर ट्रायल रूम सिर्फ कंफर्म बायरर्स के लिए है।”
रिया की उम्मीदें धूमिल होने लगीं। जब रोहित ने ड्रेस उठाकर उसका टैग देखा, तो कीमत ₹7990 थी। सेल्समैन ने ताना मारा, “औकात से बाहर चीज़ लेने का क्या फायदा? बाहर वाली दुकानों पर ट्राई कर लीजिए।”
यह ‘औकात’ शब्द जैसे पूरे मॉल की दीवारों में गूंज उठा। रोहित की कनपटी पर पसीना आ गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने कहा, “ट्रायल तो करवा दीजिए।” लेकिन सेल्समैन ने फाइल फेंकते हुए कहा, “सर पॉलिसी है, कंफर्म बायर होंगे तो ट्रायल और कार्ड पेमेंट प्रेफर है।”
रिया की आंखों में आंसू थे। वह ड्रेस वापस हैंगर पर टांग कर बाहर निकल आई। रोहित ने खुद को संभाला और कहा, “एक दिन इसी मॉल में तू जो चाहेगी चुनेगी, और जो ताना दिया है, वही आदमी हमें देखते ही नजरें झुका लेगा।”
घर लौटकर रोहित ने इंटरनेट पर सस्ते कपड़े कहाँ से खरीदें, इसकी खोज शुरू की। अगले दिन वह दिल्ली के आजाद मार्केट पहुंचा, जहाँ कपड़ों के बड़े-बड़े गोदाम थे। उसने एक छोटे से शोरूम में जाकर एक्सपोर्ट सरप्लस के बारे में पूछा। एक आदमी, तनेजा जी, ने उसे बताया कि कुछ डिफेक्ट वाले कपड़े भी मिल जाते हैं, जो सस्ते होते हैं।
रोहित ने कुछ ड्रेस खरीदीं और पड़ोस की शांति आंटी से सिलवाने को कहा। तीन दिनों बाद, रिया ने पहला ड्रेस पहना और इंस्टाग्राम पर एक पेज बनाया—”सांची सी ड्रेस”। उसने फोटो डाली और कुछ ही दिनों में एक डीएम आया, “भैया, ये ब्लू साइज एम है? कॉलेज में फ्रेशर्स पार्टी के लिए।” रोहित ने जवाब दिया, “हाँ, कल डिलीवर कर दूंगा।”
धीरे-धीरे उसका छोटा व्यवसाय बढ़ने लगा। उसने कॉलेज के बाहर पर्चे बांटे, जिसमें लिखा था, “साचीसी ड्रेस—अगर पसंद ना आए तो पैसे वापस।” लोग उसकी ईमानदारी और गुणवत्ता की तारीफ करने लगे। लेकिन चुनौती तब आई जब कुछ ग्राहक ड्रेस वापस करने लगे, सिलाई खुली या झिप खराब थी। रोहित ने बिना बहस पैसे वापस किए और ग्राहकों को भरोसा दिलाया कि अगली बार बेहतर कपड़े देगा।
फिर एक दिन तनेजा ने उसे फोन किया और कहा, “तू बड़ा बिजनेसमैन बन गया है, मेरे साथ पार्टनर बन जा, नहीं तो मैं तेरा सप्लाई काट दूंगा।” रोहित को समझ आ गया कि उसने सप्लाई चेन पर ध्यान नहीं दिया। कुछ ही दिनों में तनेजा ने माल रोक दिया, जिससे रोहित का स्टॉल खाली हो गया।
रिहा ने कहा, “भैया, अगर औकात बढ़ानी है तो किसी पर निर्भर मत रहो, अपना रास्ता खुद बनाओ।” रोहित ने किसानों से सीधे कॉटन, लिनन, सिल्क खरीदना शुरू किया। उसने अपने नेटवर्क का विस्तार किया और धीरे-धीरे सांचीसी ड्रेस एक छोटे से स्टॉल से किराए के शोरूम तक पहुंच गई।
फिर एक दिन मेरीडियन फैशन के स्टोर मैनेजर माया ने फोन किया और कहा कि वे उसके डिजाइनों में रुचि रखते हैं और पॉप-अप काउंटर देना चाहते हैं। रोहित ने तुरंत जवाब दिया, “मैं पार्टनरशिप नहीं चाहता, मैं पूरा स्टोर खरीदना चाहता हूं।”
कुछ हफ्तों बाद, उसी सिटी स्क्वायर मॉल में सांचीसी ड्रेस का फ्लैगशिप स्टोर खुला। रोहित ने अपनी बहन रिया का हाथ पकड़कर स्टेज पर ले गया और कहा, “आज मेरी बहन कोई भी ड्रेस चुनेगी, क्योंकि उसकी औकात अब किसी सेल्समैन की जुबान से तय नहीं होगी, बल्कि उसकी पसंद से होगी।”
भीड़ तालियों से गूंज उठी। वही सेल्समैन, जिसने कभी ताना मारा था, अब सिर झुका कर खड़ा था। रोहित ने मुस्कुराते हुए कहा, “औकात इंसान की जेब से नहीं, उसकी मेहनत से बनती है।” उस दिन मॉल की कांच की दीवारों में वही आवाज गूंज रही थी, लेकिन इस बार ताने की नहीं, इज्जत की।
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