कलेक्टर बनते ही हिंदु लड़की || मौलवी साहब के झोपड़े में पहुंच गई और कहा अब्बु

राधिका की कहानी: उम्मीद की एक नई किरण

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में रमेश चंद्र वर्मा और उनकी पत्नी लक्ष्मी रहते थे। लक्ष्मी गर्भवती थीं और उनका परिवार नए सदस्य के आने की खुशी से झूम रहा था। रमेश चंद्र ने बेटी के जन्म के लिए बड़े सपने देखे थे। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

डिलीवरी के दौरान लक्ष्मी की मृत्यु हो गई। डॉक्टर ने बताया कि बच्ची हुई है। रमेश चंद्र ने अपनी छोटी सी बेटी का नाम रखा – राधिका। वह अपनी बेटी को मां और पिता दोनों का प्यार देने लगे। उन्होंने उसे बड़ा करने का संकल्प लिया।

राधिका बड़ी होती गई, पढ़ाई में होशियार थी। रमेश चंद्र उसे अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाते और उसकी हर संभव मदद करते। वे कहते, “बेटी, तू पढ़-लिखकर बड़ा अफसर बनेगी और मेरा नाम रोशन करेगी।”

लेकिन अचानक एक दिन, रमेश चंद्र की भी एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। राधिका अकेली रह गई। रिश्तेदारों ने तय किया कि उसे उसकी बुआ के पास भेजा जाए। बुआ ने उसे अपने घर ले लिया, लेकिन वहां राधिका के लिए जीवन आसान नहीं था।

राधिका को घर के सारे काम करने पड़ते, खाना भी बाद में मिलता। पढ़ाई का कोई मौका नहीं था। उसने कई बार बुआ से पढ़ाई की इजाजत मांगी, लेकिन बुआ मना कर देती। राधिका अपने पिता की बातें याद करती और रोती रहती।

एक दिन उसने फैसला किया कि वह इस अत्याचार से बचकर भाग जाएगी। जब बुआ शादी में गई, तो राधिका चुपके से घर छोड़कर रेलवे स्टेशन पहुंच गई। ट्रेन में बैठते ही कुछ लड़कों ने उसकी तरफ घूरना शुरू कर दिया। वे उसके पीछे पड़ गए।

राधिका डर गई और स्टेशन पर उतरकर भागने लगी। वह एक मस्जिद के सामने पहुंची। वहां मौलवी साहब नमाज के लिए आ रहे थे। राधिका ने उनसे मदद मांगी। मौलवी साहब ने लड़कों को भगा दिया और उसे मस्जिद के अंदर बुलाया।

मौलवी साहब ने उसकी पूरी कहानी सुनी। राधिका ने बताया कि वह पढ़ना चाहती है, बड़ा अफसर बनना चाहती है। मौलवी साहब ने कहा, “बेटी, जिसका कोई नहीं होता, उसका ऊपर वाला होता है। अब तू मेरे साथ रह। मैं तुझे पढ़ाऊंगा।”

राधिका ने मौलवी साहब के साथ रहने का फैसला किया। उन्होंने उसे स्कूल में दाखिला दिलाया और उसकी देखभाल की। दो साल में राधिका ने 12वीं पास कर ली। गांव वाले उसकी सफलता देखकर आश्चर्यचकित थे।

राधिका ने आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाने की इच्छा जताई। मौलवी साहब ने उसे पैसे दिए और कहा, “अगर और चाहिए तो बताना।”

शहर पहुंचकर राधिका ने पढ़ाई के साथ-साथ होटल में काम करना शुरू किया। होटल मालिक ने उसकी कहानी सुनी और उसकी पढ़ाई में मदद करने का फैसला किया। उसने राधिका को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया।

राधिका ने मेहनत की और ग्रेजुएशन पूरी की। फिर उसने दिल्ली जाकर कोचिंग की तैयारी की और आखिरकार जिला कलेक्टर बन गई। वह अपने सपनों को पूरा कर रही थी।

एक दिन, राधिका अपने पुराने गाँव लौटी। मौलवी साहब की झोपड़ी टूटी-फूटी थी। वह उन्हें देखकर भावुक हो गई। मौलवी साहब ने उसे पहचानते ही गले लगा लिया।

गांव वाले भी उसकी सफलता पर गर्व महसूस कर रहे थे। राधिका ने मौलवी साहब को अपने साथ शहर ले जाने का प्रस्ताव रखा। वे पहले मना करते रहे, लेकिन अंत में मान गए।

राधिका ने मौलवी साहब की सेवा की और उन्हें परिवार की तरह माना। उसने अपने पति को भी मौलवी साहब की इज्जत करने को कहा।

यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद अगर हम हिम्मत और लगन से काम करें तो सफलता हमारे कदम चूमती है। राधिका ने अपने संघर्षों को पार कर अपनी मंजिल हासिल की, और अपने जीवन की सबसे बड़ी जीत पाई।

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