गर्भवती पत्नी नौकरी मांगने पहुंची, सामने बैठा था तलाकशुदा पति, फिर जो हुआ…😢
टूटे रिश्तों के बीच: आयशा की कहानी
आयशा सात महीने की गर्भवती थी। वह एक साधारण लेकिन साफ-सुथरी सलवार-कमीज पहने हुए, रिसेप्शन पर खड़ी थी। उसके चेहरे पर घबराहट और उम्मीद की मिली-जुली भावना साफ झलक रही थी। एक हाथ उसने अपने बढ़ते हुए पेट पर रखा था, जैसे वह खुद को सहारा दे रही हो। उसके कदम धीमे थे, लेकिन दिल की धड़कनें तेज़ थीं। आज उसका एक बहुत बड़ा दिन था—इंटरव्यू का दिन।
आयशा ने गहरी सांस ली और रिसेप्शनिस्ट से कहा, “जी मैम, मेरा नाम आयशा सिद्दीकी है। कंटेंट राइटर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू था।”
रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुराते हुए कहा, “आयशा जी, आपका इंतजार हो रहा था। मिस्टर कबीर आपका इंटरव्यू लेंगे। वो कैबिन नंबर तीन में हैं। आप जा सकती हैं।”
आयशा ने फिर से गहरी सांस ली और धीरे-धीरे कैबिन नंबर तीन की ओर बढ़ने लगी। हर कदम के साथ उसकी धड़कनें तेज़ हो रही थीं। यह नौकरी उसके और उसके आने वाले बच्चे के लिए बहुत जरूरी थी।
जब वह दरवाजे पर पहुंची, तो उसने हल्के से दस्तक दी। अंदर से आवाज आई, “कम इन।”
आयशा ने दरवाजा खोला और अंदर गई। कमरे के अंदर एक व्यक्ति कुर्सी पर बैठा था, उसकी पीठ दरवाजे की तरफ थी, और वह लैपटॉप पर कुछ देख रहा था।
आयशा ने हिचकिचाते हुए पूछा, “मई आई कम इन सर?”
वह व्यक्ति अपनी कुर्सी घुमाता है और आयशा को देख वह स्तब्ध रह जाता है। उसकी आंखों में आश्चर्य और दर्द दोनों झलकते हैं। आयशा के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। उसके मुंह से केवल एक शब्द निकलता है, “कबीर…”
कमरे में एक असहज खामोशी छा जाती है। कबीर, जो आयशा के पूर्व पति थे, और जिनसे उसका तलाक छह महीने पहले ही हुआ था, अब उसी कमरे में उसके सामने थे। दोनों की आंखों में अनकहे सवाल, पुरानी यादें और जख्म थे।
कबीर खुद को संभालते हुए पेशेवर बनने की कोशिश करते हैं, “आयशा, प्लीज बैठो।”
आयशा बिना कुछ कहे कांपती हुई सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाती है और अपनी नजरें नीचे झुका लेती है।
कबीर फाइल देखते हुए कहते हैं, “तुम्हारा रिज्यूमे काफी प्रभावशाली है। तो तुम इतने समय बाद काम क्यों शुरू करना चाहती हो?”
यह सवाल आयशा के दिल में जैसे कोई तीर घोंप देता है। इतने समय का मतलब था वो समय जो उसने कबीर के साथ बिताया था।
आयशा आवाज में दर्द छिपाते हुए कहती है, “जिम्मेदारियां इंसान को बहुत कुछ सिखा देती हैं, सर। और कभी-कभी उन्हें अकेले ही निभाना पड़ता है।”
कबीर उसकी बात समझते हैं। उनकी नजरें आयशा के पेट की तरफ जाती हैं और फिर वे नजरें हटा लेते हैं।
“तुम इस हालत में काम कैसे करोगी? यह एक एकांत काम है। तनाव होगा।”
आयशा नजरें उठाकर सीधे कबीर की आंखों में देखती है। उसकी आंखों में आंसू हैं।
“तनाव? तनाव क्या होता है? यह मुझसे बेहतर कौन जाने, कबीर? जब आपका पति आपको सिर्फ इसलिए छोड़ दे कि आप उसके सपनों की उड़ान में बोझ बन रही हैं। जब आपको पता चले कि आप अकेले नहीं हैं, आपके अंदर एक और जान पल रही है। और जब उस जान के भविष्य के लिए आपको दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं, उससे ज्यादा तनाव कुछ होता है क्या?”
आयशा की आवाज भर्रा जाती है। कबीर के चेहरे का रंग उड़ जाता है।
“मुझे इस बारे में नहीं पता था,” कबीर कहता है, “कैसे पता होता? तुमने तो पीछे मुड़कर देखा ही नहीं।”
“छह महीने हो गए, कबीर। एक बार भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि मैं जिंदा भी हूं या मर गई। मैं तुम्हारे बड़े घर और महंगी गाड़ियों के सपने के लिए बोझ थी। है ना? लेकिन यह बच्चा तो हमारा सपना था।”
कबीर की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। वह निशब्द खड़ा रहता है। उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था।
आयशा अपने आंसू पोंछते हुए खड़ी होती है, “मुझे यह नौकरी नहीं चाहिए। खासकर तुम्हारे रहमोकरम पर तो बिल्कुल नहीं। मैं यहां एक काबिल कैंडिडेट बनकर आई थी, तुम्हारी तलाकशुदा बीवी बनकर नहीं।”
वह अपना रिज्यूमे टेबल से उठाती है, “मैं अपने बच्चे को पाल लूंगी अपने दम पर। उसे सिखाऊंगी कि जिम्मेदारियों से भागा नहीं जाता, उन्हें निभाया जाता है।”
आयशा दरवाजे की तरफ मुड़ती है।
“रुको, प्लीज,” कबीर टूटी हुई आवाज में कहता है।
आयशा एक पल के लिए रुकती है, लेकिन पीछे नहीं मुड़ती।
“यह मेरा बच्चा है, मेरा भी उस पर हक है।”
आयशा बिना मुड़े दर्द भरी मुस्कान के साथ कहती है, “हक तब जताया जाता है जब फर्ज निभाया गया हो।”
यह कहकर वह दरवाजा खोलकर बाहर चली जाती है।
कबीर वहीं मूर्ति की तरह खड़ा रह जाता है। उसकी दुनिया एक ही पल में उजड़ भी गई थी और एक नए अनचाहे सच से आबाद भी हो गई थी। वह अपनी कुर्सी पर बैठता है और अपने हाथों में चेहरा छुपाकर रोने लगता है।
नया सवेरा
कहानी यहीं खत्म नहीं होती। यह तो बस एक शुरुआत थी।
आयशा ने उस दिन जो फैसला लिया, वह उसके लिए एक नई जिंदगी की नींव थी। उसने ठाना था कि वह अपने बच्चे के लिए एक मजबूत और आत्मनिर्भर मां बनेगी। उसने अपने अंदर के डर को पीछे छोड़ दिया और अपने सपनों को फिर से सजाने लगी।
उसने अपने परिवार और दोस्तों से मदद ली, और धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़ी होने लगी। उसने अपने लेखन कौशल को और निखारा, और कई फ्रीलांस प्रोजेक्ट्स पर काम करने लगी। उसकी मेहनत रंग लाई, और कुछ महीनों में उसने एक अच्छी कंपनी से कंटेंट राइटर की नौकरी पा ली।
कबीर ने भी अपने जीवन को सुधारने की कोशिश की। उसने महसूस किया कि उसने आयशा और बच्चे के लिए जो जिम्मेदारियां छोड़ी थीं, उन्हें अब पूरा करना होगा। उसने खुद को बदलने का निर्णय लिया।
धीरे-धीरे कबीर और आयशा के बीच बातचीत शुरू हुई। वे अपने पुराने जख्मों को भरने लगे। हालांकि वे फिर से पति-पत्नी नहीं बने, लेकिन उन्होंने एक-दूसरे के लिए सम्मान और दोस्ती बनाए रखी।
संघर्ष और समझौता
एक दिन, कबीर ने आयशा से मिलने का फैसला किया। वह उसके घर गया और कहा, “आयशा, मैं जानता हूँ कि मैंने तुम्हें और बच्चे को बहुत तकलीफ दी है। मैं अपनी गलतियों को सुधारना चाहता हूँ। क्या हम दोस्त बन सकते हैं? बच्चे के लिए?”
आयशा ने कुछ पल सोचा, फिर मुस्कुराते हुए कहा, “कबीर, हम दोस्त जरूर बन सकते हैं। बच्चे के लिए हमें साथ आना होगा। लेकिन मैं तुम्हारे सपनों का हिस्सा नहीं बनना चाहती। मैं अपने सपनों को खुद पूरा करूंगी।”
कबीर ने सिर हिलाया, “मैं तुम्हारे फैसले की इज्जत करता हूँ। चलो, हम एक नई शुरुआत करते हैं।”
एक नई उम्मीद
समय के साथ, आयशा और कबीर ने अपने बच्चे के लिए एक खुशहाल और सुरक्षित माहौल बनाया। वे एक-दूसरे का सम्मान करते हुए बच्चे की परवरिश में लगे रहे।
आयशा ने अपनी नौकरी में सफलता पाई, और कबीर ने भी अपने करियर में नई ऊंचाइयों को छुआ।
उनकी कहानी ने यह सिखाया कि जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, संघर्ष और समझदारी से उन्हें पार किया जा सकता है।
और सबसे बड़ी बात, कभी-कभी टूटे हुए रिश्ते भी नए रूप में खिल सकते हैं—जहां प्यार और सम्मान साथ-साथ चलते हैं।
अंत
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