न्याय की आवाज़: सरिता की संघर्ष गाथा
लखनऊ की भीड़-भाड़ वाली सड़कों पर एक बूढ़ी महिला, करीना देवी, रोजाना अपने छोटे से ठेले पर अंडे बेचती थी। ठेले पर अंडों की ट्रे को बड़े ध्यान से सजाते हुए, उनके चेहरे पर थकान तो साफ झलकती थी, लेकिन उनकी आंखों में रोजी-रोटी कमाने का एक अदम्य हौसला भी था। करीना देवी की इकलौती बेटी, सरिता, जिले की जिलाधिकारी (डीएम) के पद पर तैनात थी। लेकिन सरकारी कामकाज की व्यस्तता में सरिता को यह अंदाजा ही नहीं था कि उसकी मां किन हालात में अपना जीवन गुजार रही है।
करीना देवी के लिए रोज़मर्रा की जिंदगी संघर्षों से भरी थी। वह सुबह से शाम तक अंडे बेचती, ताकि घर का गुजारा हो सके। एक दिन, जब वह सड़क किनारे अपने ठेले पर अंडे बेच रही थी, तभी एक इंस्पेक्टर, राकेश वर्मा, मोटरसाइकिल पर आया। उसने गुस्से में कहा, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई सड़क किनारे अंडे का ठेला लगाने की? तुम्हारे चलते यहाँ जाम लग सकता है। जल्दी अपना ठेला हटाओ।” इतना कहकर वह गुस्से में ठेले पर जोर से लात मारने लगा और अंडों की ट्रे उठाकर जमीन पर फेंकने लगा। कई दर्जनों अंडे टूट गए और उनकी बदबू चारों ओर फैल गई।
लोग इकट्ठा हो गए और तमाशा देखने लगे। इंस्पेक्टर चिल्लाने लगा, “यह तुम्हारे बाप की सड़क है क्या? जहाँ मन किया खड़ी हो गई बेचने। अगर बेचना है तो अपनी जगह पर बेचो।” करीना देवी चुपचाप सब सहती रही, आंसुओं से भरे हुए अपनी टूटी हुई ट्रे के अंडे जमीन से उठाने लगी। भीड़ में खड़े लोग तमाशा देख रहे थे, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। भीड़ में एक लड़की थी, जो सोशल मीडिया पर मशहूर थी। उसने मोबाइल निकाला और पूरा वाकया रिकॉर्ड करने लगी।
करीना देवी मन ही मन सोच रही थी, “अगर बेटी को यह सब पता चल गया तो क्या होगा? काश यह बात कभी पता न चले, वरना तूफान आ जाएगा।” उसने टूटे अंडे वापस ठेले पर रखे और धीरे-धीरे घर की ओर चल पड़ी।
उस लड़की ने वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। कैप्शन था, “इस बूढ़ी औरत की कोई गलती नहीं थी, लेकिन इंस्पेक्टर ने उसकी अंडों से भरी ट्रे उठाकर जमीन पर फेंक दी और सड़क पर लोगों के सामने अपमानित किया। क्या यह सही है?” वीडियो तेजी से वायरल हो गया। लोग इसे साझा करने लगे और कमेंट्स में इंस्पेक्टर की निंदा करने लगे।
कुछ देर बाद यह वीडियो सरिता के मोबाइल पर पहुंचा। वीडियो देखते ही उसका खून खौल उठा। वह सोच भी नहीं सकती थी कि उसकी मां के साथ ऐसा बर्ताव हुआ है। उसने तुरंत वीडियो फोन में सेव किया और मन में संकल्प लिया कि मां के साथ जो हुआ, वह वह बर्दाश्त नहीं कर सकती। उसे इंस्पेक्टर को उसकी औकात दिखानी थी।
सरिता ने अपनी वर्दी उतारी और पीले रंग का सलवार सूट पहन लिया। अब वह एक साधारण गांव की लड़की लग रही थी। अपनी कार में बैठकर कुछ ही घंटों में घर पहुंच गई। दरवाजा खटखटाया। करीना देवी किचन में सब्जियां काट रही थीं। दरवाजा खुलते ही मां-बेटी गले लग गईं। करीना देवी के मन में डर था कि कहीं सरिता को वह घटना पता न चल गई हो।
सरिता ने मां से पूछा, “मां, आपके साथ जो हुआ, आपने मुझे क्यों नहीं बताया? यह बहुत गलत है। मैं उस इंस्पेक्टर को सस्पेंड करवा कर रहूंगी। उसे दिखाऊंगी कि कानून की ताकत क्या होती है।” करीना देवी ने डरते हुए कहा, “बेटा, छोड़ो पुलिस वाले हैं। क्या हो गया अगर उन्होंने ऐसी बातें कर दी? जाने दो।” लेकिन सरिता ने सख्ती से कहा, “नहीं मां, आप चुप रहिए। मैं जानती हूं मुझे क्या करना है।”
सरिता ने लाल रंग की सलवार सूट पहनकर सीधे उस थाने की ओर चल पड़ी, जहाँ इंस्पेक्टर राकेश वर्मा तैनात था। थाने पहुंचकर उसने एसएओ संदीप सिंह से कहा, “मुझे इंस्पेक्टर राकेश वर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवानी है। उन्होंने मेरी मां के साथ सड़क पर बदतमीजी की। मैं चाहती हूं कि उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।”
संदीप सिंह ने तिरस्कार से कहा, “क्या तुम उस बूढ़ी औरत की बेटी हो? तुम्हें लगता है मैं अपने इंस्पेक्टर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करूँगा? उन्होंने कोई गलत नहीं किया।” सरिता ने गुस्से में कहा, “देखिए, हमें कानून मत सिखाइए। मैंने कानून पढ़ा है और अच्छी तरह जानती हूं कि इसमें क्या लिखा है। मैं उसी कानून की मदद से उसे सजा दिलवाऊंगी। अगर आपने रिपोर्ट नहीं लिखी तो मैं आपके खिलाफ भी कार्रवाई करूँगी।”
संदीप सिंह हैरान रह गया। वह सोच रहा था कि यह साधारण सी लड़की इतनी आत्मविश्वास से बात कर रही है जैसे कोई बड़ी ताकत उसके पीछे हो। वह बोला, “तुम कौन हो? और तुम्हारी इतनी औकात क्या है कि हमें सस्पेंड करवाओगी? हम तुम्हें अभी अंदर करवा सकते हैं।” सरिता ने उसकी आंखों में देखते हुए मुस्कुराते हुए कहा, “समय आने पर सब पता चल जाएगा।”
तभी इंस्पेक्टर राकेश वर्मा थाने में आया। उसने हल्की मुस्कान के साथ पूछा, “क्या बात है? क्या करने आई हो?” सरिता के मन में गुस्से का तूफान था, लेकिन वह कानून की रक्षक थी। उसने कहा, “याद रखना, मैं तुम्हें सस्पेंड करवा कर रहूंगी। तुम्हें कानून में रहने का कोई हक नहीं।”
राकेश गुस्से से आग बबूला हो गया और सरिता को थप्पड़ मार दिया। फिर उसे धक्का देकर थाने से बाहर निकाल दिया। थाने के सिपाही उस पर हंसने लगे। लेकिन अगली सुबह का नजारा पूरे शहर के लिए हैरान कर देने वाला था।
सूरज की पहली किरणों के साथ सड़क पर सायरनों की गूंज फैल गई। दो पुलिस जीपें सबसे आगे रास्ता साफ करती हुई चल रही थीं। उनके पीछे काले शीशों वाली शाही डीएम की गाड़ी थी। डीएम सरिता आधिकारिक वर्दी में टोपी सिर पर सटी हुई गरिमा के साथ गाड़ी से उतरीं। थाने के बरामदे में खड़े वे सिपाही जो कल तक उस पर हंस रहे थे, अब पत्थर के बुत बन गए थे। उनके पैरों तले जमीन खिसक गई, आंखें फटी की फटी रह गईं और होंठ सूख गए।
सरिता ने बिना किसी को देखे सीधी नापतौल वाली चाल में थाने के अंदर कदम रखा। उसकी वर्दी की चमक और चारों तरफ सन्नाटा था। उसकी नजरें सीधे राकेश पर पड़ीं। राकेश ठिठक गया, उसका चेहरा रंगहीन हो गया। उसे याद आ गया कि वही लड़की जिसे उसने धक्के देकर बाहर निकाला था, अब डीएम बनकर उसके सामने खड़ी थी।
सरिता ने ठंडी लेकिन सख्त आवाज़ में कहा, “क्या हुआ? चेहरे का रंग क्यों उतर गया? कुछ दिन पहले मेरी मां के साथ जो बदसलूकी हुई, जब मैं रिपोर्ट लिखवाने आई तो तुमने मुझे धक्के मारे। आज उसी दरवाजे से वापस आई हूं। फर्क बस इतना है कि अब मैं इस थाने में डीएम की वर्दी में आई हूं।”
राकेश और संदीप के पास कोई जवाब नहीं था। वे नीचे देखकर खड़े थे। सरिता ने कहा, “आपने एक पुलिस अधिकारी की गरिमा को ठेस पहुंचाई है। मेरे माता के साथ जो व्यवहार किया, वह अमानवीय और अक्षम्य है। तुम्हारे खिलाफ विभागीय जांच होगी और तुम्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी।”
संदीप ने गिड़गिड़ाते हुए माफी मांगी, लेकिन सरिता ने उसकी एक ना सुनी। उसने एसपी साहब से कहा, “अभी के अभी इंस्पेक्टर राकेश वर्मा और संदीप सिंह को निलंबित कर दें।” एसपी ने फाइल मंगवाई, आदेश लिखे और तुरंत साइन कर दिए।
राकेश और संदीप ने वर्दी उतारी, रिवाल्वर मेज पर रख दी और थाने से बाहर कर दिए गए। यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। बाजार के दुकानदार, मोहल्ले के लोग सब खुश थे। सबने डीएम सरिता की हिम्मत और न्याय के लिए लड़ाई की जमकर सराहना की।
करीना देवी के भी आंखों में चमक आ गई। उन्हें लगा जैसे उनके साथ हुए अपमान का बदला मिल गया हो। सरिता ने मां के साथ कुछ दिन बिताए और अपनी मां को अपने साथ लेकर अपने पोस्टिंग पर चली गई।
सरिता ने स्थानीय पुलिस को सख्त आदेश दिए कि छोटे दुकानदारों और रेहड़ी ठेले वालों को सुरक्षा दी जाए और कोई भी अधिकारी या कर्मचारी उनके साथ दुर्व्यवहार करने की हिम्मत न करे।
इंस्पेक्टर राकेश वर्मा के खिलाफ विभागीय जांच शुरू हुई। जांच में उसके खिलाफ ठोस सबूत मिले। नतीजतन उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया और उस पर आपराधिक मामला दर्ज कर दिया गया। उसने अपनी गलती मान ली, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
यह कहानी सिर्फ एक इंस्पेक्टर के निलंबन की नहीं थी, बल्कि न्याय की जीत की थी। यह एक बेटी के अपने माता के प्रति अटूट प्रेम, साहस और सच्चाई के लिए लड़ने का प्रमाण थी। यह घटना पूरे शहर के लिए सीख बन गई कि वर्दी का असली सम्मान तभी है जब उसे ईमानदारी और जनता की सेवा के लिए पहना जाए।
कहानी का संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, सच्चाई और न्याय के लिए लड़ाई कभी बेकार नहीं जाती। एक बेटी का अपने मां के प्रति प्रेम और साहस समाज में बदलाव ला सकता है। न्याय की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता।
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