SP मैडम को आम लडकी समझ कर जब इंस्पेक्टर नें थप्पड़ मारा फिर इंस्पेक्टर के साथ जों हुवा…

एसपी अनन्या सिंह — न्याय की मिसाल

लखनऊ के व्यस्त बाजार में एक लड़की बिना किसी सुरक्षा के, लाल सलवार सूट और साधारण जूतों में अकेले चल रही थी। उसके हाथ में बहन ललिता की शादी की साड़ियों की लिस्ट थी। वह थी एसपी अनन्या सिंह, जो आज अपनी बहन की शादी के लिए साड़ी खरीदने निकली थी। चेहरे पर सादगी, कदमों में आत्मविश्वास, वह बाजार की भीड़ में बिलकुल एक आम ग्राहक की तरह दिख रही थी।

अनन्या की नजरें उसी पुरानी कपड़ों की दुकान पर टिक गईं, जहां वह कई बार चोरी-छिपे बिना सिक्योरिटी के आ चुकी थी। दुकान छोटी थी, चारों तरफ रंग-बिरंगी साड़ियाँ टंगी थीं। काउंटर पर मालिक रामलाल हिसाब-किताब में उलझा था और एक युवक ग्राहकों को साड़ियाँ दिखा रहा था। अनन्या को देखकर किसी ने खास ध्यान नहीं दिया। सबको लगा कि वह कोई आम ग्राहक है।

अनन्या काउंटर के पास गई और लड़के से बोली, “भैया, मेरी बहन की शादी है। उसके लिए एक अच्छी साड़ी दिखाओ।” लड़के ने बेमन से कुछ साड़ियाँ फैला दीं। अनन्या ने एक-एक करके साड़ियों को गौर से देखा। रंग, बॉर्डर सब कुछ परखा। कई साड़ियाँ पसंद नहीं आईं। कुछ हल्के रंग की थीं, कुछ ज्यादा चमकीली। वह चाहती थी कि उसकी बहन ललिता की साड़ी खास हो, जो उसकी शालीनता और सुंदरता दोनों को दर्शाए।

आधे घंटे की मेहनत के बाद उसकी नजर एक गहरे मरून रंग की साड़ी पर पड़ी। उस साड़ी पर सोने के धागों से चौड़ा बॉर्डर था और महीन कढ़ाई का काम था। वह साड़ी जैसे ललिता के लिए बनी हो। अनन्या ने साड़ी उठाई और कहा, “हां, बस यही चाहिए, इसे पैक कर दो।” रामलाल ने राहत की सांस ली, जैसे कोई बड़ी मुसीबत टल गई हो। लड़के ने जल्दी-जल्दी साड़ी को पैक किया।

पर जब अनन्या पैकेट खोलकर साड़ी निकाली, तो उसकी नजर एक टूटा हुआ धागा पर पड़ी। वह धागा लटक रहा था, और हल्का सा खिंचाव देने पर सिलाई खुलने लगी। अनन्या का चेहरा उतर गया। वह वापस काउंटर पर गई और रामलाल को दिखाते हुए बोली, “भैया, यह देखिए, इसमें धागा टूटा हुआ है। यह पूरी तरह उधड़ जाएगी।” रामलाल ने लापरवाही से कहा, “अरे मैडम, थोड़ा बहुत चलता रहता है, दर्जी से ठीक करवा लेना।”

जब इंस्पेक्टर ने SP मैडम की आम लड़की समझकर थप्पड़ मारा , फिर मैडम ने जो  किया .... - YouTube

अनन्या का गुस्सा बढ़ गया। उसने सख्ती से कहा, “मैं इतने पैसे दे रही हूं। मुझे सही साड़ी चाहिए।” रामलाल ने झुंझलाकर कहा, “अब बार-बार नहीं बदल सकते। आपने खुद देखा है।” काउंटर के पीछे खड़ा लड़का भी हंसते हुए बोला, “आपने सब जांच लिया है, अब नाटक क्यों कर रही हैं?”

अनन्या ने आत्मसम्मान के साथ कहा, “सही साड़ी दो, वरना पैसे वापस करो।” रामलाल ने आंखें तरेरते हुए कहा, “पैसे वापस नहीं होंगे।” दुकान में माहौल गर्म हो गया। अनन्या ने आवाज ऊंची की, “दुकानदारियां ऐसे नहीं चलतीं।” रामलाल ने मोबाइल निकालकर पुलिस को बुला लिया। भीड़ में फुसफुसाहट हुई कि पुलिस बुला ली गई।

अनन्या ने पास पड़ी पुरानी लोहे की कुर्सी उठाई और दुकान के बाहर बैठ गई। वह आसमान की ओर देख रही थी। ललिता की शादी का सपना उसके मन में था, लेकिन अब यह सिर्फ साड़ी की बात नहीं रही, बल्कि उसका आत्मसम्मान दांव पर था। वह जानती थी कि पुलिस आएगी, उसे पहचान लेगी और मामला खत्म हो जाएगा।

दस मिनट बाद पुलिस की पुरानी जीप आई। दरोगा विक्रम सिंह और दो सिपाही उतरे। विक्रम सिंह की तोंद बाहर निकली थी और चेहरे पर अकड़ थी। भीड़ किनारे हो गई। रामलाल ने विक्रम सिंह को इशारा किया और कहा, “साहब, यही है। वह औरत बिना वजह झगड़ा कर रही है।” विक्रम सिंह ने अनन्या को घृणा भरी नजरों से देखा।

विक्रम सिंह ने गरज कर पूछा, “कौन हो तुम? क्या तमाशा लगा रखा है?” अनन्या ने शांत होकर कहा, “तमीज से बात करो। मैं अनन्या सिंह हूं।” विक्रम सिंह ने ताना मारा, “अनन्या सिंह हो तो क्या हुआ? दुकान में हंगामा करने का लाइसेंस मिला है क्या?” अनन्या ने गहरी सांस ली, “शायद तुम्हें पता नहीं कि तुम किससे बात कर रहे हो।”

विक्रम सिंह जोर से हंसा, “अब सबकी मां बनोगी तुम। ज्यादा अकड़ मत दिखाओ। सीधे थाने चलो।” एक सिपाही आगे बढ़कर अनन्या का हाथ पकड़ने लगा। अनन्या ने उसे घूरा, वह झिझक गया। भीड़ में महिलाएं कान्हा फूंक रही थीं, “अच्छे घर की है, पर झगड़ालू।”

रामलाल ने विक्रम सिंह को कंधे से पकड़कर दुकान के अंदर ले जाकर रिश्वत दी। विक्रम सिंह ने नोट देख मुस्कुराया। फिर उसने सिपाहियों को इशारा किया, जो अनन्या की बाहें पकड़कर जीप की ओर ले गए। अनन्या ने विरोध नहीं किया, यह जानकर कि पहचान बताने से मामला बिगड़ सकता है।

थाने में अनन्या को हवालात में बंद कर दिया गया। वहां की बदबू और तंग कमरे में बैठी अनन्या ने भीतर की ताकत जुटाई। तभी एक ईमानदार दरोगा राजेंद्र सिंह ने देखा कि हवालात में एसपी अनन्या सिंह बंद है। उसने तुरंत सिपाहियों को आदेश दिया कि अनन्या को बाहर निकाला जाए।

राजेंद्र की आवाज सुन सिपाही कांप गए और ताला खोला। अनन्या बाहर आईं, उनका चेहरा शांत था, लेकिन आंखों में आक्रोश था। राजेंद्र ने दरोगा विक्रम सिंह और अन्य सिपाहियों को फटकार लगाई। खबर पूरे थाने में फैल गई, विक्रम सिंह का रंग उड़ गया।

अगले दिन अनन्या ने विक्रम सिंह को सस्पेंड कर दिया। रामलाल को भी नोटिस भेजा गया। अनन्या ने बहन की शादी की खुशी के बीच भी न्याय की लड़ाई जारी रखी। जब गुंडे शादी रोकने आए और झूठे आरोप लगाए, तो अनन्या ने उन्हें चुनौती दी और फोर्स बुलाकर भगा दिया।

फिर अनन्या ने रामलाल और भैरव सिंह के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। अवैध कब्जे हटाए, गुंडों को गिरफ्तार किया और काली डायरी बरामद की। भैरव सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।

शहर में अपराध का साम्राज्य ढह चुका था। ललिता ने अनन्या से कहा, “दीदी, मुझे आपके लिए डर लगता है।” अनन्या ने मुस्कुराकर कहा, “मैं अकेली नहीं हूं, मेरे साथ कानून, सच्चाई और तेरी दुआएं हैं।”

यह वर्दी सिर्फ कपड़ा नहीं, एक कसम है, जिसे अनन्या ने पूरी ईमानदारी से निभाया। उसकी बहादुरी ने शहर को अपराध से मुक्त कराया और न्याय की जीत हुई।

सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी बाधाएं आएं, अगर हिम्मत और सच्चाई साथ हो तो कोई भी अन्याय नहीं टिक सकता। एक सच्चे अफसर की पहचान उसकी ईमानदारी और साहस से होती है।

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