बुजुर्ग ने शादी में जाकर सिर्फ एक मिठाई ली… लोगों ने ताना मारा, लेकिन जब स्टेज पर

एक रसगुल्ला और असली दौलत की पहचान

परिचय: भव्यता के बीच एक अजनबी

शाम के 7:00 बजे थे। जयपुर के एक आलीशान फ़ार्म हाउस में एक ग्रैंड वेडिंग का माहौल था। जगमगाती लाइट्स, शहनाई की मधुर धुन और महँगे कपड़ों में चमकते मेहमान। गेट से लेकर स्टेज तक सब कुछ इतना भव्य था कि आँखें ठहर जाएँ।

इसी चकाचौंध के बीच एक बूढ़ा आदमी चुपचाप अंदर दाखिल हुआ। उसकी उम्र लगभग 78 साल थी। पहनावे में एक पुराना, धूल लगा कुर्ता, घिसा हुआ धोती और हाथ में एक लकड़ी की छड़ी। उसके पैर थरथरा रहे थे, लेकिन आँखों में कोई अजीब सा ठहराव था। जैसे वह इस माहौल से चौंका नहीं, बल्कि उसे किसी गहराई से पहचानता हो।

बिना किसी से कुछ कहे वह धीरे-धीरे भीड़ के बीच से गुज़रा। लोग उसे देखकर सिर घुमा रहे थे—कुछ तिरछी नज़रों से, कुछ हँसी में।

वह रुका… मिठाई के काउंटर पर। वहाँ हर तरह की मिठाइयाँ सजी थीं: रसगुल्ले, गुलाब जामुन, काजू कतली। बूढ़े ने हाथ बढ़ाया और बहुत आहिस्ता से बस एक रसगुल्ला उठाया। न कोई प्लेट, न कोई आग्रह—बस एक मीठा टुकड़ा जो शायद भूख से नहीं, याद से उठा था।

तिरस्कार और सन्नाटा

तभी एक औरत ने ज़ोर से कहा, “ऐ जी, यह कौन है? कोई भिखारी अंदर आ गया क्या?”

एक और मेहमान हँसते हुए बोला, “मुफ़्त का खाना खाने चले आते हैं। शादी हो या मंदिर, हर जगह मिलेंगे यह लोग।”

तीसरा आदमी बोला, “बिल्कुल फ़िल्मी सीन लग रहा है। बूढ़ा भिखारी आया मिठाई चुराने।”

हँसी का एक हल्का सा दौर चला। किसी ने मोबाइल निकालकर वीडियो बनाना शुरू किया। पर बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा। न कुछ खाया, न कुछ बोला। वह बस रसगुल्ला हाथ में लेकर एक कोने में जाकर चुपचाप बैठ गया। भीड़ से थोड़ा हटकर स्टेज की ओर देखता रहा, जहाँ दूल्हा और दुल्हन वरमाला की तैयारी में थे। उसके होंठों पर एक बेहद हल्की मुस्कान थी, जैसे वह इस शोरगुल में भी किसी शांत तस्वीर को देख रहा हो।

अचानक का मोड़

तभी अचानक स्टेज पर खड़े दूल्हे की नज़र बुजुर्ग पर पड़ी। उसकी आँखें एकदम खुल गईं। चेहरे का रंग बदल गया। उसने माइक फेंका, स्टेज से नीचे कूदा और पूरी भीड़ चौंकती रही।

दूल्हा अपने भारी कपड़ों और सेहरा लिए हुए उस बूढ़े की ओर दौड़ा। लोगों को कुछ समझ नहीं आया।

दूल्हा भीड़ चीरते हुए बूढ़े तक पहुँचा और जैसे ही पास आया, उसने झुककर बुजुर्ग के पैर छू लिए

पूरी भीड़ स्तब्ध। शहनाई रुक गई। डीजे चुप हो गया। हँसी रुक गई और नज़रों में हैरानी छा गई। दूल्हा फूट-फूट कर रो रहा था। “आप यहाँ कैसे आ गए? बाबा जी! आपने बताया क्यों नहीं?

बुजुर्ग बस धीरे से मुस्कुराया। अब शादी की रौनक सन्नाटे में बदल चुकी थी। जिन लोगों ने कुछ पल पहले उस बूढ़े पर हँसी उड़ाई थी, अब उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं। स्टेज पर खड़ा दूल्हा, एक युवा, संभ्रांत, अमीर ख़ानदान का इकलौता बेटा, ज़मीन पर घुटनों के बल बैठा था, और उसके सामने वह आदमी जिसे सबने भिखारी समझा था।

दूल्हे का इक़बाल

दूल्हे के हाथ अब भी बुजुर्ग के पैर थामे हुए थे। “आपने क्यों बताया नहीं बाबा जी कि आप आ रहे हैं? आप तो मेरे लिए सब कुछ हैं। मैं जो भी हूँ, आपकी वजह से हूँ।”

लोगों में खुसर-पुसर शुरू हो गई। “यह कौन है? क्या दूल्हे के रिश्तेदार हैं? इतना सम्मान? इतना प्रेम?”

और तभी दूल्हा उठा और सबके सामने खड़े होकर बोला, “यह भिखारी नहीं हैं! यह वो इंसान हैं जिन्होंने मुझे पाल-पोसकर बड़ा किया।”

उसकी आवाज़ में दर्द और गर्व था। “जब मैं सात साल का था, मेरे माँ-बाप एक हादसे में चल बसे थे। कोई रिश्तेदार नहीं बचा था और मैं सड़क पर आ गया था। लोगों ने मुँह फेर लिया। लेकिन इस बुजुर्ग ने अपना सब कुछ छोड़कर मुझे अपनाया। अपनी रोटियाँ आधी करके मुझे खिलाईं। पुराने अख़बारों से मुझे पढ़ना सिखाया। हर ठंड की रात में मुझे अपने बदन से ढक कर सुलाया।”

उसकी आँखें फिर भर आईं। “इन्होंने कभी मुझसे कुछ नहीं माँगा। सिर्फ़ मेरे चेहरे की मुस्कान से संतुष्ट हो जाते थे। आज मैं डॉक्टर हूँ, इसी शहर के सबसे बड़े अस्पताल का डायरेक्टर—क्योंकि एक भिखारी दिखने वाले इंसान ने मुझे सपने देखना सिखाया था।”

मान-सम्मान की तालियाँ

अब भीड़ एकदम शांत थी। किसी को शब्द नहीं मिल रहे थे। जिस बुजुर्ग को अभी कुछ देर पहले तिरस्कार मिला था, अब उसे हर निगाह सम्मान से देख रही थी।

तभी दूल्हे ने बुजुर्ग का हाथ पकड़ा और बोला, “अब आप अकेले नहीं बैठेंगे बाबा जी। आप स्टेज पर चलिए। आप मेरे माता-पिता जैसे हैं और मेरी शादी में आपके बिना आशीर्वाद अधूरा है।

बुजुर्ग की आँखें भर आईं पर उसने कोई विरोध नहीं किया। धीरे-धीरे उठे, और पहली बार किसी ने उन्हें सहारे से नहीं, सम्मान से पकड़ कर उठाया।

स्टेज की ओर जाते हुए अब वह अकेले नहीं थे। पूरा स्टाफ़, रिश्तेदार, मेहमान सब उन्हें रास्ता दे रहे थे, जैसे किसी राजा का स्वागत हो। स्टेज पर पहुँचकर दूल्हे ने उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठाया। दुल्हन ने भी झुककर उनके पैर छुए। बुजुर्ग ने काँपते हाथों से उनके सिर पर आशीर्वाद रखा।

भीड़ अब तालियाँ बजा रही थी। पर वह तालियाँ शोर के लिए नहीं थीं। वो शर्म, सम्मान और सीख की तालियाँ थीं।

बुजुर्ग का संदेश

स्टेज पर अब तस्वीर बदल चुकी थी। दूल्हा अब माइक पर आया और बोला, “आज मैं आप सबके सामने यह क़बूल करता हूँ कि जो कुछ भी मैं हूँ, इस इंसान की वजह से हूँ।”

अब बुजुर्ग की बारी थी। उन्हें माइक दिया गया। कमज़ोर हाथों से उन्होंने माइक पकड़ा और धीमे-धीमे बोले, “मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि मेरा एक टुकड़ा रसगुल्ला इतना भारी पड़ जाएगा। मैं तो बस उस पल को देखना चाहता था जब वह बच्चा जो कभी फटे स्कूल बैग के लिए रोता था, आज अपने जीवन की नई शुरुआत कर रहा है।”

वह कुछ पल रुके, और फिर उनकी आवाज़ में ज़िंदगी का सार था। “जिस समाज में मैंने उसे आगे बढ़ते देखा, वहीं आज जब मैंने एक मिठाई उठाई, मुझे फिर से वहीं ला खड़ा किया गया जहाँ मैं था—नीचे। पर आज आप सबने मुझे फिर ऊपर उठा दिया। ध्यान रखिए, जिसे आप एक मिठाई चुराते देख हँसते हैं, वो कभी किसी को ज़िंदगी की मिठास सिखा चुका होता है।

भीड़ अब रो रही थी। कुछ ने चेहरा छुपाया। कुछ ने अपने बच्चों का हाथ पकड़ा और कहा, “सीखो, बेटे। यह होती है असली महानता।

विदाई और विरासत

शादी अब पहले जैसी नहीं रही। दावत जारी थी, लेकिन अब हर किसी ने कम से कम एक प्लेट बुजुर्गों के लिए निकाली। उस कोने की मिठाई टेबल पर अब एक नई तख़्ती लग गई थी:

“यहाँ हर मिठाई पर किसी की कड़वी ज़िंदगी की कहानी छुपी हो सकती है।”

शादी की रात समाप्त हो चुकी थी। बुजुर्ग फिर से बाहर जा रहे थे, चुपचाप। पीछे से दूल्हे ने दौड़कर उनका हाथ पकड़ लिया। “बाबा जी, आप अब कहीं नहीं जाएँगे। आप मेरे घर चलेंगे, हमेशा के लिए।”

बुजुर्ग मुस्कुराए। “नहीं बेटा। अब मेरी जगह हर उस बच्चे के दिल में है जिसे दुनिया छोड़ देती है, लेकिन कोई उठाकर फिर से खड़ा कर देता है। मैं रहूँ या न रहूँ, पर याद रखना जिसने मिठाई उठाई थी उसने कभी किसी को भूखा नहीं सोने दिया था। जिसे तुमने एक रसगुल्ले के लिए हँसाया, उसी ने कभी किसी को पूरी ज़िंदगी की मिठास दी थी। इंसान को उसके कपड़े से मत पहचानो। कभी-कभी फटी जेब में सबसे कीमती यादें होती हैं।”