तलाक के तीन दिन बाद ही कोई दूसरा मर्द के साथ की सादी पति ही ने कार्यवाही की तो पता चला अशली सच…

तलाक के तीन दिन बाद शादी – दिव्या और देवेश का रहस्य
उत्तर भारत के एक शहर में देवेश नाम का एक सीधा-सादा युवक रहता था। उसकी शादी दिव्या से हुई थी, दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे। देवेश को दिव्या से पहली ही मुलाकात में प्यार हो गया था। दोनों की दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई और फिर कुछ ही महीनों में शादी हो गई। शादी के शुरुआती दिन बहुत खूबसूरत थे। दिव्या देवेश के लिए नाश्ता बनाती, दोनों ऑफिस साथ जाते, शाम को घूमने जाते। देवेश को लगता था उसकी जिंदगी अब पूरी है।
लेकिन वक्त का पहिया कब किसकी किस्मत बदल दे, कोई नहीं जानता। कुछ ही महीनों बाद दिव्या का व्यवहार बदलने लगा। वह चुपचाप रहने लगी, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगी। देवेश ने कई बार उससे बात करने की कोशिश की, लेकिन दिव्या ने बस यही कहा – “मुझे अपने अंदर बहुत खालीपन महसूस होता है, मैं खुश नहीं हूं।”
धीरे-धीरे झगड़े बढ़ने लगे। एक दिन दिव्या ने साफ कह दिया – “मुझे तलाक चाहिए।” देवेश के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने बहुत समझाया, लेकिन दिव्या ने अपना फैसला नहीं बदला। दोनों का तलाक हो गया।
तलाक के तीन दिन बाद ही सोशल मीडिया पर देवेश ने दिव्या की दूसरी शादी की तस्वीर देखी। देवेश को यकीन ही नहीं हुआ कि जिस महिला ने सात फेरे लिए थे, हर सुबह उसके लिए चाय बनाई थी, वही अब किसी और की दुल्हन बन गई। देवेश पूरी रात यही सोचता रहा – क्या दिव्या का पहले से किसी के साथ चक्कर था? आखिर तीन दिन में कोई शादी कैसे कर सकता है?
देवेश ने तय किया कि वह सच का पता लगाएगा। उसने खोजबीन शुरू की। पता चला कि दिव्या ने विवेक नाम के एक आदमी से शादी की है, जो एक बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी का मालिक है। देवेश ने गूगल पर विवेक को खोजा, लेकिन उसके बारे में बहुत कम जानकारी मिली। ना कोई सोशल मीडिया अकाउंट, ना कोई पर्सनल डिटेल।
देवेश ने ऑफिस से छुट्टी ली और विवेक की कंपनी पहुंच गया। वहां रिसेप्शन पर उसने नौकरी के लिए इंटरव्यू का बहाना बनाया ताकि अंदर जा सके। दीवार पर विवेक की बड़ी तस्वीर थी, उसी के साथ दिव्या भी खड़ी थी। तस्वीर के नीचे एक अजीब सा चिन्ह बना था – एक गोला जिसमें तीन लाइनें थीं और उसके नीचे कुछ लिखा था। देवेश को वह चिन्ह समझ नहीं आया, लेकिन बेचैनी जरूर हुई।
उसने रिसेप्शनिस्ट से पूछा – “यह क्या है?”
लड़की बोली – “यह कंपनी का पुराना प्रोजेक्ट है, इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी जाती।”
देवेश को लगा मामला कुछ बड़ा है। वह अपने पत्रकार दोस्त पवन के पास गया और सारी बात बताई। पवन ने अपनी टीम से इन्वेस्टिगेशन शुरू करवाई। कुछ घंटों बाद पवन ने फोन किया – “देवेश, तुम सही थे। विवेक रहस्यमय आदमी है। उसके तीन पासपोर्ट हैं, तीन नामों से कारोबार करता है, दो देशों में जांच चल रही है।”
देवेश ने पूछा – “क्या दिव्या को यह सब पता था?”
पवन बोला – “शायद नहीं, या फिर उसने मजबूरी में शादी की है।”
पवन ने बताया, दो दिन बाद विवेक की रिसेप्शन पार्टी है, मीडिया को भी बुलाया गया है। पवन ने देवेश के लिए एक कार्ड दिलवा दिया। देवेश रिपोर्टर बनकर पार्टी में पहुंच गया। वहां उसने देखा दिव्या नीली साड़ी में आई थी, उसकी मुस्कान बनावटी थी। दिव्या एक कोने में गई, किसी महिला से धीरे-धीरे कुछ कह रही थी – “सब ठीक है, मैंने शादी कर ली है, अब मेरे भाई को छोड़ दो।” देवेश समझ गया – यह शादी किसी सौदे का हिस्सा थी।
वह महिला वही रिसेप्शनिस्ट थी, जिसके हाथ में वही चिन्ह था। देवेश समझ गया – दिव्या किसी जाल में फंसी है। देवेश ने विवेक की गाड़ी का पीछा किया, जो शहर के बाहरी इलाके में एक पुरानी फैक्ट्री पर रुकी। वहां अंदर कई लोग कुछ बॉक्स पैक कर रहे थे, जैसे कोई सीक्रेट ऑपरेशन चल रहा हो।
देवेश दीवार के पीछे छिपकर यह सब देख रहा था, तभी अचानक किसी ने उसकी गर्दन पर वार किया। वह बेहोश हो गया। जब आंख खुली तो खुद को एक कमरे में पाया, सामने विवेक बैठा था।
विवेक बोला – “देवेश, तुम बहुत जिज्ञासु हो, यह अच्छी बात नहीं है।”
देवेश बोला – “दिव्या को छोड़ दो, उसने मजबूरी में शादी की है।”
विवेक मुस्कुराया – “तुम सोचते हो वह मजबूर है, लेकिन सच्चाई कुछ और है।”
विवेक ने स्क्रीन ऑन की, एक वीडियो चलाया – उसमें दिव्या कह रही थी – “मिशन लगभग पूरा हो गया है, अब देवेश को रास्ते से हटाना होगा।”
देवेश चिल्लाया – “यह झूठ है!”
विवेक बोला – “नहीं, यह रिकॉर्डिंग तुम्हारी पत्नी की है। वह हमारे लिए काम करती थी, तुम्हारे ऑफिस से डाटा निकालना चाहती थी, जो हमारे प्रोजेक्ट के लिए जरूरी था। जब वह भावनाओं में फंस गई तो उसे निकालना पड़ा और तुम्हारे खिलाफ केस बनवाकर हमें डाटा तक पहुंचा दिया। तलाक और शादी सब एक नाटक था, ताकि पुलिस और सिस्टम को भ्रम में रखा जा सके।”
देवेश हैरान रह गया। तभी कमरे में पुलिस घुस गई – पवन और उसकी टीम ने छापा मारा। विवेक गिरफ्तार हुआ, लेकिन दिव्या वहां नहीं थी। पुलिस चार दिन तक दिव्या को ढूंढती रही, कोई सुराग नहीं मिला। देवेश टूट चुका था, लेकिन उसके भीतर अब डर नहीं था, बस एक सवाल था – क्या दिव्या गुनहगार थी या उसे किसी ने इस्तेमाल किया?
एक रात देवेश को एक कॉल आया – “अगर सच्चाई जाननी है तो पुराने गन्ने के मील के पीछे आ जाओ।”
देवेश वहां पहुंचा, सामने दिव्या थी।
दिव्या बोली – “देवेश, तुम मुझे गलत समझ रहे हो। मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूं। मैं सीबीआई के लिए काम करती थी। विवेक को पकड़ने के मिशन में थी और तुम्हारे ऑफिस से जो डाटा चाहती थी, वह उसकी कंपनियों की ब्लैक मनी का रिकॉर्ड था। लेकिन जब मामला गड़बड़ा गया तो मुझे गायब होना पड़ा।”
देवेश ने पूछा – “तो तलाक और शादी?”
दिव्या बोली – “वह सब छल था, ताकि मिशन को असली रूप दिया जा सके। मैं तुम्हें बचाना चाहती थी।”
अचानक गोली चली – दिव्या गिर गई। देवेश को किसी ने आंखों पर पट्टी बांध दी और वह बेहोश हो गया। जब जागा तो अस्पताल में था। पवन ने बताया – “दिव्या जिंदा नहीं बची, लेकिन उसने जो पेनड्राइव दी उसमें सबूत हैं जो विवेक के नेटवर्क को खत्म कर देंगे।”
कुछ दिन बाद अखबारों में खबर थी – ऑपरेशन नेमेसिस का खुलासा, कई बड़े नाम पकड़े गए। देवेश ने दिव्या की तस्वीर देखी – “तुम झूठी नहीं थी, तुम योद्धा थी।”
एक महीने बाद देवेश को डाक से एक लिफाफा मिला – उसमें एक चैन और एक चिट्ठी थी – “जब सच्चाई मरती नहीं तो प्यार भी नहीं मरता। – दिव्या एम”
देवेश ने वह चैन पकड़ी, उसमें एक छोटा सा पेंडेंट था – खोलने पर एक चिप निकली। उसने लैपटॉप में लगाई – स्क्रीन पर फाइलें खुलीं, जिसमें कोर्ट और नामों की लिस्ट थी – ऑपरेशन नेमेसिस फेज टू।
तभी स्क्रीन पर एक पॉपअप आया – “तुम्हें यहां नहीं होना चाहिए – आर्यन” और लैपटॉप बंद हो गया। बाहर देखा तो लाल वैगन में दो आदमी बैठे थे, जो उसके घर की ओर देख रहे थे। देवेश ने चिप जेब में रख ली – उसे एहसास हुआ असली अध्याय अब शुरू हुआ है।
अगली सुबह देवेश ने पवन से संपर्क किया, सब बताया। पवन ने कहा – “मैं चिप सीबीआई को दूंगा।”
रास्ते में उनकी गाड़ी को ट्रक ने टक्कर मारी – गाड़ी पलट गई, पवन गायब था, चिप भी गायब थी। देवेश को लगा किसी ने प्लानिंग से हमला किया है। वह लड़खड़ाते हुए पास के ढाबे तक गया। वहां एक बूढ़ा आदमी बैठा था – “बेटा, यहां तो कोई एक्सीडेंट नहीं हुआ।”
देवेश हैरान रह गया – उसे समझ नहीं आया पूरे दिन के 10 घंटे कैसे गायब हो गए। फोन में सारे संपर्क मिटे थे, पुरानी फोटो भी गायब थी। अब वह अकेला था, सबूत उसके हाथ से निकल चुके थे।
देवेश ने तय किया कि वह दिव्या के पुराने घर जाएगा। वहां दीवारों पर वही चिन्ह बने थे जो उसने विवेक की कंपनी में देखे थे। हर निशान जोड़कर देखा – एक शब्द उभरा – “ट्रुथ लाइन”। नीचे एक तारीख थी – दो दिन बाद, स्थान – पुराना एयरफील्ड।
उस दिन देवेश नकली पहचान लेकर एयरफील्ड पहुंचा। वहां काले कपड़ों वाले लोग और एक हेलीकॉप्टर था। अचानक एक औरत उतरी – चेहरा नकाब में था, चाल दिव्या जैसी। देवेश ने पास जाकर देखा – सच में दिव्या थी।
दिव्या बोली – “मुझे मरना पड़ा ताकि जो लोग मुझे मारना चाहते थे वे भूल जाएं। मैं फेक डेथ रिपोर्ट में गायब घोषित हुई और सीबीआई के गुप्त नेटवर्क में चली गई। अब मैं मिशन की अगुवाई कर रही हूं। लेकिन अब मेरा बॉस भ्रष्ट हो चुका है – वह असली गद्दार है।”
देवेश ने कहा – “कौन है वह?”
दिव्या बोली – “वही व्यक्ति जो तुम्हारा दोस्त था – पवन।”
अब सब सच्चाई सामने थी। पवन चिप लेकर हेलीकॉप्टर से भागने वाला था। देवेश और दिव्या ने कंट्रोल रूम की ओर दौड़ लगाई। पवन हेलीकॉप्टर में बैठ रहा था – देवेश ने दरवाजा पकड़ा, दोनों में संघर्ष हुआ। हेलीकॉप्टर का ब्लेड चालू हो गया, पवन नीचे गिर पड़ा और मर गया। दिव्या ने देवेश को खींचा, दोनों ने हेलीकॉप्टर रोक दिया। पुलिस पहुंची, सबूत मिले – ऑपरेशन नेमेसिस का पर्दाफाश हो गया।
कुछ महीने बाद देश के कई भ्रष्ट अफसर पकड़े गए। देवेश ने नौकरी छोड़ दी, गांव में छोटी दुकान खोल ली। एक दिन जब घर गया तो दरवाजे पर दस्तक हुई – सामने दिव्या खड़ी थी।
दिव्या बोली – “बहुत वक्त लग गया, पर अब हम आज़ाद हैं।”
देवेश मुस्कुराया – “अब कोई मिशन नहीं, कोई डर नहीं।”
दिव्या ने कहा – “अब बस सच्चाई और सुकून है।”
देवेश ने कहा – “देखो दिव्या, उस रोशनी में भी बारिश की बूंदें चमक रही हैं।”
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