लड़के ने बनाया पानी से चलने वाला स्कूटर, सबने मज़ाक बनाया, फिर चीन से मिला ऐसा गिफ्ट जिसकी कल्पना भी

“धनौरा का हैवी इंजीनियर: पानी से चलने वाले स्कूटर की कहानी”
धनौरा गांव, उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर बसा एक पिछड़ा इलाका, जहां जिंदगी आज भी दशकों पुरानी रफ्तार से चलती थी। कच्ची सड़कें, कुछ घंटों के लिए आती-जाती बिजली और ज्यादातर लोगों के लिए खेती ही एकमात्र सहारा थी। इसी गांव की एक तंग गली में एक छोटा सा आधा कच्चा, आधा पक्का मकान था, जिसमें संजय अपनी विधवा मां पार्वती के साथ रहता था।
संजय गांव के बाकी लड़कों जैसा नहीं था। उसकी दुनिया खेल-कूद या दोस्तों के साथ गपशप तक सीमित नहीं थी। उसकी दुनिया थी टूटे-फूटे फेंके हुए सामानों के ढेर में। वह कबाड़ी वाले का सबसे पसंदीदा ग्राहक था। लोग जिसे कचरा समझकर फेंक देते, संजय उसमें अपने काम की चीज ढूंढ लेता। उसका घर का पिछवाड़ा किसी प्रयोगशाला से कम नहीं था—पुराने पंखे के पुरजे, टूटे हुए रेडियो, खराब हो चुकी साइकिल की चैन, जंग लगी मोटरें, यह सब उसका खजाना था। वह घंटों इन्हीं चीजों में खोया रहता, कुछ न कुछ खोलता, जोड़ता और एक नई चीज बनाने की कोशिश करता।
उसके पिता, जो गांव के एकमात्र ट्रैक्टर मैकेनिक थे, एक हादसे में गुजर गए थे। संजय तब बहुत छोटा था। विरासत में उसे मिला था औजारों का एक पुराना बक्सा और मशीनों से गहरा लगाव। मां चाहती थी कि वह पढ़े-लिखे, लेकिन संजय का मन किताबों में कम और मशीनों में ज्यादा लगता था। जैसे-तैसे उसने 12वीं पास की, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए घर में पैसे नहीं थे। घर चलाने के लिए मां दूसरों के खेतों में मजदूरी करती और सिलाई का छोटा-मोटा काम करती। संजय भी कभी-कभी पास के कस्बे में गैराज में काम करता। लेकिन उसका असली मन तो अपने आविष्कारों में ही रमता था।
गांव वाले उसकी इस आदत को समझ नहीं पाते थे। जब वह किसी पुरानी मोटर को ठीक करने में लगा होता या तारों के जंजाल से जूझ रहा होता, तो गांव के चौपाल पर बैठे लोग उसे देखकर हंसते—अरे देखो, धनोरा का हैवी इंजीनियर आ गया। कोई कहता, “क्या कर रहा है रे संजय, आज कौन सा जहाज बना रहा है?” ये तंज उसे रोज सुनने को मिलते। लेकिन संजय चुपचाप अपना काम करता रहता। उसकी आंखों में एक सपना था—एक ऐसी गाड़ी बनाने का जो पेट्रोल या डीजल से न चले।
उसने देखा था कि कैसे पेट्रोल की बढ़ती कीमतें गांव के किसानों की कमर तोड़ रही थीं। कई लोगों के लिए मोटरसाइकिल चलाना अब एक विलासिता बन गया था। संजय ने विज्ञान की किताबों में पढ़ा था कि पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ा जा सकता है और हाइड्रोजन एक शक्तिशाली ईंधन है। यह विचार उसके दिमाग में घर कर गया था। क्या हो अगर वह पानी से गाड़ी चला दे? यह सोच ही किसी पागलपन से कम नहीं थी, खासकर धनोरा जैसे गांव में।
लेकिन संजय के लिए यह एक जुनून था। उसने अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए दिन-रात एक कर दिया। उसने कबाड़ से एक पुरानी जंग लगी स्कूटर का ढांचा खरीदा। गैराज में काम करके जो थोड़े बहुत पैसे वह बचाता, उससे वह छोटे-मोटे पुर्जे खरीद लाता। उसका सबसे बड़ा चैलेंज था एक ऐसा सिस्टम बनाना जो पानी से हाइड्रोजन को अलग कर सके और उसे इंजन के लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर सके—इसे इलेक्ट्रोलाइसिस कहते हैं। यह उसने पढ़ा था, लेकिन इसे बनाने के लिए सही उपकरण और ज्ञान की जरूरत थी। उसके पास न तो उपकरण थे और न ही कोई सिखाने वाला। उसका गुरु था—उसका अनुभव, उसकी गलतियां और उसका अटूट विश्वास।
उसने एक स्टील के कंटेनर को मॉडिफाई करके एक इलेक्ट्रोलाइजर बनाया। उसने बैटरी से करंट पास करने के लिए जुगाड़ किया। उसने गैस को इंजन तक ले जाने के लिए पाइपों का एक जटिल नेटवर्क बनाया। यह सब आसान नहीं था। कई बार छोटे-मोटे धमाके हुए, जिससे उसकी झोपड़ी धुएं से भर जाती। कई बार उसे बिजली के झटके भी लगे। मां उसे देखकर रोती और कहती, “बेटा, छोड़ दे यह सब। कहीं तुझे कुछ हो गया तो मैं जीते जी मर जाऊंगी।” संजय अपनी मां को समझाता, “मां, बस थोड़ा समय और दे दे। देखना, एक दिन सब ठीक हो जाएगा।”
गांव वालों के लिए यह सब एक तमाशा था। जब भी उसके प्रयोगशाला से कोई धमाके की आवाज आती, तो लोग कहते, “लो, हैवी इंजीनियर साहब ने आज फिर कोई बम फोड़ दिया।” गांव का सरपंच, जो थोड़ा पढ़ा-लिखा और अकड़ू था, वह तो उसे पागल ही समझता था।
लगभग दो साल की अथक मेहनत के बाद वह दिन आया जब संजय को लगा कि उसका आविष्कार तैयार है। उसने अपने जुगाड़ वाले इलेक्ट्रोलाइजर को स्कूटर में फिट किया। पानी की एक बोतल को ईंधन टैंक की जगह लगाया। तारों को जोड़ा, पाइपों को कसा और अपनी मां को आवाज दी, “मां, बाहर आकर देख।” पार्वती डरते-डरते बाहर आई। गांव के कुछ और लोग भी तमाशा देखने जमा हो गए। संजय ने गहरी सांस ली, भगवान का नाम लिया और स्कूटर का सेल्फ स्टार्ट दबाया। पहले तो स्कूटर से सिर्फ घड़घड़ाहट की आवाज आई। लोगों की दबी-दबी हंसी सुनाई देने लगी। संजय का दिल बैठ गया। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने एक तार को थोड़ा और कसा और दोबारा कोशिश की। और फिर एक चमत्कार हुआ—स्कूटर का इंजन स्टार्ट हो गया। लेकिन यह आवाज पेट्रोल वाले स्कूटर जैसी नहीं थी। यह एक बहुत ही धीमी, लगभग शांत सी भिनभिनाहट थी और सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि साइलेंसर से धुआं नहीं निकल रहा था, बल्कि पानी की कुछ बूंदें टपक रही थीं।
संजय की आंखें खुशी से चमक उठीं। वह उछल पड़ा, “मां, चल गया! मेरा स्कूटर चल गया!” वह स्कूटर पर बैठा और धीरे-धीरे उसे गली में चलाने लगा। लोग अविश्वास से अपनी आंखों को मल रहे थे। यह कैसे हो सकता है? बिना पेट्रोल के स्कूटर? जरूर कोई जादू टोना है या कोई धोखा है। सरपंच ने उसे रोक के कहा, “हे लड़के, यह क्या नौटंकी है? जरूर तूने इसमें कहीं पेट्रोल की टंकी छिपा रखी होगी।” संजय ने उसे पूरा सिस्टम दिखाया, पानी की बोतल दिखाई, लेकिन किसी ने उसकी बात पर यकीन नहीं किया। वे उसकी मेहनत को सराहने की बजाय उसका मजाक उड़ाने लगे। “अरे वाह, अब तो पानी से गाड़ियां चलेंगी। पेट्रोल पंप बंद हो जाएंगे। संजय तो अंबानी को भी पीछे छोड़ देगा।” हर तरफ से ठहाके और तानों की बौछार हो रही थी।
संजय का चेहरा उतर गया। जिस पल को वह अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा पल समझ रहा था, वह एक भद्दे मजाक में तब्दील हो गया था। निराश होकर वह घर लौट आया। उसकी मां ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, तू परेशान मत हो। तूने जो किया है, वह कोई मामूली बात नहीं है। यह लोग अज्ञानी हैं। यह तेरी काबिलियत को नहीं समझ सकते।”
संजय जानता था कि उसे अपने आविष्कार को साबित करना होगा। लेकिन कैसे? उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं था। उसने स्थानीय प्रशासन के कार्यालय में जाकर अधिकारियों से मिलने की कोशिश की, लेकिन उसे चपरासी ने ही भगा दिया। उसने कुछ स्थानीय पत्रकारों से भी संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने एक गंवार लड़के की पानी वाले स्कूटर की कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। वह लगभग हार मान चुका था। उसे लगने लगा था कि उसका सपना, उसकी मेहनत सब बेकार चली गई है।
तभी गांव में एक छोटा सा YouTube चैनल चलाने वाले एक नौजवान अजय की नजर संजय पर पड़ी। अजय का चैनल ‘धनौरा की आवाज’ के नाम से था, जिस पर वह गांव की छोटी-मोटी खबरें दिखाता था। उसके कुछ हजार सब्सक्राइबर थे। उसने संजय के स्कूटर के बारे में सुना था। बाकी लोगों की तरह उसे भी यह एक मजाक ही लगा था, लेकिन उसे लगा कि इस पर एक मजेदार वीडियो बन सकता है। वह अपना सस्ता सा मोबाइल फोन लेकर संजय के घर पहुंच गया। उसने संजय से कहा, “सुना है तुमने पानी से चलने वाला स्कूटर बनाया है। चलो, हमें भी दिखाओ अपना कमाल।” संजय पहले तो हिचकिचाया। उसे लगा कि यह भी उसका मजाक ही उड़ाएगा। लेकिन अजय ने उसे यकीन दिलाया कि वह बस एक वीडियो बनाना चाहता है।
संजय मान गया। उसने अजय को पूरा सिस्टम समझाया, स्कूटर चला कर दिखाया। अजय ने सब कुछ रिकॉर्ड कर लिया। उसने वीडियो का एक सनसनीखेज सा टाइटल रखा—”देखिए धनौरा के हैवी इंजीनियर का कमाल: पानी से चला दी स्कूटर”—और उसे अपने चैनल पर अपलोड कर दिया।
जैसा कि उम्मीद थी, वीडियो पर ज्यादातर कमेंट्स मजाक उड़ाने वाले ही थे। लोगों ने संजय को पागल और धोखेबाज कहा। लेकिन इंटरनेट की दुनिया बहुत अजीब है। आप नहीं जानते कि कौन सी चीज कब और कहां पहुंच जाए।
1000 मील दूर चीन के शंघाई शहर में दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनियों में से एक ‘फ्यूचर विंग्स टेक्नोलॉजी’ का विशाल मुख्यालय था। कंपनी के रिसर्च एंड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में लिन यांग नाम का एक युवा इंजीनियर, जो भारत के ग्रामीण नवाचारों पर रिसर्च कर रहा था, YouTube पर कुछ देख रहा था। एल्गोरिदम ने उसे अजय का वीडियो सुझाया। लिन को हिंदी नहीं आती थी, लेकिन उसने वीडियो देखा। वीडियो की क्वालिटी खराब थी, लड़का भी देहाती लग रहा था, लेकिन जो चीज उसने देखी उसने उसे अपनी कुर्सी पर सीधे बैठने पर मजबूर कर दिया—एक स्कूटर जो स्पष्ट रूप से पानी से चल रहा था और धुआं नहीं छोड़ रहा था।
उसने वीडियो को कई बार देखा, उसे ज़ूम करके उस जुगाड़ वाले सिस्टम को समझने की कोशिश की। उसे लगा कि इसमें कुछ तो खास है। उसने तुरंत अपने बॉस मिस्टर चेन को वह वीडियो दिखाया। मिस्टर चेन कंपनी के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी इंजीनियरों में से एक थे। उन्होंने भी वीडियो को गौर से देखा। उन्होंने लिन से कहा, “यह विश्वसनीय लगता है। लेकिन जिस तरह से उसने हाइड्रोजन को सीधे इंजन में फीड करने के लिए एक सरल प्रणाली बनाई है, वह सैद्धांतिक रूप से संभव है। यह कच्चा है, यह आदिम है, लेकिन इसके पीछे का विचार शानदार है।”
मिस्टर चेन ने कंपनी के सीईओ, एक दूरदर्शी व्यक्ति मिस्टर गाउली से बात की। उन्होंने कहा, “सर, हमें भारत के एक गांव में एक अप्रत्याशित प्रतिभा मिली है। मुझे लगता है कि हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए।” मिस्टर गाउली ने वीडियो देखा और तुरंत एक फैसला लिया। उन्होंने कहा, “अपनी सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरों की एक टीम तैयार करो। भारत जाओ, उस गांव को ढूंढो, उस लड़के से मिलो। पता लगाओ कि यह हकीकत है या फरेब। अगर यह हकीकत है, तो उस लड़के और उसकी तकनीक को किसी भी कीमत पर हासिल करो।”
इधर धनौरा में संजय अपनी जिंदगी जी रहा था, इस बात से पूरी तरह अनजान कि दुनिया के दूसरे कोने में उसकी किस्मत का फैसला हो रहा था। एक हफ्ते बाद धनोरा गांव की धूल भरी सड़कों पर कुछ ऐसा हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था—तीन चमकती हुई काली लग्जरी गाड़ियां गांव में दाखिल हुईं। गाड़ियों के शीशे काले थे और वे आकर सीधे सरपंच के घर के सामने रुकीं। पूरा गांव इकट्ठा हो गया। सरपंच अपनी सबसे अच्छी धोती पहनकर बाहर आया। उसे लगा कि कोई बड़ा सरकारी अफसर दौरे पर आया है। गाड़ियों से कुछ चीनी लोग उतरे, जो महंगे सूट पहने हुए थे। उनके साथ एक भारतीय दुभाषिया भी था।
सरपंच ने हाथ जोड़कर उनका स्वागत किया। “अब बताइए साहब, हमारे लिए क्या सेवा है?” दुभाषिया ने कहा, “हम फ्यूचर विंग्स टेक्नोलॉजी से आए हैं। हम यहां मिस्टर संजय से मिलने आए हैं।” यह सुनकर सरपंच और वहां मौजूद सभी लोगों के होश उड़ गए। संजय, इस पागल लड़के से मिलने के लिए चीन से लोग आए हैं! उन्हें लगा कि वे कोई मजाक कर रहे हैं। सरपंच ने घबराते हुए कहा, “संजय? वो तो एक सीधा-साधा लड़का है, थोड़ा दिमाग से हिला हुआ है। आप उससे क्यों मिलना चाहते हैं?” दुभाषिया ने सख्ती से कहा, “हमें अपना काम करने दीजिए। कृपया हमें उनके घर ले चलिए।”
भीड़ संजय के घर की तरफ चल पड़ी। संजय अपनी प्रयोगशाला में कुछ काम कर रहा था। जब उसने अपने दरवाजे पर इतनी भीड़ और इन अजनबी सूट-भूट वाले लोगों को देखा तो वह डर गया। उसे लगा कि उसने कोई कानून तोड़ दिया है और पुलिस उसे पकड़ने आई है। पार्वती भी घबरा कर बाहर आ गई। दुभाषिया ने बहुत ही विनम्रता से अपना परिचय दिया और कहा, “संजय जी, हमने इंटरनेट पर आपके पानी से चलने वाले स्कूटर का वीडियो देखा है। हम उसी के बारे में बात करने आए हैं।”
संजय को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। ये लोग उसके स्कूटर के लिए चीन से आए हैं! चीनी इंजीनियरों की टीम ने संजय से उसका स्कूटर दिखाने का अनुरोध किया। संजय उन्हें अपनी झोपड़ी में ले गया। जब उन इंजीनियरों ने उस जुगाड़ वाले सिस्टम को देखा—वो स्टील का कंटेनर, वे पुराने पाइप, वो जटिल वायरिंग—तो वे एक-दूसरे को देखने लगे। गांव वालों को लगा कि वे भी इसका मजाक उड़ा रहे हैं। लेकिन उनके चेहरों पर मजाक नहीं, बल्कि हैरानी और सम्मान का भाव था।
उन्होंने अपने बैग से कुछ आधुनिक उपकरण निकाले और स्कूटर की जांच करने लगे। वे घंटों तक उस सिस्टम का अध्ययन करते रहे, नोट्स बनाते रहे। संजय से दुभाषिया के माध्यम से सवाल पूछते रहे। संजय डरते-डरते उनके सवालों का जवाब दे रहा था। जांच पूरी करने के बाद टीम के लीडर मिस्टर चेन ने दुभाषिया से कुछ कहा। दुभाषिया संजय की ओर मुड़ा, उसकी आवाज में उत्साह था, “संजय जी, हमारी कंपनी आपके काम से बहुत प्रभावित हुई है। आपने बिना किसी संसाधन के जो कर दिखाया है, वह अद्भुत है। हमारी कंपनी आपको एक प्रस्ताव देना चाहती है।”
पूरा गांव सांस रोक के सुन रहा था। दुभाषिया ने आगे कहा, “हम चाहते हैं कि आप हमारे साथ शंघाई में काम करें। हम आपको अपना खुद का रिसर्च लैब, एक टीम और इस तकनीक को विकसित करने के लिए असीमित फंड देंगे। इसके बदले में कंपनी आपको 5 साल के कॉन्ट्रैक्ट के लिए ₹5 करोड़ का भुगतान करेगी। इसके अलावा आपका रहना, खाना और बाकी सभी खर्चे कंपनी उठाएगी।”
पांच करोड़! यह शब्द गांव की हवा में किसी बम की तरह फटा। लोगों के मुंह खुले के खुले रह गए। सरपंच को चक्कर आने लगा। जिन लोगों ने संजय को पागल कहा था, जो उसे हैवी इंजीनियर कह के चिढ़ाते थे, वे शर्म से पानी-पानी हो गए। संजय खुद स्तब्ध था। उसे लगा जैसे वह कोई सपना देख रहा है। पांच करोड़, शंघाई! उसे अपनी मां का चेहरा याद आया, जिसने उसकी खातिर अपनी पूरी जिंदगी खपा दी थी। उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने अपनी मां की तरफ देखा। पार्वती भी रो रही थी। लेकिन यह खुशी के आंसू थे।
उसने अपने बेटे के सिर पर हाथ रखा और कहा, “बेटा, यह तेरी मेहनत का फल है। इसे स्वीकार कर ले।” संजय ने कांपती हुई आवाज में कहा, “मैं तैयार हूं।”
उस दिन के बाद धनौरा गांव के लिए संजय अब पागल नहीं, बल्कि उनका हीरो बन गया था। जिन लोगों ने कभी उस पर पत्थर फेंके थे, आज वे उसके लिए फूल-मालाएं लेकर खड़े थे। सरपंच हाथ जोड़कर उससे माफी मांग रहा था। लेकिन संजय के मन में किसी के लिए कोई गिला-शिकवा नहीं था। उसे बस एक बात का दुख था—एक गहरा दुख कि उसकी प्रतिभा को पहचानने के लिए चीन से लोगों को आना पड़ा, जबकि उसके अपने देश में उसके अपने लोगों ने उसे सिर्फ ठुकराया और उसका मजाक बनाया। उसे न तो सरकार से कोई मदद मिली, न ही किसी भारतीय कंपनी ने उसमें दिलचस्पी दिखाई।
जब वह चीन जाने के लिए हवाई अड्डे पर था, तो कई भारतीय पत्रकार भी वहां पहुंच गए थे। अब वे उसे भारत का गौरव कह रहे थे। एक पत्रकार ने उससे पूछा, “आपको कैसा लग रहा है कि आपको अपने देश में पहचान नहीं मिली?” संजय ने बस एक फीकी सी मुस्कान के साथ कहा, “शायद मेरे देश में कबाड़ से आविष्कार करने वालों के लिए जगह नहीं है।”
उसकी यह बात हर भारतीय के लिए एक सवाल छोड़ गई।
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि प्रतिभा किसी डिग्री या अमीरी की मोहताज नहीं होती। वह कहीं भी, किसी भी झोपड़ी में जन्म ले सकती है। लेकिन उस प्रतिभा को पहचानना, उसे सम्मान देना और उसे एक मौका देना—यह हमारी और हमारे समाज की जिम्मेदारी है। संजय की कहानी एक तरफ जहां गर्व करने लायक है, वहीं दूसरी तरफ यह हमारे सिस्टम पर एक दुखद टिप्पणी भी है। जहां न जाने कितने ही संजय गुमनामी के अंधेरे में सिर्फ इसलिए खो जाते हैं क्योंकि उन्हें कोई पहचानने वाला नहीं मिलता।
अगर आपको यह कहानी प्रेरणादायक लगी हो, तो इसे जरूर शेयर करें।
News
अमीर आदमी ने गरीब बच्चे को गोद लिया, लेकिन उसके हाथ के निशान ने ऐसा राज खोला कि सब कुछ बदल गया!
अमीर आदमी ने गरीब बच्चे को गोद लिया, लेकिन उसके हाथ के निशान ने ऐसा राज खोला कि सब कुछ…
बीमार मां-बाप को छोड़ा था बेसहारा फिर किस्मत ने पलटी ऐसी बाज़ी, जानकर रूह कांप जाएगी!
बीमार मां-बाप को छोड़ा था बेसहारा फिर किस्मत ने पलटी ऐसी बाज़ी, जानकर रूह कांप जाएगी! “परिवार की विरासत –…
गरीब बुजुर्ग को एयरपोर्ट से धक्के देकर बाहर निकाला लेकिन फिर जो हुआ उसने सबको
गरीब बुजुर्ग को एयरपोर्ट से धक्के देकर बाहर निकाला लेकिन फिर जो हुआ उसने सबको “इंसानियत की उड़ान – रामदीन…
बुजुर्ग ने शादी में जाकर सिर्फ एक मिठाई ली… लोगों ने ताना मारा, लेकिन जब स्टेज पर
बुजुर्ग ने शादी में जाकर सिर्फ एक मिठाई ली… लोगों ने ताना मारा, लेकिन जब स्टेज पर “एक रसगुल्ले की…
जिस Bank में अपमान हुआ उसी बैंक को खरीदने पहुंच गया गरीब मजदूर सबके होश उड़ गए..
जिस Bank में अपमान हुआ उसी बैंक को खरीदने पहुंच गया गरीब मजदूर सबके होश उड़ गए.. कचरे से करोड़पति…
डाकिया हर महीने चिट्ठी लाता था – पर भेजने वाला कोई नहीं था – फिर जो हुआ
डाकिया हर महीने चिट्ठी लाता था – पर भेजने वाला कोई नहीं था – फिर जो हुआ “रिवाना सैनी –…
End of content
No more pages to load






