जब car शो-रूम के मालिक को गरीब समझकर निकाला बाहर… कुछ देर बाद जो हुआ सब दंग रह गए!

सच की गाड़ी – इंपीरियल मोटर्स की कहानी
भाग 1: एक साधारण आगंतुक
सुबह के ठीक 10:45 बजे, शहर के सबसे आलीशान कार शोरूम ‘इंपीरियल मोटर्स’ के बाहर एक बुजुर्ग आदमी धीरे-धीरे चलता हुआ पहुंचा। सफेद कुर्ता-पायजामा, कंधे पर पुराना कपड़े का झोला और आंखों में गहरी शांति। शोरूम की कांच की दीवारों के पीछे चमचमाती BMW, Honda, Mercedes जैसी करोड़ों की गाड़ियां सजी थीं।
जैसे ही बुजुर्ग अंदर गए, गार्ड ने रास्ता रोक लिया – “बाबा, आप यहां कैसे आ गए? बाहर पार्किंग में बैठ जाइए, अंदर सिर्फ ग्राहक आते हैं।” बुजुर्ग मुस्कुराए, “बेटा, मैं ग्राहक ही तो हूं। मैनेजर से मिलना है, एक कार देखनी है।” गार्ड और दूसरा सिक्योरिटी दोनों हंस पड़े – “सुना बाबा कार खरीदने आए हैं, कौन सी साइकिल वाली?” बुजुर्ग ने बस शांत मुस्कान रखी, “तुम हंसे या रोए, मैं अंदर जाऊंगा।”
भाग 2: ताने और अपमान
अंदर से तेज आवाज आई, “क्या हंगामा मचा रखा है?” – यह थी कृतिका सिंह, शोरूम की सीनियर सेल्स एग्जीक्यूटिव। हाई हील, ब्लैक सूट और टैबलेट पकड़े हुए। उन्होंने बुजुर्ग को सिर से पैर तक देखा, हल्का सा ताना मारा – “बाबा, यह शोरूम कार बेचता है, चाय नहीं। आपको शायद गलत जगह आना था।”
बुजुर्ग बोले, “नहीं बेटी, मैं सही जगह आया हूं। मुझे यहां की सबसे महंगी कार देखनी है।” कृतिका हंसी नहीं रोक पाई – “ओह रियली! हमारे पास सबसे महंगी कार ऑन रेलस X9 है, कीमत 3.5 करोड़। आप कैश में देंगे या चेक से?” बुजुर्ग बोले, “पेमेंट की चिंता मत करो, पहले कार दिखा दो।”
कृतिका ने साथी विक्रम से कहा – “कार कवर हटा दो, हमारे VIP ग्राहक दर्शन करना चाहते हैं।” विक्रम बोला, “यह मजाक है क्या? यह आदमी तो फुटपाथ से चला आया है।” दोनों हंसते हुए कार के पास गए, कवर हटाया। बुजुर्ग ने गाड़ी को गौर से देखा, बोले – “इसकी इंजन साउंड सुननी है।” विक्रम झुंझलाया, “बाबा, इसमें बैठना मना है, यह शोपीस है।” बुजुर्ग बोले, “मालिक से मिलवाओ, वही बात समझेंगे।”
भाग 3: मालिक से मिलने की जिद
कृतिका ने रिसेप्शन पर जाकर फोन उठाया – “सर, एक बूढ़ा आदमी आया है, कह रहा है एरेियास X9 खरीदना चाहता है। शायद मजाक कर रहा है।” फोन के उस पार से आवाज आई – “मजाक करने दो, थोड़ी देर में खुद चला जाएगा।” यह थे अभिषेक मेहरा, शोरूम के जनरल मैनेजर – अहंकारी, लोगों को कपड़ों से आंकने वाले।
कृतिका ने बुजुर्ग से कहा – “मैनेजर साहब बिजी हैं, आप किसी और दिन आइए।” बुजुर्ग बोले, “मुझे आज ही मिलना है, जरूरी बात है।” विक्रम हंसकर बोला – “जरूरी बात यह है कि आपको यहां से जाना चाहिए, बाबा बाहर पानी रखे हैं, पी लीजिए।” दोनों अंदर चले गए। बुजुर्ग कुछ पल खड़े रहे, फिर पास की कुर्सी पर बैठ गए।
भाग 4: एक सच्चे इंसान की पहचान
थोड़ी देर बाद रवि तिवारी, नया जूनियर सेल्समैन, उनके पास आया – “बाबा, सब आपको डांट क्यों रहे हैं? आपको कुछ चाहिए?” बुजुर्ग मुस्कुराए, “बस तुम्हारे मैनेजर से मिलना है बेटा।” रवि बोला – “ठीक है, मैं कोशिश करता हूं।” वह भागा-भागा मैनेजर के ऑफिस में गया – “सर, बाहर एक बुजुर्ग हैं, कहते हैं कार खरीदनी है। गरीब लगते हैं, पर बाद में सच्चाई है।”
अभिषेक ने आंखें उठाई – “रवि, तुम नए हो। हर महीने 100 लोग ऐसे आते हैं। तुम्हारा काम है असली खरीदार पहचानना। अब जाओ और उसे बाहर भेजो।” रवि ने झिझकते हुए कहा – “सर, अगर वह सच में…” अभिषेक ने बीच में काटा – “डोंट आर्ग्यू, डू योर जॉब।”
रवि बाहर आया – “बाबा, उन्होंने कहा आप बाद में आइए, वह अभी बिजी हैं।” बुजुर्ग ने सिर हिलाया, “ठीक है बेटा, जब समय सही होगा तब मुलाकात खुद हो जाएगी।” रवि ने हैरानी से पूछा – “आपका नाम क्या है?” बुजुर्ग मुस्कुराए – “नाम जानने का वक्त अभी नहीं आया बेटा।” उन्होंने झोली से एक सीलबंद लिफाफा निकाला – “यह अपने मैनेजर को देना, लेकिन जब वह अकेले हो।”
भाग 5: सच का लिफाफा
रवि ने लिफाफा सावधानी से अपनी जेब में रखा। शोरूम में गहमागहमी थी, लेकिन रवि का ध्यान अब कहीं और था। हर बार जब उसकी उंगलियां उस लिफाफे को छूतीं, उसे लगता उसमें कुछ बड़ा छिपा है। करीब आधे घंटे बाद शोरूम थोड़ा शांत हुआ। अभिषेक अपने केबिन में अकेले था। रवि ने हिम्मत जुटाई – “सर, वो जो बुजुर्ग थे ना, उन्होंने यह लिफाफा आपको देने को कहा है।”
अभिषेक ने मुस्कुरा कर कहा – “दान का आवेदन?” फिर सील तोड़ी। अंदर सफेद शीट थी, नीली इंक से टाइप की हुई पंक्तियां:
प्रिय श्री अभिषेक मेहरा,
आज आपके व्यवहार से मैंने बहुत कुछ समझा।
कल सुबह 10:00 बजे मैं ओरिलियस ग्रुप के हेड ऑफिस में मिलूंगा।
वहां तय होगा कि इंपीरियल मोटर्स का भविष्य किसके हाथ में रहेगा।
– एस शेखावत
अभिषेक का चेहरा सख्त हो गया। नाम पढ़ा – एस शेखावत। याद आया – ओरिलियस ग्रुप वही कंपनी थी जिसके फ्रेंचाइज पर यह शोरूम चलता था, और एस शेखावत इस ब्रांड के फाउंडिंग डायरेक्टर में से एक थे। पिछले कई सालों से पब्लिक में दिखाई नहीं दिए थे।
भाग 6: डर और सच्चाई
अभिषेक ने झटके से इंटरकॉम उठाया – “कृतिका जल्दी मेरे केबिन में आओ।” कृतिका आई, लिफाफा पढ़ा, चेहरा फीका पड़ गया – “मतलब वो हमारे फ्रेंचाइज ओनर में से एक हैं, और हमने उन्हें बाहर बैठा दिया।” अभिषेक बोला – “अगर उन्होंने रिपोर्ट कर दी तो…” कृतिका – “अगर उन्होंने सीधा कॉर्पोरेट टीम को बोल दिया तो?” अभिषेक – “तब भी मेरे पास एक प्लान है। उनके उम्रदराज होने का फायदा उठाया जा सकता है। कह देंगे कोई फेक आदमी उनका नाम इस्तेमाल कर रहा था।”
रवि बाहर खड़ा सब सुन रहा था। उसे गुस्सा आया – इन लोगों ने गलती की और अब झूठ से ढकने की कोशिश कर रहे हैं। रात को रवि घर नहीं गया, शोरूम के पीछे वाले छोटे ऑफिस में ही रुका। कंप्यूटर पर ओरिलियस ग्रुप की वेबसाइट खोली, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स सेक्शन में जाकर ईमेल लिखा:
प्रिय सर,
आज एक बुजुर्ग व्यक्ति आए थे जो खुद को श्री शेखावत बताते हैं।
स्टाफ ने उनके साथ अनुचित व्यवहार किया।
उन्हें शोरूम से लगभग बाहर निकाल दिया गया।
मैं यह मेल इसलिए लिख रहा हूं ताकि सच आपके सामने पहुंचे।
– रवि तिवारी, जूनियर सेल्स एग्जीक्यूटिव
मेल भेज दी। दिल धड़क रहा था, पर आत्मा हल्की लग रही थी।
भाग 7: बदलाव की सुबह
अगली सुबह 10:00 बजे शोरूम के गेट पर वही बुजुर्ग फिर आए, पर इस बार अकेले नहीं थे। चार गाड़ियां पीछे रुकी, काले सूट पहने अधिकारी उतरे। गार्ड सन्न रह गया, कृतिका और विक्रम के चेहरे से रंग उड़ गया। अभिषेक की मुस्कान गायब थी।
बुजुर्ग सीधे अंदर आए – “श्री अभिषेक मेहरा कहां है?” आवाज में आदेश था। पूरा शोरूम खामोश। अभिषेक धीरे-धीरे केबिन से निकला, बनावटी मुस्कान चिपकाए – “नमस्ते सर, कल जो हुआ वह गलतफहमी थी…” शेखावत ने हाथ उठाकर रोक दिया – “गलती सिर्फ स्टाफ की नहीं मेहरा साहब, गलती आपके चरित्र की थी। जब कोई आदमी साधारण कपड़ों में आता है तो आप उसे ग्राहक नहीं मानते।”
शेखावत शोरूम के बीचोबीच रुके – “यह वही शोरूम है जिसे मैंने 20 साल पहले शुरू किया था। तब सिर्फ दो गाड़ियां थी और पांच लोग। हमने सपना देखा था कि ग्राहक चाहे किसी हालत में आए, उसे सम्मान मिलेगा। लेकिन अब यहां सिर्फ अहंकार बिक रहा है।”
भाग 8: सच्चाई की जीत
अधिकारी ने फाइल टेबल पर रखी – “सर, हमने कल की पूरी सीसीटीवी फुटेज देखी है।” शेखावत बोले – “तुम लोग हंस रहे थे, ताने मार रहे थे और एक बुजुर्ग ग्राहक को बैठने तक नहीं दिया गया। क्या यह है तुम्हारा ब्रांड वैल्यू?”
अभिषेक ने सिर झुका लिया – “सर, मैं मानता हूं मुझसे गलती हुई।”
शेखावत बोले – “अब गलती मानने का वक्त नहीं, जवाब देने का वक्त है।”
उन्होंने रवि की ओर इशारा किया – “आओ बेटा।”
रवि धीरे-धीरे आगे बढ़ा।
शेखावत – “यही है वह लड़का जिसने मुझे झूठ से नहीं, सच से मिलवाया। जिसने मेरी बेइज्जती छिपाने की कोशिश नहीं की, बल्कि मुझे सच्चाई बताई।”
पूरा स्टाफ स्तब्ध था।
शेखावत – “जानते हो मेहरा, तुम्हारे शोरूम में सबसे निचले पद पर बैठा इंसान ही सबसे ऊंचा निकला।”
फाइल खोली – “आज से इंपीरियल मोटर्स की मैनेजमेंट स्ट्रक्चर बदल दी जा रही है। अभिषेक मेहरा, आप सस्पेंड किए जाते हैं तत्काल प्रभाव से।”
अभिषेक हक्का-बक्का रह गया – “सर, मेरी फैमिली है, मेरा करियर…”
शेखावत – “तुम्हारा करियर खत्म नहीं हो रहा। अब तुम्हें असली काम समझना होगा। अगले 6 महीने सर्विस सेक्शन में काम करोगे – गाड़ियों की धूल साफ करोगे, ग्राहकों की चाय लाओगे और सीखोगे कि असली इज्जत क्या होती है।”
भाग 9: नई शुरुआत
शोरूम में सन्नाटा फैल गया।
कृतिका की आंखों में आंसू थे।
शेखावत ने उसकी तरफ देखा – “मिस कृतिका, तुम्हें एक और मौका दिया जा रहा है। लेकिन याद रखना, अगली बार किसी ग्राहक को उसके कपड़ों से आंका गया तो तुम बाहर होगी।”
कृतिका ने सिर झुका कर कहा – “सॉरी सर, मैं समझ गई हूं।”
शेखावत ने रवि की तरफ रुख किया – “रवि, तुमने सच की कीमत नहीं चुकाई, बल्कि कमाई है। आज से तुम इस शोरूम के असिस्टेंट मैनेजर हो।”
रवि की आंखें फैल गईं – “साहब, मैं तो नया हूं…”
शेखावत मुस्कुराए – “लेकिन तुम्हारे पास वह है जो यहां किसी के पास नहीं – इंसानियत।”
भाग 10: विरासत और संदेश
रवि अब असिस्टेंट मैनेजर था। कर्मचारी उसे ‘सर’ कहने लगे, लेकिन वह हमेशा मुस्कुरा कर कहता – “अरे सर मत बोलो, रवि ही ठीक है।” हर सुबह सबसे पहले आता, शोरूम की लाइट्स ऑन करता और वहीं पुरानी जगह पर 5 मिनट खड़ा रहता जहां शेखावत साहब बैठे थे। उसके लिए वह जगह अब किसी मंदिर से कम नहीं थी।
एक दिन कृतिका आई – “रवि, आज तुम्हें ओरिलियस हेड ऑफिस से बुलावा आया है। मिस्टर शेखावत खुद मिलना चाहते हैं।” रवि पहली बार इतनी ऊंची बिल्डिंग में गया। रिसेप्शनिस्ट ने कहा – “मिस्टर रवि तिवारी, सर आपका इंतजार कर रहे हैं।”
शेखावत साहब वहीं थे।
“आओ रवि, कैसे हो?”
“जी सर, अच्छा हूं, सब ठीक चल रहा है।”
“मुझे हर हफ्ते रिपोर्ट मिलती है, तुम्हारे नाम के आगे हमेशा एक ही शब्द लिखा होता है – सच्चाई।”
रवि झेंप गया – “सर, मैं बस अपना काम कर रहा हूं।”
शेखावत ने कहा – “मैं धीरे-धीरे रिटायर हो जाऊंगा। लेकिन जरूरी है कि गाड़ी चलते रहे। यह मेरे ट्रस्ट की फाइल है – ऑनरेलियस फाउंडेशन। मैं चाहता हूं तुम डायरेक्टर इंचार्ज के तौर पर काम शुरू करो।”
रवि के होंठ सूख गए – “सर, मैं तो एक सेल्समैन था…”
शेखावत ने कहा – “अब तुम एक मिसाल हो और कंपनी को मिसालें चाहिए, सिर्फ मैनेजर नहीं।”
रवि की आंखें नम हो गईं – “मैं वादा करता हूं सर, कभी झूठ के आगे नहीं झुकूंगा।”
“मुझे पता है, इसलिए तो तुम चुने गए हो।”
भाग 11: सीख और बदलाव
अभिषेक अब सर्विस सेक्शन में था – गाड़ियों की धूल साफ करता, ग्राहकों की चाय लाता। कभी-कभी दूसरे स्टाफ उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते, लेकिन वह अब चुपचाप काम करता। एक दिन रवि सर्विस एरिया में गया – “अभिषेक सर…”
अभिषेक चौंका – किसी ने हफ्तों बाद उसे ‘सर’ कहा था।
“मैं आपकी जगह नहीं ले रहा, मैं बस वही कर रहा हूं जो आपने मुझे सिखाया – काम में लगन रखो।”
अभिषेक ने उसकी तरफ देखा, आंखों में हल्की नमी थी – “रवि, उस दिन अगर तुम सच ना बोलते, तो मैं अपनी गलती नहीं देख पाता। तुमने मुझे गिराया नहीं, जगाया है।”
रवि मुस्कुराया – “फिर तो हम दोनों ने कुछ सीखा।”
“हां, कपड़े नहीं किरदार पहचानो।”
दोनों ने हाथ मिलाया। कृतिका पास खड़ी थी, उसकी आंखों में भी सुकून था।
भाग 12: सच की गाड़ी आगे
रात को रवि जब बाहर निकला तो पार्किंग में वही पुरानी काली कार खड़ी थी जिसमें शेखावत साहब उस दिन आए थे। उसके बोनट पर एक छोटा सा लिफाफा रखा था। रवि ने उठाया, अंदर सिर्फ एक लाइन लिखी थी:
“जब दुनिया तुम्हें पहचानने लगे तब भी वही बने रहना
जो तब था जब कोई नहीं जानता था।
– एस शेखावत”
रवि मुस्कुराया, लिफाफा जेब में रखा और आसमान की तरफ देखा।
जहां सितारे भी मानो कह रहे थे –
सच की गाड़ी कभी रुकती नहीं।
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