बरसात में भीगे DM के पिता को बैंक से धक्के देकर निकाला लेकिन फ़िर जो dm ने किया

बारिश में भीगे बुजुर्ग और इंसानियत की गर्माहट”

बारिश लगातार पड़ रही थी। सड़क पर पानी की पतली धारा बह रही थी, जैसे किसी पुराने शहर की उदासी बह रही हो। स्टेट बैंक की शाखा का शटर आधा नीचे था। अंदर ट्यूबलाइट की सफेद रोशनी थरथरा रही थी। दरवाजे पर एक दुबला, भीगा हुआ बुजुर्ग खड़ा था। उसका कुर्ता शरीर से चिपका हुआ था, हाथ में एक पुरानी थैली थी जिसमें शायद कुछ जरूरी कागज और दवाइयां रखी थीं।

गार्ड ने छतरी आगे करके कहा, “अंकल, टाइम खत्म। कल आइए।”
बुजुर्ग ने धीमे से कहा, “बेटा, 2000 रुपये निकालने हैं… दवाई के लिए। लाइन में खड़े थे।”
गार्ड ने भौंहें चढ़ाईं, “बारिश थी, तो थोड़ा देर हो गई?”
बुजुर्ग की आवाज कांप गई।
अंदर से मैनेजर निकला, सूट पर हल्की इत्र की खुशबू।
“क्या बात है?”
गार्ड ने इशारा किया, “भिखारी जैसा लग रहा है। पैसे निकालने आया है।”
बुजुर्ग ने थैली कस ली, “भिखारी नहीं हूं… खाता यहीं है।”
मैनेजर ने सूखी हंसी हंसी, “दवाई के नाम पर रोज कहानी सुनाते हैं लोग। कल आइए।”

भीतर दो ग्राहक ठिटक कर देखने लगे। एक ने फोन से वीडियो बनाने की कोशिश की।
बुजुर्ग ने खिड़की के शीशे पर फॉग हटाकर कहा, “बस पर्ची भर दूं। समझ नहीं आता क्या? बंद।”
गार्ड ने धक्का देकर उन्हें पीछे किया।
फुटपाथ की गीली ईंटों पर उनका पांव फिसला।
हाथ का पुराना कागज नीचे गिरा।
कागज के कोने पर नाम लिखा था – “श्रीधर प्रसाद” और नीचे एक नंबर इमरजेंसी अंकित था – “कुमार, डीएम ऑफिस”।

पास ही चाय की टपरी से एक पतला सा लड़का भागकर आया।
“बाबा, लग गई क्या?”
“कुछ नहीं बेटा, बस पानी ज्यादा है।”
लड़के ने गिरे कागज उठाए। नंबर और डीएम ऑफिस पढ़ते ही वह चौंका।
“बाबा, यह किसका नंबर है?”
“बेटा, मेरे बेटे का।”
बुजुर्ग ने ठंडी सांस छोड़ी, “वो यहीं जिले में डीएम है।”

लड़के की आंखें फैल गईं।
बैंक के दरवाजे के अंदर खड़े लोग भी एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे।
मैनेजर के माथे पर हल्का पसीना आया, पर आवाज वहीं सख्त, “ड्रामा बंद करो, बाहर जाओ।”

बारिश और तेज हो गई।
बुजुर्ग अपनी थैली भीगते बचाने लगे।
लड़के ने मोबाइल निकाला, वही नंबर डायल कर दिया।
फोन स्पीकर पर था।
दूसरी तरफ एक शांत पेशेवर आवाज आई, “डीएम ऑफिस बोलिए।”
लड़के ने जल्दी-जल्दी कहा, “मैम, यहां एक बुजुर्ग को बैंक से निकाल दिया। उनके कार्ड पर आपका नंबर है, नाम श्रीधर प्रसाद।”
कुछ सेकंड सन्नाटा।
फिर वही आवाज अचानक नरम हुई, “कहां हैं आप?”
“स्टेट बैंक, सिविल लाइंस ब्रांच गेट पर। बारिश हो रही है।”
“कृपया वहीं रहिए, हम तुरंत किसी को भेज रहे हैं।”

लड़के ने फोन काटकर बुजुर्ग को छाते के नीचे किया, “बाबा, आप यहीं बैठिए।”
अंदर मैनेजर ने गार्ड से कहा, “शटर नीचे करो, अनावश्यक भीड़ ना इकट्ठा हो।”
शटर खट से और नीचे आ गया। बस आधा फुट का गैप रह गया।

“बाबा, आपका एटीएम कार्ड?”
बुजुर्ग ने थैली की भीतर की जेब से पुरानी पोटली निकाली।
कार्ड था, लेकिन चिप किनारे से थोड़ा घिसा हुआ।
पासबुक के पन्नों में सीलें थी, तारीख साफ, आखिर एंट्री दो महीने पुरानी।

भीतर से एक क्लर्क ने झांक कर कहा, “सर, सीसीटीवी रिकॉर्ड तो हो रहा है।”
मैनेजर झुंझलाया, “तो होने दो, कोई नियम नहीं टूट रहा।”
लड़का यह सुनकर शटर के सामने टिक गया, “वीडियो बनाना पड़ेगा तो बनाऊंगा।”
गार्ड ने आंखें तरेरी, “हटो यहां से!”

मिनट भर में दो स्कूटर फिसलते से आए।
जिला अध्यक्ष, बैंकर समिति का एक प्रतिनिधि और तहसील से एक नायब तहसीलदार।
उन्होंने शटर उठवाया, “कौन मैनेजर है?”
मैनेजर आगे आया, “मैं… सब नियम के अनुसार।”
“सीनियर सिटीजन रेन और ब्रांच क्लोजिंग ऐसी स्थिति में टोकन इशू करके अगले दिन प्राथमिकता देना बैंकिंग निर्देशों में है।”
प्रतिनिधि ने सीधा कहा, “आपने टोकन क्यों नहीं दिया?”
मैनेजर चुप।
बाहर भीगते बुजुर्ग को देखकर उसकी आवाज धीमी पड़ी, “स्टाफ कम था, भीड़ थी।”
लड़के ने पासबुक दिखा दी, “इनके पासबुक पर आपकी ब्रांच की सील है।”

नायब तहसीलदार ने सीसीटीवी रूम की ओर इशारा किया, “फुटेज चेक होगा।”

अभी सायरन नहीं, बस एक सफेद गाड़ी चुपचाप आकर रुकी।
कोई दिखावा नहीं।
एक युवा महिला भीगे फुटपाथ पर सावधानी से कदम रखते हुए आई।
उनके साथ दो स्टाफ, एक ड्राइवर।
लड़के ने फुसफुसाकर कहा, “यही होंगी।”

महिला ने मुस्कुराकर पहले बुजुर्ग के कंधे पर हाथ रखा, “बाबा, आप ठीक हैं?”
बुजुर्ग ने सिर हिलाया, “ठीक हूं बिटिया।”
मैनेजर ने हाथ जोड़ लिए, “मैडम, आसमान साफ कीजिए, मेरा मतलब मामला छोटा सा है।”
महिला ने आंख उठाकर देखा, “मामला छोटा तब होता जब इंसानियत बड़ी होती।”

भीतर रजिस्टर टेबल पर उन्होंने पासबुक रखवाई।
नाम: श्रीधर प्रसाद
क्लर्क ने पढ़ा, “KYC अपडेटेड, पेंशन खाता।”
महिला ने मैनेजर की ओर देखा,
“मैं शाखा प्रबंधक राजीव खन्ना।”
महिला शांत रही, “मेरा नाम अंकिता कुमार है।”

लड़के ने सांस रोक ली।
कुछ लोग फुसफुसाए, “डीएम प्रोटोकॉल…”
अंकिता ने कहा, “प्रोटोकॉल की बात बाद में करेंगे, अभी पहले यह बताइए – एक बूढ़ा भीगा हुआ आदमी दवाई के लिए पैसे मांग रहा था, आपने टोकन क्यों नहीं दिया, काउंटर क्यों नहीं खुलवाया?”

मैनेजर ने गला साफ किया, “मैडम, टाइम ओवर था, स्टाफ…”
“किस नियम में लिखा है कि बारिश में भीगे सीनियर सिटीजन को दरवाजे से धक्का दिया जाए?”
उनका स्वर ठंडा था।
गार्ड की नजर झुक गई, “मैंने बस…”
अंकिता ने सीसीटीवी ऑपरेटर से कहा, “09:58 से 10:05 का फुटेज चलाइए।”

स्क्रीन पर सब स्पष्ट था – धक्का, गिरना, कागज का गिरना और हंसी की हल्की आवाजें।
लॉबी चुप हो गई।
बाहर बारिश की आवाज और तेज सुनाई देने लगी।

अंकिता ने धीरे से बुजुर्ग का हाथ पकड़ा, “बाबा, आप अंदर आइए।”
वह खुद काउंटर के पीछे खड़ी कैशियर से बोली, “यह लेनदेन अभी होगा।”
मैडम, मैनेजर हकलाया, “नियम…”
“नियम इंसानियत रोकने के लिए नहीं बने, बल्कि उसे रास्ता देने के लिए।”
कैशियर ने पर्ची भरी, “कितना निकालना है?”
बुजुर्ग ने हिचकते हुए कहा, “बस दो हजार… दवाई के लिए।”
लड़के ने मुस्कुरा कर उनकी थैली संभाली, “मैं लेकर आता हूं बाबा।”

अंकिता ने मैनेजर की ओर देखा, “राजीव जी, आप कितने साल से बैंकिंग में हैं?”
“बारह साल…”
“तो यह भी जानते होंगे कि हर शाखा को सीनियर सिटीजन हेल्प डेस्क, बैठने की व्यवस्था और बारिश जैसी आपात स्थिति में टोकन सुविधा सुनिश्चित करनी होती है। आपने क्या किया?”
मैनेजर चुप रहा।

भीतर के स्टाफ धीरे-धीरे बुजुर्ग की तरफ बढ़े।
किसी ने तौलिया दिया, किसी ने गर्म पानी।
क्लर्क ने कुर्सी खिसकी, “बाबा, यहां बैठिए।”

अंकिता ने रजिस्टर पर साइन किया, “आज से तीन चीजें बदलेंगी।”
“व्हाट?”
“सीनियर सिटीजन के लिए अलग काउंटर और कुर्सियां।
दो, क्लोजिंग टाइम से 15 मिनट पहले तक आए बुजुर्गों के लिए अर्जेंट टोकन।
तीन, स्टाफ के लिए ग्राहक आचरण प्रशिक्षण।
यह नोटिस है, पालन का फोटो प्रूफ शाम तक मेरे ऑफिस में।”

मैनेजर का चेहरा उतर गया, “मैडम, गलती हो गई, माफ कर दीजिए।”
अंकिता ने कहा, “माफी शब्द से नहीं, सुधार से मिलती है।”

तभी बुजुर्ग ने धीरे से कहा, “बिटिया, गुस्सा मत करो…”
अंकिता ने उनकी तरफ देखा, आंखें नम थी, “गुस्सा नहीं बाबा, यह जवाबदेही है।”

भीड़ में धीमी ताली बजी।
फिर धीरे-धीरे सब ने ताली बजानी शुरू कर दी।
गार्ड आगे आया, “बाबा, मेरी गलती… मैं शर्मिंदा हूं।”
बुजुर्ग ने उसके हाथ पर हाथ रख दिया, “मैं भीग गया था, तुम भीग गए हो। अब दोनों सूख जाएंगे बेटा।”

लड़के ने चाय के दो गिलास लाकर रख दिए।
अंकिता ने एक गिलास अपने पिता की ओर बढ़ाया, “बाबा, जरा गर्म पी लीजिए।”

पास खड़े लोगों के चेहरे पर हैरानी थी।
फुसफुसाहट बिजली की तरह फैली, “सर, आप डीएम सर के पिता…”
अंकिता मुस्कुराई, “डीएम सर नहीं, डीएम इस मैम और उनके पिता।”

कमरे में एक अजीब खामोशी उतर आई।
फिर कई नजरें शर्म से झुक गई।
“बाबा ने कभी मुझे अपना पद आगे करके काम नहीं करने दिया।”
अंकिता ने कहा, “आज भी वे चुपचाप पैसे निकालने आए, किसी से कहा नहीं कि मैं कौन हूं।”

बुजुर्ग ने सिर हिलाया, “मैं चाहता था देखूं, इस शहर में इंसानियत कितनी बाकी है।”

उन्होंने अपनी थैली से एक पुरानी सफेद सी फोटो निकाली, “यही शाखा उद्घाटन के दिन, 15 साल पहले… कटे फटे रिबन, मुस्कुराते चेहरे। तब मैं पंचायत में था।
इस जगह की जमीन पर पहली ईंट रखते देखा है।”

स्टाफ की आंखें फैल गईं।
किसी ने धीमे से कहा, “हमें पता ही नहीं था…”

अंकिता ने मैनेजर से कहा, “राजीव जी, आपकी पोस्टिंग अबाउट टू ट्रांसफर है। यह घटना आपके रिकॉर्ड में जाएगी, पर अगर अगले 30 दिन में यहां का व्यवहार बदलता दिखा, तो आपकी अगली शाखा में यह आपके सुधार का प्रमाण भी होगा।”

मैनेजर की आंखें भर आईं, “मैं कोशिश नहीं, गारंटी देता हूं।”

लड़का मुस्कुराया, “बाबा, अब दवा ले लेते हैं।”
बुजुर्ग ने उसके सिर पर हाथ फेरा, “आज मेरी सबसे बड़ी दवा यह थी कि इतनी बारिश में भी कुछ दिल अभी गर्म हैं।”

सीख:
बारिश की ठंड में भी इंसानियत की गर्मी सबसे बड़ी दवा है। नियम जरूरी हैं, लेकिन उनसे भी जरूरी है संवेदनशीलता, सम्मान और मदद का जज्बा। हर बुजुर्ग, हर आम इंसान, हर ग्राहक – सबका सम्मान करना ही असली सेवा है।
कहानी यही कहती है – “मामला छोटा तब होता जब इंसानियत बड़ी होती।”

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