10वीं फेल लडकी ने करोडपति को कहा मुजे नोकरी दो 90 दिनो में कंपनी का नक्शा बदल दूँगी फिर जो हुआ!
पूरी कहानी: डिग्री नहीं, हिम्मत चाहिए
मुंबई का बांद्रा कुरला कॉम्प्लेक्स, जहां आसमान को छूती कांच और स्टील की इमारतें शहर की रफ्तार और महत्वाकांक्षा का आईना थीं। उन्हीं इमारतों के बीच खड़ा था शर्मा टावर्स, जो देश की सबसे पुरानी और बड़ी उपभोक्ता वस्तु बनाने वाली कंपनी शर्मा इंडस्ट्रीज का मुख्यालय था। यह कंपनी नमक, तेल, साबुन, टूथपेस्ट से लेकर बिस्किट और स्नैक्स तक लगभग हर घर में इस्तेमाल होने वाली चीजों का उत्पादन करती थी। उसके मालिक थे 62 वर्षीय उद्योगपति अरविंद शर्मा, जिन्होंने अपने पिता के छोटे से कारोबार को अपनी कड़ी मेहनत और तेज दिमाग से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में बदल दिया था।
अरविंद शर्मा के लिए बिजनेस सिर्फ पेशा नहीं, बल्कि पूजा थी। उस पूजा के नियम थे – अनुशासन, परफेक्शन और क्वालिफिकेशन। उनकी कंपनी में चपरासी से लेकर डायरेक्टर तक हर किसी को डिग्री और अनुभव के आधार पर ही चुना जाता था। उनके लिए किसी इंसान की असली कीमत उसकी फाइल में लगे सर्टिफिकेट से तय होती थी।
लेकिन बीते कुछ सालों से इस साम्राज्य की नींव में दरारें आ चुकी थीं। कंपनी के प्रोडक्ट्स बाजार में टिक नहीं पा रहे थे। मुनाफा लगातार घट रहा था और कर्मचारी भी अपनी चमक खो चुके थे। बोर्ड रूम की मीटिंग्स में महंगे सूट पहने मैनेजर्स लैपटॉप पर प्रेजेंटेशन बनाकर मुश्किल अंग्रेजी बोलते थे और समस्याओं के सतही समाधान देकर निकल जाते थे। लेकिन फैक्ट्री और बाजार की असली हकीकत से कोई वाकिफ नहीं था। अरविंद शर्मा यह सब देखकर थक चुके थे। उन्हें अपनी कंपनी में वो पुराना जोश और आग नजर नहीं आती थी जिसे उन्होंने और उनके पिता ने मिलकर कभी जगाया था।
इसी शहर के दूसरे छोर पर डोमबिवली की एक भीड़भाड़ वाली कॉलोनी में एक साधारण परिवार रहता था। उस परिवार की 23 वर्षीय बेटी थी अनाया, जिसके नाम के आगे “10वीं फेल” का ठप्पा लगा हुआ था। अनाया पढ़ाई में कभी अच्छी नहीं रही। उसे रटे रटाए आंकड़े, तारीखें और फार्मूले याद करना कभी नहीं भाया। लेकिन उसकी आंखें किसी चील की तरह तेज थीं और उसका दिमाग किसी मशीन की तरह चलता था। वह चीजों को वैसे नहीं देखती थी जैसी वो दिखती थी, बल्कि वैसे देखती थी जैसी वो हो सकती थी।
उसके पिता का कई साल पहले देहांत हो चुका था और घर की सारी जिम्मेदारी उसकी मां और उस पर थी। मां डोंबिवली स्टेशन के पास एक छोटी सी चाय की दुकान चलाती थी और अनाया दिन भर वहां हाथ बंटाती थी। चाय बनाने और कप धोने के बीच उसका ध्यान अक्सर बगल में बने शर्मा इंडस्ट्रीज की फैक्ट्री पर रहता था। वहां से निकलते ट्रक, गेट पर घंटों खड़े ड्राइवर, उदास चेहरे लिए कर्मचारी, सिक्योरिटी गार्ड की लापरवाही, और कंपनी के मैनेजरों का घमंडी रवैया – सब कुछ उसकी तेज नजर में कैद हो जाता था। उसे फैक्ट्री की छोटी-बड़ी गड़बड़ियां इतनी साफ दिखती थीं जितनी अंदर बैठे मैनेजर्स को भी कभी नहीं दिखी।
अनाया की मां की तबीयत पिछले कुछ महीनों से बिगड़ रही थी और एक दिन अचानक उन्हें सीने में तेज दर्द उठा। जब डॉक्टर के पास ले जाया गया तो पता चला कि उनके दिल का ऑपरेशन करना पड़ेगा। ऑपरेशन और दवाइयों का खर्च लाखों रुपए था। यह सुनकर अनाया के पैरों तले जमीन खिसक गई। चाय की दुकान से दो वक्त की रोटी तो चल सकती थी, लेकिन इतना बड़ा खर्च उठाना नामुमकिन था।
उस रात अनाया ने करवटें बदल-बदल कर नींद खो दी। वह अपनी मां को खोने का ख्याल भी नहीं कर सकती थी। तभी उसके दिमाग में एक पागलपन भरा ख्याल आया। वह खुद सीधे अरविंद शर्मा से मिलेगी और उनसे मदद मांगेगी। लेकिन मदद भीख मांगकर नहीं, बल्कि अपनी काबिलियत दिखाकर। उसने ठान लिया कि अगर जिंदगी को बदलना है तो उसे यह जोखिम उठाना ही होगा।
अगली सुबह वह साधारण कपड़े पहनकर शर्मा टावर्स के गेट पर जा पहुंची। उसकी आंखों में एक अजीब आत्मविश्वास था। सिक्योरिटी गार्ड ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और हंसकर बोला,
“क्यों आई हो? शर्मा साहब से मिलना है? पागल हो क्या? उनके पास अपॉइंटमेंट होता है बड़े-बड़े लोगों का। ऐसे कोई भी जाकर मिल सकता है क्या?”
अनाया ने शांत स्वर में कहा, “मुझे उनसे मिलना है।”
गार्ड ने मजाक उड़ाते हुए कहा, “अपॉइंटमेंट है?”
जब अनाया ने नहीं कहा तो उसने डपटते हुए कहा, “तो जा यहां टाइम खराब मत कर,” और उसे धकेलने की कोशिश की। लेकिन अनाया वहीं खड़ी रही। वह चुपचाप गेट के पास एक कोने में जाकर खड़ी हो गई और पूरे दिन खड़ी रही। फिर अगले दिन, फिर उसके अगले दिन। एक हफ्ता गुजर गया। धूप, बारिश, भूख, प्यास – सब कुछ सहते हुए वह वहीं डटी रही। उसकी जिद को देखकर गार्ड भी परेशान हो गए। और आखिरकार यह बात सिक्योरिटी हेड तक पहुंची। सिक्योरिटी हेड ने इसे अरविंद शर्मा के पर्सनल सेक्रेटरी तक पहुंचाया।
जब अरविंद शर्मा ने सुना कि एक लड़की एक हफ्ते से बाहर खड़ी है तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने तुरंत आदेश दिया, “उसे अंदर बुलाओ। देखता हूं किस हिम्मत से मेरा वक्त खराब कर रही है।”
जब अनाया शर्मा टावर्स के आलीशान कैबिन में दाखिल हुई तो वहां की भव्यता देखकर भी उसकी आंखों में कोई डर या आश्चर्य नहीं था। वह सब कुछ ऐसे देख रही थी जैसे किसी समस्या का विश्लेषण कर रही हो।
अरविंद शर्मा ने घमंड भरी आवाज में पूछा,
“क्या चाहती हो तुम? क्यों मेरा वक्त खराब कर रही हो?”
अनाया ने बिना भूमिका बांधे सीधे कहा,
“मुझे आपकी कंपनी में नौकरी चाहिए।”
शर्मा ठहाका मारकर हंस पड़े,
“नौकरी चाहिए? कौन सी डिग्री है तुम्हारे पास?”
अनाया ने बिना झिझके जवाब दिया,
“मैं दसवीं फेल हूं।”
यह सुनकर शर्मा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया,
“दसवीं फेल और तुम मेरी कंपनी में नौकरी मांगने आई हो? हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी? निकलो यहां से।”
लेकिन अनाया अपनी जगह से हिली नहीं। उसने दृढ़ स्वर में कहा,
“साहब, मुझे सिर्फ 3 महीने का वक्त दीजिए। अगर 3 महीने में मैंने आपकी कंपनी का नक्शा नहीं बदल दिया तो आप मुझे जेल भिजवा दीजिए। मैं खुद पुलिस के सामने कहूंगी कि मैंने आपके साथ धोखाधड़ी की है।”
अरविंद शर्मा हक्का-बक्का रह गए। अपनी जिंदगी में उन्होंने ऐसा दुस्साहस भरा प्रस्ताव कभी नहीं सुना था। एक साधारण 10वीं फेल लड़की अरबों की कंपनी का नक्शा बदलने की बात कर रही थी और बदले में अपनी आजादी दाम पर लगा रही थी।
उन्हें लगा कि यह लड़की या तो पूरी तरह पागल है या फिर इसमें कुछ खास है।
उन्होंने तीखे अंदाज में पूछा,
“तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम वो कर सकती हो जो मेरे लाखों की तनख्वाह लेने वाले मैनेजर्स नहीं कर पा रहे हैं?”
अनाया ने आत्मविश्वास के साथ कहा,
“क्योंकि आपके मैनेजर्स आपकी कंपनी को ऊपर से देखते हैं और मैं उसे नीचे से देखती हूं।
मैं जानती हूं कि आपकी फैक्ट्री के गेट नंबर तीन से रोज हजारों लीटर डीजल चोरी होता है क्योंकि वहां का गार्ड ट्रक ड्राइवरों से मिला हुआ है।
आपके साबुन के गोदाम में हर महीने लाखों की बर्बादी होती है क्योंकि छत टूटी हुई है और किसी को परवाह नहीं।
आपका सबसे ज्यादा बिकने वाला ब्रांड ‘राजा बिस्किट’ अब बाजार में इसलिए नहीं बिक रहा क्योंकि प्रतियोगी उससे कम दाम में बेहतर क्वालिटी बेच रहे हैं और आपके किसी मैनेजर ने यह आपको नहीं बताया क्योंकि वह सब अपनी नौकरी बचाने में लगे हैं।”
अनाया एक सांस में बोलती चली गई। उसकी बातें इतनी सटीक और सच्ची थीं कि शर्मा हैरान रह गए। यह वही बातें थीं जो उन तक कभी नहीं पहुंची थीं।
उन्हें उसकी आंखों में एक आग नजर आई। वही जुनून जिसकी तलाश उन्हें बरसों से थी। शायद उन्हें अपने जवानी के दिन याद आ गए जब उन्होंने भी डिग्री नहीं बल्कि जुनून के दम पर शुरुआत की थी।
उन्होंने गहरी सांस ली और एक ऐसा फैसला लिया जिसने उनके पूरे बोर्ड और मैनेजर्स को हैरान कर दिया।
“ठीक है। मैं तुम्हें 3 महीने का वक्त देता हूं। तुम्हारी तनख्वाह होगी ₹10,000 महीना। कोई पद नहीं मिलेगा, कोई कैबिन नहीं मिलेगा। तुम सिर्फ एक ऑब्जर्वर होगी। कंपनी में कहीं भी जा सकती हो, किसी से भी बात कर सकती हो। लेकिन शर्त वही रहेगी। अगर 3 महीने में तुमने कुछ ऐसा करके नहीं दिखाया जिससे कंपनी को फायदा हो तो मैं तुम्हें सच में जेल भिजवा दूंगा।”
अनाया के चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान आई। और उसने कहा, “मंजूर है साहब।”
परिवर्तन की शुरुआत
अनाया ने जब शर्मा इंडस्ट्रीज के भीतर अपनी पहली सुबह बिताई तो उसे साफ महसूस हुआ कि यहां बाहर की चमक-धमक के पीछे कितना सन्नाटा और सड़न छिपी हुई है। ऑफिस की चौथी मंजिल पर सफेद मार्बल के बीच घूमते-फिरते महंगे सूट वाले मैनेजर एक दूसरे से मुस्कुराकर हाथ मिलाते तो थे, लेकिन उनकी आंखों में डर और झिझक साफ झलकती थी। जैसे वे किसी और के लिए काम नहीं, बल्कि किसी अदृश्य कैद में सांस ले रहे हो।
वहीं दूसरी तरफ नीचे फैक्ट्री फ्लोर पर मजदूर धूल, पसीने और शोर के बीच टूटे-फूटे मशीनों से जूझ रहे थे। उनके चेहरे पर थकान और लाचारी का बोझ साफ दिखता था। अनाया ने सबसे पहले फैसला किया कि उसे अपने तीन महीने यहीं से शुरू करने होंगे। क्योंकि किसी भी साम्राज्य की असली ताकत उसकी नींव होती है और शर्मा इंडस्ट्रीज की नींव यही फैक्ट्री थी।
उसने मजदूरों के बीच बैठना शुरू कर दिया। उनके साथ चाय पी, उनकी तकलीफें सुनी। उसने पाया कि मशीनों की हालत इतनी खराब है कि हर घंटे में आधा घंटा खराबी के कारण प्रोडक्शन रुक जाता है। लेकिन मैनेजर्स की रिपोर्ट में सब सही बताया जाता है ताकि ऊपर गड़बड़ का इल्जाम उन पर ना आए। मजदूरों ने बताया कि कई सालों से नई मशीनें खरीदी नहीं गई, जबकि पैसा हर साल बजट में दिखाया जाता है। यानी बीच में कोई गड़बड़ है।
अनाया ने यह भी देखा कि गार्ड ट्रकों की चेकिंग नाम मात्र की करते थे। और एक दिन उसने खुद अपनी आंखों से देखा कि दो ट्रक पूरे लदे हुए बाहर जा रहे थे और गार्ड ने बिना रजिस्टर में नाम लिखे उन्हें जाने दिया। उसने ड्राइवरों से बात करने की कोशिश की तो वे घबरा कर भाग खड़े हुए। उसकी समझ में आ गया कि चोरी संगठित तरीके से हो रही है। यह सिर्फ गार्ड और ड्राइवर की चालाकी नहीं, बल्कि अंदर के लोगों की मिलीभगत भी है।
अनाया का अगला कदम था मार्केट में जाकर असली तस्वीर देखना। वह साधारण कपड़े पहनकर भीड़भाड़ वाली दादर मार्केट में गई जहां छोटे-छोटे किराना दुकानदार बैठे थे। उसने उनसे पूछा कि वे शर्मा इंडस्ट्रीज का राजा बिस्किट क्यों नहीं रखते? दुकानदार ने हंसकर कहा,
“मैडम कौन खरीदेगा इसे? ₹10 का पैकेट है और उसके अंदर बिस्किट का स्वाद भी पुराना है। लोग अब कम दाम में अच्छी क्वालिटी चाहते हैं। आजकल गुप्ता बेकर्स का ₹8 वाला पैकेट छा गया है। स्वाद भी अच्छा और मुनाफा भी।”
अनाया ने कई दुकानदारों से बात की और सबने लगभग यही जवाब दिया। उसने एक-एक पैकेट खरीदा और घर जाकर बैठकर तुलना की। सच में शर्मा इंडस्ट्रीज का बिस्किट बेसवाद और महंगा था। जबकि नए ब्रांड्स ज्यादा सस्ते और स्वादिष्ट थे। उसे समझ आ गया कि कंपनी की असली लड़ाई अब सिर्फ नाम के भरोसे नहीं लड़ी जा सकती। प्रोडक्ट की क्वालिटी सुधारना और कीमत कम करना ही एकमात्र रास्ता है।
लेकिन यह सब कहना जितना आसान था, करना उतना मुश्किल क्योंकि कंपनी के बोर्ड रूम में बैठे लोग हर चीज को आंकड़ों और ग्राफ्स में देखते थे। अनाया जब पहली बार बोर्ड मीटिंग में गई तो वहां मौजूद बड़े-बड़े अफसरों ने उसकी तरफ देखा भी नहीं। किसी ने ताना मारा,
“यह कौन है? चपरासी की तरह आई है और मीटिंग में बैठ गई।”
किसी ने धीरे से हंसी उड़ाई।
लेकिन अरविंद शर्मा ने सबको रोकते हुए कहा,
“यह हमारी ऑब्जर्वर है। जो चाहे कह सकती है।”
और अनाया ने बिना झिझक अपनी बात रखी। उसने चोरी, मशीनों की खराब हालत और बिस्किट के स्वाद की हकीकत सबके सामने रख दी। लेकिन ज्यादातर अफसरों ने उसे अनदेखा कर दिया। किसी ने कहा,
“यह सब छोटा-मोटा मामला है। इससे कंपनी का भविष्य तय नहीं होता।”
किसी ने कहा,
“हमारे पास ब्रांड वैल्यू है। लोग हमेशा खरीदेंगे।”
और किसी ने सीधे कहा,
“साहब, आप इस लड़की को क्यों सीरियस ले रहे हैं? यह कोई प्रोफेशनल नहीं। कोई डिग्री नहीं।”
अनाया ने गुस्से को निगलते हुए कहा,
“डिग्री नहीं है, लेकिन आंखें हैं और आंखें झूठ नहीं बोलती।”
यह सुनकर कमरा कुछ पल के लिए शांत हो गया।
असली बदलाव
अगले कुछ हफ्तों में अनाया ने काम करने का अपना तरीका ढूंढ लिया। उसने तय किया कि वह किसी भी समस्या पर सिर्फ बात नहीं करेगी, बल्कि उसका छोटा सा हल निकाल कर दिखाएगी। उसने फैक्ट्री के मजदूरों के साथ मिलकर मशीनों की बेसिक मरम्मत शुरू करवाई। पुराने स्क्रैप से पार्ट्स निकालकर मशीनें फिर से चालू की। मजदूरों को पहली बार लगा कि कोई उनकी सुन रहा है। उनकी आंखों में आत्मविश्वास लौटने लगा।
चोरी रोकने के लिए उसने गार्डों की ड्यूटी बदलवाने का सुझाव दिया। और खुद कई रातों तक फैक्ट्री गेट पर बैठकर निगरानी की। एक रात उसने हाथों दो ड्राइवरों को पकड़ा और जब मामला अरविंद शर्मा के पास पहुंचा तो उन्होंने गुस्से में तुरंत जिम्मेदार मैनेजर को निकाल बाहर किया। यह कंपनी के इतिहास में पहली बार था जब किसी बड़े अधिकारी को एक साधारण लड़की की बात पर सजा मिली। इस घटना ने मजदूरों और छोटे कर्मचारियों के बीच अनाया की इज्जत और बढ़ा दी।
वहीं दूसरी तरफ मार्केटिंग टीम में जाकर उसने नया रिसर्च शुरू किया। उसने छोटे-छोटे दुकानदारों के वीडियो इंटरव्यू शूट किए और उन्हें बोर्ड मीटिंग में चलाया। जब अफसरों ने आम लोगों को कैमरे पर कहते सुना कि शर्मा इंडस्ट्रीज का प्रोडक्ट अब काम का नहीं तो उनके चेहरे उतर गए।
यह सब देखकर अरविंद शर्मा के भीतर भी एक हलचल हुई। उन्हें पहली बार लगा कि यह लड़की सचमुच वह देख पा रही है जो उनके अफसरों की आंखों से ओझल था। लेकिन यह राह आसान नहीं थी। अनाया को हर दिन ताने, अपमान और रुकावटें झेलनी पड़ीं। मैनेजर्स ने उसकी फाइलिंग गायब कर दी। फैक्ट्री में मजदूरों को डराया कि उससे ज्यादा मत बोलो। यहां तक कि एक बार उसे धमकी भरा नोट मिला जिसमें लिखा था,
“बहुत जासूसी कर रही है। चुपचाप काम कर वरना पछताएगी।”
लेकिन अनाया रुकी नहीं। उसने मां की तस्वीर अपने बैग में रखी और हर बार डर लगने पर वह तस्वीर देखती और खुद से कहती, “मुझे हार नहीं माननी।” उसका आत्मविश्वास उसकी सबसे बड़ी ताकत था।
धीरे-धीरे नतीजे सामने आने लगे। मशीनों की मरम्मत से प्रोडक्शन 15% बढ़ गया। चोरी रुकने से लाखों की बचत हुई। मजदूरों के बीच नया जोश लौटा और सबसे बड़ा बदलाव यह आया कि छोटे-छोटे दुकानदार फिर से शर्मा इंडस्ट्रीज का बिस्किट रखने लगे। क्योंकि अनाया के कहने पर कंपनी ने दाम घटाकर और स्वाद सुधार कर एक नया पैकेट लॉन्च किया था। उसका नाम रखा गया नया राजा और यह बाजार में आते ही छा गया। दुकानदारों ने कहा, “अब लोग फिर से पूछ रहे हैं।”
यह सब देखकर बोर्डरूम में बैठे वही अफसर जो कभी अनाया का मजाक उड़ाते थे, अब चुपचाप उसकी बातें सुनने लगे। अरविंद शर्मा हर रात अपने ऑफिस में देर तक बैठकर सोचते। उन्हें लगने लगा था कि यह लड़की सिर्फ उनकी कंपनी ही नहीं, बल्कि उनके पूरे सोचने के तरीके को बदल रही है। लेकिन साथ ही उनके भीतर अहंकार भी था। वे मानने को तैयार नहीं थे कि एक 10वीं फेल लड़की वह सब कर सकती है जो उनके पढ़े-लिखे मैनेजर्स नहीं कर पाए।
उनके मन में अब एक अजीब सी जिज्ञासा थी।
यह लड़की आखिर है कौन?
इसके भीतर यह आग कहां से आई है?
और क्या सचमुच यह उनकी डूबती कंपनी को किनारे तक पहुंचा पाएगी?
तीन महीने का परिणाम
तीन महीने की अवधि जैसे-जैसे खत्म होने लगी, वैसे-वैसे शर्मा इंडस्ट्रीज में एक अजीब हलचल महसूस होने लगी थी। फैक्ट्री में मजदूर अब पहले से कहीं ज्यादा उत्साहित थे। उनकी आंखों में थकान की जगह उम्मीद दिखती थी। छोटे दुकानदार फिर से शर्मा प्रोडक्ट्स के बारे में बात करने लगे थे और यहां तक कि अखबारों और बिजनेस चैनलों ने भी खबर चलाना शुरू कर दिया था कि गिरती कंपनी शर्मा इंडस्ट्रीज में अचानक जान कैसे आ गई।
लेकिन इस सबके बावजूद बोर्डरूम में बैठे बड़े अफसरों का अहंकार पूरी तरह नहीं टूटा था। वे अब भी अनाया को सिर्फ एक इत्तेफाक मानते थे और मानते थे कि असली बिजनेस रणनीति वही है जो ग्राफ और आंकड़ों में दिखती है।
तीन महीने के आखिरी हफ्ते में अरविंद शर्मा ने खुद अनाया को अपने केबिन में बुलाया और ठंडी आवाज में कहा,
“देखो, जो भी छोटे-मोटे सुधार तुमने किए हैं उससे थोड़ा फर्क जरूर पड़ा है। लेकिन यह सब स्थाई नहीं है। असली बदलाव तो तभी होगा जब कंपनी लंबे समय तक मुनाफा कमाएगी और वह तुम्हारी बातों से नहीं, बड़े फैसलों से होता है।”
अनाया ने मुस्कुरा कर कहा,
“बिल्कुल साहब, और वही मैं आपको दिखाने वाली हूं। मेरे पास एक आखिरी प्लान है।”
उसने शर्मा को बताया कि कंपनी की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी सप्लाई चेन है। गोदामों में करोड़ों का माल पड़ा रहता है, लेकिन दुकानों तक समय पर नहीं पहुंचता। ड्राइवर और मैनेजर आपस में मिलकर रिश्वत लेकर सामान की डिलीवरी टालते रहते हैं, जिसकी वजह से बाजार में प्रतियोगियों को फायदा मिलता है।
“अगर हम यह सिस्टम बदल दें तो कंपनी का खून फिर से तेज दौड़ने लगेगा।”
उसने सुझाव दिया और फैक्ट्री से दुकानदार तक का सीधा नेटवर्क बनाया। बीच के बिचौलियों को हटाकर छोटे ट्रांसपोर्टर से सीधी डील की। उसने मजदूरों की मदद से एक मोबाइल ऐप डिजाइन करवाया जिसमें हर ट्रक की लोकेशन रियल टाइम दिखती थी और दुकानदार सीधे ऐप से ऑर्डर कर सकते थे। यह सब उसने किसी बड़ी टेक कंपनी की मदद से नहीं, बल्कि पास के इंजीनियरिंग कॉलेज के कुछ स्टूडेंट्स को बुलाकर करवाया जिनके लिए यह बस एक प्रोजेक्ट था। लेकिन उनकी मेहनत और अनाया की लगन से सिस्टम कुछ ही दिनों में चालू हो गया।
जब यह सिस्टम चला तो परिणाम चौंकाने वाले थे। पहले जहां सामान दुकानों तक पहुंचने में 5 दिन लगता था, अब 2 दिन में पहुंचने लगा। दुकानदार खुश हुए। बिक्री दोगुनी हो गई और कंपनी का कैश फ्लो सुधर गया।
जब यह रिपोर्ट बोर्ड मीटिंग में पेश हुई तो सारे मैनेजर दंग रह गए। उन्होंने पहली बार महसूस किया कि यह लड़की कोई जादू नहीं, बल्कि असली काम कर रही है। अरविंद शर्मा की आंखों में भी हल्की चमक आई लेकिन उनका अहंकार अब भी बीच में खड़ा था।
उन्होंने कठोर स्वर में कहा,
“ठीक है। तुमने 3 महीने में अच्छा काम किया है। लेकिन यह मत समझो कि तुमने कंपनी को बदल दिया है। यह सब अस्थाई है। असली परीक्षा तो आने वाले सालों में होगी।”
अनाया ने शांति से कहा,
“साहब, आप सही कह रहे हैं, लेकिन मैंने साबित कर दिया कि डिग्री या पद नहीं, बल्कि नीयत और मेहनत फर्क लाती है। आपने मुझे 3 महीने का मौका दिया था और आज आपकी कंपनी फिर से खड़ी है। अब फैसला आपका है कि आप मुझे बाहर निकाल देंगे या आगे बढ़ने देंगे।”
नया दौर
मीटिंग खत्म होने के बाद अरविंद शर्मा देर रात तक अकेले अपने केबिन में बैठे रहे। खिड़की से बाहर चमकती मुंबई की लाइटों को देखते हुए उन्हें अपने पुराने दिन याद आने लगे जब उन्होंने भी बिना किसी डिग्री के सिर्फ जिद और मेहनत से कंपनी की नींव रखी थी। उन्होंने महसूस किया कि वही जिद आज इस लड़की में जिंदा है। जिस अहंकार से उन्होंने खुद को बांध रखा था, वही उनकी कंपनी को डूबा रहा था।
अगले दिन उन्होंने अचानक सभी कर्मचारियों को हॉल में बुलाया और मंच पर खड़े होकर कहा,
“आज मैं आप सबके सामने एक सच स्वीकार करना चाहता हूं। मैंने हमेशा काबिलियत को डिग्री से तोला। मैंने हमेशा सोचा कि जो सर्टिफिकेट लाएगा वही इस कंपनी को आगे बढ़ाएगा। लेकिन आज इस लड़की ने साबित कर दिया कि असली डिग्री इंसान की मेहनत और ईमानदारी होती है। अनाया ने मुझे आईना दिखाया है और आज से शर्मा इंडस्ट्रीज में हर किसी को मौका मिलेगा। चाहे उसके पास डिग्री हो या ना हो।”
यह सुनकर हॉल तालियों से गूंज उठा और मजदूरों की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। अनाया की मां का ऑपरेशन भी उसी दौरान हुआ और कंपनी ने उसके सारे खर्च उठाए। मां स्वस्थ होकर घर लौटी तो उन्होंने बेटी को गले लगाते हुए कहा,
“तूने साबित कर दिया कि पढ़ाई से ज्यादा हिम्मत और सच्चाई काम आती है।”
यह सुनकर अनाया की आंखों में भी आंसू आ गए। लेकिन उसके भीतर एक अजीब सुकून था कि उसने सिर्फ अपनी मां ही नहीं, बल्कि सैकड़ों मजदूरों और हजारों दुकानदारों की जिंदगी बदल दी है।
अरविंद शर्मा ने अनाया को कंपनी का स्पेशल एडवाइजर घोषित किया और कहा कि,
“आज से यह हमारी आंखें होंगी। जहां हमारी नजरें नहीं पहुंचती वहां यह पहुंचेगी।”
और उसी दिन से शर्मा इंडस्ट्रीज ने फिर से उड़ान भरना शुरू कर दिया। तीन महीने पहले जो लड़की शर्मा टावर्स के गेट पर अपमानित होकर खड़ी थी, आज वही लड़की उसी इमारत की सबसे ऊपरी मंजिल पर खड़ी थी। उसकी आंखों में वही चमक थी, वही विश्वास, लेकिन अब वह अकेली नहीं थी। पूरी कंपनी उसके साथ थी।
कहानी की सीख
यह कहानी सिर्फ एक लड़की की जीत नहीं थी, बल्कि इस बात का सबूत थी कि जिंदगी की असली यूनिवर्सिटी सड़कें हैं, हालात हैं और संघर्ष हैं। वहां से निकला हुआ इंसान किसी भी डिग्रीधारी से ज्यादा बड़ा हो सकता है। बस उसे मौका चाहिए।
दोस्तों, अनाया की यह कहानी हमें यही सिखाती है कि काबिलियत कभी डिग्री की मोहताज नहीं होती। डिग्री सिर्फ एक कागज का टुकड़ा है, लेकिन असली ताकत इंसान के हुनर, उसकी सोच और उसकी मेहनत में होती है। जब हालात मुश्किल हो और सब रास्ते बंद लगे, तभी असली जज्बा सामने आता है।
अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो इसे लाइक कीजिए, कमेंट में बताइए कि अनाया की किस बात ने आपको सबसे ज्यादा प्रेरित किया। इस कहानी को अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर कीजिए ताकि यह संदेश उन तक भी पहुंचे जो डिग्री ना होने की वजह से खुद को कम समझते हैं।
धन्यवाद।
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